ना पेलो, ना झेलो || नीम लड्डू

Acharya Prashant

1 min
336 reads
ना पेलो, ना झेलो || नीम लड्डू

सब प्रेमियों की निशानी है – दो-दो, चार-चार घण्टे लगे हुए हैं फ़ोन पर। और फ़ोन पर नहीं तो आमने-सामने बैठकर एक-दूसरे का भेजा चबा रहे हैं। और मजाल है कि उधर से कचरा फेंका जा रहा है और तुम इधर से फ़ोन काट दो। बेवफ़ा कहलाओगे। कितना मज़ा आता है! पता है कि हम यहाँ से बेवकूफ़ी की बात पेले जा रहे हैं, पेले जा रहे हैं और सामने एक मजबूर इंसान उसको झेले जा रहा है, झेले जा रहा है।

फिर कोई आएगा अचानक से फिर वो कहेगा, “ओ पत्थर दिल इंसान! तू नहीं समझेगा इस पेलने और झेलने का नाम ही तो इश्क़ है।“

मैं पत्थर दिल ही सही। मैं बहुत खुशक़िस्मत हूँ अगर ये बात मुझे समझ में नहीं आती।

और इतना ही आपसे विनती कर सकता हूँ – ना पेलो ना झेलो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories