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परिस्थितियों से भागना क्या सही है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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परिस्थितियों से भागना क्या सही है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्न: कभी-कभी ऐसा होता है कि मन करता है कि सब कुछ छोड़-छाड़ कर चला जाऊँ, क्या ऐसा करना सही होगा?

आचार्य प्रशांत: देखो दो तरह की बातें हो सकती हैं:

१. एक बात होती है सौलिटयुड , एकांत , एकांत का मतलब यह होता है कि मैं यह देख पा रहा हूँ कि अभी जो स्थिति है, यह मेरे मन पर छा रही है, हावी हो रही है, तो मैं थोड़ी देर के लिए एक किनारा चाहता हूँ, एकांत चाहता हूँ, मैं चला गया हिल स्टेशन , मुझे शेहर ने बहुत पका दिया, मैं चला गया हिल स्टेशन चार दिन के लिए, पांच दिन के लिए, चलो, दो हफ्ते के लिए चला गया, पर दो हफ्ते के बाद मैं क्या करूँगा?

मैं लौट के आऊँगा, तो वो अस्थाई स्थिति थी, कुछ देर के लिए, मैं वापस आऊँगा और लडूँगा उस अव्यवस्था से।

जैसे कि अगर मुझे बीमारी लगी हो कोई तो मैं कुछ समय के लिए हॉस्पिटल में चला जाऊँ, पर क्या मैं हॉस्पिटल को अपना घर बना लूँ?

मैं वापस आऊंगा।

*२. एस्केप*, यह होता है कि मैं दुनिया ही छोड़ के भाग गया, और मैं पहाड़ पर चढ़ के सन्यासी हो गया, मैं हिल स्टेशन पर पाँच के लिए नहीं गया, मैं वहाँ जा के छिप गया, ‘भैया! दुनिया मेरे बस की नहीं है, मैं तो यहीं पर रहूँगा’ , ये एस्केप होता है।

तो थोड़े समय के लिए दूर हो जाना वो एक दूसरी चीज़ है, वो है एकांत।

एस्केप तब है जब मैं कहूँ कि *‘अब मुझसे नहीं हो रहा और मैं यहाँ से जा रहा हूँ’*।

एकांत अच्छी चीज़ है, हम सभी को उसकी ज़रूरत होती है, अपने लिए अलग समय निकालपाना जिसमें तुम्हारे दोस्त बीच में न आ रहे हों, जिस में किसी का दखल न हो, तुम बिलकुल अकेले रह सकते हो, वो एक बहुत अच्छी बात है, लेकिन अगर ऐसे हो गए हो कि दुनिया का सामना करने से डर लगता है, तो बड़ी बीमारी हो गई है वो दूसरी बात है।

उस बीमारी में मत फँस जाना।

शब्द-योग सत्र से उद्धरण। स्पष्टता के लिए सम्पादित।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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