मूल निसंग, मस्तिष्क मात्र अंग || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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मूल निसंग, मस्तिष्क मात्र अंग || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

श्रोता: सर, हम अपने दिमाग का सौ प्रतिशत उपयोग क्यों नहीँ कर पाते, जैसे की आइंस्टीन ने किया था तो वो वैज्ञानिक हो गया था? तो हम लोग सौ प्रतिशत उपयोग क्यों नहीं कर पाते?

वक्ता: तुमने जो बात उठाई है ना, ये बहुत विवादास्पद बात है। जो मस्तिष्क का अध्ययन करते हैं जैसे न्यूरो साइंस में, उसमें ये बातें अक्सर कही जाती हैं कि फलाना अपने मस्तिष्क का(माइंड का नहीं, ब्रेन का), फलाना अपने मस्तिष्क का इतना प्रतिशत उपयोग करता था, कहते हैं कि एक आम आदमी तो दस प्रतिशत भी नहीं करता और कुछ और लोग थे जो पच्चीस प्रतिशत करने लग गए तो बड़े महान हो गये। ये सब बातें मस्तिष्क के तल की हैं।

मस्तिष्क मतलब शरीर। मन(माइंड) सिर्फ शरीर नहीं है, वो जो है वो मस्तिष्क से भी आगे कुछ है। केवल मस्तिष्क रहा आगे तो इसे तो मन(माइंड) नहीं कह सकते। मन (माइंड) जो होता है, मस्तिष्क बस उसका शारीरिक उपकरण है, असली चीज़ मस्तिष्क नहीं है। असली चीज़ है मन(माइंड), और मन(माइंड) है- मस्तिष्क(ब्रेन) और समझ(इंटेलिजेंस) है। समझ(इंटेलिजेंस) में वो सब नहीं होता जो तुमने अभी कहा, ‘दो प्रतिशत, पांच प्रतिशत, सौ प्रतिशत’। समझ(इंटेलिजेंस) या तो जागृत होती है या सोयी पड़ी होती है। अभी या तो तुम मुझे सुन रहे हो या नहीं सुन रहे हो, कोई बीच का नहीं होता। हाँ, अगले पल हो सकता है बदल जाये, हो सकता है अभी न सुन रहे हो, अगले पल सुन रहे हो, अगले पल फिर ध्यान में आ जाओ। ठीक है? तो ये सब बात की हम मस्तिष्क(ब्रेन) का एक प्रतिशत उपयोग करते हैं, सौ प्रतिशत उपयोग करते हैं, हो सकता है ठीक भी हो, हो सकता है न भी ठीक हो, पर ये बहुत महत्व की बातें नहीं हैं। ये करीब-करीब ऐसी बातें हैं जैसे कोई मांसपेशी है और ये हमारा मस्तिष्क है, दोनों शरीर के हिस्से हैं। ये दोनों शरीर से बाहर नहीं हैं। ये ठीक वैसी ही बात है कि हम अपनी मांसपेशियों का सौ प्रतिशत उपयोग नहीं कर रहे। कोई भी नहीं करता। ज़रुरत भी क्या है? करते भी नहीं और ज़रूरत भी क्या है उपयोग करने की।

चेतना का अभ्युदय और मस्तिष्क का उपयोग दो अलग अलग चीज़ें हैं, इनको एक मत समझ लेना। चैतन्य रहो। जागृत होना और कुशाग्रबुद्धि होना दो अलग अलग चीज़ें हैं। कुशाग्रबुद्धि होने का मतलब है कि तुम्हारा मस्तिष्क बहुत तेज़ी से काम कर रहा। मस्तिष्क क्या करता है ? मस्तिष्क का पूरा काम है अतीत की स्मृतियों को रखना, उनका एक तयशुदा तरीके से विश्लेषण कर पाना। वो तुम बहुत कर भी लोगे तो उससे क्या हो जायेगा? मस्तिष्क का तुमने बहुत उपयोग कर भी लिया तो उससे कुछ विशेष नहीं हो जाना है। चेतना एक बिल्कुल दूसरी चीज़ है। वो माँ है मस्तिष्क की भी, वो मूल है, उस तक पहुँचो। देखो बहुत ऐसे धुरन्धर होते हैं जिनका मस्तिष्क बहुत तेज़ काम करता है, वो गणित का सवाल बहुत तेज़ी से हल कर देंगे। जो परिकल्पना तुम पांच मिनट में करोगे वो तीस सेकंड्स में कर देंगे। पर इससे उनका जीवन थोड़ी ही खिल जाता है।

