मिलिए करोड़पति गुलामों से || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)

Acharya Prashant

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मिलिए करोड़पति गुलामों से || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)

प्रश्नकर्ता१: नमस्ते आचार्य जी। मेरा प्रश्न कॉरपोरेट-वर्ल्ड को लेकर है। आए हैव नोटिस्ड (मैने ध्यान दिया) कि मेरे अंदर जितना भी विज़डम (बुद्धि) उतरा है, अटलीस्ट मैक्सिमम जितना उतरा है, इट्स बीन थ्रूड वर्क बाई डूइंग डिफरेंट थिंग्स। तो अलग-अलग चीज़ें चुनौती उठाकर यह हुआ है। ऐसा भी नहीं था कि मैं कुछ आइडियल (आदर्श) कुछ उसकी तरफ़ जा रहा था, ऐसा कुछ। बस जो आया सामने, आई वांटेड टू मास्टर इट। एंड उसी से जो विवेक है, जितना भी है अभी, उसी से उतरा है। तो इन ए कॉरपोरेट वर्ल्ड, यू हैव दैट सेम फ्रेम। कुछ चुनौतियाँ मिलती हैं एंड एटलीस्ट इन ए कॉरपोरेट वर्ल्ड , आपने भी बोला था एक पहले दिन में, विच इज़, एक्सीलेंस इज़ ए नेसेसरी कंडीशन एंड एक्सीलेंस इज़ नॉट ईज़ी।

तो यह कॉरपोरेट वर्ल्ड में, वाए कैन नॉट कॉरपोरेट वर्ल्ड बी यूज़्ड एज़ ए मीडियम, एजुकेशनल मीडियम , जहाँ पर जो प्रोजेक्ट्स हैं, ऑलदो, आइडियल नहीं हैं, बट एटलीस्ट (आदर्श नहीं है फिर भी) लोग उसमें एक्सीलेंस छूते हुए, दे कैन लर्न, यू नो, थ्रू द वर्क। एंड अगर वह एक सॉल्यूशन है क्योंकि कॉरपोरेट में एटलीस्ट वह ऑनेस्टी है टूवर्ड्स एक्सीलेंस कि यह काम अच्छा करना है, ढँग से करना हैं, ऑर एल्स देयर इज़ नो अदर वे , तो एटलीस्ट वह ऑनेस्टी टूवर्ड्स एक्सीलेंस है। यू नो, एंड वह मैं काफ़ी कॉरपोरेट के बाहर, काफ़ी चीज़ों में, आध्यात्मिक इंस्टीट्यूशन्स में भी मैंने देखा नहीं है। तो एटलीस्ट कॉरपोरेट में इफ़ वी हैव टू चैनलाइज़ दैट, हाऊ वुड वी डू इट? और या आपकी यह राय है कि कॉरपरेट इज़ नॉट एट ऑल द मीडियम टू रियली ब्रिंग आउट विज़डम एंड कैरेक्टर।

आचार्य प्रशांत: नहीं, कुछ चीज़ें हैं जो वहाँ आप सीखते हो। जो वहाँ सीखते हो उसका आप किसलिए इस्तेमाल करोगे, वह आप जानो। उदाहरण के लिए कोई कॉरपोरेट में है तो वह प्रोडक्टिव (उत्पादक) होना सीख लेगा। वह सीख लेगा कि कोई काम कर रहे हो तो उसमें जो स्पेक्स (विशेष विवरण) हैं उनके आखिरी अंत तक जाना है। स्पेसिफिकेशंस दी गईं है कि यह पूरी करनी हैं, आप करोगे। एक अनुशासन है वह भी आप सीख लोगे। जिस चीज़ में जितनी अलाउएंस (भत्ता) दी जा रही है उसके भीतर काम करना आप सीख लोगे। मैन्युफैक्चरिंग में हो चाहे कहीं भी हो। वह सब आप सीखोगे, अच्छी बात है। उसका इस्तेमाल लेकिन क्या करना है, वह आपको फिर देखना है।

तो व्यवहारिक कुशलताएँ हासिल करने के लिए कॉरपोरेट अच्छी जगह है। पर आमतौर पर वह कुशलताएँ तो आप हासिल कर ही लेते हो दो-चार साल में। कई बार उतना भी नहीं लगता है। ठीक-ठाक जगह से पढ़े लिखे हो तो जो व्यवहार कुशलता कॉरपोरेट में चाहिए, वह आप अपनी पढ़ाई से ही लेकर निकले होते हो। तो थोड़ा सा कॉरपोरेट एक्सपोज़र पर्याप्त होता है। बीस साल कॉरपोरेट में काम करके क्या करोगे? बीसवें साल में तुमने कौन सी अतिरिक्त कुशलता हासिल कर ली?

