वक्ता: अभय (श्रोता को इंगित करते हुए) का सवाल है कि मैं बी. टेक तो कर रहा हूँ, लेकिन मेरी रुचि कविताएँ लिखने में है। ये कह रहे हैं कि इनका पैशन कविता लिखने में बहुत ज़्यादा है । ये अजीब स्तिथि हो गई है, दुविधा है। पूछ रहा है कि मैं सही काम कर भी रहा हूँ या नहीं? मैं जानना चाहता हूँ अभय, कि ये बात हमारे मन में कहाँ से आ गई कि जिंदगी एक वन ट्रैक अफ़ेयर है। हमने ये कैसे सोच लिया कि जीवन में बस एक ही रंग होता है, एक ही तरह के फूल खिलते हैं?
कुछ उदाहरण देता हूँ, तुमने कविताओं की बात करी। इस देश ने पिछले कुछ दो सौ सालों में जो कवि देखा है, वो है रविन्द्रनाथ टैगोर। क्या तुम जानते हो कि रविन्द्रनाथ अपनी पूरी पैतृक संपत्ति की देखभाल भी साथ में करते रहते थे। पूरा हिसाब-किताब भी देखते थे, इतने बड़े शांति निकेतन की स्थापना भी उन्होंने करी । और ये सारे काम याद रखना, प्रबंधकीय काम है। कागज़ लेकर के हिसाब किताब करना पड़ता है और रबिन्द्रनाथ हिसाब-किताब में भी बहुत प्रगाढ़ थे। कविता उनकी ऐसी थी कि पूरा सौन्दर्य बहे उसमें।
और हिसाब उनका ऐसा था कि उसमें एक पैसे की चूक हो नहीं सकती है। एक दूसरे कवि का उदाहरण लेता हूँ, कबीर का। दिन भर चरखा चलाते थे, कपड़ा बुनते थे। शाम को उसे बेचने भी जाते थे। पर क्या इससे कबीर की कविता पर, कबीर के काव्य पर कोई अंतर पड़ा? पड़ा क्या?
जिसे करना होता है, वो प्रत्येक स्थिति में कर डालता है।
वो बहानों के पीछे नहीं छुपता। स्थितियाँ, उसको रोक नहीं पाती है। नानक देश भर में घूमते थे, विदेशों की भी इतनी यात्रायें की पर साल में कुछ महीनों के लिए अपने गाँव लौट कर आते थे और हल उठा लेते थे और लग जाते थे अपने काम पर और बाकी समय गाते रहते थे।छवि देखी होगी नानक की, दो उनके शिष्य थे- बाला, अम्बरदाना; गा रहे है नानक। काव्य है, पूरा-पूरा काव्य है, नानक की वाणी में पूरा काव्य है। पर क्या नानक ने ये कहा कि ये सब जो सांसारिक बातें हैं, दुनिया के बारे में जानना, इन सब को मैं परे रख दूंगा, क्या कबीर ने ऐसा कहा? क्या रविन्द्रनाथ ने ऐसा कहा? मैं समझता हूँ कि सिर्फ़ तुम्हारे ही नहीं ,यहाँ पर जिंदगी में सभी लोग ऐसे ही हैं जिनके बहुत गहरे पैशन होंगे ज़रूर। मैं पूछना चाहता हूँ कि क्या पैशन को पूरा करने के लिए ये ज़रूरी है कि संसार से नाता तोड़ लिया जाए? और कुछ करा ही ना जाए, दिन रात वही करा जाए।
सच तो ये है कि जीवन चौबीसों घंटे जीया जाता है। तुम कहते हो कि मैं कविता के बारे में जुनूनी हूँ। कविता को लेकर मेरे मन में भावना उठती है। दिन में चौबीस घंटे होते हैं, तुम कितने घंटे कविता लिख सकते हो? तुम कहते हो मुझे गिटार बजाना बहुत अच्छा लगता है, मैं पूछता हूँ कि दिन के चौबीस घंटे में से कितने घंटे तुम गिटार बजा सकते हो? और अगर तुम सिर्फ़ गिटार बजाने में या कविता लिखने में ही जीवन को पूरी तरह अनुभव कर पाते हो तो दिन के बाकी घंटों का क्या होगा? चौबीस घंटों में से पाँच घंटे बजा लिया तुमने गिटार। चौबीस घंटे में तीन घंटे लिख ली तुमने कविता। अब बाकी समय कैसे रहोगे -उदास ,मुरझाये हुए?
पैशन का अर्थ ये नहीं है कि कुछ पल ऐसे हैं, जिसमे ऊर्जा उमड़ पड़ती है और सब कुछ अच्छा हो जाता है। पैशन किसी एक रूचि का नाम नहीं है, पैशन जीवन का नाम है। प्रतिपल पैशनेट रहो, अभी यहाँ बैठे हो तो इसमें पैशनेट रहो। चल रहे तो उसमें, पढ़ रहे हो तो उसमें, जो कुछ भी कर रहे हो, उसमें डूबे रहो। समझ रहे हो बात को?
