पॉर्न देखने की लत कैसे छूटे? || आचार्य प्रशांत (2018)

Acharya Prashant

15 min
375 reads
पॉर्न देखने की लत कैसे छूटे? || आचार्य प्रशांत (2018)

प्रश्नकर्ता: पिछले कुछ दिन से एक सेक्सुअल थॉट (यौन विचार) मन पर छाया रहता है। पॉर्न (अश्लील सामग्री) भी देखने लगा हूँ। जब अध्यात्म से नहीं जुड़ा था, तब भी मन इतना नहीं भागता था उन बातों की तरफ़; अभी एकदम से बहुत ज़्यादा हो गया है। पहले मुझे लगता था कि जब मैं खाली होता हूँ तो ये चीज़ें हावी होती हैं, पर अभी मैंने देखा कि जब मैं कुछ कर रहा होता हूँ तो भी ऐसे बैकग्राउंड (पृष्ठभूमि) में चल रहा होता है वो। जैसे उसको मौक़ा मिला और वो चीज़ आगे आ जाती है।

आचार्य प्रशांत: तो कैसा होता है एक पॉर्न का वेबपेज ? थोड़ा खुलकर बताओ।

प्र: उत्तेजित करने वाला।

आचार्य: उत्तेजित करने वाला। और क्या होता है? उसपर एक वीडियो आ रहा होता है। और क्या होता है उस पेज पर? बस एक ही वीडियो होता है?

प्र: कई वीडियोज़ होते हैं।

आचार्य: कई होते हैं। यूट्यूब की तरह ही! जैसे यूट्यूब होता है, कि एक तो मुख्य वीडियो, जो देख रहे हो, और नीचे कतार बनी हुई है, और भी हैं। तो जब उस पेज पर पहुँच जाते हो तो एक ही वीडियो देखकर थम जाते हो या फिर झड़ी लगती है?

प्र: और चाह होती है दूसरी भी देखने की।

आचार्य: तो एक वीडियो पर कितना समय गुज़ारते हो तकरीबन?

प्र: पाँच-दस मिनट।

आचार्य: पाँच-दस मिनट। और एक देखकर रुक तो नहीं जाते होंगे? काम का तो ये हिसाब ही नहीं कि वो एक पर ही विराम लगा दे; फिर एक के बाद दूसरा, दूसरे के बाद तीसरा, चौथा। अधिकतम कितने तक गये हो? पाँच, दस, पंद्रह भी हुए होंगे?

प्र: नहीं, तीन-चार।

आचार्य: तीन-चार में ही मनचाही चीज़ मिल जाती है? तो कई टैब वगैरह खुल जाते होंगे फिर तो? अब प्रयोग ही करने उतरे हो तो इतनी आसानी से तो प्यास बुझती नहीं होगी। कई बार हो सकता है बुझ भी जाए, कई बार तो कभी इधर हाथ मारा, कभी उधर आज़माया। इस पूरी प्रक्रिया में समय कितना लग जाता है?

प्र: जितना खाली समय होता है।

आचार्य: क़दम-दर-क़दम चलो। खाली समय कितना होता है? तुम आधी-रात को उत्तेजित हो गये हो, अभी तुम्हारे पास कितना खाली समय है, बताओ। और उत्तेजना भरी-दोपहर तो चढ़ती नहीं होगी! ऐसे ही कोने-कतरे, आधी-रात को जब दुबके हुए हो बिस्तर इत्यादि पर, तब...! अब आधी-रात को खाली समय कितना है तुम्हारे पास? कितना खाली समय है? अरे! ये तो छ: घंटे खाली हैं, आठ घंटे खाली हैं।

तुम तो कह रहे हो कि जितना खाली समय होता है बस उतना जाता है पॉर्न में। पर खाली समय तो बहुत सारा है! मामला अगर बारह बजे रात को शुरू हुआ है तो दो घंटे भी खिंच सकता है, क्योंकि खाली समय तो बहुत है। ठीक? तो जो नींद बारह बजे आ जानी चाहिए थी, अब कितनी बजे आएगी? दो बजे। बारह बजे सोते तो सुबह सात बजे उठ जाते, और दो बजे सोओगे तो कब उठोगे? नौ बजे। नौ बजे भी उठकर तुम्हारा काम तो चल ही जाता है, और प्रमाण इसका ये है कि दूसरी रात को बारह बजे तुम पुनः वही क्रिया दोहराते हो।