और ज़िंदगी क्या दो-सौ साल की है? यह सब जो कुशलताएँ हासिल कर रहे हो, कुछ सीख लिया है। कोई चीज़ बताओ तुम वहाँ सीख रहे हो — स्टैटिस्टिकल एनालिसिस सीख लिया है। उसका क्या करोगे? पैसे कमाने के अलावा उसका उपयोग क्या बच रहा है? या तुम बहुत पारंगत हो गए हो कॉरपोरेट में एक- आध-दो साल काम करके, माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल में ही तुम बिलकुल विशेषज्ञ बन गए हो। सब कुछ करते हो, मैक्रोज़ लिखते हो, यह वह। करना क्या है उसका? अच्छी बात हैं कि सीखा पर उसका क्या करना हैं, यह तो तुम तय करोगे न अब?

टाइम मैनेजमेंट तुम्हारा बहुत अच्छा हो गया है। बिलकुल तुम्हारी आदत बन गई है कि दस बजे बुलाया है, दस ही बजे पहुँच जाएँगे। जो काम छह बजे निपटाना है, छह बजे तक निपटा भी देंगे। पर कौन सा काम निपटा रहे हो? टाइम मैनेजमेंट अच्छी बात है। उस टाइम का कर क्या रहे हो? यह देखना पड़ेगा।

प्र१: करेक्ट। मतलब आप जो बोल रहे हो, इट्स मोर अराउंड स्किल्स, जो आप बोल रहे हो। बट मैंने नोटिस किया है कि अगर एक अच्छा कॉरपोरेट है तो मतलब एट ईच स्टेज , आपको ऐसे एक्सपीरिएंसेस मिलेंगे, जैसे लीडिंग पीपल,।

आचार्य: टूवर्ड्स व्हॉट? (किसकी ओर)

प्र१: टूवर्ड्स एनी, व्हॉटएवर….

आचार्य: एनीथिंग (कुछ भी) क्या होता है? जैसे पाइड-पाईपर लेकर गया था सबको मारने के लिए। वह भी तो लीड ही कर रहा था।

प्र१: बट थ्रू दैट प्रोजेक्ट पीपल कैन लर्न समथिंग अबाउट देमसेल्व्स लाइक आए हैव नोटिस्ड, अगर इफ आए हैव फेल्ड ऑन समथिंग, आए हैव नोटिसेज़ समथिंग ईज़ यूजयुएली…. (लोग सीख सकते हैं, कम-से-कम अपने बारे में। जैसे कि मैंने ध्यान दिया कि अगर मैं किसी काम में नाकाम हो गया तो...)

आचार्य: बिलकुल अच्छी बात है। यू लर्न अबाउट योर वीकनेसेज़ एंड यू इंप्रूव दैम, बट टूवर्ड्स व्हॉट? (आप अपनी कमज़ोरी देखते हो और उसको सुधारते हो, ये अच्छी बात है। पर किस ओर?)

भाई आप अभ्यास करते हो, दुर्योधन ने भी, जितने दिन पाण्डव अज्ञातवास में थे, उतने दिन दुर्योधन अभ्यास कर रहा था। किसका अभ्यास कर रहा था? गदा चलाने का। बहुत बढ़िया गदा चलाने लग गया वह। टूवर्ड्स व्हॉट? टूवर्ड्स व्हॉट? तो वह सब ठीक है कि लीडिंग पीपल आ गया, टूवर्ड्स व्हॉट? मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है लीडिंग पीपल से। बहुत अच्छी बात है आपमें नेतृत्व की क्षमता आ जाये। पर वह जो नेता है वह अपने अनुयायियों को लेकर कहाँ जा रहा है?

प्र१: इफ आए कैन एंड आई थिंक इन माई व्यू, इट्स टूवर्ड्स द बेस्ट वर्क, जो है….

आचार्य: कौन सा वर्क (काम)?

प्र१: उनका, जो भी उनके अंदर जो कुछ भी।

आचार्य: जो भी क्या होता है?

प्र१: जो भी विवेक है।

आचार्य: हाँ।

प्र१: मैक्सिमम (अधिकतम) जितना उतार पाएँगे।

आचार्य: और उस विवेक में यही पता चले कि वह वर्क ही नहीं करना हैं?

