मेरे पास सवाल क्यों नहीं हैं? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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मेरे पास सवाल क्यों नहीं हैं? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्न: सर मेरे पास पूछने के लिए कोई सवाल क्यों नहीं है?

वक्ता: आदमी के मन की तीन स्थितियाँ होती हैं।

सबसे नीचे वह स्थिति जहाँ मन जड़ है, पत्थर ही है, चेतना अभी उसे स्पर्श भी नहीं कर गई है।

उसके ऊपर स्थिति आती है अर्ध-चैतन्य की। जहाँ आप आधे जगे और आधे सोए हो, जहाँ आधी कल्पनायें हैं और आधा सत्य है, जहाँ कभी ये है और कभी वो है, कभी सपने हैं और कभी हकीकत है। ये वो जगह होती है जहाँ सवाल उठते हैं क्योंकि सवाल जब उठते हैं जब कल्पनाओं का सत्य से घर्षण होता है। मैंने सोचा कुछ और था, और सामने कुछ और आ रहा है। तब सवाल उठता है, तब बेचैनी उठती है।

सबसे ऊँची स्थिति होती है जहाँ पर आदमी पूरी तरह जगा हुआ है। मन पूर्ण चैतन्य है। वहाँ पर भी कोई सवाल नहीं होता, क्योंकि वहाँ कोई विवाद ही नहीं है।

मनुष्य दूसरे तल पर जीता है। आदमी होने का अर्थ ही है न इधर का, न उधर का, बीच का होना और इसलिए सवाल उठता है। सवाल किसको नहीं उठेगा? जो पूरी तरह जड़ है उसको नहीं उठेगा, या जो पूरी तरह बुद्ध है उसको नहीं उठेगा।

इस कमरे में ये पंखे हैं। हम कितनी भी बातें कर ले, मैं कितना भी कहूँ की सवाल पूछो, तब भी क्या ये पंखे सवाल पूछेंगे? नहीं, क्योंकि ये जड़ हैं। क्या ये ज़मीन सवाल पूछेगी? ये भी नहीं पूछेगी। ऐसा नहीं है की ये पूछना चाहती है पर पूछ नहीं सकती, बल्कि उसको कोई सवाल है ही नहीं क्योंकि सवाल तब उठता है जब अर्ध-चैतन्य होता है। जब कल्पनाओं को सच का आघात लगता है, तब आदमी कहता है कि मुझे कुछ पूछना है, कुछ जानना है। अब बुद्ध तो हम हैं नहीं और अगर मैं तुम्हें चोट पहुँचाना चाहूँ तो कह सकता हूँ कि तुम्हें अगर सवाल नहीं उठ रहा, तो तुम क्या हुए?

श्रोता: अचेतन।

वक्ता: तो बड़ा आसान होगा मेरे लिए कहना की तुम जड़ हो इसलिए कोई सवाल नहीं पूछ पा रहे हो। तुममें कोई चेतना ही नहीं है, कोई समझ ही नहीं है, इसलिए सवाल नहीं पूछ पा रहे। पर मैं ऐसा कहूँगा नहीं क्योंकि ये बात झूठी है। तुम जड़ नहीं हो, बात कुछ और है।

हमने कहा कि सवाल हमेशा तब होते हैं जब कल्पना, जब विचार, सत्य से टकराता है, जब अँधेरा रोशनी से टकराता है। जब अँधेरा रोशनी से टकराएगा, तो जीतेगा कौन? तो पक्का है कि रोशनी जीतेगी और अँधेरे को ये बात मालूम है। कल्पना को अच्छे से पता है कि अगर सच से टकराऊँगी तो मिट जाऊँगी, इसलिए कल्पना के लिए खतरनाक है सवाल का पूछा जाना। कल्पना को पता है कि अगर सत्य से टकराऊँगी तो मिट जाऊँगी। तो कल्पना सवाल नहीं पूछना चाहेगी, और हम कल्पनाओं में जीते हैं। हमारी कल्पनाएँ न टूट सकें इसके लिए बहुत आवश्यक है की हम सवाल ही न करें। हम छवियों में जीते हैं, उन छवियों पर चोट न लगे इसके लिए बहुत ज़रुरी है कि हम सवाल ही न करें क्योंकि सवाल होगा तो सच सामने आएगा। और सच सामने आएगा तो मेरा क्या होगा? मैं कहाँ जाऊँगा? छुपने के लिए जगह भी नहीं मिलेगी। इसीलिए मैं सवाल को उठने ही नहीं देता। वो सर उठाता भी है तो मैं उसको दबा देता हूँ। अगर तुम कुछ दिनों तक ये अभ्यास करो कि जब सवाल सर उठाए, तुम उसे दबाते चलो तो कुछ दिनों में तुम पाओगे कि सवाल ने सर उठाना ही छोड़ दिया है। और फिर तुम्हें ऐसा लगेगा कि मेरे पास तो सवाल है ही नहीं।

