आचार्य प्रशांत: दुनिया बहुत मूल्य देती है ताकत को और प्रसिद्धि को। दुनिया इन उपकरणों को मूल्य तो देती है पर उनका इस्तेमाल करना नहीं जानती। उनका वो इस्तेमाल करती है मंजिल तक पहुँचने के लिए नहीं, मंजिल से और दूर जाने के लिए। पैसा दुनिया भी कमाती है; मैं कह रहा हूँ पैसा आप भी कमाइए, उद्देश्य-उपक्रम अलग होना चाहिए।
दुनिया पैसा कमा रही है ताकि अपने अहंकार को और घना कर सके। दुनिया पैसा कमा रही है ताकि उन्हीं पैसों से अपने लिए और मोटी-मजबूत बेड़ियाँ गढ़ सके। आप पैसा कमाइए ताकि उन पैसों से आप बेड़ियों को काटने वाले औज़ार गढ़ सकें।
इन दोनों बातों में अंतर समझिएगा। बेड़ियाँ गढ़ने के लिए भी पैसा चाहिए और आरा बनाने के लिए भी पैसा चाहिए। आरा जानते हो न? बेड़ी काटने का औजार। लोग पैसा कमा रहे हैं, उससे वो बेड़ियाँ खरीद कर ला रहे हैं; आप पैसा कमाइए उससे आप आरा खरीद कर लाइए।
यह मत कह दीजिएगा कि “साहब! हम तो आध्यात्मिक आदमी हैं हमें पैसे से क्या ताल्लुक?" नहीं नहीं, पैसा बहुत ज़रूरी है। पैसा नहीं होगा तो आरा कहाँ से लाओगे?
और मैं नहीं कह रहा कि हमेशा जो बेड़ी है सामने वो किसी आरे से ही कटेगी। हो सकता है कि जो संसाधन चाहिए हों, वो सूक्ष्म हो, धन से खरीदा न जा सकता हो। अगर वो संसाधन सूक्ष्म हो तो आप सूक्ष्म साधना करें। कोई दिक्कत नहीं। आपके सामने जो चुनौती है, जो बेड़ी है, अगर वो सूक्ष्म है, ऐसी जो किसी सूक्ष्म आरे से कटेगी, जो बाजार में नहीं बिकता पैसे से, तो आप सूक्ष्म साधना करिए और सूक्ष्म आरे से काट दीजिए उस बेड़ी को।
पर बहुदा बेड़ियाँ बहुत ही स्थूल होती हैं और स्थूल चीज़ तो दूसरी किसी स्थूल चीज़ से ही कटती है न। जो सबसे अकाट्य धातु होती है उसको काटने के लिए भी आपको क्या चाहिए होता है मालूम है? हीरा। हीरा तो महंगा आता है बाजार में भाई।
और हो सकता है कोई आपके इर्द-गिर्द, जिसने जबरदस्त प्लेटिनम की बेड़ियाँ धारण कर ली हों। क्यों प्लैटिनम की ज्वेलरी नहीं देखी क्या? है कोई आपके परिवेश में जो प्लैटिनम की आभूषण-गहने धारण करके बैठ गई है, जो है वास्तव में जंजीरे ही, हथकड़ियाँ ही हैं, पर उसके हिसाब से आभूषण है। तो उस प्लेटिनम को काटने के लिए तो सिर्फ-और-सिर्फ हीरा ही उपयोग में आएगा। हीरा तो महंगा आता है। आपको हीरा खरीदना पड़ेगा। अब कमाइए न पैसा! ये हुआ पैसे का सार्थक उपयोग।
उसने पैसे का क्या इस्तेमाल करा है? अपने लिए बेड़ियाँ खरीदने के लिए। आपके पास भी पैसा होना चाहिए ताकि आप वो हीरा खरीद सको जिससे उसकी बेड़ी काटी जा सकती है। बात समझ में आ रही है?
तो इस तरह की बात तो करिएगा ही नहीं कि “अरे, अध्यात्म में पैसे का क्या काम?" अति मूर्खतापूर्ण बात है ये। अरे एक आध्यात्मिक विश्वविद्यालय भी खड़ा करना है तो वो स्वर्ग से थोड़े ही उतरेगा। इसी जमीन पर खड़ा करना पड़ेगा, संसाधन लगेंगे, धन लगेगा। अभी मैं आपसे बात भी कर रहा हूँ तो ये बात करने-करने में बहुत सारे संसाधन लग रहे हैं और उनके पीछे बहुत सारे धन का व्यय हो रहा है। इस धन का व्यय हो रहा है आपकी बेड़ियाँ काटने के लिए, सबको आध्यात्मिक मंजिल तक पहुँचाने के लिए।
अब यही बात प्रसिद्धि और ताकत पर भी लागू होती है। आप कह रहे हैं कि जीवन का उद्देश्य है, दूसरे का भला करना है। ठीक? आपकी होगी बड़ी कामना, बड़ी तमन्ना दूसरों का भला करने की। अरे, आप दूसरों का भला करोगे कैसे जब आपकी आवाज ही नहीं पहुँचेगी दूसरों तक? आज से चार सौ साल पहले का युग तो है नहीं कि फ़कीर बाबा निकल गए और पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए किसी गाँव में, और चालीस लोग जमा हो गए और कुछ चर्चा वगैरह हो गई, सत्संग हो गया, भजन हो गया और बाबा आगे बढ़ गए दूसरे गाँव की तरफ। और ऐसे करके भगवत प्रचार हो गया।
अब तो ऐसे होगा नहीं भगवत प्रचार। अब तो एक ही तरीका है प्रचार का। क्या? जिसमें धन लगता है, तमाम तरह का मीडिया होता है और जो लोग मीडिया चला रहे हैं वो तो आध्यात्मिक नहीं है न। उन्होंने तो समाज सेवा नहीं करनी है न। मीडिया चलाने के पीछे उनका उद्देश्य तो धन कमाना है, तो वो आपको मुफ्त में ही प्रसिद्धि तो दिला नहीं देंगे। वो आपको मुफ्त में कुछ नहीं दिला देंगे।
वो किसी को भी मुफ्त में कुछ नहीं दिला देंगे क्योंकि वो बाज़ार में बैठे ही हैं मुनाफा अर्जित करने के लिए। तो वो क्यों आपको यूँही प्रसिद्ध कर देंगे और आपका संदेश सब तक पहुँचा देंगे?
आप कहेंगे “पर मेरा संदेश बहुत उच्च कोटि का है, मेरा संदेश कोई व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं है। मेरा संदेश तो पूरे समाज के उत्थान के लिए है, तो मेरा संदेश तो सब तक पहुँचना चाहिए न।"
साहब आपकी नजर में आपका संदेश बहुत कीमती होगा, फेसबुक की नजर में नहीं है। फेसबुक तो प्रसिद्धि दे देगा किसी अधनंगी तस्वीर को। वो वायरल हो जाएगी और आपने ऊँची-से-ऊँची बात कह दी होगी, उसको देखेंगे कुल छप्पन जन, छ लाइक एक कमेंट। बात समझ में आ रही है?
और जितनी आप कोई वाहियात बात कर दें, कोई जादू-टोने की बात कर दें, कोई अंधविश्वास से भरी हुई बात कर दे, कोई कामनाओं को उत्तेजित करने वाली बात कर दें। वो बातें तुरंत आगे बढ़ जाएँगी।
आध्यात्मिक बातें भी बहुत बढ़ जाती हैं आगे। वो इस तरीके की हों कि तुम कौन-सी क्रिया कर लो जिससे तुम्हारे भीतर दिव्य शक्ति जागृत हो जाएगी, वो बात आगे बढ़ जाएगी। ऐसी हर बात आगे बढ़ जाएगी जिससे आप भी डूबते हों और पूरा ज़माना भी डूबता हो।
आपको अगर अपनी बात आगे बढ़ानी है, आपको अगर प्रसिद्ध होना है, आपको अगर पहचान चाहिए तो उसके लिए तो आपको पैसा खर्च करना पड़ेगा। सोशल मीडिया पैसा माँगेगा। पहचान बनाइए, ज़रूर बनाइए, बिना पहचान बनाए आप दूसरों का भला कैसा करेंगे? पहचान बनाइए! पहचान बनाने के लिए भी कमाइए।
यही पहचान का सार्थक उपयोग है कि किसी तक आपका नाम पहुँचा, तो नाम के साथ-साथ ऊपर वाले का फरमान भी पहुँचा। आपका नाम उस तक इसलिए नहीं पहुँचा है कि वो आपका मुरीद हो जाए। आपका नाम उस तक इसलिए पहुँचा है ताकि आपके माध्यम से वो उस पार निकल जाए, तर जाए, मुक्त हो जाए। ये प्रसिद्धि का सार्थक उपयोग है।
