प्रश्नकर्ता: (गाते हुए) मुहब्बत है क्या चीज़ ये हमको सुनाओ, ये किसने शुरू की हमे भी बताओ…
आचार्य प्रशांत: बहुत बढ़िया!
(सभी तालियाँ बजाते हैं)
सबसे पहले लिख लो कि मुहब्बत क्या नहीं है। लव इस नॉट (प्रेम क्या नहीं है):
पहली बात, लव इस नॉट डिपेंडेंसी , प्रेम निर्भरता नहीं है।
दूसरी बात, लव इस नॉट अटैचमेंट , प्रेम मोह नहीं है।
तीसरा, लव इस नॉट पोसेसिवनेस , प्रेम मालकियत नहीं है।
चौथा, लव इस नॉट अट्रैक्शन , प्रेम आकर्षण नहीं है।
पाँचवाँ, लव इस नॉट ऑब्जेक्ट स्पेसिफिक , किसी व्यक्ति विशेष के लिए ही नहीं है।
ये सब जो हम प्यार के रूप देखते हैं सबसे पहले तो ये जानना ज़रूरी है कि ये प्यार नहीं है। प्यार जो होगा सो होगा।
पोसेसिवनेस - मालकियत है उसे मालकियत ही कहो, प्रेम मत कहो।
तुम किसी पर निर्भर हो तो डिपेंडेंसी , निर्भरता ही कहो, प्रेम मत कहो।
हमने बहुत ग़लत बातों को प्रेम का नाम दे दिया है। हमने बहुत बेहूदा बातों के ऊपर प्रेम का नाम चिपका दिया है। वो प्रेम है ही नहीं। प्रेम बिलकुल एक दूसरी चीज़ है जिसको हम में से बहुत कम लोग जानते हैं।
अब प्रेम के बारे में दो बातें लिखो। दो बातें बताऊँगा:
पहला, स्वस्थ प्रेम। ये जो तुमने अभी ऊपर लिखा है, ये अस्वस्थ प्रेम था।
स्वस्थ प्रेम के बारे में एक पहली बात जो है वो ये है कि – इट इज़ अबाउट वान्टिंग द वेलफेयर ऑफ़ द अदर मोर दैन योअर वेलफेयर (स्वस्थ प्रेम स्वयं से ज़्यादा दूसरे का कल्याण चाहता है)। स्वयं का कल्याण नहीं, दूसरे का कल्याण मायने रखता है।
सबसे पहले हमने लिखा अस्वस्थ प्रेम, उससे ऊपर आता है स्वस्थ प्रेम। अब उससे भी ऊपर आता है सार्वभौमिक प्रेम (यूनिवर्सल लव )।
सार्वभौमिक प्रेम मेरे मन की एक विशेष स्थिति है जिसमें मैं आनन्द अनुभव करता हूँ, बिना किसी कारण के। इस आनन्द का स्वभाव है दूसरों तक पहुँचना; इस आनन्द का स्वभाव है बँटना। “मैं इतना ख़ुश हूँ कि मेरी ख़ुशी बँटती है, मैं इतना खुश हूँ कि दूसरों को भी ख़ुश करता हूँ” – ये आनन्द जब दूसरों में बँटता है, सब में बँटता है, तो इसका नाम ‘प्रेम’ है। ये असली प्रेम है।
हम में से ज़्यादातर पहले तल पर बैठे हैं – अस्वस्थ प्रेम। तो पहला काम तो है वहाँ से स्वस्थ प्रेम की ओर आना कि, “मुझे अपनी परवाह नहीं है, तुम्हारा भला होना चाहिए, तुम्हारी बेहतरी होनी चाहिए”।
और उसके आगे अगला तल है, सार्वभौमिक प्रेम, उसको भी जान पाना। पर उसको अभी भूल जाओ। तीसरे को अभी भूल जाओ, अभी दूसरे को समझो। जो पहले पर बैठा हो उसको दूसरे की सोचनी चाहिए, तीसरे की नहीं। तो अभी तीसरे को भूल जाओ, अभी दूसरे को जानो।