मुझसे दूर भाग जाना || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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मुझसे दूर भाग जाना || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: मुझे कभी विज्ञान विरुद्ध बातें करते देखना, मुझे कभी ऐसी बातें करते देखना जिनको विज्ञान कभी स्वीकार नहीं करेगा, जिन पर विज्ञान हँस देगा। तुरन्त समझ लेना कि माया मुझ पर भी छा गयी।

समझ रहे हो?

'माया' का और 'मैं' का बड़ा गहरा नाता होता है। हम कितनी बार कहते हैं न? “या मा सा माया।” 'जो है नहीं उसको ही माया बोलते हैं।' पहला भ्रम तो दुनिया का 'मैं' ही है। जब कभी तुम पाओ कि 'मैं' माने ये जो व्यक्ति बैठा है प्रशांत — तुम्हारे सामने; ये सत्य से ज़्यादा 'मैं' को अहमियत दे रहा है। समझ लेना कि ये माया का ग्रास बन चुका है। माया माने ही 'मैं' क्योंकि माया उसी को सच्चा जनवा देती है न, जो है ही नहीं। पहला भ्रम क्या है दुनिया का? कि 'मैं हूँ।' और अहम् क्या बोलता है? अहम् का मौलिक दावा क्या होता है? 'मैं हूँ।'

और सारा अध्यात्म यही जानने के लिए है कि जिसको 'मैं' समझता है कि वो है, वो वास्तव में यूँही कोई नक़ली, हल्की-फुल्की बाहरी, कूड़ा-कचरा चीज़ है। उसके अस्तित्व का दावा करना ही लाभदायक नहीं है बिलकुल। तो जिसका इस 'मैं' में जितना यक़ीन आने लग जाए, समझ लेना कि वो व्यक्ति उतना ज़्यादा माया का शिकार हो चुका है।

अब कैसे पता चले कि किसी का 'मैं' में यक़ीन हो गया है? कोई बोलना शुरू कर दे, 'मैं एक नूतन धर्म प्रतिपादित करने जा रहा हूँ। अतीत के जितने धर्म थे वो सब कचरा थे, आज मैं एक नया धर्म लेकर आया हूँ तुम्हारे लिए।’ गया-गया।

देखो पुराने धर्म की धारा में कुछ अशुद्धियाँ प्रविष्ठ हो गयी हैं, तुम उनको साफ़ करने की बात करो बिलकुल अलग बात होती है। वो काम बहुत सारे सुधारकों ने करा है। वो काम बहुत सारे ऋषियों ने, सन्तों ने करा है, गुरुओं ने करा है। उन्होंने सनातन धर्म में जो प्रदूषक तत्व, अशुद्धियाँ आ गयी थीं उनको बार-बार साफ़ किया। जो कि बिलकुल सही बात है। गंगा की धारा; मैं कई बार कह चुका हूँ, चलती है गंगोत्री से बिलकुल निर्मल होती है और जैसे-जैसे आदमी के सम्पर्क में आती जाती है वो कैसी होती जाती है? दूषित होती जाती है न।

धर्म बिलकुल ऐसा ही होता है। वो ऊपर से चलता है, महादेव की जटाओं से। शिव ही धर्म के स्रोत हैं न? तो वहाँ से चलता है, जब वहाँ से चलता है तो कैसा होता है बिलकुल? निर्मल होता है। लेकिन चलता वहाँ से है, आ किसके पास जाता है? आ जाता है, हमारे-तुम्हारे पास। हम लोग तो भाई निर्मल हैं नहीं। हमारे संपर्क में तो जो भी चीज़ आती है वो कैसे हो जाती है? दूषित ही हो जाती है न। तुम हवा अन्दर लेते हो और हवा जब बाहर निकालते हो, तो जो हवा तुम बाहर फेंकते हो अपने नथुनों से वो हवा वही नहीं होती जो तुमने भीतर ली थी। उसमें क्या कम हो गया होता है थोड़ा? और क्या तुमने बढ़ा दी होती हैं? कई तरह की गैसें; कार्बन के ऑक्साइड, सल्फर के ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड ये सब तुमने बढ़ा दिये होते हैं उसमें। हमारे तो सम्पर्क में कमल भी आये तो मल हो जाए। हम ऐसे हैं। कोई चीज़ बता दो जो हम छुयें और गन्दी न होती हो। तो धर्म को भी हमने छुआ तो हमने गन्दा किया।