अगर तुमने लगातार आदत ही बना रखी है, सतह पर रहने की, एक कुनकुना जीवन जीने की तो तुम्हें क्या लगता है, क्या तुम कविता भी डूब के लिख पाओगे? क्या उस कविता में कोई जान होगी? क्या उस कविता में भी कोई ऊँचाई होगी? एक बात ध्यान से समझना सभी लोग:
उत्कृष्टता, किसी एक कृत्य तक सीमित नहीं रहती है।
उत्कृष्टता शब्द तुमको बहुत प्यारा है ना? इसीलिए उसको उठा रहा हूँ। उत्कृष्टता किसी एक कृत्य तक सिमित नहीं रह सकता। उत्कृष्टता एक जीने का तरीका है। मैं आई.आई.टी का उदाहरण लेता हूँ: तुम लोग आई.आई.टी को इतना ही जानते हो कि वहाँ पर पढ़ने-लिखने वाले लोग पहुँचते हैं। ठीक है ना?
पर मैं तुमको बताता हूँ, नाटक में बहुत गतिविधियाँ हैं आई.आई.टी में और वहाँ पर जो नाटक होते हैं, रंगमंच की जो पूरी प्रक्रिया है वहाँ पर, वो बहुत गहरी है और क्वालिटी है उसमें। इतना ही नहीं स्पोर्ट्स में भी, मेरे ही साथ के एक-दो लोग थे जिनके बारे में हमारे कोच का कहना था कि ये रणजी खेल सकते हैं।
क्रिकेट खेलते थे हम उसमें उनका कहना था कि ये रणजी खेल सकता है, इसमें वो क्वालिटी है। अब ये वही छात्र है, जिसने पढ़ाई में भी सफलता हासिल करी है। और इन दोनों बातों में बहुत गहरा नाता है। जिसने उत्कृष्टता जान ली उसकी उत्कृष्टता सिर्फ़ पढाई तक ही सीमित नहीं रहेगी। वो जो कुछ भी करेगा उसमे उस उत्कृष्टता की छाप रहेगी। ये बात समझ में आ रही है? तुम ये बिलकुल नहीं कह सकते कि मैं पढाई में तो ध्यान नहीं दे पाता हूँ पर मैं कुछ और करूँगा ,मैं उसमे उतकृष्ट हो जाऊँगा। ना ,ये संभव नहीं है। ये अस्तित्व के नियम के खिलाफ़ है।
तुम किसी ख़ास कृत्य में उतकृष्ट नहीं होते। जीवन या तो उतकृष्ट होता है या तो सूना-सूना। इस चक्कर में मत पड़ो कि मुझे ये नहीं, ये मिलेगा, तब जाकर के मेरे जीवन में रौशनी आएगी। मुझे कुछ ख़ास करने को मिले, तब मैं उसमें चमक पाऊंगा।जहाँ हो जो कर रहे हो, उसी में डूबो और फिर वहाँ से हज़ार रास्ते खुलेंगे। हज़ार रास्ते खुलेंगे। ये जो यूफ़ोरिया बैंड है, इसका जो लीड मेम्बर है डॉक्टर पलाश सेन, वो मौलाना आज़ाद कॉलेज, दिल्ली का एम.बी.बी.एस है और आसान नही है, वहाँ एडमिशन पाना। एम.बी.बी.एस है, प्रैक्टिस भी करता है और आज भी वो पेशेंट्स देखता है और साथ ही साथ गीत भी लिखता है, गाता भी है।
मैं फिर से पूछूँगा कि तुमसे ये किसने कह दिया कि जीवन में एक ही रंग हो सकता है और एक ही तरह के फूल खिल सकते हैं? एक शब्द होता है *पोलीमैथ,*उसका अर्थ समझते हो? पोलीमैथ का अर्थ होता है: एक ऐसा व्यक्ति जो जीवन को पूरी तरह जीना जानता हो।
जो सिर्फ़ एक धुन नहीं बजाता हो, जिसके पास पूरा ऑर्केस्ट्रा है। जैसे लियोनार्डो डा विंसी , जो गणित में भी अपनी छाप छोड़ रहा है, संगीत में भी, कला में भी। जीवन को कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसमें उसने उपलब्धि ना हासिल की हो। आइंस्टीन को तुम कितना जानते हो? क्या जानते हो? एक वैज्ञानिक था। तुममें से बहुत कम लोगों को पता होगा कि आइंस्टीन एक बहुत अच्छा संगीतज्ञ भी था और तुमको शायद ये पता भी ना होगा कि आइन्स्टीन को इज़राइल के राष्ट्रपति तक बनने का न्योता मिला था। राजनैतिक विषयों में उसकी गहरी पकड़ थी।
