तुम बहुत चीज़ों को लेकर परेशान हो, ज़िन्दगी के तमाम झंझट हैं, ये है, वो है और लग गए एक गेम (खेल) खेलने। अब वो जो गेम खेल रहे हो तुम वो नशे की तरह तुम्हें थोड़ी देर के लिए भुलवा देगा कि तुम कितने परेशान हो।
पर कोई भी नशा हो दिक़्क़त ये है कि वो उतर जाता है। भाई चढ़ गया था तो चढ़ा ही रहता। जब तक चढ़ा था तब तक मौज ही लग रही थी। सब उपद्रव भूल गए, ग़म-ग़लत हो गया। सारी चीज़ें भुला गईं।
नशे के साथ दिक़्क़त क्या है? – उतर जाता है!
और जब उतर जाता है तो बड़ा श्मशान, बड़ा बंजर, बड़ा वीरान छोड़ जाता है, और जब छोड़ जाता है वीरान तो आप कहते हो, ‘दोबारा नशा चाहिए!’
ये फिर गंदी लत लग गयी।
प्रकृति के खेल में जो फँसेगा वो वैसे ही फँस गया जैसे नशे में फँसा जाता है। थोड़ी देर के लिए सुकून मिल जाएगा, उसके बाद फिर चिड़चिड़ाहट, तनाव, बेचैनी, पागलपन, खिसियाहट…