प्रश्नकर्ता: प्रणाम सर। मेरा विवाह हुआ, उसके बाद दो बच्चे हुए हमें। पत्नी मेरी गृहणी हैं। और एक बेटा है पहले, फिर उसके बाद बेटी हुई। परन्तु कुछ मेडिकल कंडीशन (चिकित्सा स्थिति) के कारण उसकी मृत्यु हो गई थी। अभी एक लड़का ही है साढ़े तीन साल का। तो अब फिर से थोड़ा सा पत्नी की तरफ़ से भी और पत्नी के घरवालों की तरफ़ से भी, दबाव बन रहा है कि एक बच्चा और किया जाए। मैंने पत्नी को तो समझाया, परन्तु वो नहीं समझ पा रही। मेरे भी माता-पिता हैं या मेरी पत्नी के माता-पिता भी हैं जो, उनको ये चीज़ें समझाना कि पर्यावरण के लिए ख़तरा है या बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है बड़ा मुश्किल हो रहा है।
अब, जो मेरी पत्नी है, उसके माँ-बाप चाहते हैं कि भई, ये कहीं उलझी रहे। तो उसको उलझाने के लिए वो चाहते हैं कि एक बच्चा पैदा हो जाए। यही परेशानी मेरे साथ है। अगर वो नहीं किसी और काम में लगी रहती है तो फिर मुझे परेशान करना थोड़ा सा चलता रहता है उसका। तो अब मुझे ये समझ नहीं आ पा रहा है कि मैं उसको कैसे समझाऊँ या उसके माँ-बाप को कैसे समझाऊँ? और अगर नहीं करता हूँ दूसरा बच्चा या कोई ऐसा चीज़ उसको नहीं देता हूँ, नौकरी वो करने में भी समर्थ नहीं है, पत्नी मेरी, तो अगर उसको वहाँ कहीं और नहीं उलझा सकता, तो फिर उसका क्या उपाय करूँ? कैसे इससे निकलूँ, समझ नहीं आ रहा?
आचार्य प्रशांत: समर्थ नहीं है नौकरी करने की, तो समर्थ बनाइए।
प्र: सर, शैक्षणिक योग्यता इतनी नहीं है।
आचार्य: तो बढ़ाइए, शैक्षणिक योग्यता। दसवीं, बारहवीं, मैट्रिक, कॉलेज, जो भी है पास कराइए। ये बात इतनी अविश्वसनीय क्यों लग रही है?
प्र: पढ़ाई की तरफ़ उसका इतना रुझान है नहीं।
आचार्य: रुझान तो सब लड़के-लड़कियों का एक ही तरफ़ होता है, है न? रुझान पैदा करवाना पड़ता है। नहीं तो आप, लड़के-लड़कियों को आठ-दस साल की उम्र से छोड़ दीजिए, एकाध-दो ही होंगे जो कहेंगे कि हम पढ़ना चाहते हैं, बाक़ी सब इसी में लग जाएँगे — गोद भरो आंदोलन!