अगर तुम्हारा जीवन ऐसा होता कि सुबह सात बजे उठते ही तुम्हें कोई बहुत महत्वपूर्ण, कोई बहुत गंभीर, कोई बहुत सार्थक काम करना है, तो क्या तुम दो-बजे सोना गवारा कर सकते थे? समझो बात को। सात बजे उठते ही तुमको किसी बहुत क़ीमती काम में लग जाना है, तो क्या तुम रोज़-ब-रोज़ ये कर सकते थे कि आज फिर दो बजे सोएँगे? एक दिन दो बजे सोते, दूसरे दिन दो बजे सोते, तीसरे दिन अपनेआप दस-ग्यारह बजे नींद आ जाती क्योंकि सुबह सात बजे तो उठना-ही-उठना है।

निश्चित रूप से तुम्हारे पास करने को कुछ है नहीं। करने को कुछ है नहीं तो बहुत सारा समय फिर किसी भी बेवकूफ़ी में तुम लगा सकते हो। ये बहुत बड़ी भ्रान्ति है कि पॉर्न इत्यादि में तुम अपना खाली समय देते हो। नहीं, तुम पॉर्न को ठीक उतना समय देते हो जितना तुम्हारी कामना चाहती है। तुम खाली समय नहीं दे रहे, तुम्हारी कामना जितना पसार चाहती है, उतना पसरती है वो। दो घंटे, तीन घंटे, डेढ़ घंटा, आधा घंटा — जितना उसको चाहिए अपनी तृप्ति के लिए, वो उतना समय लेती है। सवाल ये है कि वो समय कहाँ से चुरा रहे हो तुम।

अगर कोई बहुत क़ीमती काम होता तो तुम वो समय चुरा नहीं सकते थे। तुम्हारे पास कुछ करने को है ही नहीं तो क्या करोगे? अपने ही हाथों अपना मनोरंजन कर रहे हो! जीवन में कुछ सार्थक उद्यम है नहीं तो क्या करोगे? या तो तुम्हारे पास कोई सार्थक काम होता, या मनोरंजन के लिए भी तुम्हारे पास दूसरे साधन होते, मान लो तुम खिलाड़ी होते, तो तुम चार घंटा, छह घंटा खेल ही जाते, कि भाई, मैं तो खिलाड़ी हूँ, मेरा खेलकर काम चल जाता है। तुम खिलाड़ी भी नहीं हो।

तुम्हें सिनेमा की बड़ी परख होती, कला की पहचान होती तो तुम दिन की दो पिक्चरें (चलचित्र) देख डालते। तुम्हें कला की भी पहचान नहीं है। तुम्हारी अगर ज्ञान में रुचि होती, तुम ज्ञान के दीवाने होते, तो तुम कोई कोष पढ़ डालते, कोई किताब पढ़ डालते; ऑनलाइन भी होते तो विकिपीडिया पर बैठे रहते। पर ज्ञान में भी तुम्हारी कोई विशेष रुचि नहीं है। तुम्हें संगीत में रस होता तो तुम या तो गाते या संगीत सुनते। लोग संगीत में घंटों-घंटों गुज़ार देते हैं। तुम्हारी संगीत में भी कोई रुचि नहीं है।

तो ले-देकर के तुम्हारी पूरी ज़िन्दगी क्या है? एक चुभता हुआ खालीपन। एक चिल्लाती हुई ख़ामोशी है और वो चिल्लाती है कि मुझे भरो, मुझे भरो। न तुम्हारे पास काम है, न संगीत है, न खेल है, न ज्ञान है, न ऐसे सम्बन्ध हैं कि उनके साथ बैठो और दिन बीत जाए। न तुम्हारे पास ध्यान है कि अकेले भी हो तो अपने साथ सन्तुष्ट हो।

प्र: तो वो कैसे पैदा करें? वो रूचि कैसे पैदा करें?

आचार्य: पॉर्न देखकर तो नहीं। संगीत वहाँ भी होता है, संगत वहाँ भी होती है, खेल वहाँ भी होता है, पर उससे लाभ नहीं होगा। एक दिन अपनेआप को थोड़ी तृप्ति दे दोगे, दूसरे दिन कामना फिर मुँह फाड़े खड़ी हो जाएगी। जो मैंने बोला, उसी से तुम समझ गये होगे कि समाधान क्या है।

जीवन को इतना भर दो वैभव से कि तुम्हारे पास समय ही न बचे किसी तरह की बेवकूफ़ी के लिए। मन को जो रस पीना है, उसे छक कर पिला दो, और तन की जो अतिरिक्त ऊर्जा है, उसको किसी सही काम में पूरा खपा दो।