ये कहलाता है, जीवन को पूरे तरीके से जीना सिर्फ़ एक पटरी पर ना चलते रहना। मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि अनर्थक ही इधर भी भागो और उधर भी भागो। मैं तुमसे ये कह रहा हूँ कि अपने आप को सीमित मत रखो। कविता लिखना बेशक बहुत सुन्दर काम है पर जीवन में और भी संभावनाएँ हैं, तुम पढ़ रहे हो, पढ़ो और इस बात का मैं तुम्हे यकीन दिलाता हूँ, एक इंजीनियर होने के नाते, मैं तुमको यकीन दिलाता हूँ कि इंजीनियरिंग सिर्फ़ एक प्रोफेशन नहीं है। तुम्हारा मन करे तो तुम बी.टेक के बाद मत जाना इंजीनियरिंग में, लेकिन ये जो चार साल होते हैं ना, जो तुम पढ़ते हो ये तुम्हारे मन को एक आकार देते हैं। वो आकार बहुत आवश्यक है। ये एक द्रष्टि है इंजीनियरिंग , चीज़ों को देखने की, समझने की।
‘’मेरे लिए इस पंखें का अर्थ केवल ये नहीं है कि बटन दबाया और चालू हो गया। मैं जान रहा हूँ कि इसके दिल में क्या बैठा हुआ है। ये जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक प्रक्रिया है, ये क्या है मुझे समझ में आ रहा है। ये है इंजीनियरिंग का अर्थ कि मैं समझता हूँ, मैं जानता हूँ। ये दुनिया जो विज्ञान पर चलती है, मैं जानता हूँ, समझता हूँ, मुझे इसकी समझ है, मैं बेवक़ूफ़ नही हूँ।’’ बात समझ में आ रही है? ये मतलब है इंजीनियरिंग का। इंजीनियरिंग का मतलब अब केवल ये ही नहीं है कि यहाँ से निकल कर तुम रोटी कमाने पहुँच गए कि तुम्हें ये नौकरी मिल जाएगी।
तुम्हें अगर नौकरी नहीं भी मिलती है, या तुम चुनते हो कि मुझे इंजीनियर नहीं बनना, कुछ और बनना। तब भी जो तुम्हें मिला होगा उसकी बहुत कीमत है। तुमने जो पढ़ा है, तुमने वो जाना है, चाहे वो तुम्हारे कमरे में पड़ा फ्रिज हो, चाहे ये कैमरा हो, चाहे ये पंखा हो, चाहे ये कैथोड रे ट्यूब हो।
तुम्हें क्या लगता है इन सबका महत्व नहीं है, जानना कि ये सब क्या है? बताओ। तुम्हें लगता है कि इसका कोई महत्व है? जिनको ये नहीं पता होता, वो जीवन में बड़ी ठोकरें खाते हैं। उन्हें सिर्फ़ विश्वास करना होता है और वो सिर्फ़ अंधविश्वास होता है। ये बात समझ में आ रही है?
कविता लिखना बहुत सुन्दर काम है पर जीवन को एक ही ढर्रे पर मत चला दो। ये तुम्हारे मन की सीमित होने की निशानी है कि अगर तुम कहते हो कि मैं बस ये करूँगा, मैं कुछ और नहीं कर सकता। जीवन को पूरे तरीके से जीयो। यहाँ बहुत कुछ है। लिखो बहुत सुन्दर कविताएँ लिखो। उसके लिए तुम्हें बहुत समय मिलेगा, रोज़ मिलता है। अगर तुम ध्यान से देखो तो क्या रोज़ ही तुम्हें बहुत समय नहीं मिलता है? अगर तुम समय बर्बाद नहीं कर रहे हो तो। कविता लिखने के लिए, खेलने के लिए, तुम और जो कुछ भी करना चाहते हो, कैसी भी हॉबी ,कैसे भी इंटरेस्ट, उन सब के लिए बहुत समय है। पर मन की रूचि हमेशा रहती है शिकायत करने में। शिकायत नहीं करो, अवसर ढूंढो। मौका तलाशो। फिर देखो कि कितना कुछ संभव है। और जो ये चार साल हैं इनका पूरा-पूरा उपयोग करो। ठीक है? एक क्षण भी बर्बाद ना हो। याद रखना कि हमने क्या कहा कि पैशन किसी एक कृत्य का नाम नहीं है। जो कुछ भी करे, उसी में पूरा पैशनेट होना है। सुन रहे हो तो सुनने में डूबो, पढ़ रहे हो तो पढ़ने में डूबो। खेल रहे हो तो पूरी तरह से खेलों जान लगा कर। कुछ-कुछ बात जम रही है, कि नहीं जम रही?
शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।
YouTube Link: https://youtu.be/Cqk39lH_wUA