मैं अगर अपनी बात भी करूँ तो क्या उचित है कि मैं अपनी बात किस तरह से करूँ। मैं कहूँ मैं वो हूँ जिसके स्पर्श से धर्म गन्दा हो गया। इसके उलट अगर मैं कहना शुरू कर दूँ कि धर्म गन्दी चीज़ है इसीलिए उसको छोड़ दो। मैं नया अवतार उतरा हूँ शिव का, मैं तुम्हें नए धर्म बताऊँगा कुछ। पुरानी किताबें मत पढ़ो, ध्यान मत दो। तो समझ लेना कि अब गड़बड़ हो गयी है। बहुत गड़बड़ हो गयी है।

सनातन धर्म प्रमुख रूप से वैदिक है। कोई दिन ऐसा हो न, प्रार्थना है मेरी जब मैं तुमसे कहने लग जाऊँ कि छोड़ो तुम वेदान्त को और उपनिषदों को, मेरी बात सुनो। मैं तुम्हें कोई निहायती, नयी बात बताने जा रहा हूँ। उस दिन सामने से मेरे उठकर चल देना।

और यही कसौटी मैं चाहता हूँ तुम उपयोग करो कसने के लिए सब धर्म गुरुओं को। उनसे पूछो? वेद कहाँ हैं तुम्हारी बातचीत में, वेदान्त कहाँ है? तुम अपना ही नया-नया फुग्गा फुला रहे हो। ये तुम क्या बातें कर रहे हो? प्रमाण क्या है इन बातों का? जैसे ही तुम कहोगे प्रमाण क्या है इन बातों का, वो तुरन्त क्या बोलते हैं? मैं प्रमाण हूँ न, मुझे हुआ था अनुभव, मैं फ़लाने पहाड़ पर चढ़ा था वहाँ मुझे अनुभव हुआ था, मैं प्रमाण हूँ। तो साहब ऐसे प्रमाणों को आप स्वीकार न करें।

जिस प्रमाण का आपको न दर्शन हो सकता, न अनुभव हो सकता और जो प्रमाण मन के मूलभूत सिद्धान्तों के खिलाफ़ जाते हों। उनको आप सिर्फ़ इसलिए नहीं मान लीजिएगा क्योंकि आपके सामने कोई अपने दबदबे वाली आवाज़ में और रुतबेदार वस्त्र आदि परिधानों में कुछ बहुत ऊँचे दावे कर रहा है। नहीं, मान मत लीजिएगा, दब मत जाइएगा।

असल में जो लोग ऐसे दावे करते हैं। उनके दावों की विश्वसनीयता घटकर आधी रह जाए अगर उन्होंने जो चोगा डाल रखा है ज़बरदस्त, वो चोगा ही उतार दिया जाए। आप एक बार कल्पना करके देख लीजिए? वो जो चोगा है न, वो महीनों की मेहनत के बाद तैयार हो जाता है और बड़ा महँगा चोगा, लाखों में एक चोगा वैसा बनता है। और वो चोगा बिलकुल इसी हिसाब से, इसी चतुर गणना के साथ बनाया जाता है कि उस चोगे से सामने जो लोग बैठे हैं वो कितने प्रभावित हो जाएँगे। उन पर कितना दबदबा बैठ जाएगा। चोगा हटा दीजिए, माला हटा दीजिए, नाम के साथ जो बड़े-बड़े आभूषण, विशेषण लगे हैं वो हटा दीजिए, दाढ़ी हटा दीजिए और अतीत के बारे में उन्होंने अपनी जो ज़बरदस्त रोमांचकारी दैवीय कहानियाँ उड़ा रखी हैं। वो कहानियाँ उड़ा दीजिए। उसके बाद बताइए उनकी बातों का आप ज़रा भी यक़ीन करेंगे क्या? करेंगे?