मस्तिष्क जो कुछ करता है- याद रखना, विश्लेषण करना- जीवन उसका ही नाम थोड़ी है। वो तो जीवन में बहुत हल्की चीज़ें हैं। जीवन की जो मूल चीज़ें हैं, उनका मस्तिष्क से कुछ लेना देना ही नहीं है। प्रेम, आनंद, मुक्ति इसका मस्तिष्क से क्या लेना देना। तुम हो सकता है सांसारिक रूप से बड़े बेवक़ूफ़ हो क्योंकि तुम्हारा मस्तिष्क अविकसित है, हो सकता है मस्तिष्क में कोई चोट लग गयी हो, हो सकता है तुम बहुत चतुर नहीं हो, तुम बड़े गणनात्मक नहीं हो, ये सब मस्तिष्क के काम होते हैं, लेकिन फिर भी हो सकता है कि तुम्हारा जीवन बड़ा प्यारा हो। तुममें बड़ी चतुराई नहीं होगी लेकिन जीवन तुम्हारा पूरा मीठा होगा, वही बढ़िया है, वही अच्छा है।

किसी ने कहा है, ‘मेरी सब होशियारियां ले लो, मुझे निष्काम दे दो। होशियारियां करना मस्तिष्क का काम है। निष्काम हो जाना, शांत हो जाना, ये दूसरी घटना है । ये चेतना है। होशियार बनने की मत सोचो कि मेरा मस्तिष्क और तेज़ हो जाये। मस्तिष्क और तेज़ हो जायेगा तो करेगा क्या? गुणा-भाग करेगा, चतुराई करेगा, ये सोचोगे,वो सोचोगे, ऐसा कर डालोगे, काट- फाट करोगे, मस्तिष्क काटना- पीटना ही जानता है, जोड़ कर देखना नहीं जानता। बुद्धि जितनी तेज़ होगी, उतना काटेगी। बुद्धि का स्वाभाव है काटना। योग करना बुद्धि का काम नहीं है। वो कुछ और करता है। हमने पूर्णता की बात की थी न अभी? मस्तिष्क पूर्णता में नहीं जीता, हिस्से में जीता है। मस्तिष्क केंद्रीकरण में जीता है। वो किसी एक चीज़ पर केंद्रित होता है,पूर्ण को कभी नहीं देखता। पूर्ण से उसका कोई सम्बन्ध ही नहीं है। मस्तिष्क एक हिस्सा है शरीर का, जिसका एक विशेष प्रयोजन है, उससे ज्यादा वो कुछ कर नहीं सकता।

तुम मस्तिष्क से कहीं ज़्यादा बड़े हो, विराट हो, अपनी पूर्णता को देखो, वो आवश्यक है, तुम मस्तिष्क भर नहीं हो। ये कहना कि मुझे अपना मस्तिष्क बहुत तेज़ करना है ये करीब-करीब वैसी बात है कि कोई कहे की मेरी सारी आतें साफ़ होनी चाहिए। अब आंत साफ़ होनी चाहिए, बात बिल्कुल ठीक है, नहीं तो कब्ज़ हो जाएगी। पर जीवन का अर्थ ये थोड़ी है कि अपनी आंत साफ़ कर रहे हो रोज़। (व्यंग्य करते हुए) बड़ा अच्छा लगता है यह सुनकर कि तुम्हारे जीवन का क्या उद्देश्य है? आतें साफ़ करना।

(सभी श्रोतागण ज़ोर से हँसते हैं)

नहीं इसमें हँसी क्यों आ रही है तुमको? मस्तिष्क को पोषण देना तुम्हें बड़ा अच्छा लगता है। अब उसी तरीके से, ये मांसपेशियां मज़बूत रखना बड़ी अच्छी बात है। पर जीवन इसलिए थोड़े ही है की तुम मांसपेशियां मज़बूत करो। जो आदमी मस्तिष्क पर बड़ा ध्यान देते हैं वो उस आदमी से अलग नहीं हैं, जो ये सोचते रहते हैं कि अपने बाल काले रखूँ। बाल भी शरीर हैं, बमस्तिष्क भी शरीर है। जो आदमी अपने ब्रेन पर बहुत ध्यान देता है, वो उस औरत से बहुत अलग नहीं है जो दिन रात श्रृंगार करती रहती है। क्यों भई, आप अपना मस्तिष्क चमकाने की सोच रहे, वो अपना होंठ चमकाने की सोच रही। अंतर क्या हो गया? और उसको आप बोलोगे कि ये देखो, इसको सिर्फ यही आता है, सज-संवर कर घूम रही है। उसकी तुम हंसी उड़ा देते हो यह कह कर कि नकली है। और तुम नकली नहीं हो? सिर्फ मस्तिष्क पर ध्यान दिए जा रहे हो।

मैं दोहरा रहा हूँ। मस्तिष्क सिर्फ एक यन्त्र है जैसे शरीर के बाकि हिस्से यन्त्र हैं। मस्तिष्क का एक पूर्ण निर्धारित काम है, वह बस वही करता रहता है दिन रात। वो काम उसने और तेज़ी से कर भी लिया तो तुम्हारे जीवन में कोई क्रांति नहीं आ जाएगी। मस्तिष्क से भी आगे है कुछ, वह है तुम्हारा होना, वो मूल, वो तुम, वो समझ। और तुम मस्तिष्क का उपयोग कर के नहीं समझते हो। समझ तब उतरती है जब मस्तिष्क थम जाता है। ये मत सोचना की मस्तिष्क बहुत तेज़ी से दौड़ाओगे तो समझ जाओगे। विपरीत बात है।

समझना उस क्षण घटित होता है जब मस्तिष्क की चालाकियां, करतब थम जातें हैं। उस शांति में, उस मौन में, उस स्थिरता में समझ उतरती है। ये बात समझ आ रही है? अब प्रेम क्या मस्तिष्क से करोगे? सब जवान हो, प्रेम सबको चाहिए। सोच सोच कर करोगे? बड़ा खतरनाक आदमी होगा जो सोच कर प्रेम करता है। जो कुछ भी जीवन में वास्तव में कीमती है, उसका सम्बन्ध मस्तिष्क से नहीं है। आज का जो समाज है, आज का जो आदमी है वो पूरे तरीके से इस मस्तिष्क से ही जी रहा है और यही हमारे सारे विषाद का कारण है। कहा जाता है कि अगले कुछ सौ सालों बाद आदमी का जो शारीरिक ढांचा है, वो अभी जैसा है उससे अलग हो जायेगा। हम मांसपेशियों का कम इस्तेमाल कर रहे हैं, ये सिकुड़ जायेंगीं और हम मस्तिष्क का बहुत इस्तेमाल कर रहे हैं, ये आकार में बढ़ जाएगा । तो आज से कई-कई पीढ़ियों बाद जो बच्चे पैदा होंगे उनका शरीर हमसे थोड़ा सा अलग दिखेगा। उनका जो सिर है, वो बड़ा होगा और हाथ- पाँव छोटे होंगे। मस्तिष्क बड़ा होगा क्योंकि इसी का उपयोग ज़्यादा हो रहा है।

मस्तिष्क केवल एक यंत्र है, शरीर का एक भाग है, इसको चेतना मत समझ लेना।

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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