फल के लिए जड़ों पर ध्यान दो || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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फल के लिए जड़ों पर ध्यान दो || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

वक्ता: स-फल-ता

मूल शब्द क्या है? फल! फ्रूट, आउटपुट!

सफलता का अर्थ है फल चाहिए। सफलता का अर्थ है फल की कामना, फल की प्राप्ति। फल लग सके, सफल हो सको, इसके लिए ज़रूरी क्या है? पेड़ का होना। कैसे पेड़ का होना? कागज़ी पेड़ का होना? असली पेड़ का होना। और अगर पेड़ है, और असली है तो फल आ ही जाएंगे। किस पेड़ की बात कर रहे हैं हम? कोई भी पेड़ हो सकता है। पर एक बात पक्की है कि फल तभी मिलेगा, सफल तभी होगे जब पेड़ असली हो, उसका तना असली हो, जिस टहनी पर फल लगा है, वह असली हो और सबसे महत्वपूर्ण, जड़ें असली हों। जड़ें कभी दिखाई पड़ती हैं ऊपर-ऊपर से? फल दिखाई पड़ता है, जड़ें नहीं। बियॉन्ड द ग्लॉस की है, दिखाई क्या पड़ता है?

सभी श्रोतागण: ग्लॉस (Gloss)

वक्ता: असली क्या है?

सभी श्रोतागण: कोर (Core)

वक्ता: दिखाई पड़ता है फल, नहीं दिखाई पड़ती है जड़। असली है जड़। जड़ों को लेकर तो हम कभी सवाल पूछते ही नहीं। सवाल तो हमेशा फल को लेकर पूछते हो। कभी यह सवाल नहीं उठाते कि, ‘सर जड़े कहाँ हैं?’ दिखाई नहीं पड़ती पर असली वही हैं। उन्हें कैसे मज़बूत करें? पेड़ को पानी देने जाते हो, तो पानी फल पर डालते हो या जड़ो में? फल पर पानी डाला करो, तुम्हें फल चाहिए। तुम्हारे लिए तो फल ही ज़रूरी है- स-फल-ता! जिन्हें फल की आकांक्षा हो, वह जड़ों पर ध्यान दें। जिन्हें जीवन में फल चाहिए, वह फल को भूल ही जाएं और जड़ों पर ध्यान दें। बिल्कुल भूल जाओ फल को, फल आ जाएगा, अपने आप आ जाएगा। जड़ मज़बूत है, फल दूर नहीं है, अपने आप आएगा।

फल है ग्लॉस, जड़ है कोर!

जिसने कोर पर ध्यान दिया अब उसको फल की परवाह नहीं करनी पड़ेगी। पर दिक्कत यह है कि जड़ें कभी दिखती नहीं हैं। और दिख भी जाएँ, तो सुन्दर नहीं होती हैं। अँधेरे में होती हैं। उन तक तुम्हारी नज़र नहीं पहूँ चती। और जब नज़र पहूँ चती है तो उनमें कुछ आकर्षक नहीं लगता। जड़ों में कीड़े भी होते हैं, अँधेरा भी होता है, सीलन होती है, मिटटी होती है, कोई खुश्बू नहीं उठती। फल से खुश्बू उठती है। जड़ में कुछ भी ऐसा नहीं, जो तुम्हें आकर्षक लगे। जड़ में कुछ ऐसा नहीं जिसे देखकर तुम कहो कि यही चाहिए। और फल में सब कुछ ऐसा है। ध्यान तुम्हारा लगातार फल की तरफ है और बिल्कुल भूल गए हो कि उस फल के लिए मज़बूत जड़ों की ज़रुरत है।

किसी ने कहा है कि, जिन वृक्षों को आसमान की ऊँचाई छूनी हो उन्हें अपनी जड़ें पाताल तक गहरी भेजनी पड़ेंगी।

जिन पेड़ों को ऊपर इतना उठना हो कि आसमान छू लें, उन्हें अपनी जड़ें इतनी गहरी भेजनी पड़ेंगी की पाताल छू लें। ऊँचा सब उठना चाहते हो पर गहरा कोई नहीं जाना चाहता। तुम में से कोई ऐसा नहीं बैठा है जो ऊँचा नहीं उठना चाहता। यही कहते हो न आई वांट टू राइज इन लाइफ। ‘ज़िन्दगी में ऊँचा उठना है’- सब यही कहते हो, पर गहरा कोई नहीं जाना चाहता। हम बिल्कुल पेड़ों जैसे हैं। जितने दिखाई पड़ते हैं, उतने ही नहीं हैं। दिखाई तो हमें वही पड़ता है जिसको तुमने ग्लॉस कहा था। हम पेड़ों जैसे हैं। हम में जो महत्वपूर्ण है, वह दिखाई नहीं पड़ता। पर असली वही है। जड़ें अगर गहराई तक नहीं जा रही हैं, तो तुम ऊँचाई कभी नहीं छू पाओगे। जड़ें अगर गहराई तक नहीं जा रही हैं, तो फल कभी नहीं लगेंगे।

जड़ों पर ध्यान दो। क्या है जड़? जड़ वही है जिसको हमने कहा था, अपरिवर्तनीय । पत्ते गिरते रहते हैं, फल आते हैं, चले जाते हैं, जड़ कायम रहती हैं, साबुत रहती है। अगर पूरा पेड़ भी काट दो और जड़ साबुत है, तो पेड़ दोबारा आ सकता है। पर पूरा पेड़ कायम रखो और जड़ें काट दो, तो उस पेड़ का कुछ नहीं है, न वर्तमान न भविष्य।

