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नरगिस मोहम्मदी - जीवन वृतांत

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पिछले वर्ष ईरान में 22 वर्षीया 'माशा अमीनी' की ईरानी पुलिस द्वारा हत्या हुई। पूरी दुनिया ने विरोध जताया। माशा ओमिनी का जुर्म क्या था? उसने हिजाब वैसे नहीं पहना था जैसा ईरानी सरकार का आदेश था।

इस बर्बर हत्या के बाद ईरान की सड़कों पर हज़ारों महिलाओं की भीड़ उतर आई। और दशकों बाद दुनिया का ध्यान आया ईरान में महिलाओं की स्थिति व उनके अधिकारों पर। लेकिन ईरान की महिलाओं का ये संघर्ष आज का नहीं है। वर्ष 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से ही वहाँ महिलाओं की स्थिति बद-से-बदतर होती जा रही थी। जिसका ईरान के भीतर व बाहर दशकों से विरोध चल रहा था।

माशा अमीनी हादसे ने दुनिया को झकझोर दिया।

इसी दौरान एक 51 वर्षीया महिला ने जेल में रहते हुए अपना विरोध जताया। जो आज भी तेहरान की 'ईविन' जेल में बंद हैं। इस जेल में ईरान लगभग 25% राजनीतिक कैदी बंद हैं, और ये कुख्यात है यहाँ मिलने वाली यंत्रणाओं व एकांत कारावास कक्षों के लिए। विशेषज्ञों का कहना कि ये जेल कठोर-से-कठोर व्यक्ति को भी तोड़ देती है।

लेकिन ये 51 वर्षीया महिला थोड़ी विशेष है। अपने पूरे जीवन काल में वे अब तक 13 बार गिरफ़्तार की जा चुकी हैं, और 31 साल कारावास में बिता चुकी हैं, साथ ही 154 कोड़ों की सज़ा भी भुगत चुकी हैं।

इनका जुर्म? वे ईरान में महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाती हैं, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी बात आगे रख चुकी हैं, इसलिए सरकार उन्हें देशद्रोही बताकर उनकी आवाज़ दबाना चाहती है।

इस महिला ने वैसे पढ़ाई तो 'एप्लाइड फिजिक्स' में की थी। लेकिन कॉलेज के दिनों में ही महिलाओं के हितों के लिए काम करना शुरू कर दिया था। वे अख़बारों में लेख लिखा करती, व सरकार की महिला मुक्ति-विरुद्ध नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन करती।

वर्ष 2002 में उन्होंने एक ईरानी महिला सशक्तिकरण कार्यकर्ता, शीरीन ईबादी की संस्था के लिए काम करना शुरू किया, तो वे इनके उत्साह व कर्मठता की कायल हो गईं। अगले ही साल जब शीरीन को 'Nobel Peace Prize' मिला तो उन्होंने कहा, "मुझसे ज़्यादा इस पुरस्कार की हक़दार ये जवान लड़की है"।

आज 51 वर्ष की उम्र में, उसी 'जवान लड़की' को 'Nobel Peace Prize' से सम्मानित किया गया है। हम बात कर रहे हैं 'नरगिस मोहम्मदी' की।

वे इस वक्त भी जेल में बंद है, और आने वाले कई वर्षों तक जेल में ही सज़ा काटेंगी। लंबे कारावास में मिली यंत्रणाओं के चलते उनको कई मानसिक व शारीरिक बीमारियाँ होने लगी हैं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है।

पिछले ही वर्ष जब स्वास्थ्य कारणों से उन्हें कुछ समय के लिए रिहा किया गया तो उन्होंने जेल के अपने व अन्य क़ैदियों के अनुभवों पर आधारित एक किताब लिखी। जिसकी खबर लगते ही सरकार ने उन्हें फिर जेल में बंद कर दिया।

लेकिन वे आज भी सोशल मीडिया चैनलों के व लेखों के माध्यम से ईरान की महिलाओं की आवाज़ दुनिया तक पहुँचा रही हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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