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समाज में गन्दगी के लिए सिनेमा कैसे ज़िम्मेदार? || नीम लड्डू
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
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एक बार आप कहीं के लोगों की आदत डलवा दें, कि तुम्हें माँस-ही-माँस खाना है, बिलकुल सब और तला-भुना भी खाना है। अब क्षेत्र में अगर कोई आकर के सेहतमंद खाना बेचना भी चाहे तो उसका रेस्तराँ बंद हो जाएगा कि नहीं हो जाएगा?

तो यह लोग जो गंदगी फैला रहे हैं समाज में सिनेमा के द्वारा, यह न सिर्फ़ समाज को ख़राब कर रहे हैं बल्कि अच्छे कलाकार, अच्छे फ़िल्ममेकर्स हैं, उनका धंधा भी चौपट कर रहे हैं। यह एक ऐसी व्यवस्था है, एक ऐसे माहौल का निर्माण कर रहे हैं जिसमें सिर्फ़ घटिया और गंदे लोग ही पनप सकते हैं, प्रोस्पर (फलना) कर सकते हैं।

क्योंकि यह जनता का टेस्ट (स्वाद) ही ख़राब करे दे रहे हैं न? यह जनता का पूरा जो मन है, मेंटालिटी (मानसिकता) है, आदत है, स्वाद है, वही ख़राब करे दे रहे हैं। अब कोई अच्छा आदमी आ करके कुछ बोलेगा भी तो जनता उसे सुनेगी नहीं, तो जितने अच्छे लोग होंगे वह ख़ुद ही पीछे हटते जाएँगे, गायब होते जाएँगे।

कब्ज़ा किन का होता जाएगा? ये ही इन्हीं सब फ़ूहड़ और अश्लील लोगों का।

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