रूह के राज़ || संत रूमी पर (2017)

Acharya Prashant

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रूह के राज़ || संत रूमी पर (2017)

जब देखो कोई अपना, खोल दो रूह के राज़ देखो फूल तो गाओ, जैसे बुलबुल बाआवाज़ लेकिन जब देखो कोई धोखे व मक्कारी भरा लब सी लो और बना लो, अपने को बन्द घड़ा वो पानी का दुश्मन है, बोलो मत उसके आगे तोड़ देगा वो घड़े को, जाहली का पत्थर उठाके

~ संत रूमी

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, कृपया इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट करें।

आचार्य प्रशांत:

हर बात जो कही जाती है, हर उपदेश जो दिया जाता है, वो किसी ऐसे को दिया जाता है, जो उस वक़्त उसका पात्र होता है।

साधना में एक मक़ाम ऐसा आता है, जब आप ना इधर के होते हो, ना उधर के। आपके भीतर ताक़त धीरे-धीरे शक्ल ले रही होती है, जैसे कुम्हार का घड़ा पक रहा हो। अभी उसमें ज़ोर आया नहीं है, अभी वो जमा नहीं है। लेकिन आसार अच्छे हैं। इस वक़्त उसको सुरक्षा की ज़रूरत है।

एक समय ऐसा आएगा, जब तुम उसमें पानी पूरा भी भर दोगे, तो वो दरक नहीं जाएगा। एक समय ऐसा आएगा, जब तुम उसी घड़े को वाद्ययंत्र की तरह भी प्रयोग कर लोगे। और तब उसमें से संगीत बहेगा। तुम उसे मार रहे हो, तुम उसे चोट दे रहे हो, और उसमें से संगीत उठ रहा है। पर तब नहीं, जब अभी मिट्टी बैठी नहीं, जब अभी घड़ा कच्चा है।

तो अभी क्या करना होगा? अभी तो ज़रा थमने दो, जमने दो, पक्का होने दो, पकने दो। ये बात उस अवस्था के लिए है।

भूलना नहीं ये बात वो रूमी कह रहे हैं, जिन्होंने अपने लब कभी सिले नहीं। कह रहे हैं, “लब सी लो और बना लो, अपने को बन्द घड़ा।” रूमी ने बना लिया होता अपने को बंद घड़ा, तो कहाँ से होता ये सत्र, और कहाँ से आती ‘मसनवी’? स्वयं तो वो जीवन भर गाते रहे, और बाज़ारों में नाचे हैं। तो कहाँ उन्होंने स्वयं अपने लब सिए? पर निश्चित रूप से ये बात किसी ऐसे शागिर्द से कही है, जो अभी साधना की प्राथमिक अवस्था में ही है।

तो उसको कहा, “अभी तो तू बोल मत। अभी तो तू इस लायक नहीं कि तू बोले। अभी तो तू आंतरिकता में जा, अभी तो तू एकांतवास कर। अभी तो तू फल को पकने दे। अभी तो तेरे शस्त्र तैयार हो रहे हैं। अभी तो तू गर्भ में है, अभी तो तेरा जन्म नहीं हुआ। अभी तुझे शोभा नहीं देता कि तू संसार से उलझ जाए।”

बात समझ रहे हैं?

तो इसको, इस नसीहत को, पलायन का मार्ग मत बना लीजिएगा, कि रूमी ने ही तो सिखाया है कि बोल मत देना। ना! वो बात मात्र एक ख़ास अवस्था के लिए वैध है – एक अंतरिम अवस्था। उस अवस्था को गुज़र जाना है।

(प्रश्नकर्ता को सम्बोधित करते हुए) और जहाँ तक आपकी बात है, आप की वो अवस्था कब की गुज़र गई।

कच्चे फल को पकने दिया जाता है। पका फल और पकेगा, तो सड़ जाएगा। कच्चे फल को ये नसीहत बिलकुल ठीक है कि – “तू तो अभी टंगा रह।” पक्के फल को ये नसीहत दे दी गई कि – “तू अभी टंगा रह”, तो सिर्फ़ दुर्गन्ध मिलेगी। सड़ जाएगा।

पके फल को तो गिरना है। पके फल को तो अब बीजों को छितराना है, प्रसार करना है, गीत गाना है।

आप पके फल हो। आप लबों को मत सिल लेना। आप तो सारी सिलावट को काट दो, और लबों से गीतों को बहने दो। आगे सावधान करते हैं रूमी, “जो पानी का दुश्मन है, बोलो मत उसके आगे। तोड़ देगा वो घड़े को, जाहली का पत्थर उठाके।”

दुनिया के पत्थर आएँगे, दुनिया के आक्रमण होंगे। आपमें सामर्थ्य है उन आक्रमणों को झेलने की। आप तो गीत गाइए। कई साल पहले, मैंने कहा था, “पाओ, और गाओ।” तो आप तो गाओ। ना गाने की नसीहत उनके लिए है, जिन्हें अभी पूरा मिला नहीं। उन्हें शोभा ही नहीं देता गाना। वो क्या गा रहे हैं?

जो अभी अधूरेपन में है, वो गीत भी जाएगा तो अधूरेपन का होगा। उसके लिए उचित नहीं है कि वो गाए।

(प्रश्नकर्ता को सम्बोधित करते हुए)

आप गाओ! आप तो पके फल हो।

आपके माध्यम से तो अब कई अन्य वृक्ष उगने चाहिए। अब आप पेड़ से टंगे मत रह जाना। अब आप दुनिया के तानों की, और हमलों की, परवाह मत करने लग जाना। आप को नहीं शोभा देता।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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