रूप की रानी || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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रूप की रानी || नीम लड्डू

स्त्री चूँकि गर्भ रखती है तो प्रकृति ने ही उसे शरीर के प्रति बड़ा संवेदनशील बना दिया है। वो बार-बार अपने शरीर को देखती रहती है क्योंकि उसको एक बहुत महीन काम करना है, डेलिकेट काम; उस काम में अगर ज़रा भी गड़बड़ हो गई, इंफेक्शन हो सकता है, कुछ भी हो सकता है...

तो कुछ तो प्रकृति ने तुमको ‘देह-केन्द्रित’ बना दिया, और बाकी काम किसने कर दिया? पुरुषों ने कर दिया। “धूप में निकला न करो रूप की रानी गोरा रंग काला न पड़ जाए।“ बोली, “ठीक, हम तो नहीं निकलेंगे! हम तो रूप की रानी हैं।“ धूप में नहीं निकलेगी, मेहनत नहीं करेगी तो घर में क्या गुड़िया बनकर बैठेगी? बाहर निकल ज़मीन का स्वाद चख, धूल खा, पत्थर फाँक। “नहीं जी, आई एम द डॉल ऑफ द हाउस! (मैं तो घर में रखी गुड़िया हूँ)” बन जाओ ‘*डॉल ऑफ द हाउस*’।

और महिलाएँ सोचती हैं कि इसमें बड़ा सम्मान है, बड़ा प्रेम है कि, ‘हम तो जी घर में रहते हैं, आई एम द क्वीन ऑफ द हाउस (मैं तो घर की रानी हूँ)।‘ तुम समझ ही नहीं रहे हो कि तुम ‘*क्वीन ऑफ द हाउस*’ नहीं हो। इस बात के प्रति सतर्क रहो!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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