प्रेम निभाने से कठिन और क्या? || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2014)

Acharya Prashant

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प्रेम निभाने से कठिन और क्या? || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2014)

आगि आंचि सहना सुगम, सुगम खडग की धार। नेह निबाहन एक रस, महा कठिन ब्योहार॥ ~ कबीर

वक्ता: आगि आंचि सहना सुगम, सुगम खडग की धार। नेह निबाहन एक रस, महा कठिन ब्योहार॥

‘निभाने’ से क्या अर्थ है?

श्रोता १: चल पाना उस पर।

वक्ता: ‘निभाने’ से क्या अर्थ है, ये समझ जाओगे, तो पूरा दोहा ही स्पष्ट हो जाएगा।

‘निभाना’, और साथ में लिखा है, “एक रास”। ‘निभाने’ से क्या अर्थ होता है? जब आप कहते हो, “निभा रहा हूँ,” तो उसमें क्या आ जाता है?

‘निभाने’ में क्या आ जाता है? एक तो ये है कि अभी तुमसे प्रेम है, और इसको हमने अनुभव किया है बहुत बार, कि झलक मिली, और एक ये है कि निभा रहे हैं।

श्रोता २: ‘निभाने’ में कर्ताभाव है।

वक्ता: कबीर कह रहे हैं कि, “निभाना बहुत मुश्किल है,” कर्ताभाव तो बहुत आसान है।

श्रोता २: उसी में साथ रहना, उसी में जीना।

वक्ता: हाँ, तो वहाँ पर क्या आ गया? ‘साथ रहने’ में क्या आ गया?

श्रोता २: एक हो जाना ।

वक्ता: ‘एक हो जाने’ में क्या आ गया?

श्रोता ३: समर्पण, एक निरंतरता ।

वक्ता: ‘निरंतरता’ का क्या अर्थ है?

श्रोता ३: समयातीत।

वक्ता: समयातीत नहीं, समय।

निभाना इसलिए मुश्किल है, क्योंकि निभाने का अर्थ है कि समय भी है। निभाने का कोई अर्थ ही नहीं उठता न, यदि समय न हो, फिर तो एक ही है। निभाने का तो अर्थ ही है – जैसा आज, वैसा ही एकरस कल, और वैसा ही एकरस परसों। “समय की धारा चल रही है, पर हम अपनी जगह अडिग हैं। समय की धार बाह रही है, हम अडिग हैं।” समय में होकर भी – समय का अर्थ ही है ‘संसार’ – संसार में होकर भी संसार से अनछुए रहना।

प्रेम की आहटें तो हम सब को आतीं हैं। और यदि प्रेम से हम बिल्कुल ही रिक्त होते, तो मर गए होते कब के। तो क्षणिक झलक तो सबको मिलती है, निभाना नहीं हो पाता।

‘संवाद’ होता है, तो और हमारे छात्र क्या कहते हैं? “जब तक बैठते हैं, तब तक सब समझ में आया, और बात बिल्कुल खुल गई थी। और बाहर निकलते ही, निभा नहीं पाए।”खुद अपने से जो वादा किया था, वो, निभा नहीं पाए। खुद को ही जो दिखा था, उस पर, चल नहीं पाए। स्वयं ही जो समझा था, उसको, जी नहीं पाए। ये है – निभाना।

समझना तो होता है वर्तमान में, अभी, डूब कर के। ‘निभाने’ का अर्थ ही है कि – अब क्या आ गया? समय आ गया, संसार आ गया, दुनिया भर के प्रभाव आ गए। “उन प्रभावों की मौजूदगी में भी हम वही रहेंगे, जो उस प्रेम के क्षण में थे,” ये अति दुरुह है। इसीलिए कबीर कह रहे हैं, “महा कठिन ब्योहार,” ये बड़ा मुश्किल है। इस कमरे में आप जो हो, आधे घंटे बाद भी यही रह लो, ये महा कठिन है, महा कठिन है। और ये आपने अनुभव किया है।

आप जब तक यहाँ बैठे हो, आप कुछ और हो, और एक-दो घंटे बाद आप कुछ और हो, निभा नहीं पा रहे। बेवफ़ाई है। पति के सामने कुछ और हैं, और दूर हो जाते ही कुछ और हैं – बेवफ़ाई इसी को कहते हैं। एकरसता नहीं है। क्या कहते हैं कबीर?

“नेह निबाहन एक रस”

एकरसता नहीं है, एकधार नहीं है जीवन। कई-कई धारें हैं, बिखरी हुई, अक्षुण्य धारा नहीं है, कि, “अब टूटने नहीं देंगे। बात समझ में आ गई है, तो अब जीयेंगे इसको। अब दोगलापन नहीं करेंगे, बेवफ़ाई नहीं करेंगे।”

निभा नहीं पाते हैं हम। हमारी त्रासदी ये नहीं है कि हमें सत्य कभी दिखा ही नहीं। हमारी त्रासदी ये बिल्कुल नहीं है कि हमें सत्य कभी दिखा ही नहीं। हमारी त्रासदी ये है कि सबकुछ जानते-बूझते भी, हम ठोकरें खाते रहते हैं। आप यदि अंधे होते, और ठोकर खा-खा के गिरते होते, तो कोई बड़ी बात नहीं। हमारी त्रासदी ये है कि हम अंधे हैं नहीं। आँखें हैं, और दिखता भी है कि हमारे रास्ते गड़बड़ हैं। पर उसके बाद भी उन्हीं पे चले जाते हैं, गिरते रहते हैं, लहुलुहान हैं। निभा नहीं रहे हैं।

किसी और के कहे पर यदि नहीं आप चलते, तो बहुत अच्छी बात है। किसी और की दृष्टि का यदि आप अनुकरण नहीं करते हैं, तो बहुत अच्छी बात है। हमारे त्रासदी ये है कि हम उसपर भी नहीं चलते, जो हमें दिख गया है। हम देखे हुए को अनदेखा करने पर तुले हैं। कर नहीं सकते, क्योंकि जो दिख गया है, उसको अनदेखा कैसे करोगे? पर कोशिश हमारी पूरी यही है, कि जो दिख भी गया है, उसे पूरी तरह अस्वीकार कर दो। सत्य सम्मुख खड़ा है, पर उसकी ओर पीठ कर दो।

निभा नहीं रहे हैं।

~‘शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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