प्रश्नकर्ता: सर नमस्ते! हम लाइफ पार्टनर (जीवन-साथी) का सेलेक्शन (चयन) कैसे कर सकते हैं? एक या दो बार मिलने पर सभी अच्छे ही लगते हैं। हमको क्या देखना चाहिए, किस आधार पर निर्णय लें?
आचार्य प्रशांत: तुम्हें अपनी पसन्द नहीं अपनी कमज़ोरियाँ देखनी चाहिएँ, ये उन सब लोगों के लिए है जो शादी-ब्याह वगैरह की प्रक्रिया से गुज़र रहे हों, लड़के-लड़कियों का चयन वगैरह करने का काम कर रहे हों। पसन्द पर मत चले जाना, और खास तौर पर जो तत्काल, पहले क्षण की पसन्द होती है कि देखा और कोई पसन्द आ गया। उस पर नहीं। अपनी कमज़ोरियों के आधार पर चयन करना।
उसके लिए बड़ी विनम्रता चाहिए। सबसे पहले तुम्हें ये स्वीकार करना होगा कि तुम्हारे जीवन में क्या-क्या है जो ठीक नहीं है, जो रोगी है, कमज़ोर है, जिसको विकास की, सुधार की ज़रूरत है और फिर तुम्हारी ज़िन्दगी में जो प्रवेश करने वाला हो उसकी ओर देखना, कहना कि 'मेरे भीतर वो सब कुछ, जो मेरा बन्धन है, कष्ट है, रोग है, दुर्बलता है, क्या इस व्यक्ति के माध्यम से वो ठीक होगा?'
मेरे भीतर एक रोग है, दुर्बलता है, बन्धन है, ये जो इंसान है जिससे रिश्ता बनाने जा रहा हूँ, ‘क्या इस इंसान में वो क्षमता है, ताकत है कि वो मेरे भीतर की दुर्बलताओं को, अँधेरे को, अज्ञान को ठीक कर पाये? या ये इंसान मुझे पसन्द आ ही इसीलिए रहा है क्योंकि ये मेरी कमज़ोरियों को संरक्षण और प्रश्रय देगा, जहाँ मैं कमज़ोर हूँ, दुर्बल हूँ उस जगह को ये कभी छुएगा ही नहीं, और मुझे सुरक्षित रखेगा।‘
समझ में आ रही है बात?
जो मैं बात बोल रहा हूँ ये आप आसानी से मानना चाहेंगे नहीं क्योंकि बात कठिन है। हमें वो लोग पसन्द आते हैं जो हमारी कमज़ोरियों की कभी बात न करें और हमारी कमज़ोरियों पर कभी घात न करें।
अगर मैं कहीं कमज़ोर हूँ, मुझे बड़ा अच्छा लगेगा कोई ऐसा आए कि उस जगह को बस सहला के, दुलरा के चला जाए। किसी वजह से एक हाथ मान लीजिए कमज़ोर हो गया हो मेरा, मुझे वो व्यक्ति पसन्द आएगा ही नहीं जो आकर के मेरे उसी हाथ पर वज़न रख देता हो। मुझे तो वो इंसान पसन्द आएगा जो आए और बार-बार कहे कि ‘कोई बात नहीं तुम्हारा ये हाथ अगर कमज़ोर है तो तुम्हारा दाँया हाथ अब से मैं बन जाऊँगा।’ ये इंसान मुझे बहुत अच्छा लगेगा।
मेरा दाँया हाथ मान लीजिए कमज़ोर हो गया है, मेरी ज़िन्दगी में कोई आ रहा है और वो कह रहा है कि तुम फ़िक्र मत करो, अब से तुम्हारा दाँया हाथ मैं हूँ, ये इंसान मुझे बहुत भाएगा। मैं कहूँगा, ‘ऐसा प्रेमी नहीं देखा, ये मेरा दाँया हाथ बनने को तैयार है।’
