राहुल कौन? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2022)

Acharya Prashant

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राहुल कौन? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2022)

प्रश्नकर्ता: मेरा प्रश्न थोड़ा कुतार्किक लगेगा, पर मुझे पूछना था। होता यह है कि अभी आप देखोगे हर तरफ़ क्या होता है कि हम आज का पेपर भी पढ़ेंगे, न्यूज़ चैनल हो या फिर कोई अदर (दूसरा) चैनल; तो ज्योतिष का बहुत चलता रहता है उसमें। तो मेरा थोड़ा सा इन्क्वायरी (जाँच-पड़ताल) वाला नेचर (स्वभाव) था तो मैं थोड़ा सा उसके बारे में फिर पढ़ने लग गया और फिर बहुत अन्दर घुस गया।

तो मैंने ऐसा समझ लो कि थोड़ा सीख ही लिया ज्योतिष। तो वो अभी भी मेरे ज़ेहन में है। जब से मैंने आपको सुनना चालू किया नौ महीने से, मैंने पूरा ज्योतिष जो है वो न मैं देखता हूँ न मेरी उससे अटैचमेंट (लगाव) है। मेरे सामने भी आता है तो मेरा उससे कोई लेना-देना नहीं, क्योंकि मैंने जान लिया कि वो मेरी चेतना को तो सम्बोधित नहीं करता है।

और दूसरी बात कि वो भी एक तरह से फिज़िकल (भौतिक) है। फिर मुझे पता चला कि जो वाह्य जगत की चीज़ें हैं वो अगर मेरे ऊपर काम करती भी होंगी तो वो वाह्य ही हैं। उससे कुछ चेतना के बारे में कुछ नहीं बोलते हैं वो। जैसे कि आपकी स्थिति अच्छी रहेगी, संतान होगी, शिक्षण में बाधा आएगी। ऐसी-ऐसी चीज़ें वो करते रहते हैं। तो वो तो वैसे हम प्रेडिक्ट (भविष्यवाणी) कर सकते हैं।

अभी मेरा प्रश्न यह है कि वो जो मेरे दोस्त थे, मैंने आपके वीडियोस उनको फॉरवर्ड किये, दूसरे भी कुछ तर्क दिये। तो वो उससे नहीं निकल पा रहे जबकि मैं उनको उसमें लाया था। और दूसरी तरफ़ देखता हूँ कि सब तरफ़ तो वही चल रहा है। मेरी मम्मी भी सवेरे देखती हैं और उसको अभी कॉन्ट्राडिक्ट (खंडन)...

बहुत बार मैंने देखा है कि बहुत सारे लोग क्या करते हैं कि ये वर्क (काम) ही नहीं होता है या फिर ये चलता ही नहीं है, आपके मन में भ्रम है। तो इसको मतलब, क्योंकि ये बहुत बड़ा एक एरिया (क्षेत्र) है जो हमें भ्रामकता की ओर लेकर जाता है। तो ये थोड़ा सा बहुत ही भ्रामक है सब लोगों के लिए। क्योंकि यहाँ भी बहुत सारी अँगूठियाँ वगैरह, वो मैं तो जानता हूँ कि कौनसी अँगूठी किसके लिए है।

आचार्य प्रशांत: होता होगा, हो सकता है।

प्र: मतलब मेरा यह था कि उससे तो निकालना चाहिए। मैं ख़ुद कुछ नहीं देखता हूँ, पर जो बाक़ी चलता रहता है उनको कैसे एड्रेस (सम्बोधित) किया जाए?

आचार्य: देखो, कितने तरह के उपद्रव हैं दुनिया में, ये गिनने से क्या होगा। जब तक आपको सही लक्ष्य के लिए प्रेम नहीं होगा, सुधरने की आकांक्षा नहीं होगी या आपको अपनी अभी जैसी ज़िन्दगी चल रही है उससे घिन नहीं आएगी, तब तक आपको कोई-न-कोई उपद्रव पकड़े रहेगा। एक छोड़ेंगे दूसरा पकड़ लेगा। मैं किसी एक पर क्या बात करूँ।

बात ये नहीं है न कि किसी को शराब ने पकड़ रखा है, किसी को इसने पकड़ रखा है, किसी को उसने पकड़ रखा है। क्या करेगा बेचारा? जो सही काम है वो उसे करना नहीं और ज़िन्दगी तो काटनी ही है न! मन को भरने के लिए कुछ तो चाहिए। तो कहीं-न-कहीं जाकर के बैठ जाएगा। तो कर रहा है कुछ।

ये चीज़ें छुटवाई नहीं जाती हैं, अपनेआप छूटती हैं, अपनेआप। ये छूटती भी नहीं हैं, ये भूलती हैं। तुम भूल जाते हो। तर्क दे देकर जो चीज़ आपको बतायी जाती है वो तो कई बार और ज़्यादा याद हो जाती है। है न! मैं किसी चीज़ के विरोध में आपको कोई तर्क दूँ। वो चीज़ आपके लिए हो सकता है और महत्वपूर्ण हो जाए। आप उसके बारे में और ज़्यादा सोचना शुरू कर दो। जीवन में कुछ ऐसा चाहिए जिसके सामने आप बाक़ी सब चीज़ों को भूल जाओ। नहीं तो ये तो लगा रहेगा, आप इसमें क्या करोगे।

आपको अगर तर्क चाहिए कि क्या है, क्या नहीं है, तो गूगल पर आपको सैकड़ों तर्क मिल जाएँगे। क्या चीज़ चलती है कैसे, कैसे नहीं चलती। विज्ञान आपको बता देगा कि बृहस्पति ग्रह का आपके ऊपर कितना प्रभाव पड़ सकता है। उससे आपके जीवन में कितने बदलाव आ सकते हैं। आपके सामने ये गमला रखा है न! ये गमला आपके शरीर पर ज़्यादा बड़ा प्रभाव डाल रहा है बनिस्बत शनि या बृहस्पति ग्रह के। तो अब मैं क्या बोलूँ इसके आगे?

वैज्ञानिक तर्क देने की बहुत बात नहीं है। बात है भीतरी अज्ञान की। आप जब नहीं जानते कि सच क्या है, तो फिर आपके लिए ‘कुछ भी’ सच हो सकता है न! और जब कुछ भी सच हो सकता है, तो ख़तरा कौन उठाए? जो कुछ भी सामने आ रहा है, हर चीज़ को सच मान लो।

चलो ऐसे समझो— मुझे राहुल चाहिए। मुझे? राहुल चाहिए। मैं नहीं जानता यहाँ राहुल कौन है। और राहुल, हो सकता है महिलाओं का भी नाम होता हो। मैं नहीं जानता राहुल कौन है। राहुल चाहिए लेकिन मुझको। ठीक! राहुल कोई भी हो सकता है यहाँ पर, राहुल कोई भी हो सकता है। ये जो यहाँ पर साहब खड़े हुए हैं सफ़ेद कुर्ते में, मैं इनको निकाल दूँ इस कमरे से ये बोलकर कि ये राहुल नहीं है? क्या मैं निकाल सकता हूँ? राहुल मुझे चाहिए और मैं नहीं जानता राहुल कौन है। क्या मैं इनको निकाल सकता हूँ? क्या मैं निकाल पाऊँगा? क्यों नहीं निकाल पाऊँगा? क्या पता यही राहुल हो! ठीक है।

ये उधर बैठे हुए हैं। (हाथ से किसी श्रोता की तरफ़ इशारा करते हुए) वो ऊँघ रहे हैं, आलस हो रहा है और इधर-उधर कर रहे हैं कुछ। ये पसन्द ही नहीं आ रहे बिलकुल। और कई लोगों ने मुझे तर्क देकर भी समझाया है कि ये आदमी बिलकुल ठीक नहीं है, एकदम गड़बड़ आदमी है ये। सारे तर्क उपलब्ध हैं, फिर भी मैं क्या इनको निकाल सकता हूँ यहाँ से? क्यों? ज़ोर से बोलिये, क्या पता यही राहुल हो! वो देवी जी वहाँ पर बैठी हुई हैं। सुन ही नहीं रही हैं, पीछे इधर-उधर कुछ कर रही हैं, किसी को अभी कोहनी मार दी, दो को पकड़ कर गिरा दिया; ये सब चल रहा है उधर। भाई मान लीजिये चल रहा है। और पाँच-सात लोग आकर गवाही भी दे गए कि ये बहुत ही गड़बड़ महिला हैं। इन्हें निकाल सकता हूँ यहाँ से?

श्रोता: नहीं।

आचार्य: क्यों? क्या पता यही राहुल हों! मैंने दस अँगूठियाँ पहन रखी हैं। मैं कोई भी अँगूठी उतार सकता हूँ? समझ गए न, क्यों नहीं उतरती अँगूठियाँ। क्या पता यही राहुल हो!

जब आप नहीं जानते कि आपको वास्तविक नुक़सान किस चीज़ से होता है और वास्तविक लाभ किस चीज़ से होता है जीवन में, तो आप किसी भी चीज़ को न पूर्णतया स्वीकार कर सकते हो, न पूर्णतया त्याग सकते हो, क्योंकि आप हर जगह संशय में रहते हो। बोलते हो, ‘रिस्क (ख़तरा) कौन ले? मुझे पता तो है नहीं कि ज़िन्दगी में क्या ठीक, क्या ग़लत। अब कहीं मैं ये अँगूठी उतार दूँ , कुछ हो न जाए!’ ये हमारी हालत है।

आत्मज्ञान के अभाव में हमें कोई कुछ भी चटाता है हम चाट लेते हैं। कुछ भी! कोई अभी यहाँ पर आकर के ये बिलकुल आपको जता सकता है, आपको निश्चित कर सकता है कि आप एक फलाने जानवर वाली चीज़ घुटने में बाँधिये। घुटने में बाँधिये, उससे आपको बहुत लाभ होगा क्योंकि ऐसा होता है वैसा होता है और कुछ भी, एनीथिंग गले में अजगर बाँध लीजिये; कुछ भी, कुछ भी, कुछ भी। बल्कि चीज़ जितनी ज़्यादा मूर्खता की हो, आपके लिए उतना मुश्किल हो जाएगा उसको अस्वीकार करना।

‘क्या पता यही राहुल हो! और जब सब कर रहे हैं तो हम ही सूरमा हैं! जाता क्या है, बाँध लो न! जाता क्या है, बाँध लो, सबने बाँध रखी है, तुम भी बाँध लो। बाँधते क्यों नहीं?’

मैं किन-किन कुप्रथाओं की या अन्धविश्वासों की बात करूँ? सबके मूल में तो एक चीज़ है न, मैं उसकी बात करता हूँ; वो है ‘आत्मज्ञान का अभाव।‘ क्या करेगी कोई अँगूठी, कोई माला, कोई कुछ भी ये जितनी जो सौ प्रकार की चीज़ें होती हैं, ये सब क्या करेंगे आपके लिए जब आप जानते ही नहीं हैं कि आप हैं कौन, और इसीलिए आपके लिए अच्छा क्या है, बुरा क्या है।

वैज्ञानिक तर्क काम नहीं करते डरे हुए मन के सामने।

दुनिया इतनी आगे निकल आयी विज्ञान के मामले में, अन्धविश्वास अपनी जगह क़ायम है, नये-नये रूप लेते जा रहे हैं। विज्ञान थोड़े ही अन्धविश्वास हटा पाएगा। हम आमतौर पर यही सोचते हैं कि साइंस इज़ द एन्टीडोट टू सुपरस्टीसन (विज्ञान अन्धविश्वास का प्रतिकार है)।

विज्ञान से अन्धविश्वास नहीं हटते। अन्धविश्वास आत्मज्ञान से, अध्यात्म से हटते हैं। इसीलिए आप पाते हैं कि बड़े-से-बड़ा वैज्ञानिक भी अक्सर अन्धविश्वासी होता है। होगा बहुत बड़ा वैज्ञानिक! और जा रहा है मंगलवार को, यहाँ (माथे पर हाथ से बताते हुए) टीका लगा रहा है, यहाँ चन्दन बाँध रहा है, कुछ कर रहा है। कान में नेवला लटका दिया इधर, इधर साँप लटका दिया, चल रहा है सब ये। और बहुत बड़ा वैज्ञानिक है। विज्ञान से थोड़े ही अन्धविश्वास हटेगा।

मुझे बताने वाले आये थे। बोले, ‘आपको वो सब जो हुआ था न फेफड़े में, आपने भूत-प्रेत के ख़िलाफ़ बोला है बहुत ज़्यादा।’ सही में आये थे। सद्भावना में सलाह देने आये थे। बोले, ‘बस एक वीडियो में बोल दीजिए कि क्या पता होते हों। वो इतने में मान जाएँगे। बहुत बुरा मानते हैं। अभी तो उन्होंने बस आपको चेतावनी देकर छोड़ दिया है। अगली बार पूरा फेफड़ा नोच लेंगे।’

‘कैसे भूत-प्रेत भी जीवन से निकाल दें? क्या पता भूत-प्रेत ही राहुल हो!’

राहुल का असली नाम, असली चेहरा और पता, ठिकाना जब तक आपको नहीं पता चलेगा, तब तक इस भौतिक जगत में सबकुछ आपके लिए ‘राहुल’ समान ही रहेगा। इसी को तो कहते हैं— ‘कामनाओं का अन्धा विचरण’। आप नहीं जानते आपको चाहिए क्या, तो आप हर चीज़ के पीछे-पीछे भागते रहते हो। न आप कुछ भी पूरी तरह से ग्रहण कर पाते हो, न आप कोई भी चीज़ पूरी तरह...

अब समझ में आ रहा है कि हमारा प्रेम कभी पूरा क्यों नहीं होता? प्रेम मुझे किससे है, अरे! किससे है? राहुल से। अब लगन लग गयी मान लो मेरी इनके साथ (एक व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए)। पक्का तो मुझे है नहीं कि ये राहुल है, तो मैं इन्हें कभी पूरी तरह स्वीकार नहीं सकता। साथ-ही-साथ मैं इन्हें कभी त्याग भी नहीं सकता। तो ज़्यादातर रिश्ते ऐसे ही होते हैं; न स्वीकार सकते हो, न त्याग सकते हो क्योंकि पता ही नहीं कि चाहिए क्या। तो तुम्हें इस सवाल के साथ छोड़ रहा हूँ, ‘राहुल कौन?’ पता करो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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