उसके बाद कहाँ तुम्हें होश आएगा, ख़याल आएगा कि अरे! चलो पॉर्न देखें, ये करें, वो करें। पकड़ लो कोई खेल ही, जवान आदमी हो! हाथ ऐसे थक जाए कि हिले ही न। अब हाथ ही नहीं हिल रहे तो क्या करोगे? बटन तो दबाने पड़ते हैं न, हिल ही नहीं रहा। किसी खेल में दक्षता भी आएगी, जीवनभर के लिए तुम्हारे पास एक योग्यता आ जाएगी।

अब उसकी जगह बैठे हुए हैं, कुछ नहीं, छत निहार रहे हैं, पंखा देख रहे हैं, बिस्तर ख़राब कर रहे हैं। उसी समय का सदुपयोग कर लो न। संगीत सीख लो, किसी बड़े मिशन में लग जाओ, किताबें पढ़ लो। और उनमें भी बहुत आकर्षण है, ग़ज़ब की कशिश है उनमें भी। भाई, तुम ख़ुशी की चाहत में ही तो ये सब करते हो न, पॉर्न इत्यादि? ख़ुशी से ज़्यादा बड़ी ख़ुशी उधर है: कलाओं में, ज्ञान में, खेल में, भक्ति में, ऊँचे किसी संकल्प में। उस ख़ुशी को मैं कहता हूँ 'आनन्द'।

जिन्हें किसी भी तरह के व्यसन की लत लगी हो, जो अपना समय किसी भी तरह से ख़राब करते हों, चाहे वो ज़्यादा सोते हों, चाहे पॉर्न इत्यादि देखते हों, चाहे कुछ भी और... कई होते हैं, वो कुछ करने को नहीं है तो यूँही घूम-फिर रहे हैं। उसको बोलते हैं ‘हैंगिंग आउट’ (बाहर घूमना)। उनसे पूछो, ‘क्या कर रहे हो?’ तो अब कैसे बताएँ कि समय ख़राब कर रहे हैं, तो बोलेंगे, ‘हैंगिंग आउट (बाहर घूम रहे हैं)’। गज़ब बात है! कहाँ लटके हुए हो?

तो जो भी लोग ये सबकुछ कर रहे हों, वो एक बात अच्छे से समझ लें कि जीवन बड़ा गरीब है, जीवन में वैभव नहीं है; निर्धनता बहुत है, दलिद्दर है, दरिद्रता। अब दलिद्दर से भरा हुआ है जीवन, तो चैन पाओगे नहीं!

समय का, अपने सारे संसाधनों का सार्थक उपयोग करो, फिर इन सब चीज़ों के लिए समय नहीं मिलेगा। ये सब नशे, ये सब आदतें उनको ही पकड़ती हैं जिनके पास खाली समय बहुत होता है। तुम्हें काम चाहिए। ऐसा काम जो जिस्म तोड़ दे बिल्कुल तुम्हारा। ऐसा काम जो तुम्हारे मन को बिल्कुल जकड़ ले। सार्थक काम मिल गया तो कामवासना से छूट जाओगे। काम करो, काम। काम। फिर कामवासना आएगी, तुम्हें व्यस्त पाएगी, और वापस लौट जाएगी।

पश्चिमी देशों में प्रजनन दर कम है, वहाँ लोगों को कम बच्चे होते हैं। उसके बहुत कारण हैं। आर्थिक विकास कारण है, चिकित्सा सुविधाएँ ज़्यादा अच्छी हैं, ये कारण है। पर एक बड़ा कारण ये है कि उनके पास काम है। अगर वो करना चाहें तो उन्हें काम मिलता है। उनके पास मनोरंजन के कई साधन हैं। और जो गरीब देश हैं, वहाँ पर आदमी के पास मनोरंजन का भी साधन बस एक ही है — जहाँ पैसा नहीं लगता — पकड़ लो बीवी को! और वक़्त बहुत है क्योंकि बेरोज़गारी ज़्यादा है। तो समय बहुत है और मनोरंजन के लिए सिर्फ़ बीवी है, तो फिर क्या होता है? फिर कतार लगती है बच्चों की।