प्र१: तो दे कैन लीव, दैट्स फाइन। (छोड़ सकते हैं)

आचार्य: डज़ दैट हैपेन? (क्या ऐसा होता हैं?) तुम्हारे जो सबसे एक्सीलेंट कॉरपोरेट्स हैं फिर तो उसमें हाइएस्ट एट्रिशन रेट (संघर्षण दर) होना चाहिए क्योंकि जो सबसे बढ़िया कॉरपोरेट है, तुम्हारे अनुसार विवेक उसमें सबसे ज़्यादा जागृत होगा तो फिर सबसे ज़्यादा लोगों को उन्हें छोड़ना चाहिए। डज़ इट हैपेन दैट द बेस्टेस्ट ऑफ द कॉरपोरेट्स हैव द हाइएस्ट एट्रिशन रेट्स। डज़ दैट हैपेन? होता तो यह है कि जितना तुममें यह सब चीज़ें जागृत होती हैं तुम उतना ज़्यादा गुड़ की मक्खी की तरह पैसे से चिपकते हो।

प्र१: व्हॉट आई हैव सीन इज़ , जो मेरे हिसाब से जो एबल पीपल हैं जिनमें हू आर कॉम्पिटेंट एंड वाइज़, कॉरपोरेट में।

आचार्य: कॉम्पिटेंट टूवर्ड्स व्हॉट? (सक्षम किस ओर के लिए?) द बेस्ट मक्खी?

प्र१: नो, दे हैव ए स्पार्क इन दैम, आए मीन।

आचार्य: टूवर्ड्स व्हॉट? व्हॉट डू दे बर्न विद दैट स्पार्क? ऑल द अमेज़न फॉरेस्ट्स?

प्र१: नो, उनके वर्क में दिखता है एंड।

आचार्य: कौन सा वर्क? कौन सा वर्क?

प्र१: व्हॉटएवर दे।

आचार्य: व्हॉटएवर क्या होता है? यह व्हॉटएवर क्या है? तुम कुछ भी करोगे और अच्छे से करने लग गए तो तुम कहोगे मैं सफ़ल हूँ? यह व्हॉटएवर क्या होता है? सारा खेल ही इसी बात का है कि कर क्या रहे हो? कितनी कुशलता से कर रहे हो, पीछे की बात है।

तुम कुशलता की बात कर रहे हो और इस बात पर आना ही नहीं चाहते कि क्या कर रहे हो। क्या कर रहे हो? क्या कर रहे हो? क्यों कर रहे हो? यह करने को पैदा हुए थे? कोक बेच रहे हैं विद ग्रेट कॉम्पिटेंस एंड एक्सिलेंस — फिज़ी ड्रिंक्स, फिज़ी लाइफ़।

वह बहुत अच्छा एम्प्लॉयर (नियोक्त्ता) है, बहुत पैसे देता है। यह करने को पैदा हुए थे कि सबको यह पिलाएँगे — पानी में कार्बोनिक एसिड बना करके, शक्कर बहुत सारी डाल करके?

प्र१: नथिंग इज़ टू ऐड।

आचार्य: हाऊ यू डू इट इज़ नॉट द थिंग। व्हॉट आर यू डूइंग इज़ द थिंग। और हाऊ फॉलोज़ व्हॉट।

अगर जो कर रहे हो वह सही है तो वह चीज़ तुम्हें मजबूर कर देगी उसको अच्छे से, कुशलता के साथ करने के लिए। और जो तुम कर रहे हो वह ठीक नहीं है फिर भी उसे कुशलता के साथ कर रहे हो तो बहुत खतरनाक बात है। जो तुम कर रहे हो ठीक नहीं है फिर भी कुशलता के साथ कर रहे हो तो यह तो कितनी ज़्यादा खतरनाक बात है न कि नहीं है?

जंगल काटने में एक्सीलेंस पूरी है।‌ फुली ऑटोमेटेड स्टेट ऑफ द आर्ट स्लॉटर हाउस, एक्सीलेंट स्लॉटर हाउस, ग्रेट प्रोडक्टिविटी एंड दे हैव ए ग्रेट लीडर देयर जो कि अपनी टीम को मार्शल करके रखता है — “और जानवर काटेंगे।“ क्या कॉम्पिटेंस है!

प्र१: धन्यवाद।

प्र२: प्रणाम आचार्य जी। मेरा क्वेश्चन एक्सीलेंस को लेकर ही है कि आपने कहा था फर्स्ट-डे में। जब एक्सीलेंस अचीव हो जाये, उसके बाद उसको समर्पित कर दीजिए श्री कृष्ण को। तो एक्सीलेंस को अचीव करने में बुद्धि का काफी बड़ा रोल होगा और मुझे ऐसा लगता है कि जब वह अचीव होने लगेगा, जब वह प्वाइंट आएगा, तभी मन, क्योंकि वह माया के ट्रैप (जाल) में है, वह यह करेगी कि और अचीव करना है। वह अभी तक आया नहीं है और वह क्योंकि खुद को समर्पित कभी नहीं करना चाहेगी। तो वह कैसे डील करें इस सिचुएशन से?

आचार्य: ज़बरदस्ती करो और क्या करोगे? पर बिलकुल जायज़ सवाल है इनका। तुम जिस भी क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करने जाते हो और कर लेते हो, उस उत्कृष्टता की दुनिया तुरंत बोली लगानी शुरू कर देती है। और दुनिया बड़ी ऊँची बोली लगाएगी। तुम इतने प्रवीण हो, एक्सीलेंट हो, उत्कृष्ट हो, दुनिया ऊँची बोली लगती है — ‘आओ आओ आओ, हमारे स्लॉटर हाउस को समर्पित कर दो अपनी उत्कृष्टता। रन इट वेरी कॉम्पिटेंटली , प्लीज़। हम तुम्हें हायर करना चाहते हैं, तुम इतने उत्कृष्ट हो गए हो, आओ ना।‘ और और मुश्किल हो जाएगा कृष्ण की तरफ़ जाना, बिलकुल सही बात है।

इसीलिए तो दुनिया के जितने भी कॉम्पिटेंट लोग हैं, वह शैतान की सेवा में लगे हुए हैं। वह बोली ऊँची लगाता है। और ढँग के कामों के लिए कॉम्पिटेंट लोग मिलने बहुत मुश्किल है। और मिलते भी हैं तो वह अपनी इतनी कीमत बताते हैं कि उनको लाये कहाँ से?

संस्था का आईटी का काम है, हमारा पूरा आईटी डिपार्टमेंट है। उसको लोगों की सख़्त ज़रूरत हैं, मिलते नहीं। जो मिलते हैं वह बोलते हैं, इतने हज़ार रुपए चाहिए महीने के, इतने लाख चाहिए। कई भग जाते हैं कि उतने लाख दिए नहीं इसलिए भाग रहे हैं।

भैया, हम आईटी के, और जो हम काम कर रहे हैं आईटी में, वह सॉफिस्टिकेटेड काम है। वह हल्का-फुल्का नहीं है कि ऐसे ही कुछ बना दिया। ऐप का काम है और दस काम हैं। लोग नहीं मिलते। जाओ किसी के पास, उसके पास ऊँची डिग्री हो, वह तुरंत मुँह खोल कर कहेगा — वह संस्था से जुड़ा हुआ है, संस्था के शिविर कर रखे होंगे अटेंड। कहेंगे, ”तीन साल से आपके साथ हैं आचार्य जी, तीन साल से आपके साथ हैं।“

“अरे तो आ ही जाओ न। हमें आईटी के लोगों की ज़रूरत है।“

”नहीं नहीं नहीं, देखिये उसके लिए तो इतने लाख रुपए महीने के दे ही दीजिए न। उससे कम में नहीं आएँगे हम। उनको खरीद रखा है गूगल ने और अमेज़न ने। वे बिके हुए हैं। उनको यहाँ बुलाओ, वे नहीं आते। तो वह तो है ही।

हाँ, हम कभी भी कहेंगे कि हमें संस्था में लोग चाहिए तो झटके से पाँच-सौ-हज़ार आवेदन आ जाते हैं। वह किनके आते हैं? जो कॉम्पिटेंट ही नहीं होते। जो दुनिया से बिलकुल परित्यक्त हैं। जिन्हें कहीं नौकरी नहीं मिल रही दस साल से। वो खट से कहेंगे, “आप बुला लीजिये। आप आचार्य जी, आप हमें दस हज़ार भी देंगे तो चलेगा।“

अब ये ज़्यादातर वे लोग हैं जिन्हें कहीं दस हज़ार भी नहीं मिल रहा था और यह जता ऐसे रहे हैं कि आचार्य जी हम आपसे इतना प्यार करते हैं कि आप दस हज़ार भी देंगे तो चलेगा।

तो मैं कह रहा हूँ आदमी ऐसा चाहिए, अर्जुन जैसा, कॉम्पिटेंट भी है और कृष्ण के साथ भी है। तब फिर गीता बरसती है। तब आता है मज़ा और इसीलिए फिर जो गीता का अंतिम श्लोक हैं, कितना मार्मिक है।

कह रहे हैं, “जब यह दोनो होंगे तब आनंद और ऐश्वर्य की वर्षा होगी। सिर्फ़ कृष्ण के होने भर से नहीं होगा।“ वे कह रहे हैं — अर्जुन होंगे और कृष्ण होंगे। जहाँ यह दोनों एक साथ होंगे, वहाँ आनंद, अमृत होगा। नहीं, कृष्ण तो हैं हीं। वह सत्य हैं, सत्य कहाँ चला जाएगा? अर्जुन नहीं मिलता न। जब दोनों हो जाते हैं, तब आता है मज़ा।

तो देखो कि क्या ऐसा कर सकते हो कि ऊँचे भी हो, दुनिया के बाज़ार में तुम्हारी कीमत भी खूब है, उसके बाद भी कृष्ण के साथ रहो। कौरवों की नहीं, पाँडवों की तरफ़ नज़र आओ। भले ही पाँडवों की तरफ़ लोग कम हैं, सेना छोटी है, संसाधन कम हैं, फिर भी उधर नजर आओ।

प्र: थैंक-यू गुरुजी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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