श्रोता: काफी समय के बाद हमें पता चलता है कि हमारी कोई भी स्थिति है, वो वास्तविकता में कंडीशन्ड है। या फिर अगर हम खुश है तो किसी की वजह से हैं, किसी पर निर्भर हैं। तो ये जानना ही काफी है? इसके आगे क्या है?
वक्ता: ये पता चलता है कि निर्भर हूँ, तो उसके साथ ही उस निर्भरता से छूटने का दरवाज़ा खुलता है, अपने आप खुलता है। कभी भी ये बोध अकेला नहीं आएगा कि मैं निर्भर हूँ। कारण ? बोध किसी पर निर्भर नहीं हो सकता। अगर तुम निर्भर ही होते तो, तुम जान कैसे जाते कि तुम निर्भर हो? बात को समझना। ये बोध कहाँ से आता कि तुम निर्भर हो? क्या जिस पर निर्भर हो वो तुम्हें ये बोध दे सकता है ?
श्रोता: नहीं।
वक्ता: तो इसका मतलब है कि ये बोध तो निर्भर नहीं है। ये मेरा है, ये मेरी परम स्वतंत्रता से आ रहा है। जाना नहीं, कि मुक्ति के दरवाज़े खुल गए। जानना ही सब कुछ है। गहराई से समझ जाना ही सब कुछ है और अगर ये पा रहे हो कि जान कर भी कर्म नहीं हो रहा, दरवाज़े नहीं खुल रहे तो समझना कि अभी जाना ही नहीं। फिर वही बात है जो वहां हो रही है कि मक्खी अभी भी निगले जा रहे हो। मतलब अभी जाना नहीं है, मतलब अभी जानने में चूक है और जानने में चूक का सिर्फ एक कारण होता है कि तुमने तय ही कर रखा है कि मुझे जानना नहीं है। तुम ये तय करना छोड़ो।
हमने आज जब बात शूरू कि थी तब कहा था कि मन आदतों में जीता है। तुम जान भी गए तो पीछे से मन एक आखिरी चेष्टा ज़रूर करेगा। वो तुमसे कहेगा कि जान तो गए हो पर मुक्त नहीं हो सकते। जब आज तक नहीं हुए तो आगे कैसे हो पाओगे?और मन अपनी अक्ल से सही तर्क दे रहा है क्योंकि उसकी दुनिया में भविष्य वैसा ही होगा जैसा बीता हुआ कल था। मन में कुछ नया नहीं होता वो तो एक बंद डब्बा है जो इतना ही जानता है जो अभी तक हुआ है। आगे भी वैसा ही चलना चाहिए। वो कहता है कि भविष्य कुछ और नहीं है, अतीत कि पुनरूक्ति मात्र है। अतीत ही दोहराया जाएगा उसी का नाम भविष्य है। मन पीछे से तुम्हे तर्क देगा। वो कहेगा कि अरे! अपनी पूरी ज़िन्दगी देख, तू आज तक कभी मुक्त हुई है? जब आज तक नहीं हुई, तो आज तूने ऐसा क्या कर लिया है? तो तुम्हारे बढ़ते हुए कदम भी थमेंगे, पीछे से एक आवाज़ आएगी। क़दमों को थमने मत देना, आवाज़ ज़रूर आएगी पीछे से। तुम्हारा विश्वास डगमगाएगा और आवाज़ सिर्फ यही तर्क देगी, जो बता रहा हूँ। बात को पकड़ लो। सिर्फ यही तर्क देगी कि जब आज तक नहीं हुआ तो आगे कैसे हो सकता है ।
पर जो आवाज़ दे रहा है न वो अनाड़ी है वो जानता ही नहीं कि कुछ नया भी होता है। उसको कुछ नहीं पता। वो तो खुद न समझ है । तो उसकी आवाज़ पर ध्यान मत दो। देखो, और देखने से जो सम्भावना निकलती हो उस पर बेख़ौफ़ हो कर आगे बढ़ो। बिल्कुल बेख़ौफ़ हो कर आगे बढ़ो। भले ही कितना अजीब लगे, भले ही अकुलाहट सी लगे, भले ये दिखाई दे कि कोई आसपास वाला साथ नहीं चल रहा, भले ही ये भी दिखाई दे कि दो चार लोग हंस रहे हैं तुम्हारे ऊपर, भले ही अपना मन ये बोले कि ये तू कर क्या रही है? ये सब आवाज़ें उसी मन कि हैं जो चाहता है कि तुम अपने पिंजरे से न निकलो । आवाज़ों पर ध्यान मत देना। आँख बंद करो परमात्मा का नाम लो और आगे बढ़ो। समझ रही हो ?
-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।