मैं ये नहीं कह रहा कि यही एकमात्र कारण है, पर ये भी एक प्रमुख कारण है। अब बेरोज़गार हो जाए कोई, सिनेमा की टिकट खरीदने के भी पैसे नहीं हैं. . . और बेरोज़गार इसलिए भी है क्योंकि उसके पास कोई ज्ञान, गुण, शक्ति, बल नहीं है। जीवन को जानने-समझने में उसकी कोई अभिरुचि नहीं है। शास्त्रों से, किताबों से, साहित्य से, गद्य से, पद्य से उसका कोई लेना-देना नहीं है। कही घूम-फिरकर आने के लिए भी पैसे चाहिए, वो भी उसके पास नहीं हैं। ले-देकर उसके पास क्या है? उसके पास लिंग है अपना एक, और पत्नी है, तो बस यहीं पर सारा समय लगा देता है वो।

और फिर यही वजह है कि जो जाग्रत हो जाता है, उसे ब्रह्मचर्य घटित होता है। मन को खेलने के लिए खिलौनों की तलाश होती है, तो वो सेक्स (यौन-क्रिया) को, लिंग को खिलौने की तरह इस्तेमाल करता है। जो जाग्रत हो गया, उसे अब बड़े-से-बड़ा खिलौना मिल गया — उसे परमात्मा मिल गया। ऐसे भी कह सकते हो कि अब वो परमात्मा के हाथ में खिलौना बन गया। उसे बड़े-से-बड़ा खेल अब उपलब्ध हो गया, वो तर गया। तो अब उसे फुर्सत नहीं रहती बचकाने तरीक़ों से मन बहलाने की। ये ब्रह्मचर्य है। तुम कामचर्या की जगह अब ब्रह्मचर्या करने लगे। कहीं तो चर्या करोगे न? जहाँ पर तुम घूम-फिर रहे हो, जिस क्षेत्र में तुम्हारा आना-जाना है, वो तुम्हारे आचरण का क्षेत्र हुआ। वहाँ तुम्हारी चर्या हुई।

हमारी चर्या कहाँ होती है? कहाँ होती है? बाज़ार में, दफ्तर में, कुर्सी पर, बिस्तर में, किताबों में, गपशप में, इन सब में हमारी चर्या रहती है। हम इन सब के माध्यम से अपनेआप को पूर्ति देना चाहते हैं। ब्रह्मचर्य का अर्थ है कि अब तुम्हें पूर्ति मिल रही है ब्रह्म से सीधे, सीधे ब्रह्म से। जब ब्रह्म से पूर्ति मिल रही है तो तुम पूर्ण हुए, अब क्या करोगे छोटे-मोटे खिलौनों का?

जैसे कोई बच्चा अपना अँगूठा चूसता था और खिलौने इधर से उधर करता था, उसको माँ ही मिल गयी, अब वो क्या करेगा अँगूठे का, कि खिलौनों का? ये ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य में तुम्हें ऐसा कुछ उपलब्ध हो जाता है कि फिर बेवकूफ़ियों से खेलने की, बेवकूफ़ियों को बहुत क़ीमत देने की, समय देने की तुम्हारी इच्छा नहीं रहती।

तो सीख मेरी ये है कि जीवन को समृद्ध बनाओ। जीवन तुम्हारा जितना समृद्ध होगा, ये पॉर्न इत्यादि के प्रति तुम्हारा आकर्षण उतना कम हो जाएगा।

बाक़ी तो दुनिया फानी है! जब सब दृश्य मिथ्या हैं तो तुम अपने फोन या लैपटॉप पर जो पॉर्न देख रहे हो, वो भी है तो मिथ्या ही। तो मैं पॉर्न का विरोध इसलिए नहीं करता कि अनैतिक बात है। जब सब दृश्य मिथ्या हैं तो पॉर्न क्या सत्य हो गयी? वो भी मिथ्या ही है। और मिथ्या में क्या पाप? मैं पॉर्न को फ़िज़ूल इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि जितना समय तुम उसमें लगा रहे हो, वो समय तुम चुरा रहे हो किसी सार्थक प्रयोजन से। जीवन में समय वैसे ही बहुत थोड़ा मिला हुआ है तुम्हें। कुछ दशक का जीवन है तुम्हारा, बहुत कम समय मिला है, और वो समय भी तुमने यूँही जाया कर दिया, तो मुक्ति की यात्रा कब करोगे?

"बालपन सब खेल गँवायो, ज्वान भयो नारी बस का रे" — कबीर साहब बहुत पहले बता गये थे। और फिर रोओगे। बालपन ऐसे बीत गया, जवानी ऐसे बीत गयी, और बुढ़ापे में देह काँप रही है, अब कौनसी मुक्ति? किसकी मुक्ति?

"जवान भयो नारी बस का रे!"

