प्रश्न: सर, मैं क्या हूँ? मैं ये अभी अंदर से समझ नहीं पा रहा हूँ।
वक्ता: मैं क्या हूँ?
तुम वही हो, जो तुम सुबह से शाम तक कर रहे हो। जो तुम्हारी पूरी दिनचर्या है, तुम वही हो। तुम उससे अलग कुछ नहीं हो। उससे अलग तुम अपने बारे में जो भी सोचतेहो, वो सिर्फ कल्पना है। तुम ठीक वही हो, जैसा तुम्हारा जीवन है। बात बड़ी सीधी-साधी है।
तुम ठीक वही हो, जैसा तुम्हारा जीवन है। अगर तुम सुबह से शाम तक डर में हो, और तुम दावा करो, ‘मैं बहादुर हूँ’, और दिन भर तुम डरे-डरे घूमते हो, तो तुम सिर्फ कल्पना कर रहे हो। तो तुमसे पूछा जाए, ‘मैं क्या हूँ?’ तो अपनी जिंदगी को देखो कि सुबह से शाम तक करते क्या हो।
अगर मैं डर में जीता हूँ, तो मैं क्या हूँ? डरपोक।
मैं सुबह से शाम तक कर क्या रहा हूँ ? क्या मैं होश में हूँ ? क्या मुझे ठीक-ठीक पता होता है कि मैं कॉलेज क्यों आया हूँ? क्या मुझे ठीक-ठीक पता होता है कि मैं जीवन में कुछ भी क्यों करता हूँ ? अगर पता है तो मैं वैसा हूँ। नहीं पता, तो वैसा हूँ।
तो इस सवाल का जवाब कोई बहुत मुश्किल है ही नही, कि मैं क्या हूँ? अपनी हरकतों को देखो, अपने जीवन को देखो, अपने विचारों को देख लो। वो जैसे हैं, वही तुम भी हो। वो जैसे हैं, वही तुम हो। उसके अलावा तुम कुछ नहीं हो। और यही इसका एक ईमानदार जवाब भी है।
ठीक है?
क्योंकि जो तुम हो, सामने वाले को भी दिख तो रहा है ही न? तुम उससे हट कर कुछ बताओगे, तो वो कहेगा, ‘झूठा’। अब तुम वहाँ पर जाओ, और बोलो, ‘मैं बड़ा आत्मविश्वासी हूँ’ और हाथ काँप रहें हैं, नदी बहा दी है पसीनों की, और बोल रहे हो, ‘बड़ा आत्मविश्वासी हूँ’। ऐसा देखकर सामने वाला कहेगा, ‘तुम आत्मविश्वासी तो नहीं हो, पर मजाकिया बहुत हो’।
(सब हँसने लगते हैं)
तुम बहुत अच्छे-अच्छे चुटकुले सुनते हो। समझ रहे हो ना?
श्रोता १: हाँ सर, ये बात भी सही है।
वक्ता: बस बता दो। अगर दिन का बहुत सारा समय सोचते हुए बीतता है, तो बता दो। दिक्कत ये आयेगी कि उसमें जब तुम अपने दिन को ध्यान से देखोगे, तो दिखाई पड़ेगा कि दिन का बहुत सारा समय तो फिज़ूल ही जाता है। एक बात और भी दिखाई पड़ेगी कि तुम अपने दिन को कभी ध्यान से देखते ही नहीं। और जो कभी ध्यान से न देखे, वो क्या है? या तो अंधा, या आँख बंद करके बैठा है, या इतना तो कह ही सकते हैं कि लापरवाह है। जो कभी देखे ही न, या तो वो अंधा है, या फिर ज़बर्दस्ती अपनी आँखें बंद करके बैठा है।
तो तुम्हें क्या दिखाई पड़ता है, ये महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण ये है कि कम से कम देखो। अगर मुझे कचरा भी दिखाई पड़ रहा है मेरे जीवन में, तो भी देखने से एक बात तो सिद्ध हो जाती है। क्या?
