रिश्ते मज़बूत कैसे हों? || आचार्य प्रशांत (2018)

Acharya Prashant

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रिश्ते मज़बूत कैसे हों? || आचार्य प्रशांत (2018)

प्रश्नकर्ता: मैं अपने रिश्ते और मज़बूत कैसे करूँ?

आचार्य प्रशांत: रिश्ते कमज़ोर या मज़बूत नहीं होते; रिश्ते सम्यक या असम्यक होते हैं, उचित या अनुचित होते हैं। जो रिश्ता उचित होगा, उसके औचित्य में ही उसका बल है; तुम्हें उसे और बल और दृढ़ता देने की ज़रूरत नहीं है। और जो रिश्ता असम्यक है, उसकी असम्यकता में ही उसकी दुर्बलता है।

तुम कह रहे हो मैं अपने रिश्ते और मज़बूत कैसे करूँ, इतना तो तुमने तय कर ही रखा है कि जैसे तुम्हारे रिश्ते हैं, तुम चलना उन्हीं के साथ चाहते हो। मेरा इस्तेमाल तो तुम बस ये पूछने के लिए कर रहे हो कि रिश्ते तो मैंने अब बना ही लिए हैं, ये बताओ इनको मज़बूत कैसे करना है। जैसे कोई तय करके जाए कि आज तो शराब ही पीनी है, और बस फिर इतना पूछे कि बताना ब्रांड कौन-कौन से उपलब्ध हैं। तो उस चुनाव के लिए तुम मुझसे प्रश्न कर रहे हो।

ये बना क्यों लिए हैं रिश्ते, ये तुम नहीं पूछ रहे, इसकी बात ही नहीं करना चाहते। तुम ऐसे हो क्या कि तुम प्रेम बाँटने के लिए रिश्ता बनाओ? अगर ऐसे हो तो तुम्हारे रिश्ते फिर स्वतः ही मज़बूत होंगे। एक ऐसा रिश्ता जिसमें तुम यदि चिंता करते भी हो तो बस इस बात की कि दूसरे का अहित न होने पाए, कि दूसरो को मैं ज़्यादा-से-ज्यादा दे पाऊँ, बाँट पाऊँ, वो रिश्ता तो स्वयं ही गहरा होगा, मज़बूत होगा।

और दूसरी ओर रिश्ता होता है बकरे और कसाई का भी, और क़साई ने बकरे को रस्सी से बाँध रखा है और ज़ोर से पकड़ रखा है, बड़ा मज़बूत रिश्ता है, पूरी मज़बूती से उसने उसको पकड़ रखा है।

तो मज़बूती भर अगर तुम्हें चाहिए तो बकरे और क़साई का रिश्ता भी क्या बुरा है। तुम कभी नहीं पाओगे कि क़साई ने बकरे को ढील दे रखी है और छोड़ रखा है; वो तो मज़बूती से ही पकड़ कर रखता है। कभी देखा है क़साई और बकरे का कमज़ोर रिश्ता, देखा है? वहाँ तो रिश्ता कैसा है? बहुत मज़बूत है। पर माँग तुम सिर्फ़ मज़बूती की कर रहे हो कि रिश्ता मज़बूत कैसे करना है, ये पूछ ही नहीं रहे कि रिश्ता है क्या।

पुलिस वाले और क़ैदी का भी बड़ा मज़बूत रिश्ता होता है; क़ैदी तोड़ कर दिखा दे वो रिश्ता। पुलिस वाला क़ैदी का मुँह तोड़ने को राज़ी हो जाएगा, रिश्ता नहीं टूटने देगा। तेरा मुँह टूटे तो टूटे, तेरी जान जाए तो जाए, रिश्ता नहीं टूटने दूँगा; तू भाग कर दिखा। क़ैदी रिश्ता तोड़ कर भागना चाहता है, पुलिस वाला कह रहा है, "न, जानेमन रिश्ता तो नहीं टूटेगा, गोलियाँ चल जाएँगी, रहेगा तो तू रिश्ते में ही। ये रही हथकड़ी और ये रही जेल, रिश्ते में ही रहेगा तू।" देखो कितना अद्भुत प्रेम है! रिश्ता नहीं टूटना चाहिए।

ये तो तुम पूछ ही नहीं रहे कि रिश्ता है क्या, तुम्हें बस एक बात से मतलब है, क्या? रिश्ता टूटे न। कैसे हैं तुम्हारे रिश्ते? और जब तक तुम्हारा मन परम तत्व में डूबेगा नहीं, पिघलेगा नहीं, तब तक तुम्हारे सारे रिश्ते क्षुद्र, संकीर्ण और स्वार्थपूर्ण ही होंगे। बात बहुत सहज है, जिसको परमात्मा नहीं मिला वो असंख्य छोटी-छोटी चीज़ें जोड़ता फिरता है क्योंकि परमात्मा चीज़ इतनी बड़ी है कि उसके न होने से दिल में परमात्मा के ही आकार का छेद रह जाता है; सोचो कितना बड़ा छेद होगा!

तुम्हारे दिल को वो चाहिए और वो मिलता नहीं है तो उसी के आकार का छेद बन जाता है दिल में। और तुम उस छेद को अब भरने की कोशिश करते हो, उसमें बहुत कुछ तुम डालते जाते हो। वो एक अनंत गुफ़ा है फिर, उसमें तुम फेंके जा रहे हो चीज़ें और वो गुफ़ा भरेगी नहीं। क्योंकि उसका आकार कितना बड़ा है? परमात्मा जितना, अनंत आकार है उसका। अब उसमें तुम भरे जाओ चीज़ें, भरे जाओ चीज़ें, तुम पूरी दुनिया भर देते हो उसमें, तुम पूरा ब्रह्माण्ड भर देते हो उसमें तो भी वो भरती नहीं। क्योंकि उसको तो सिर्फ़ वही भर सकता है जो उस जगह का अधिकारी था। और उसको तुमने वहाँ आने नहीं दिया, तुम्हारी करतूतें ऐसी।

अब तुम रिश्ते बना रहे हो। अब इसको पकड़-पकड़ कर मैं इससे (एक छोटी सी चीज़ से) रिश्ता क्यों बना रहा हूँ? ताकि ये परमात्मा का विकल्प बन सके। अब इसको देखो नन्हा, राजा बाबू। और परमात्मा कितना बड़ा? इतना बड़ा और ये इतना छोटा। और इसको मैं इस्तेमाल कर रहा हूँ, इस रिश्ते को इस्तेमाल कर रहा हूँ परमात्मा के विकल्प के रूप में; परमात्मा के खाली स्थान की आकर बेटा आपूर्ति कर दे। ये कर पाएगा? अब ये कर तो पा नहीं रहा और मैं इसको किस उम्मीद से लेकर आया था? कि यहाँ जो खाली जगह है ये उसमें बैठेगा तो जगह भर जाएगी। जगह भरी नहीं, तो अब मैं क्या करूँगा? मैं खिसियाऊँगा और इसी को थप्पड़ मारूँगा। 'खिसियानी बिल्ली राजा नोचे' ले पट।

‘इतने अरमानों से तुझे अपनी ज़िंदगी में लेकर आया था, रिश्ता बनाया था, कि तेरे आने से बहार आ जाएगी, समाधि ही लग जाएगी। पर लगी ही नहीं, तू पिट।‘ इसीलिए हमारा हर रिश्ता हिंसा का होता है, क्योंकि कोई भी रिश्ता तुम्हारी वो ज़रूरत पूरी ही नहीं कर सकता जिसकी ख़ातिर तुमने रिश्ता बनाया। हाँ, शुरू-शुरू में ऐसा भ्रम ज़रूर होता है, ऐसी आशा ज़रूर उठती है कि फ़लाना अगर आ गया मेरी ज़िंदगी में तो परमात्मा उतर आएगा। तुम गाते हो, "तुझमें रब दिखता है।" शुरू-शुरू में, फिर क्या दिखता है? फिर रबारब है, बर्तन खनखना रहे हैं पुलिस बुलाई जा रही है, बच्चे दहशत में हैं, कालीन के नीचे घुस गए हैं, धमकियाँ दी जा रही हैं कलाइयाँ मरोड़ी जा रही हैं, बाल नोचे जा रहे हैं। और बताओ, बताइए-बताइए, पाँच-सौ मिस्ड कॉल।

तुम जो उससे चाह रहे हो, वो दे नहीं सकता। तुम्हें क्या चाहिए था? वो, और वो अपनी शर्तों पर ही उतरता है। तुम्हें उसकी शर्तें मंज़ूर नहीं, तुम कहते हो, "बाबा, तू बहुत महँगा है।"

वो कहता है "ठीक है, अगली दुकान देख लो।"

तुम उससे कहते हो "बाबा तू बहुत महँगा है," क्योंकि वो क्या माँगता है? वो कहता है "अपना पूरा जीवन मुझे दे दो तो मैं तुम्हारे जीवन में उतरूँगा। तेरा जो कुछ है सब मुझ पर न्योछावर कर दे तो मैं आऊँगा तेरे पास।"

तुम कहते हो "ये माँग तो हम पूरी नहीं कर सकते," तो कहता है "ठीक है, जाओ अगली दुकान देखो।"

अब अगली दुकान पर बैठी हुई हैं रूपा, रुकमिणी। और तुम कहते हो "ये बढ़िया रहा, देखो सस्ते में मिल गया।" ये पीछे वाले मुँह फाड़कर के दम लगा रहे थे, कह रहे थे मैं परमात्मा हूँ और में तभी आऊँगा जब पूरा जीवन दे दो। ये देखो, ये तो आसानी से मिल गई। तो कहते हो "बढ़िया, तुझमें रब दिखता है, आजा।" और वही हाल उस तरफ़ है, रुकमिणी को भी तुम्हीं में रब दिख रहा है। उसकी भी कहानी बिलकुल तुम्हारे जैसी, उसको भी माल बहुत महँगा लगा था ऊपर वाला। कहता है, "नहीं-नहीं-नहीं।"

दोनों को रब दिख गया है, बन गया रिश्ता। और ठीक एक साल बाद आचार्य प्रशांत के सामने ये सवाल आ जाता है, "रिश्तों में मज़बूती कैसे लाएँ?" भाई, ये तुम्हारे और उसके बीच की बात है, मैं क्या करूँ इसमें? वो क़ीमत माँगता है, उसे क़ीमत दे दो, वो उतर आएगा। उससे रिश्ता बना लिया तुमने तो तुम्हारे बाक़ी सारे रिश्ते मज़बूत हो जाएँगे। और उससे रिश्ता नहीं है तुम्हारा तो ठोकर खाते घूमोगे गली-गली। जिसका उससे रिश्ता नहीं है वो किसी और से क्या रिश्ता बनाएगा। और मैं इसमें तुम्हारी क्या मदद करूँ अगर तुम्हें उसकी शर्तें मंज़ूर नहीं हैं, उसका माल महँगा लग रहा है।

और माल तो उसका महँगा है, वो कहता है, "अनंत हूँ मैं। तो जो कुछ तेरे पास है वो तो दे दे कम-से-कम। मेरा मूल्य तो अनंत है, मुझे तो तू कभी खरीद सकता नहीं। पर जो कुछ तूने दो-चार-पाँच रुपए जीवन भर जमापूंजी जोड़ी है, वो तो मुझे अर्पित कर। मुझे कम-से-कम ये तो दर्शा कि तू गंभीर है मेरे विषय में। सब कुछ मुझे अर्पित करके भी तू मुझे खरीद नहीं लेगा क्योंकि मेरा मूल्य तो अनंत है। मैं अमूल्य हूँ, मुझे खरीद तो तू तब भी नहीं पाएगा जब सब कुछ दे डालेगा। लेकिन सब कुछ अगर मुझे देगा तो इतना तो तू दर्शा देगा न कि मुझे लेकर के तुझमें ज़रा गंभीरता है।"

तुम कहते हो, "नहीं, हम उतना भी नहीं दे सकते, अरबों-खरबों का तुम्हारा मूल्य है पर हम तुम्हारे लिए पाँच-दस भी नहीं ख़र्च कर सकते।" तो कहता है, "ठीक है, यहाँ बहुत दुकानें लगी हुई हैं, जाओ वहाँ कोशिश कर लो।" उससे रिश्ता बना लो। वो ख़ुद तुम्हें बता देगा कि दुनिया में कौन है जिससे रिश्ता तुम्हें बनाना चाहिए।

वो आँखों की रोशनी है। सड़क पर निकलो, रिश्ते बनाने निकलो, इससे पहले क्या आवश्यक है? आँखें खोल लो न, बोलो! सुबह उठते हो, सड़क पर टहलने जाते हो तो उससे पहले क्या करते हो? मुँह धोते हो न, आँखों का कीचड़ हटाते हो न। अब आँखें पूरी खुल नहीं रही हैं, मिच-मिच कर रही हैं और भोर हो रही है, अभी रोशनी भी पूरी नहीं है तो क्या होगा? पिटोगे, जाने कहाँ घुस जाओ, जाने किससे लड़ जाओ।

कोई भी यात्रा आरंभ करने से पहले पहला काम क्या है? आँखें, ज्योति। परमात्मा आँखों की ज्योति है। सबसे पहले उसकी उपासना करते हैं। सबसे पहले उससे रिश्ता बनाते हैं फिर उन्हीं आँखों से तुम्हें साफ दिखाई पड़ता है कि दुनिया में किससे रिश्ता बनाना है और किससे नहीं। तो जिनका परमात्मा से रिश्ता नहीं है उन्हें सज़ा मालूम है क्या मिलती है? वो जाकर के किसी से भी रिश्ता बना आते हैं क्योंकि उन्हें पता ही नहीं चला कि किससे बनाना चाहिए और किससे नहीं। वो गये कहीं भी गाँठ बाँध आये, अब बंध गई है गाँठ। जय बजरंग बली! पहाड़ उठा कर उड़ो जीवनभर, अब यही है तुम्हारा।

उसके साथ पहली गाँठ बाँध ली होती तो वो ये भी बता देता कि आगे की गाँठें किसके साथ बाँधनी हैं। उससे तो तुमने पूछा ही नहीं, तुम चल पड़े। बोले हम सब जानते हैं, हम तय कर लेंगे किससे दोस्ती करनी है, किससे नहीं; किसको भाई मानना है, किसको पति बनाना है, किसको पत्नी बनाना है। तुमने कहा, "हम ख़ुद ही तय कर लेंगे, तुम्हें बताएँगे ही नहीं, पूछने की तो बात छोड़ दो।" वो ऊपर से कहता है, "ठीक है, मुबारक हो।"

अभी भी तुम ये नहीं पूछ रहे कि उसके साथ रिश्ता बनाने का क्या अर्थ है। आशय तुम्हारा यही है कि अंडू के साथ, पंडू के साथ, जुझू के साथ, घुग्घू के साथ, छमिया और कालिया के साथ तुमने जो रिश्ता बना लिया है. उसको और मज़बूत कैसे करें। हाउ टू मेक माय रिलेशनशिप स्ट्रांगर (अपने रिश्ते को मज़बूत कैसे करें)? घुग्घू कल गाली देकर भाग गया था, छमियाँ पकड़ में नहीं आती, टट्टू तुम्हारे पैसे नहीं लौटा रहा, टंकु ने अपनी कसम तोड़ दी है। अब यही सब तुम्हें परेशान कर रहा है तो तुम पूछ रहे हो कि अपने रिश्ते और मज़बूत कैसे करूँ।

तुम इसीलिए पैदा हुए थे टंकू, टुट्टू, घुग्गू, जुझू इन्हीं के साथ रिश्ते बनाने के लिए और इनके अलावा तुम्हारी ज़िंदगी में कोई है? जिसके साथ बनाना चाहिए था उसका नाम ही नहीं ले रहे। अद्दु और फद्दु से सारा मतलब है तुमको और परेशान हो कि वो नहीं आ रहे ज़िंदगी में, क्या करूँ। और आ गये ज़िंदगी में फिर जो परेशानी होगी उसका क्या होगा? अभी तो रिश्ता कमज़ोर है तो ये हालत है तुम्हारी, मज़बूत हो गया फिर क्या करोगे?

हर सही रिश्ता मज़बूत ही होता है। मज़बूती सवाल नहीं है, सवाल है उसका सही होना, सवाल है उसकी सार्थकता का। तुमने क्या होकर के रिश्ता बनाया है? तुम सही होकर के रिश्ता बनाते हो, रिश्ता सही ही होगा। और तुम ग़लत होकर के रिश्ता बनाते हो तो रिश्ता सही कैसे हो जाएगा! तुम सही हो जाओ, रिश्ते सही रहेंगे।

तुम क़साई होकर के पशु प्रेमी थोड़े ही हो सकते हो, कि हो सकते हो? तुम ग़लत होकर के सही रिश्ता कैसे बनाओगे जानवरों से? तुम कामुक होकर के मानवता के प्रेमी थोड़े ही हो सकते हो? तुम्हारी आँखें तो पूरी मानवता को एक ही दृष्टि से देखेंगी, कि इससे मेरी वासना पूरी होगी कि नहीं। तुम ग़लत हो, तुम्हारा रिश्ता सही कैसे हो जाएगा?

तुम पैसे के लोभी हो, तुम किसी से सही रिश्ता बना सकते हो? जो भी तुम रिश्ता बनाओगे वो किस दृष्टि से बनाओगे? इससे कितना मिलेगा। प्रेम भी तुम ये देख कर करोगे कि इसके बाप का धंधा क्या है। वो होगी बड़ी विदुषी, बड़ी ज्ञानी, बड़ी सती पर तुम्हें पता चल जाए कि साधारण घर से है, तुम कहोगे, "अरे रिश्ता इससे!"

और मोटे सेठ की मोटी और मूढ़ बिटिया तुम्हें ख़ूब भाएगी, तुरंत रिश्ता बना लोगे, क्यों? होगी मूढ़ पर तुम ही ग़लत हो तो रिश्ता सही कैसे बनेगा!

और सही तुम सिर्फ़ एक शर्त पर होते हो, किस शर्त पर? जो एकमात्र सही तत्व है उस तत्व में समाहित हो जाओ, अन्यथा तुम सही नहीं हो सकते। तुम ग़लत ही हो, जो सही है उसमें डूब जाओ, सही हो जाओगे। जो सही में डूबा नहीं, वो सही कैसे होगा!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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