प्रेम पियाला जो पिए || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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प्रेम पियाला जो पिए || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: प्रेम में आप किसी की ओर इसलिए नहीं जाते कि आपको वो अच्छा लगता है। प्रेम में आप जिसकी ओर जाते हैं, इसलिए जाते हैं क्योंकि आप उसका भला चाहते हैं। दोनों बातों में बहुत अंतर है।

प्रेम अगर सच्चा है तो उसमें आप जिसकी ओर जा रहे हैं, वो आपको अच्छा वगैरह नहीं लग रहा है कि अरे-रे-रे! बड़ा भाता है, बड़ा सुहाता है, कितना सुन्दर है, कितना प्यारा है, आह-ह-ह! यह सब नहीं।

प्रेम में तो आप अच्छी तरह जानते हैं कि दूसरे की थाली में कितने छेद हैं। प्रेम में तो आप भली-भाँति जानते हैं कि दूसरे के चरित्र पर कितने धब्बे हैं। प्रेम में आप भली-भाँति जानते हैं कि दूसरे के मन में, आचरण में, कितनी कमज़ोरियाँ हैं। फिर भी आप उसकी ओर जाते हैं।

क्यों जाते हैं? राम जाने! संसारी दृष्टि से देखें तो प्रेम का कोई कारण नहीं होना चाहिए — सच्चे प्रेम का। झूठे प्रेम का तो कारण है, झूठे प्रेम का कारण यह कि दूसरे की ओर जाओगे तो सुख पाओगे, दूसरे की ओर जाओगे तो दूसरे को भोग लोगे, मज़ा आएगा।

सच्चे प्रेम में तो आप जिसकी ओर जा रहे हो, आप भली-भाँति जानते हो, वो कितने पानी में है। ख़ूब पता है आपको, आप जिसकी ओर जा रहे हो, आप जिससे संबंधित हो उसमें लाख दोष हैं, लाख विकार हैं, फिर भी आप उसकी ओर जा रहे हो।

तो हमारा साधारण संसारी मन झंझट में पड़ जाता है। एकदम सकपका के पूछता है, ‘तो फिर उसकी ओर जा ही काहे को रहे हो, जब पता है उसमें इतने विकार हैं?’ राम जाने! यही तो प्रेम की बात है।

प्रेम में आप दूसरे की ओर इसलिए नहीं जाते हैं क्योंकि उसकी वर्तमान स्थिति आपको सुख दे देगी। प्रेम में आप दूसरे की ओर इसलिए जाते हो क्योंकि आपको पता है कि दूसरे की वर्तमान स्थिति सच्ची नहीं है; उसकी वर्तमान स्थिति बस एक झूठ है, एक बंधन है, एक क़ैद है, जिसमें वो दूसरा व्यक्ति फँसा हुआ है। उस दूसरे व्यक्ति को उसकी वर्तमान स्थिति की क़ैद से छुड़ाना ज़रूरी है, आप इसलिए उसके पास जाते हो।

दूसरे की ओर इसलिए नहीं जा रहे हैं क्योंकि वो जैसा है, वैसा ही प्यारा है। अजी कहाँ! दूसरा जैसा है, वैसा ही अगर आपको प्यारा लग रहा है तो आप उसकी ओर जा रहे हैं सिर्फ़ उसका शोषण करने, भोगने के लिए। ये बात बुरी लग रही हो तो भी समझिएगा।

मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि दूसरे की ओर जाओ इसलिए कि उससे नफ़रत है तुमको या उसके पास जाकर के उसको घृणा की दृष्टि से देखो, उसका अपमान करो। ये सब नहीं कह रहा हूँ।

प्रेम का मतलब है, वो जो व्यक्ति है और उसकी जो वर्तमान वैयक्तिकता है, उसकी जो वर्तमान दशा है, उसमें रखा क्या है? अरे! हमारी ही वर्तमान दशा में कुछ नहीं रखा, हम तुम्हारी वर्तमान दशा के कायल कैसे हो जाएँ भई?

हमारे ही जिस्म में कुछ नहीं रखा, हम तुम्हारे जिस्म पर लट्टू कैसे हो जाएँ भाई (मुस्कराते हुए)? हम जिन चीज़ों को जानते हैं कि दो कौड़ी के हैं, हम उन्हीं चीज़ों के ग्राहक कैसे हो जाएँ भाई?