जिस अपरिवर्तनीय की हमनें बात की थी, जो जड़ है, वह है साक्षी, विटनेस। वह, जो कभी नहीं हिलता। वह, जिसने जीवन में उसको पा लिया। उसको बड़े फल मिलते हैं, बड़ी सफलताएं मिलती हैं, उसका पेड़ ऊँचाई खूब छूता है। और जिसने उसे नहीं पाया, वह तुम्हारे जैसा रह जाता है, हिला हुआ। सोचो ना कि अगर पेड़ ही नहीं है तो ज़रा सी हवा चलेगी, और पेड़ का क्या होगा? हिल जाएगा। जैसे हिले हुए हो। बड़े-बड़े तूफानों में भी पेड़ क्यों नहीं गिरता? क्योंकि जड़ें मज़बूत हैं। और तुम्हें ज़रा सा हवा का झोंका हिला डुला के गिरा देता है। किसी ने दो बात बोल दीं कि मायूस हो जाते हो, किसी ने दो बात बोल दीं कि खुश हो जाते हो। कोई खबर आ गयी, तो चिंतित हो जाते हो। किसी का कोई कमेंट पढ़ लिया फेसबुक पर तो उदास हो जाते हो। ज़रा-ज़रा सी बातों पर बेचैन हो जाते हो। यह जड़ों के गहरा ना होने का प्रमाण है। जड़ें गहरी नहीं जा रहीं। वही तो शांत रहकर सारे परिवर्तन को देखता है, उसको ही नहीं पा रहे हो। शान्ति से ज़िन्दगी को देखना नहीं आया। और शान्ति से मेरा मतलब मुर्दा होना नहीं है। मैं कह रहा हूँ कि बाहर जो चल रहा है चलता रहे: खेलो, कूदो, नाचो, गाओ, होने दो जो भी हो रहा है, पर एक होश कायम रहे, सब हरकतों के मध्य भी। जो कुछ कर रहे हो, चलता रहे। नाचो पूरी ताकत से, खेलो, गाओ, पूरी ताकत से। पढ़ो, दौड़ो, लेकिन होश में रहो। उस होश का नाम है तुम्हारी जड़। वही अचल है। वही नहीं हिलता। वही साक्षी भी है। सब एक!

जिन्हें सफलता चाहिए वह होश सीखें। बहुत लोगों ने हाथ उठाया था जब मैंने पूछा था किस-किस को सफल होना है। जिन्हें सफलता चाहिए, वह होश में रहना सीखें। आँखें खुली भर रहने से तुम होश में नहीं माने जा सकते। तुम्हें पता है कुछ लोग आँखें खोल कर भी सोते हैं? बड़े भयानक से लगते हैं। हम वैसे ही हैं। आँखें खुली हैं पर हम सोए हुए हैं। होश में हैं नहीं हम।

जो होश में है, सफलता उससे दूर नहीं। मज़े की बात है कि जो होश में है, उसे सफलता चाहिए ही नहीं। क्योंकिहोश ही अपने आप में बड़ी सफलता है। जहाँ होश है, वहीँ सफलता है। वह मांगेगा ही नहीं कि सफल करो, अपने आप आ जाएगी। बिना मांगे! हम में से ज़्यादातर कैसे हैं? बेहोश हैं और मांगे जा रहे हैं, सफलता। हमें मिल नहीं सकती, और हम सोचते हैं मुझे मिलती क्यों नहीं है। जीवन में फल क्यों नहीं लगते? सब सुनसान क्यों है? जो मांगता हूँ, मिलता क्यों नहीं? तैयारी करता हूँ, कोशिश करता हूँ पर सफलता नहीं है। क्यों? क्योंकि होश नहीं है। क्योंकि देख नहीं रहे हो ठीक-ठीक कि मैं कर क्या रहा हूँ। अभी इस कमरे में बैठा हूँ तो क्या कर रहा हूँ, बाहर निकलूंगा तो क्या कर रहा हूँ। कभी पूछते नहीं हो, ‘वॉट्स गोइंग ऑन?’ पूछते नहीं हो। एक बहाव आता है और भीड़ के साथ चला जा रहा हूँ, चला जा रहा हूँ। सब इंजीनियरिंग कर रहे हैं, मैं भी कर रहा हूँ। एक बहाव है, मैं भी बह रहा हूँ। होश का अर्थ है- ठीक-ठीक जानना कि यह हो क्या रहा है, अपने आप को धोखे में न रखना। वही तुम्हारी जड़ है। यही वह एक्सिस है जो कभी हिलती नहीं, डुलती नहीं। और होश का मतलब कोई गम्भीर प्रकार की चीज़ नहीं है कि डर जाओ। मैं तो कह रहा हूँ कि ज़िन्दगी में खूब मौज हो, खूब मस्ती हो। पर मौज मस्ती भी तभी हो सकती है जब होश हो। बेहोश आदमी क्या मौज करेगा? तुमने कभी किसी बेहोश आदमी को पार्टी करते देखा है? उसको ले जाओ पार्टी में, वहाँ भी बेहोश है। क्या उसको आनंद आएगा? मज़ा भी तो तभी लोगे ना जब होश कायम है। जब पता है कि क्या हो रहा है।

सफलता सबको चाहिए पर उस सफलता के पीछे जो अनिवार्य शर्त है, उसको तुम नहीं पूरा करते। जड़ों को गहरा करो। तुम्हारा होश ही तुम्हारी जड़ है। उसको इंटेलिजेंस बोलेंगे हम बार-बार। वही तुम्हारी जड़ है, उसको गहरा करो। और फिर देखो कि ज़िन्दगी बिल्कुल मस्त हो जाती है कि नहीं, मौज बन जाती है कि नहीं। फिर उदासी, बोरियत, डर; यह सब बिल्कुल दूर हो जाएगा। सोए-सोए से नहीं रहोगे।

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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