सभी श्रोता(एक स्वर में ): कि कचरा भरा है।
वक्ता: अगर मुझे कचरा भी दिख रहा है, तो भी वो बड़ी शुभ बात है। बताओ क्यों?
श्रोता २: क्योंकि मुझे दिख रहा है।
वक्ता: क्योंकि मुझे दिख तो रहा है ना। अगर कचरा भी दिख रहा है, तो इतना तो सिद्ध होता है कि मैं…
सभी श्रोता(एक स्वर में): देख सकता हूँ।
वक्ता: कि मैं देख सकता हूँ।
श्रोता ३: सकारात्मक तौर पर।
वक्ता: और जब मैं देख सकता हूँ कि कचरा है, तो मैं उस कचरे की…
सभी श्रोता (एक स्वर में): सफाई भी कर सकता हूँ।
वक्ता: और जिसको दिखे ही ना कि कचरा है, तो क्या वो कर पायेगा कभी सफाई? महत्वपूर्ण ये नहीं है कि दिन भर में क्या दिखता है। महत्वपूर्ण ये है कि मैं देख तो रहा हूँ ना। इसलिये मैंने कहा कि अपने पूरे दिन को देखो, और उसमें जो भी दिखाई दे, वही हो।
जब दिन भर को देखोगे, तो ये भी दिखाईदेगा, कि मैंकभी ध्यान ही नहीं देता कि मैं कर क्या रहा हूँ । देखनामहत्वपूर्ण है। कचराभी दिखा, लेकिन दिखा तो! कुछ भी दिखना, अंधे हो जानेसे तो बेहतर ही है। कुछ भी दिख रहा है, अंधे हो जाने से तो बेहतर ही है ना?
बेख़ौफ़ हो कर बोलो, जो भी दिखता है क्योंकि तुम्हें जो भी दिखता है, वो यही सिद्ध करेगा कि तुम देख पा रहे हो।
बेख़ौफ़ होकर बोलो। आज अगर तुम ये बोल पाते हो कि मैं चार साल पहले यहाँ इसलिये आया क्योंकी कुछ नहीं जानता था, घरवालों ने भेज दिया, तो बड़ी अच्छी बात है। कम से कम तुम आज तो जान रहे हो ना। हजारों लोग ऐसे हैं जिन्हें आज भी नहीं पता कि वो जीवन भर जो करते आए हैं, दूसरों के कहने पर ही कर रहे हैं। तुम उनसे बेहतर हुए कि नहीं हुए? अगर तुम आज भी जान जाओ कि मेरा जीवन दूसरों के इशारों पर बीतता है, तो तुम उनसे तो बेहतर हुए ना, जो आज भी नहीं जानते? बात समझ रहे हो?
अगर तुम आज भी जान जाओ कि तुम बीमार हो तो तुम उनसे तो बेहतर हो, जो बीमार हैं पर जानते ही नही हैं। अगर जान जाओ की बीमार हो, तो अब क्या होगा?
कुछ श्रोता: इलाज।
वक्ता: इलाज होगा। जो जनता ही नहीं है कि वो बीमार है, कभी उसका इलाज हो सकता है क्या?
सभी श्रोता(एक स्वर में): नहीं।
वक्ता: तो इसमें शर्माओ मत कि मैं कैसे बोल दूँ कि मैं बीमार हूँ। अरे ये तो बहुत अच्छी बात है कि जान गए कि बीमार हो। बीमार तो निन्यानवे प्रतिशत लोग हैं पर वो जानते भी नहीं कि वो बीमार हैं। तुम उनसे आगे निकल गए। तुमने कुछ पता कर लिया। तो इसलिये डरना, घबराना नही। तुमने कहा था ना कि सत्य मेरा नुकसान कर देगा। सत्य किसी का नुकसान नहीं करता। किसी का भी नही। पर वो सत्य होना चाहीए। अपनी आँखों से देखा हुआ होना चाहिए। वो फ़िर किसी का नुकसान नहीं करता। बिल्कुल निडर होकर रहो।
-‘संवाद’ पर आधारित।स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।