वक्ता: एक कॉलेज में था और सभी छात्रों से बात कर रहा था; काफ़ी चिंतित लग रहे थे सब। अभी-अभी रिज़ल्ट निकला है, जनवरी की बात थी, बैक आ गयीं हैं। अब संवाद चल रहा है और मुँह लटका के बैठे हैं तो मैंने कहा कि ऐसे नहीं बात करुँगा तुमसे। पहले बताओ कि हुआ क्या है? बोले ‘रिज़ल्ट आए हैं’। तो मैंने कहा कि क्या हो गया? बोले ‘बस पूछिए मत ज़िन्दगी ख़त्म हो गयी है’। मैंने कहा कुछ बताओ तो तो बोले ‘आज हम कुछ बात ही नहीं कर सकते। आज तो बस हमें छोड़ ही दीजिये, आज तो हम बर्बाद हो गए हैं। ’ मैंने कहा रिज़ल्ट ही तो आया है, क्या हो गया? बोले ‘हम बहुत उदास हैं, बहुत दुखी हैं।’ तो मैंने कहा कि चलो तुम्हारी उदासी और दुःख को समझते हैं। मैं आज तुमसे कोई और बात ही नहीं करूँगा, यही बात करते हैं।
मैंने कहा यह रिज़ल्ट आया है तो ये जो मार्क शीट आएगी इसको अगर किसी कपबोर्ड में बस रख देना होता कि आई और रख दिया। किसी को दिखाना नहीं है। न माँ-बाप को दिखाना है, न दोस्तों को दिखाना है और न किसी एम्प्लोयर को दिखाना है। कोई संभावना ही नहीं है किसी को दिखाने की, बस आई है और तुम्हें पता है कि तुम्हारे इतने हैं, सिर्फ तुम्हें पता है। और तुमने इसे रख दिया, कभी अब ज़रूरत नहीं पड़ेगी किसी को दिखाने की। तो क्या तब भी इतने ही उदास होते? बोले ‘नहीं, तब क्यूँ उदास होते? कोई अफ़सोस ही नहीं आप ऐसा कर के दिखा दीजिए बस। ’
कोई संभावना ही नहीं है किसी को बताने की, न कोई पूछेगा, कोई महत्त्व ही नहीं है इसका। बोले तब कोई नहीं। कम से कम 70% कमी हो जाती है, हमारे दुःख में। तो मैंने कहा कि इसका मतलब समझो। तुम्हारी उदासी, तुम्हारी ये जो हवाइयाँ उड़ रहीं हैं, ये मार्क्स को ले कर के नहीं हैं, ये इस बात को ले कर के हैं कि मैं अब दूसरों को मुँह क्या दिखाऊँगा। एम्प्लोयर पूछेगा तो क्या बताऊंगा, घर से फ़ोन आएगा तो क्या जवाब दूँगा? और दोस्तों के सामने भी नाक कट गयी।
तुम्हें मार्क्स का कम अफ़सोस है, दूसरों का ज़्यादा अफ़सोस है। तो तुम देखो कि दूसरों से तुम्हारा रिश्ता किस आधार पर है। आधार क्या है रिश्ते का? डर का। और वो भी किनसे? जो तुम्हारे सबसे करीबी लोग हैं उन्हीं से डरे हुए हो। कितने ही छात्र होते हैं फाइनल इयर में, एम. बी.ए के फाइनल इयर के छात्र होते हैं, वो आ कर के बताते हैं कि ‘सर, एक बतानी है। नौकरियाँ तो लगती नहीं हैं आज कल। कैसी हालत है आपको तो पता ही है कॉलेज की भी और पूरी अर्थ व्यवस्था की भी। पर घर पर हमने फ़ोन कर के बोल दिया कि नौकरी लग गयी है।’ कई आते हैं नौकरी लगी होती है 8 हज़ार की, 10 हज़ार की, घर पर बता देते हैं कि 15 हज़ार की लग गयी है। और घर वाले फिर जा कर के पड़ोसियों को बताते हैं कि 20 हज़ार की लग गयी है। पड़ोसी अपने पडोसी को बताता है कि 25। अपने बेटे को बोलता है कि तू ही नालायक रह गया, वहाँ वो होनहार। अभी-अभी पास-आउट हुआ और हाथ में 25 हज़ार की नौकरी।
यह चल क्या रहा है? क्या हम ध्यान से देख नहीं सकते अपनी ज़िन्दगी के इन रोज़ की घटनाओं को? हम सब इस लायक हैं, हमारे दोस्त भी इस लायक हैं, हमारे माँ-बाप भी इस लायक हैं कि हम में आपस में एक स्वस्थ सम्बन्ध हो और निश्चित रूप से होनी चाहिए, पर क्या है? हमें इमानदारी से देखना पड़ेगा। अपने-आप से झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है। क्यूँकी जीवन हमारा है उसको बेहतर बनाने का ज़िम्मा भी हमारा ही है। जब तक हम स्वीकार ही नहीं करेंगे की बीमारी है तब तक बीमारी का इलाज कैसे होगा? हमारे माँ-बाप भी तो इंसान हैं और वो भी इस लायक हैं न कि उनके बच्चों से उनका एक अच्छा सम्बन्ध रहे? क्या हैं वो इस लायक? हैं कि नहीं हैं?