"लड़कपन खेल में खोया, जवानी नींद भर सोया, बुढ़ापा देखकर रोया।"

तो तुमने कोई पाप नहीं कर दिया अगर तुम्हारे दिमाग में सेक्स (काम) घूमता रहता है। सेक्स का दिमाग में घूमना पाप नहीं है, जीवन को, अर्थात् समय को, अर्थात् तुम्हें ये जो छोटा सा अवसर मिला है, इसको व्यर्थ गँवा देना पाप है। अंतर समझ रहे हो न?

हिसाब तो करो कि कितने घंटे अब तक तुमने इन्हीं चीज़ों में मशगूल रह कर गुज़ार दिये। और उन घंटों में न जाने क्या-क्या हो सकता था। तुम्हारा मन निर्मल हो सकता था, तुम आत्मा की तरफ बढ़ सकते थे, तुम्हारे व्यक्तित्व में तेज आ सकता था। कितना कुछ जान, सीख, समझ सकते थे। वो सब नहीं हो पाया न। क्यों नहीं हो पाया? क्योंकि तुम्हारे उस समय को माया खा गयी।

और अगर अपनेआप को जीव कहते हो, तो जीवन तुम्हारी सबसे बड़ी सम्पदा है। और जीवन माने समय। तो तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन फिर कौन हुआ? जो तुम्हारा समय खा जाए। और अक्सर तुम्हारा समय खाने वाले तुम ख़ुद होते हो। व्यर्थ के विचारों में समय गुज़ार दिया, उधेड़बुन में समय गुज़ार दिया, चिंता-कलह-क्लेश में समय गुज़ार दिया तो तुम अपने सबसे बड़े दुश्मन हो।

जो कोई तुम्हारा समय नष्ट करे, उसको अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानना।

ख़ुद ही अपना समय नष्ट कर रहे हो। मरा हुआ भी अपनेआप को कब बोलते हो? जब तुम्हारे पास क्या पैसे नहीं बचते तब बोलते हो कि मैं मर गया? तुम्हारे बड़ा-से-बड़ा जो ख़ौफ़ है, वो है मौत का, ठीक? बड़े-से-बड़ा डर क्या है तुमको? मृत्यु का। और मृत्यु कब आती है तुमको? जब तुम्हारे रिश्तेदार छूट जाते हैं, उसको तुम मृत्यु बोलते हो क्या? पैसा छूट जाता है, उसको मृत्यु बोलते हो? कब बोलते हो कि मृत्यु आ गयी? जब समय नहीं बचता। तो तुम्हारी सबसे बड़ी सम्पदा क्या हुई? समय।

अब जब पॉर्न खोलना तो समय गिनना, और साथ में एक चीज़ और जोड़ लेना:

जहाँ कहीं तुम समय नष्ट कर रहे होगे, उसके साथ तुम्हारा मन भी नष्ट हो रहा होगा।

ये दोनों बातें बड़ी जुडी हुई हैं।

जब भी तुम समय का सदुपयोग कर रहे होते हो, तुम्हारा मन साथ-साथ साफ़ हो रहा होता है, परिष्कृत हो रहा होता है, और जब भी तुम समय का दुरुपयोग कर रहे होते हो, उस दुरुपयोग के साथ-साथ तुम्हारा मन भी गन्दा हो रहा होता है।

दोनों ओर से मारे गये बेटा! समय तो गँवाया ही, साथ में मन भी मैला किया। और अब मन मैला कर लिया है तो समय और गँवाओगे, क्योंकि तुम्हारा मैला मन ही तो निर्धारित करेगा न कि अब आगे के समय का क्या करना है। मन मैला कर लिया तो आगे समय और नष्ट करोगे। फँसे!

जब भी इन मूर्खताओं में लगे हो, कोई ऐसा अपने लिए साथी ढूँढो, या कोई ऐसी अपने लिए व्यवस्था बनाओ कि अचानक कोई आकर तुम्हें झंझोड़ कर कहे, ‘पिछले आधे घंटे क्या किया? पिछला आधा घंटा कहाँ गया?’ पिछले आधे घंटे को मौत खा गयी!

समय पर नज़र रखो। और वो तभी होगा जब नज़र के पीछे कोई समय से आगे का बैठा हो। देखो कि बड़े-से-बड़ा, ऊँचे-से-ऊँचा क्या है जिसको तुम अपनी ज़िन्दगी में शामिल कर सकते हो। उसको ज़िन्दगी में लेकर आओ, और उसी के हो जाओ। यही तुम्हारे जीवन का सदुपयोग है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories