मुद्दा फ़िल्मों के बॉयकॉट का || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)

Acharya Prashant

8 min
19 reads
मुद्दा फ़िल्मों के बॉयकॉट का || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। दो हज़ार चौदह-पंद्रह में एक मूवी निकली थी ‘पीके’। वो मूवी ने पाँच-सौ छह-सौ करोड़ रुपए कमाये और रिलीज्यस मेंटल पर ये मूवी है। तो उस मूवी में ऐसा बताया जाता है कि हिन्दू सेंटिमेंट्स को हर्ट किया गया है। उसमें कुछ ऐसा सीन है जहाँ पर आमीर खान शंकर भगवान को वौशरूम में लेकर चले गये। और उसको कोई मारने आ रहा है तो वो एक गाल पर फोटो दिखा रहा है तो वो रुक जा रहा है। फिर कहे तो रोड-साइड में ही इज़ पीइंग और उसके पास जो सूटकेस है उसपर भगवान के फोटो लगे हुए है। तो सेंटिमेंट्स हर्ट हो रहा है तो उसपर बहुत बवाल हुआ था।

लेकिन उसमें कुछ ऐसा भी दिखाई दिया कि जो धर्मगुरु होते हैं, वो लोग डरका धंधा करते हैं। तो वो लोगो को डराते हैं और उसके बाद लोग उनके पास जाते हैं कि हमको कुछ मिल जाएगा। तो वो धर्मगुरु बोल रहा है कि एक काम करो — तुम्हारी बीवी बीमार है, तीन हज़ार किलोमीटर जाओ, वहाँ एक मंदिर है उसमे जाओ। लेकिन उसमें ये भी चीज़ है कि उसमे हिन्दू कम्यूनिटी में जो फ़्लौस है, उसको टार्गेट किया। वो खुद मुस्लिम कम्यूनिटी को बिलांग करता है, उसको तो टार्गेट नहीं किया। सिर्फ़ वो मस्जिद के बाहर बीयर का बोतल लेकर भागा है। न ही क्रिश्चन कम्यूनिटी का उसमें कुछ बताया है। तो एज़ ए हिन्दू मुझे दिख रहा है कि वो कुछ फ़्लॉज़ है जो सही है। तो मेरे रीलीजन में उसको सही करूँ और उसने जो निगलेक्ट किया अपनी कम्यूनिटी का तो उसको इग्नोर कर दूँ या मैं डीफ़ेंसिव और अग्ग्रेसिव हो जाऊँ कि तू मेरे को क्यों गलत दिखा रहा है, तूने तो अपने आप को बचा लिया है। मुद्दा फ़िल्मों के बॉयकॉट का है। इस पूरे चीज़ को कैसे देखूँ? मेरा शास्त्र क्या कहना चाहिए?

आचार्य प्रशांत: उनको जो दिखाना था, उन्होंने दिखाया। राम जाने उनकी मंशा क्या थी। आपने क्या दिखाया? उनको जो भी करना था, उन्होंने किया। आपने क्या किया? आप कह रहे हैं कि वह हिंदू-धर्म का विकृत रूप दिखा रहे हैं, लोगों को अनादर कर रहे हैं। आपने कितने लोगों को उपनिषद पढ़ा दिए? कितने लोगों को गीता पढ़ा दी? आपने शिवत्व का असली अर्थ कितने लोगों को समझा दिया? और जो समझ जाएगा, फिर उस पर किसी फ़िल्म का कोई असर पड़ेगा?

तो धर्म का अर्थ असली नुकसान कौन कर रहा है? वो लोग जो धर्म का मज़ाक उड़ाते हैं, मान लीजिए मज़ाक़ उड़ाया भी है तो, उड़ाया है या नहीं उड़ाया है, मुझे नहीं मालूम पर अगर उड़ा भी रहे हैं तो धर्म का नुकसान वो कर रहे हैं या धर्म का नुकसान वो लोग कर रहे हैं जो अपनेआप को कहते तो धार्मिक हैं लेकिन जिन्हें धर्मग्रंथों से कोई मतलब ही नहीं हैं?

कोई आकर के आपके धर्म के बारे में कुछ भी बोल सकता है, आप उसे कितना रोक लोगे? एक तरीके से बोलने से रोकोगे तो दूसरे तरीके से बोल देगा। कई बार किसी बात के द्वीअर्थी, तो वो बोलेगा एक बात, उसका दूसरा अर्थ भी निकल सकता है। आप कितना किसी की ज़बान पर लगाम लगाओगे? बात तो ये है न कि आपके बच्चों को, आपके समुदाय को, पूरी जनता को, क्या धर्म का अर्थ भी पता है? और धर्म का अर्थ अगर पता हो तो फ़िर कौन आकर आपको आहत कर सकता हैं?

अभी पीछे एक कान्फ्रेंस हुई थी, "डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व"। तो उसमें लोगों ने मुझसे आकर कहा कि देखिए यह हिंदू-धर्म पर आघात कर रहे हैं और हिंदू-धर्म के ग़लत अर्थ प्रचारित कर रहे हैं। तो मैंने पूछा, “तुम्हें किसने रोका है कोई कॉन्फ्रेंस करने से? और तुमने आज तक कितनी कॉन्फ्रेंस करी दुनिया को वास्तविक सनातन धर्म बताने के लिए?” उनको नहीं रोक सकते पर तुम अपनी बताओ न कि तुम दुनिया को क्या बता पा रहे हो। आज तो हालत यह है कि नई पीढ़ी, धर्म का नाम सुनकर बिदकती है। अब बताओ धर्म को असली खतरा कहाँ से हैं? बाहर वालों से या भीतर वालों से?

इसलिए अभी मैंने हाल में पूछा था कि तुम कहते हो कि देश में सौ, एक सौ बीस करोड़ हिंदू हैं। मैंने कहा था, “तुम मुझे दो लाख हिंदू दिखा दो, बस।“ हिंदू हैं कहाँ पर? नाम से हिंदू है वरना उनमें हिंदू जैसा क्या है? कोई हिंदू-घर में पैदा हुआ है सिर्फ़ इसलिए हिंदू हो जाएगा क्या? यह कोई जीन्स की बात है कि जीन्स से हिंदू हूँ।

धर्म के केंद्र में उसका शास्त्र होता है। शास्त्रों से आपको कोई मतलब नहीं तो आप कहाँ से हिंदू हो? आप हिंदू सिर्फ़ तब बन जाते हो जब कोई आकर के हिंदू विरोधी नारे लगा दे। तो आपको याद आता है कि मैं तो हिंदू हूँ। कोई दूसरा व्यक्ति अपने मज़हब को लेकर के कट्टरता दिखा दे तो आप कहते हो अब मैं भी कट्टर हिंदू बन जाऊँगा। आपकी धार्मिकता बस एक प्रतिक्रिया के रूप में उठती है। यह कौन सी धार्मिकता है भाई?

फ़िल्मों का असर करोड़ों लोगों पर होता है। क्यों नहीं आप फ़िल्में बना रहे हो जो लोगों तक सनातन धर्म का असली अर्थ पहुँचा पाएँ? मैं बताता हूँ क्यों नहीं बना रहे। दो वजहें — पहला आपको खुद नहीं पता। यह बॉलीवुड वगैरह का कौनसा आपको दिख रहा है प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, या स्क्रिप्ट राइटर जो सनातन धर्म का "स" जानता हो? हाँ, बवाल मचाने को कह दो तो ये जानते हैं। नारे लगाने को कह दो तो ये कर देंगे। हिंदू धर्म के नाम पर पुराने किसी राजा पर मूवी बनाने को कह दो तो ये कर देंगे। पर राजाओं से धर्म थोड़े ही होता है। धर्म, ऋषियों से होता है। धर्म, उपनिषदों से होता है। उसका कुछ पता हैं? कुछ नहीं पता। तो कौन उसकी पटकथा लिखेगा? तो पहली बात — कोई है नहीं जो बनाये। और कोई ऐसा अनूठा आ भी गया जो बना दे, तो ऐसा है कौन है जो उसको देखें? यह दो कारण।

यह जो आम जनता जो अपनेआप को हिंदू बोलती है, इनको वास्तविक हिंदू दर्शन पर कोई फ़िल्म दिखा दी जाये, ये उठ-उठकर भागेंगे, इनसे बर्दाश्त नहीं होगी। जो बैठे रहेंगे, वे सो जाएँगे देखते वक़्त, ऊब के। हम हिंदू हैं कहाँ? हिंदू है कहाँ? सनातन धर्म का ही तो मैं काम कर रहा हूँ। सब अगर सनातनी होते वास्तव में तो मुझे इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती। यहाँ तो स्थिति यह है कि उपनिषद की एक किताब या एक वीडियो आप तक पहुँचाने के लिए प्रतिदिन लाखों रुपए प्रचार में खर्च करने पड़ते हैं कि लो देख लो, कृपा करके देख लो, प्लीज़, प्लीज़, प्लीज़ एक बार देख लो।

और आप कहते हैं — नहीं, नहीं ये नहीं देखना, अभी मसाला देखना है।

अरे मुफ़्त में देख लो, कुछ नहीं माँग रहे हैं।

नहीं, नहीं, तो भी नहीं देखना, हमें नहीं देखना।

एक अभी टिप्पणी आई थी कि पपीते का पता नहीं अचार बनता है कि नहीं बनता। पपीता का अचार बनता है कि नहीं बनता यह नहीं पता लेकिन यह जो आचार है, ये गीता का अचार डालता है।

तुमने आचार्य को अचार बना दिया, कोई बात नहीं। लेकिन तुमने गीता को पपीता बना दिया, शाबाश। उसके बाद तुम कहते हो कि हमारी धार्मिक भावनाएँ आहत हो जाती हैं जब कोई बाहर वाला किसी दूसरे धर्म का व्यक्ति आ करके हमें कुछ बोल देता है। यह जो आचार्य को अचार और पपीता को गीता बना रहे थे, ये सब सनातनी ही हैं। तब नहीं आहत होते?

आज बहुत ज़रूरी है कि सही संदेश सब तक पहुँचाओ। कोई उल्टी-पुल्टी बात करें उसपर बस नारे लगाने से, विरोध प्रदर्शन से, छाती पीटने से कुछ नहीं होगा। धर्म का असली अर्थ सब तक ले जाने की आज बहुत गहरी ज़रूरत है। और बात सिर्फ़ सनातन धर्म की भी नहीं है, पूरी पृथ्वी और इस पृथ्वी का एक-एक जीव विनाश की कगार पर खड़ा हुआ है क्योंकि धर्म का अभाव है।

धर्म के अलावा आज की समस्याओं का कोई समाधान नहीं है, टेक्नोलॉजी से नहीं निकलेगा। जब आज की सब समस्याएँ लाभ की, लोभ की और भोग की हैं तो कौन सी टेक्नोलॉजी है जो तुम्हारे भीतर से लालच को कम कर सकती है, बताओ ना? कौन सी टेक्नोलॉजी है जो तुम्हारे भीतर का कंज्यूरिज़्म (भोगवाद) कम कर सकती है? कोई नहीं कर सकती। आज की समस्याओं का हल टेक्नोलॉजी के पास नहीं है, समस्याओं का हल अध्यात्म के पास है।

अध्यात्म माने क्या? विशुद्ध धर्म को अध्यात्म कहते हैं।

तो धार्मिकता की पूरी पृथ्वी को आज बहुत ज़रूरत है। उसको फ़ैलाओ, प्रचारित करो। सिर्फ़ शिकायत मत करते रहो कि दूसरे लोग देखो धर्म को खराब कर रहे हैं। शिकायतों से क्या हासिल? कुछ सार्थक करके भी तो दिखाओ।

YouTube Link: https://www.youtube.com/watch?v=FY_tQg4rsWQ

GET UPDATES
Receive handpicked articles, quotes and videos of Acharya Prashant regularly.
OR
Subscribe
View All Articles