सभी श्रोता: हाँ, सर।
वक्ता: पर क्या वो अच्छा सम्बन्ध हम उन्हें दे पाते हैं? सम्बन्ध बढ़िया हो, सम्बन्ध स्वस्थ हो, सम्बन्ध प्रेम की बुनियाद पर हो इसके लिए आवश्यक है कि पहले सम्बन्ध को ठीक-ठीक देखा जाए। समझा जाए कि चूक कहाँ पर हो रही है, गड़बड़ कहाँ पर हो रही है। जब भी यह समझा जाएगा तभी तो सुधार हो पाएगा न? पर अगर हम समझने को ही तैयार न हों, हम कहें कि तुमने कह कैसे दिया? अरे! कह क्या दिया आँखें खोलो खुद ही देखो। मेरे कहने की आवश्यकता क्या है? अपना जीवन है, अपनी आँखें हैं, अपना सम्बन्ध है; आँखें खोलो और देख़ लो सत्य। यहीं है, तुम्हारे सामने है।
अटेंडेंस का ज़ोर न हो तो हम कॉलेज नहीं आएँगे तो बताओ कॉलेज से सम्बन्ध डर और लालच का नहीं है? अभी पता चल जाए कि बी.टेक के अंत में डिग्री नहीं मिलनी हैं। हाँ, पढ़ाई पूरी कर सकते हो; कॉलेज उपलब्ध हैं, शिक्षक उपलब्ध हैं, पुस्तकालय उपलब्ध हैं, परिक्षाएँ भी होंगी लेकिन अंत में डिग्री नहीं मिलेगी तो 80-90% लोग या शायद सारे ही कोर्स छोड़ कर भाग जाएँगे। तो क्या तुम्हारा पढ़ाई से सम्बन्ध लालच का नहीं है? कि अगर डिग्री मिल रही है, तो तो पढेंगे नहीं तो नहीं पढेंगे। तुम्हें क्या पढने से प्रेम है? नहीं, पढने से जिसे प्रेम होगा वो तो कहेगा कि डिग्री मिले या न मिले, मैं तो पढूँगा। मुझे इंजीनियरिंग पसंद है, मज़ा आता है मुझे पढ़ने में और यह सब हमारी ज़िन्दगी की बातें हैं। हमें इन्हें देखना होगा साफ़-साफ़। जब इन्हें साफ़-साफ़ देखेंगे फिर अचानक परिवर्तन आता है। फिर सुधार होता है, फिर एनर्जी रहती है, फिर मज़ा आता है। आ रही है बात समझ में? खुद देखो क्लास-रूम में जाते हो, किसी भी क्लास में चले जाना और देखना कि सबसे पहले कौन सी सीट भरती हैं जब बच्चे अन्दर आते हैं। देखना ध्यान से देखना। कौन सी भरती हैं बेटा?
सभी श्रोता: सबसे पीछे वाली।
वक्ता: सबसे पीछे वाली। आज भी तुम यहाँ पर आए तो ठीक यही हुआ। आखिर में यह जो आगे के सोफ़े हैं इन्हें तो मुझे ही भरना पड़ा है न? पीछे तुम पता नहीं कितनी दूर तक बैठे हुए थे तुम्हें एक-एक कर के आगे मैंने ही बुलाया है। अगर मैं क्लास रूम में जाता हूँ और मेरा मन करता है कि सबसे पीछे जा कर के कहीं छुप कर बैठ जाऊँ तो मेरा उस विषय से फिर कैसा सम्बन्ध है? किस आधार पर है? पदार्थ, जानवर या मनुष्य? ध्यान से देखो।
श्रोता: मटेरियल
वक्ता: कह सकते हो मटेरियल ही क्यूँकी समझ में ही नहीं आ रहा कि मैं यहाँ हूँ क्यूँ? क्या मज़ा न आए अगर क्लास रूम में पढ़ने में एक एक उत्साह, एक ऊर्जा रहे? कितना बदल जाएगा सब कुछ तब। तब अंकों की पर्वाह भी नहीं करनी पड़ेगी, अंक अपने आप आएँगे। पर अगर हमसे कोई बोल देता है कि बेटा जो कुछ करते हो डर-डर कर ही करते हो या फिर लालच में करते हो तो हमें बड़ा अपमान महसूस होता है। है न? बड़ा अपमान लगता है कि अरे! हमें ऐसा बोल दिया कि तुम्हारे सम्बन्ध तो प्रेम के आधार पर हैं नहीं। तुमसे यह इसी लिए बोल दिया क्यूँकी तुमसे प्रेम है, तुम्हारे दुश्मन नहीं है हम। चाहते हैं कि कुछ अच्छा हो, तुम्हारे दुश्मन नहीं हैं हम।
डॉक्टर के पास जाओ, तुमको बीमारी हो, तो डॉक्टर दिखाएगा नहीं कि यह बीमारी है? जब बीमारी पता चल जाती है तो फिर उसके बाद क्या होता है? बीमारी का इलाज होता है और डॉक्टर अगर छुपाए ही जाए तुमसे बात को तो वो कैसा डॉक्टर है? हड्डी टूटी हुई है और वो बता ही नहीं रहा कि हड्डी टूटी हुई है वो कह रहा हो यह लो यह स्प्रे है, यह लगा लिया करो ठीक हो जाएगा। अब दर्द तुमको हो रहा है, ज़िन्दगी कष्ट में बीत रही है और वो कह रहा है नहीं, सब ठीक है। यह कैसा डॉक्टर है? आ रही है बात समझ में?
तो एच. आई. डी. पी में अक्सर ऐसा कुछ मिलेगा तुम्हें जो कड़वा लगेगा। समझ रहे हो? अक्सर कुछ ऐसा मिलेगा जो थोड़ा भारी लगेगा, कड़वा लगेगा कि यह क्या बात कही जा रही है पर यह बात समझ लो कि यह जो भी कहा जा रहा है वो सद्भावना में कहा जा रहा है। वो इसी लिए कहा जा रहा है क्यूँकी हित चाहते हैं तुम्हारा, चाहते हैं कि अच्छा हो। तुम बिलकुल निखर कर सामने आओ।
‘शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।