तो ऐसा नहीं है कि हम तुम्हारे पास इसलिए आ रहे हैं क्योंकि तुम बड़े कुशल हो, बड़े चतुर हो, बड़े सुंदर हो, बड़े आकर्षक हो, बड़ा मोहित करते हो। बेकार बात है।

हो तो तुम कुछ नहीं, देखो, प्रेम करते हैं तुमसे, इसलिए साफ़ सापाट बताए देते हैं, कुछ नहीं हो तुम। एकदम तृणमात्र हो, घास का तिनका जिसपर भाग्य पाँव रख-रखकर के चलता रहता है। घास का तिनका जिसको किस्मत अपने भारी-भरकम पहियों तले रौंदती रहती है, ऐसे ही हम हैं, ऐसे ही तुम हो।

तो ऐसा नहीं है कि तुम्हारी हालत में हमको कोई बहुत आकर्षण है, पर जब हम जानते हैं कि तुम्हारी अभी की हालत झूठ है तो फिर हम ये भी जानते हैं कि कोई सच होगा तुम्हारा और तुम्हारा वो जो सच है उससे हमें प्यार है। क्यों? क्योंकि हमें सच से प्यार है।

झूठ व्यक्तिगत होते हैं, सच तो एक होता हैं न। अभी जो तुम्हारी हालत है वो तुम्हारी हालत है, वो एक झूठ है, तुम्हारा व्यक्तिगत झूठ है। अभी जो दूसरे की हालत है वो उसकी हालत है, वो जो हालत है वो झूठ है, वो उसका व्यक्तिगत झूठ है। ये सारी हालातें, ये सब क़ैद हैं। सब हालात क़ैद हैं, क़ैदखाने हैं।

इनसे जो आज़ादी मिलती है, वो व्यक्तिगत नहीं होती, उसमें सब एक होते हैं, हम वो देखना चाहते हैं। वही लालसा है हमारी, वही स्वार्थ है हमारा, उसी दिन के लिए तुम्हारे पास आए हैं, यही हसरत है हमारी।

पूछ रहे थे न, ‘कारण क्या है? जब तुम जानते ही हो कि हममें इतने दोष हैं तो फिर हमारे पास आते क्यों हो बार-बार?’ आपका किसी से प्यार हो और आप उसकी कुछ खोट निकाल दें तो तुरंत यही कहता है, कहता है कि ‘हम इतने ही बुरे हैं तो हमारे पास आए ही क्यों हो? चलो निकलो यहाँ से।’

ज़वाब मैं बताए देता हूँ। तुम्हारे पास इसलिए आए हैं क्योंकि तुम्हें वैसा देखना चाहते हैं जैसा तुम हो सकते हो, अभी तुम जैसे हो वो तुम्हारी हस्ती की अवमानना है।

तुम अभी हो नहीं, तुम अभी अपनेआप को ढो रहे हो। तुम जो हो सकते हो, हम उस फूल को खिलते देखना चाहते हैं। तुम जितना उड़ सकते हो, हम उस पक्षी की परवाज़ देखना चाहते हैं, इसलिए तुम्हारे पास आए हैं — ये प्रेम है।

प्रेम के पास आँखें होती हैं, इसलिए मैंने प्रेम का सम्बन्ध आलोचना से जोड़ा। आलोचना का अर्थ यही होता है। लोचन माने आँखें। प्रेम साफ़-साफ़ देख पाता है — आँखें हैं उसके पास — कि कितने दोष हैं तुममें? और झूठा नहीं होता प्रेम, मक्कार नहीं होता प्रेम, चाटुकार नहीं होता प्रेम, कि साफ़ पता है कि सामने वाले में कितने दोष, कितने खोट हैं और फिर भी उसको मक्खन मल रहा है, कि इससे कुछ लाभ हो जाएगा।

तो क्या लाभ हो जाएगा? एक ही लाभ होता है आमतौर पर, अगर जवान हो तो शारीरिक लाभ हो जाएगा, नहीं तो कुछ आर्थिक लाभ हो जाएगा या किसी तरह की सुरक्षा मिल जाएगी या कुछ और। ये नहीं प्रेम है।

तो आपके जो भी रिश्ते वगैरह रहे हैं, उसमें ग़ौर से देखिएगा दूसरे से आप जुड़े ही क्यों थे? बड़ा मुश्किल होता है सच्चे प्रेम का सम्बन्ध बनाना क्योंकि सच्चा प्यार तो बिलकुल छाती पर वार जैसा होता है।

कोई नहीं आता उसमें आपको ये ढाँढस देने कि आह-ह-ह, क्या बात है! तुमसे बढ़कर कौन? लोग कहते हैं, ‘सच्चा प्यार मिलता नहीं,’ मैं कहता हूँ, ‘सच्चा प्यार तुमसे बर्दाश्त होता नहीं।’ (हँसते हुए)।