वो तुम्हारा दाँया हाथ बनने को तैयार है या वो तुम्हें दाँयें हाथ से लाचार, अपंग कर रहा है? दूसरा व्यक्ति आता है, वो कहता है, ‘तुम्हारे दाँयें हाथ में कमज़ोरी है न, क्या होता है?’ तुम कहते हो, ‘इतना उठाते हैं उसके बाद दर्द होता है, वो कहता है, ‘ठीक है, हाथ देना’, और पूरा खींचता है और तुम कराहते हो आह! और करहाते हो, और तुम्हारे मन से बड़ा रोश उठता है, बड़ी आपत्ति उठती है, बड़ी शिकायत बल्कि घृणा उठती है, तुम कहते हो, ‘क्या आदमी है, दुश्मन है मेरा’, ये आदमी तुमको पसन्द नहीं आएगा क्योंकि ये तुम्हारी कमज़ोरी पर वार कर रहा है।
लेकिन साहब! कमज़ोरियों पर वार होगा तभी तो कमज़ोरियाँ कटेंगीं। अब खासतौर पर शादी-ब्याह के मसलों में तो हमें ऐसा कोई चाहिए ही नहीं कि जो कमज़ोरियों पर वार करे। हमें तो जीवन-साथी ही वही चाहिए जो अगर दाँया हाथ कमज़ोर है तो कहे कि, ‘आज से तेरा दाँया हाथ मैं हूँ जानेमन’। बड़ी प्रफ़ुल्लता दौड़ जाती है, अहा हा हा!
कौन इतना ज़ोखिम उठाये कि जो चीज़ सामने वाले को पसन्द नहीं आती, उसको वो बताये। कौन इतना खतरा उठाये कि सामने वाले की कमज़ोरियाँ गिनाये, और सिर्फ़ गिना नहीं रहा वो उन कमज़ोरियों को ठीक करने का, वो उन कमज़ोरियों की शुद्धि का अभ्यास करने का ज़िम्मा भी उठा रहा है। इतना कौन करे?
इतना प्रेम बहुत कम लोगों में होता है कि वो तुम्हारी कमज़ोरियाँ गिनाएँ और फिर तुम्हारे साथ जान लगाकर उन कमज़ोरियों से मुक्ति का अभियान भी चलाएँ, इतना प्रेम बहुत कम लोगों में होता है।
ये जो साधारण प्रेमी होते हैं, शरीर के तल वाले, इनको तो अगर पता होगा की तुम्हें कोई चीज़ पसन्द नहीं है या कहीं पर तुम कमज़ोर हो, ये उस जगह की बात ही नहीं करेंगे, कहेंगे इससे वो वाली बातें करो तो इसका मूड खराब हो जाता है।
इससे वो वाली बात करनी ही नहीं है, इसका मूड खराब हो जाता है तो फिर हमें उससे वो सब मिलता नहीं जो इससे हमें चाहिए। तो जो लोग तुम्हारी ज़िन्दगी में आने वाले हों, तुमने कहा लॉइफ पॉर्टनर का सिलेक्शन, जो भी इसका मतलब है, उनको इसी कसौटी पर कसना, ये व्यक्ति मुझे सान्त्वनाएँ देने वाला है या साहस।
अधिकांशतः ये सब जो तन के प्रेमी होते हैं ये सान्त्वनावादी ही होते हैं। इनका काम ये नहीं होगा कि ये तुम्हारी ज़िन्दगी में साहस और शौर्य और सत्य लेकर के आयें। हमारी अहम् वृत्ति को झूठ प्यारा होता है, हम झूठ बहुत आसानी से खरीद लेते हैं, झूठ बिकता है तो ज़्यादातर लोग तुम्हारी ज़िन्दगी में झूठ ही लेकर के आएँगे।