मुझे भी कभी देखना न कि मैं तुम पर अपना प्रभाव या प्रभुत्व जमाने के लिए इस तरीक़े से काम कर रहा हूँ कि हाथों में अँगूठियाँ धारण करके आ गया और बोलने लग गया कि ये देखो, ये हाथी वाली अँगूठी है। ये मैंने धारण करी है तो इससे मुझमें हाथी का बल आ गया है। ये ऊँट वाली अँगूठी है, इसके कारण मैं तुमसे बहुत ऊँचा हो गया हूँ। ये साँप वाली अँगूठी है, इसके कारण मैं उड़ने लग जाता हूँ। हवाई साँप हैं मेरे इधर-उधर, टकराना नहीं मुझसे, डँसवा दूँगा। ये बिल्ली वाली अँगूठी है इसके कारण मैं जहाँ जाऊँ वहाँ कूद जाता हूँ। तुम्हारे घर घुसकर दूध पी जाऊँगा। और ये गधे वाली अँगूठी है इसको पहनने के कारण मैं रेंकता बहुत हूँ दिन-रात। बोलता ही रहता हूँ, बोलता ही रहता हूँ।

ये सब करना शुरू कर दूँ। यहाँ पर (गले की ओर इशारा करते हुए) ज़बरदस्त मालाएँ धारण कर दूँ। कहें ये देखो, ये विदेशी माला है। ये मैं फ़लाने पहाड़ पर गया था स्विट्ज़रलैंड के। वहाँ उसमे ज़बरदस्त क़िस्म के कुछ फल लगते हैं। और उन फलों में ये ताक़त होती है कि वो फल अगर तुम शनि ग्रह को दिखा दो तो उसपर वर्षा होनी शुरू हो जाएगी। सूरज को दिखा दो तो सूरज पर कोहरा छा जाएगा। इस फल में ये ताक़त है कि असली-नक़ली का अन्तर कर सकता है ये फल। अब जैसे कि ये सामने बैठा हुआ है मेरे (एक श्रोता को सम्बोधित करते हुए), मुस्कुरा रहा है। अब मैं फल से ऐसे-ऐसे करूँ और अगर ये इसके भीतर कुछ दोषपूर्ण विचार होगा तो फल दायीं तरफ़ को लुढ़क जाएगा। और इधर ये बैठा हुआ है (एक श्रोता को सम्बोधित करते हुए), ये बहुत ध्यान से सुन रहा है, इसकी ओर करूँ और इसके मन में बस इस वक़्त ध्यान ही ध्यान होगा तो फल दूसरी तरफ़ को लुढ़क जाएगा।

मैं इस तरीक़े की बातें तुम पर हवा-हवाई छोड़नी शुरू कर दूँ। तो तुम कहना, ‘आचार्य जी, जा रहे हैं और फिर नहीं मिलेंगे।’ ये भी मत कहना कि सी यू अगेन (फिर मिलेंगे), बस चले ही जाना।

समझ में आ रही है बात?

तुमसे जमीनी बात जब तक कर रहा हूँ। तुमसे तुम्हारी ज़िन्दगी की बात जब तक कर रहा हूँ। जब तक कुछ ऐसा कह रहा हूँ जो व्यवहारिक जीवन में तुम्हारे काम आएगा। तब तक तो समझ लेना कि ये आदमी होश में है। और जिस दिन इस आदमी ने “अपने मुँह मिया मिट्ठू करना” शुरू कर दिया है और अपने मुँह मिया मिट्ठू भी ख़ासतौर पर झूठी बातों पर। ऐसी बातें हैं जिनमें तथ्य भी शामिल न हों। उस दिन मुझसे दुआ सलाम भी मत करना बस दूर भाग जाना।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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