प्रश्न: कहते हैं कि एक साइक्लिकल कांसेप्ट (चक्रीय संकल्पना) है, दूसरा एकलीनियर कांसेप्ट (रैखिक संकल्पना) है। समय, जो एक गति से आगे बढ़ा वो पीछे को नहीं जा सकता। स्वाभाविक रूप से जो साइक्लिकल कांसेप्ट (चक्रीय संकल्पना) है उसने, जो बैकवर्ड कांसेप्ट (पिछड़ा संकल्पना) है, इसे कभी सही नहीं माना है। इस कांसेप्ट (संकल्पना) के बारे में बताईये।
वक्ता: आप एक वृत्त लीजिये – गोल – उसको अगर आप चौथाई काट दें – एक आर्क (चाप), तो वह कैसी दिखाई देगी? कैसी दिखाई देती है? चंद्राकार दिखाई देगी? उसको और छोटा कर दीजिए, अब वह कैसी दिखई देगी? हमनें एक वृत्त लिया, एक सर्कल (वृत्त) लिया, उसको फिर चौथाई काटा, अब उसको और छोटा काटा, अब वो कैसा दिखाई देगा?
अब और छोटा काटा, अब कैसा दिखाई देगा?
श्रोता: लीनियर (रैखिक) लाइन।
वक्ता: कैसा दिखाई देगा?लीनियर (रैखिक) दिखाई देगा न अंततः?
तो जिनकी दृष्टि ज़रा आगे तक गयी, जो ये समझ पाए कि जो जाता दिखता है वह लौट कर भी आता है; कुछ कभी जाता नहीं; आप एक युग को समझ लीजिये एक पल, समय का एक बहुत छोटा सा खंड। जो जाता दिखता है वह लौटेगा भी, जो यह समझ पाए, उन्होंने समय को चक्र के रूप में इंगित किया। और जिन्होंने अपनी दृष्टि सीमित रखी, छोटी रखी, उन्होंने उसको रेखाकार माना – लीनियर (रैखिक)।
उन्होंने कहा – पीछे भूत है, अभी वर्तमान है, आगे भविष्य है, तो एक सीध में समय की धारा दौड़ी जा रही है – लीनियर (रैखिक)। उन्होंने इस बात को जाना ही नहीं कि आगे जो है वह पीछे का ही है। और जब जो आगे है उसे आप पीछे भी देख पाओ तो एक ही आकार है जिसे प्रयुक्त किया जा सकता है प्रतीक के रूप में और वो है – वृत्त।
बात को समझिएगा।
जब जो आगे हो वह पीछे भी हो, तो सिर्फ एक आकार है जिसमें यह हो सकता है, वो वृत्त है। तो जिन्होंने द्वैत को समझा, उन्होंने समय को वृत्ताकार जाना। और जिन्होंने उसे नहीं समझा उन्होंने समय का लीनियर कांसेप्ट (रैखिक संकल्पना) दिया कि – पीछे, यह, आगे – भागे जा रहे हैं। और अगर तुम्हारी दृष्टि वृत्त के बहुत छोटे से अंश को देखेगी तो लगेगा ऐसा ही कि जैसे रेखा है, सीधी रेखा है। वो जैसे-जैसे तुम पूरा देखते जाओगे फिर पता चलेगा कि ‘अरे नहीं सीधी रेखा नहीं थी’।
~‘बोध सत्र’ पर आधारित | स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त है |