तुम बिलकुल साधारण नयन नक्श के होगे तुमसे वो बोलेंगे, ‘तुम से बढ़कर प्यारा कौन, तुम से बढ़कर सुन्दर कौन।’ और अगर तुमको पता है कि तुम साधारण नयन नक्श के हो और कोई सामने खड़ा होकर-के ये बोल गया कि, ‘तुमसे बढ़कर प्यारा कौन’ सिर्फ़ इसी बात पर खारिज कर दो उसे, बोलो, ‘टूटा, इसी बात पर टूटा रिश्ता।‘
जो कोई तुमसे तुम्हारे चरित्र के दोषों पर चर्चा न करना चाहे, उसको जान लो कि उसका तुम्हारे जीवन में प्रवेश तुम्हारे लिए शुभ नहीं होने वाला और जो कोई तुम्हें अनुमति न देता हो कि तुम उसके दोषों पर चर्चा करो, उसको भी जान लो कि तुम्हारे लिए अच्छा नहीं है।
तुम्हारे प्रेमी को तुम्हारा सबसे बड़ा आलोचक होना चाहिए पर ये बात ही कितनी कठिन है, प्रेमी से हमें आलोचना थोड़ी चाहिए, प्रेमी से तो हमको आभूषण चाहिए, आकर्षण चाहिए, आलोचना नहीं चाहिए।
बेटा! या तो स्वस्थ सम्बन्ध बना लो आलोचना का, नहीं तो ज़िन्दगी भर आलू-चने का सम्बन्ध रहेगा, जो कि आम तौर पर पति-पत्नियों का होता है। ‘सुनो जी! आज आलू और चना बनेगा’ और तुम आलोचना भी नहीं कर सकते।
जो तुम्हारे जितने निकट हो उसको तुम्हारा उतना प्रबल आलोचक होना चाहिए। आलोचक माने निन्दक नहीं होता कि तुम सामने आए और उसने फट से दो गालियाँ दीं। वो नहीं बात कर रहा हूँ, कि सुबह उठाने के लिए भी तुम्हारे मुँह पर जूता मार रहा है। कहे, उन्होंने बताया था कि जो जितने निकट हो उसे उतना प्रबल आलोचक होना चाहिए कि सुबह तुम उठ नहीं रहे और उसने तुम्हारी बिलकुल बेल्ट निकाली, वेस्ट बेल्ट, और सटाक से मारा। कहे कि देखो ऐसे ही तो तुम्हारी आध्यात्मिक तरक्की होगी। ठीक है?
आलोचक का मतलब है जो साफ़-साफ़ समझता हो तुम्हारे मन की हालत, मन के ढर्रे, मन की पूरी संरचना और बनावट। आलोचन, लोचन शब्द है उसमें, देख पाना, जिसकी नज़र साफ़ हो तुम्हारे लिए, साफ़-साफ़ देख पा रहा है तुम कौन हो और चूँकि वो देख पा रहा है कि तुम कौन हो तो फिर तुम्हारी सहायता कर सकता है वो बेहतर बनने में।
ज़िन्दगी में कोई भी निर्णय इसीलिए किया जाता है न कि तुम बेहतर बन पाओ? तो शादी-ब्याह का निर्णय भी इसी हिसाब से करो कि बेहतर बन पाओ। इसलिए नहीं करना है शादी कि ज़िन्दगी में कोई आ जाएगा, उससे घर भर जाएगा, कुछ शारीरिक सुख मिलने लगेगा ये सब ये टुच्ची बातें हैं।
जैसे हर काम प्रगति के लिए करना है वैसे ही शादी भी आन्तरिक प्रगति के लिए ही करो, और कोई लक्ष्य नहीं होना चाहिए विवाह का। तुम्हारे सामीप्य से, तुम्हारी संगति से हम एक बेहतर इंसान बन पाएँगे इसलिए तुम हमारी ज़िन्दगी में आओ और अगर तुम्हारी संगति से हम बेहतर इंसान नहीं बन रहे, हमारा पतन हो रहा है तो निकलो बाहर अभी बाहर निकलो।
आ रही है बात समझ में?