और बिलकुल जैसे मैंने पैसे के मामले में सावधान करा था कि कह मत दीजिएगा कि, "अरे आध्यात्मिक आदमी पैसा क्या करेगा", वैसे ही ये कह मत दीजिएगा कि, "आध्यात्मिक आदमी प्रसिद्धि का क्या करेगा? आध्यात्मिक आदमी को नाम से, ख्याति से क्या लेना-देना?" मूर्खों वाली बात है।
या तो अघोरी हो जाए, अवधूत हो जाए, जाकर किसी श्मशान में बस जाए या पहाड़ों में किसी गुफा में वास करें। कह दे कि, "मुझे इस समाज से, इस दुनिया से कुछ लेना-देना ही नहीं, मुझे दिख गया है सब मिथ्या है।"
पर अगर वो समाज के बीच रह रहा है, अगर उसे जन-सामान्य से अभी कोई वास्ता है तो वो एक ही रिश्ता रख सकता है न दुनिया से। क्या? कि, "मैं दुनिया के बीच में हूँ दुनिया के उत्थान के लिए। और दुनिया का अगर उत्थान करना है तो दुनिया तक अपनी आवाज तो पहुँचानी पड़ेगी न। उसके लिए ताकत भी चाहिए, नाम भी चाहिए, प्रसिद्धि चाहिए, पैसा चाहिए सब चाहिए।" तो आप ये सब बेशक अर्जित करें।
पर ये सब जब आप अर्जित करें तो याद रखें कि ये सब संसाधन आप कमा रहे हैं अपने लिए नहीं, परमार्थ के लिए। अपने छुद्र संकीर्ण स्वार्थ के लिए न पैसा कमाइए, न प्रसिद्धि। ये सब आप अर्जित करें और परमार्थ के लिए ही करें।
बल्कि पैसे की शोभा ही किसी ऐसे के हाथों में है, जो पैसे का पारमार्थिक उपयोग करना जानता हो। प्रसिद्धि होनी ही उसकी चाहिए जिसके नाम के साथ-साथ, उसका नाम सब तक पहुँच जाए जिसका कोई नाम ही नहीं।
आज की दुनिया उल्टी चल रही है। किनका नाम फैला हुआ है? जिनके नाम के साथ-साथ सब तरह की बेहूदगियाँ आप तक पहुँच जाती हैं। उनका नाम सबसे ज़्यादा प्रचलित है।
और जिनका नाम आपको पता ही होना चाहिए, उनके नाम से आप बिलकुल परिचित-वाकिफ नहीं। तो सही आदमी का न सिर्फ अधिकार है ये, बल्कि उसका फ़र्ज़ है, ज़िम्मेदारी है, उत्तरदायित्व है कि वो अपने-आपको प्रसिद्ध बनाए।
अगर आप जानते हो कि आप कोई सही काम कर रहे हो और उसके बाद भी आप प्रसिद्धि नहीं अर्जित करते, तो आप अपने ही आराध्य के प्रति गुनहगार हो गए। वो आपसे पूछेगा कि अगर तुम सेवा कर रहे थे मेरी, आराधना कर रहे थे मेरी, तो तुमने अपने-आपको प्रसिद्ध क्यों नहीं किया? आप कहेंगे “वो प्रसिद्धि के लिए पैसा चाहिए था, मेरे पास था नहीं।" तो आपका गला पकड़ कर पूछेगा वो कि, "पैसा कमाया क्यों नहीं तुमने?"
"एक-से-एक गलीच लोग पैसा कमा लेते हैं अपनी अंधी कामनाएँ-वासनाएँ पूरी करने के लिए। उनकी कामनाओं में इतना दम होता है कि वो कामनाओं के लिए पैसा कमा ले जाते हैं। और तुम्हारी तो कामना ‘मैं' था, सर्वोपरि, सर्वश्रेष्ठ, सर्वोच्च और तुम मेरे लिए भी कमा नहीं पाए? तुम्हें क्या माफी दे?"
किसी को अपनी बीवी के लिए गहने बनवाने हैं, वो लाखों-करोड़ों कमा लेता है। किसी को विदेश में बंगला खरीदना है और जीवन भर दुनिया घूमनी है, वो भी कमा लेता है। कोई दुनिया पर अपनी ठसक जमाना चाहता है वो भी कमा लेता है। और तुम्हारे सामने उद्देश्य था दुनिया भर की मुक्ति, तुम तब भी नहीं कमा पाए। तुम्हें कैसे माफ करें? बात समझ में आ रही है?
तो कमाना, मैंने कहा, सही आदमी का अधिकार ही नहीं है उसका फ़र्ज़ है, कर्तव्य है। एक घटिया आदमी नहीं कमा रहा है, उसे माफ किया जा सकता है। पर एक सही आदमी के पास अगर संसाधन नहीं है, ताकत नहीं है, प्रसिद्धि नहीं है तो मैं कह रहा हूँ कि वो अपने ही उद्देश्य के सामने अपराधी, गुनहगार हो गया।
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