तो प्राकृतिक रुझान तो सबका यही होता है। अब समस्या इसमें यह नहीं है कि आप जानते नहीं कि क्या करना चाहिए। आपको अड़चन ये आ रही है कि जो करना चाहिए उसमें श्रम बहुत लगेगा। ये है आपकी अड़चन।
तो उसमें तो मैं कोई सहायता नहीं कर सकता, वो श्रम तो आपको ही करना पड़ेगा। वो श्रम नहीं करेंगे तो फिर वही समाधान है, दूसरा बच्चा, तीसरा बच्चा; जो भी है करिए।
आपके लिए तो ये बात एक बड़ी ज़िम्मेदारी की तरह है न। पत्नी अगर बहुत पढ़ी-लिखी नहीं है, तो ये ज़िम्मेदारी की बात है कि अब उनको पढ़ाना-लिखाना है और यही तो पहला काम होना चाहिए। भई, आप अपनेआप को पति की तरह देखें या मित्र की तरह देखें या बाप की तरह देखें या सलाहकार की तरह देखें, तो आपके सामने कोई होता है तो आप उसको पहली सलाह क्या देते हो, पढ़ाई करो या बच्चा पैदा करो? कोई सामने है आपके और एक बच्चा पहले से है फ़िलहाल। तो उसको आप क्या सलाह दोगे, पढ़ो या बच्चा करो? पढ़ने की सलाह दोगे न।
तो हर नाते, आपका कर्तव्य यही है कि पढ़ने की ओर उनको प्रेरित करें। तो पहले तो पढ़ने में लग जाएँगे चार-पाँच साल, फिर पढ़ाई के बाद नौकरी ढूँढनी है, नौकरी में जमना है, उसमें और चार-पाँच साल लग जाएँगे। इतने में समय भी बीत जाएगा और बुद्धि भी थोड़ी विकसित हो जाएगी।
देखिए, जो भी लोग एक सही ज़िंदगी जीना चाहते हों, वो ये समस्या तो लेकर आएँ ही नहीं कि हम सही जिंदगी जीना चाहते हैं, ग़लत निर्णय से बचना चाहते हैं लेकिन लोग बहुत दबाव बना रहे हैं। लोग दबाव नहीं बनाएँगे तो क्या करेंगे? दबाव तो बनाना लोगों का काम है।
आप जो करना चाहते हो, आप जैसे जीना चाहते हो, वो बात लोगों के ढर्रे के विपरीत जाती है तो वो तो दबाव बनाएँगे ही। इसमें नई चीज़ क्या है? इसको लेकर के अब रोना क्या? ये तो होना ही है। इसका कोई समाधान नहीं। इसका तो यही है कि अच्छा तेरे पास समय ज़्यादा है, दिन भर खाली बैठी रहती है, चल तेरा एडमिशन (दाखिला) कराते हैं। कराइए एडमिशन या डिस्टेंस एजुकेशन जो भी हो, वो आपको देखना है कि कौनसा सार्थक तरीक़ा है उचित, उसको पढ़ाने के लिए।
जब ज्योमेट्री (ज्यामिती) की प्रॉब्लम सामने आएगी न, दिमाग़ से बाक़ी सब फितूर उतर जाएँगे!
क्यों भई? अब पूछ रहे हैं, ‘हाँ भई, बताओ ज़रा, इलेक्ट्रोलाइसिस (विद्युतलयन) की थ्योरी (सिद्धांत)।’ तो उसमें लोरी थोड़ी सुनाओगे? वही सब थ्योरी (सिद्धांत) पढ़ी नहीं है बचपन से इसलिए लोरी-लोरी ज़्यादा याद आता है। यह तो जाना हुआ, प्रमाणित, सिद्ध तथ्य है कि जिस भी समाज में, देश में, साक्षरता बढ़ती है, वहाँ प्रजनन दर अपनेआप कम हो जाती है। इन दोनों में इनवर्स को-रिलेशन (उल्टा सहसंबंध) रहता है, हमेशा, हर जगह।
कहने वाले यह भी कहते हैं कि 'लिट्रेसी इज अ ग्रेट कॉन्ट्रसेप्टिव' (साक्षरता एक बड़ा गर्भनिरोधक है)। जितना आगे पढ़ते जाओ, ये बच्चा पैदा करने का कार्यक्रम, अपनेआप ही कम होता जाता है। आप पीएचडी कर लीजिए, पीएचडी करते-करते ही आप तीस-पैंतीस के हो जाएँगे। टालते चलिए, टालते चलिए। और जब आप ख़ूब टाल लेते हैं, तो उसके बाद समझ में आ जाता है कि अच्छा ही किया, टाल दिया।
ऐसी नज़रों से मत देखो। मेरे पास इससे ज़्यादा कोई समाधान नहीं है। (श्रोतागण हँसते हैं) आगे की मेहनत आपको ही करनी है ।