मिल तो आज जाए, झेल लोगे? बड़े अफ़साने लिखे जाते हैं। शायरों की दुकानें ही चल रही हैं इसी बात पर कि हम तो बड़े क़ाबिल थे पर कम्बख़्त ज़िंदगी ने धोखा दे दिया, हमें सच्चा प्यार मिला नहीं चल झूठा (मुस्कराते हुए)।

तू इस लायक़ है कि सच्चा प्यार झेल लेता? काबिलियत भी छोड़ दो, नीयत है? सच्चे प्रेमी के सामने दो दिन नहीं खड़े हो पाओगे, भाग लोगे। और बताऊँ, भागने से पहले उसे मारोगे, उसे मार के भाग लोगे।

हमें प्रेम नहीं चाहिए, हमें भ्रम चाहिए, हमें धोखा चाहिए, हमें चाहिए कोई ऐसा जो हमें ख़ूबसूरत धोखों में रख सके, हमें चाहिए कोई ऐसा जो हमें रंगीन सपनों में रख सके, हमें चाहिए कोई ऐसा जो हमसे कहे, ‘अरे! नहीं, तुम कहाँ मक्कार हो? अरे! नहीं, तुम कहाँ घूसखोर हो? अरे! नहीं तुम्हारी कमर कहाँ कमरा हो रही है? तुमसे ख़ूबसूरत कौन? तुमसे गुणी कौन? तुमसे विद्वान कौन? तुमसे बढ़कर कौन?’ हमें चाहिए कोई ऐसा जो हमसे कहे कि तुम जैसे भी हो, हमारे लिए तो तुम ही हो। हमें चाहिए कोई जो कहे, ‘हाँ, तुम्हारी हर खोट मंज़ूर है।’

साज़िश होती है, हमें पता होता है कि जब तक हम उसकी खोट नहीं मंज़ूर करेंगे वो हमारी नहीं करेगा। साज़िश होती है, हमें पता होता है कि अगर हमने उसे प्रेरित करा बेहतर होने के लिए तो फिर हम पर भी तो दबाव पड़ेगा न, ज़िम्मेदारी पड़ेगी कि हम भी बेहतर हो जाएँ।

बेहतर होने में मेहनत लगती है भाई, बिस्तर तोड़-तोड़कर कोई नहीं बेहतर हो जाता। हमें बेहतर होना नहीं है, तो हम ये भी नहीं पसंद करते कि हमारा साथी भी बेहतर हो जाए। बेहतरी हमें उसकी बस उस सीमा तक चाहिए जिस सीमा तक उसकी बेहतरी हमारे भोग के काम आती है। उदाहरण के लिए, किसी की मोटे पैसे की नौकरी लग जाए, उसकी बीवी ख़ुश हो जाएगी। मोटे पैसे की नहीं भी लगी है तो घूस वो मोटी लाता है, घर वाले ख़ुश रहेंगे। यह बेहतरी थोड़ी है, ये तो भोगने का इंतज़ाम है।

वास्तविक तरक़्क़ी जब हो रही होगी आपकी, अंदरूनी तरक़्क़ी तो देखिएगा कि आपसे कितने लोग तुरंत नाराज़ हो जाते हैं? आप बहुत सारी कमाई करने लगे हैं, चाहे काली कमाई हो और उससे घर पर भोगने के साधन खड़े करने लगे हैं, घरवाले ख़ुश रहेंगे क्योंकि अभी आप जो कुछ कर रहे हैं वो सीधे-सीधे उनके भोग के भी तो काम आएगा।

लेकिन आपकी असली तरक़्क़ी होने लगे फिर देखिए कौन आपके साथ खड़ा होता है? जो आपकी असली तरक़्क़ी में आपके साथ खड़ा रहे, वो सच्चा प्रेमी है।

जो आपसे कहे कि ठीक है कोई बात नहीं रुपया नहीं आएगा, पैसा नहीं आएगा, ठीक है कोई बात नहीं, कुछ भौतिक कष्ट होंगे सांसारिक तौर पर, कुछ कमियाँ आएँगी। लेकिन तुम आगे बढ़ो। तुम वो हो जाओ जो होना नियति है तुम्हारी। प्रकट हो जाओ बिलकुल, खिल जाओ फूल की तरह। हम उसी में संतुष्ट हैं, वही हमारा लक्ष्य है।

ऐसा कोई मिल जाए तो जानिएगा कि प्रेमी है। दुनिया में सबसे बिरली चीज़ है, अनुपलब्ध चीज़ है, जैसे हो ही न, एकदम विलुप्त, अप्राप्य। उसका नाम प्रेम है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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