सवाल हैं, पर तुमने उनका गला दबा रखा है। तुमने अपने डर के चलते अपने सवालों का गला दबा रहा है। डर जानते हो क्या है? डर यही है कि मेरी जो अपनी छवि है, जो सेल्फ-इमेज है वो टूट जाएगी, और इसी का नाम अहंकार है, और ये टूटेगा। मैं जो अपने बारे में सोचता हूँ वो झूठा साबित हो जाएगा। दुनिया के बारे में मैंने जो चित्र खींच रखा है वो पता चलेगा कि कोरी कल्पना है। बात तो कुछ और ही है। मैं जिन संबंधों में जीता हूँ और जिनसे मैंने बड़ा मोह जोड़ रखा है, उन संबंधों की हकीकत पता चल जाएगी। तुम डरते हो, तुम्हारा डरना ही इस बात का सूचक है कि तुम जानते हो कि तुम एक नकली दुनिया में रह रहे हो। जो असली है उसको डरने की जरुरत नहीं है, उसको पता है कि मेरा कुछ बिगड़ नहीं सकता। अगर तुम सच से डर रहे हो, तो इसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि तुम झूठों में जी रहे हो। सच तो सच से नहीं डरेगा ना, झूठ ही सच से डरेगा। अँधेरा ही रोशनी से डरेगा। जो सवाल पूछने से डर रहा है वो बहुत नकली जीवन जी रहा है। सवाल है पर उनका दमन करोगे बहुत दिनों तक तो वो तुम्हारे सामने आना बंद कर देंगे। वो कहेंगे कि जब तुम्हें मेरी कद्र नहीं, मैं उठता हूँ पर तुम मुझे सामने आने नहीं देते, तो मैं आऊँ ही क्यों? फिर ऐसा कोई अवसर आएगा जब सवाल पूछे जाने हैं, तो तुम पाओगे कि मन में सवाल आ ही नहीं रहा है। अब सवाल आएं कैसे, जब तुमने अभ्यास ही सवाल न पूछने का कर रखा है।

याद रखना कि सवाल मन में उठता है और उत्तर की कोई गारंटी नहीं होती। सवाल तक तो तुम कह सकते हो की मेरा सवाल है, सवाल पर तुम्हारी दावेदारी है, पर उत्तर तो कहीं और से आता है। उत्तर कुछ भी हो सकता है, खतरनाक भी। और मन डरता है। मन कहता है कि पूछने की प्रक्रिया तो मैं शुरु कर दूंगा, पर उसके आगे क्या होगा मुझे नहीं पता। न जाने क्या सुनने को मिल जाए, न जाने किस बात से रुबरु होना पड़े, मैं उसको देखना नहीं चाहता। पर तुम्हारे न देखने से सच छुप तो नहीं जाएगा न? तुम्हें बीमारी हो और तुम उस बीमारी की तरफ न देखो, तो क्या वो बीमारी चली जाएगी? वो और गहरी हो जाएगी। पर हमें बीमारी की तरफ देखने से डर लगता है। अक्सर रोगियों की जांच हो और उन्हें पता चले की उन्हें कोई गहरी बीमारी है तो झुठलाते हैं, कहते हैं की नहीं,नहीं ऐसा नहीं है। वो कहीं और जायेंगे, दो बार, चार बार जांच कराऐंगे क्योंकि मन मानने को तैयार ही नहीं होता कि वो बीमार हैं। पर इलाज़ उसी दिन शुरु होता है जिस दिन तुम स्वीकार कर लो की तुम…

सभी श्रोतागण: बीमार हो।

वक्ता: जिस दिन तक तुमने माना नहीं की मैं बीमार हूँ, उस दिन तक इलाज की भी कोई सम्भावना नहीं है। सवाल का अर्थ ही है कि मैं नहीं जानता। सवाल का अर्थ है झुकना और सवाल का अर्थ है कि एक गहरी श्रद्धा है कि उत्तर संभव है। अगर तुमने अपने आप को ये भी विश्वास दिला लिया हो कि उत्तर होते ही नहीं, तो भी तुम सवाल नहीं पूछोगे। तुम कहोगे कि सवाल तो है पर मुझे मालूम है कि इनके उत्तर नहीं होते। तुमने फिर एक गहरी निराशा बैठा ली है मन में। तुमने कह दिया है कि मुझे आज तक उत्तर नहीं मिले तो अब भी नहीं मिलेंगे। पर ऐसा ज़रूरी नहीं। अतीत से कुछ तय नहीं होता। हो सकता है कि तुम्हें आज तक उत्तर नहीं मिले हों, पर इस निराशा को मन में बैठाने की ज़रूरत नहीं है। बात समझ रहे हो?

सवाल गहरी विनम्रता है। एक ओर सवाल कहता है कि मैं झुक रहा हूँ और दूसरी ओर सवाल का होना ये भी कहता है कि गहरी श्रद्धा है, कि उत्तर है, सत्य है। अगर तुम अपने आप को ये भी आश्वासन दे दो कि सत्य है ही नहीं, तो भी तुम सवाल पूछोगे ही नहीं। तुम कहोगे कि इन सवालों का फायदा क्या? सवाल पूछते रहो, जवाब कभी आएगा ही नहीं। जवाब भले ही न आए, सवाल पूछने का एक फायदा है। अगर लगातार पूछते रहो तो एक दिन पूछते-पूछते ही मामला इतना साफ़ हो जाता है कि सवाल गायब हो जाता है। इसलिए पूछना बंद मत करो। मैं इस बात को समझ सकता हूँ कि तुमने सवाल पूछा हो और सवाल पूछने के कारण तुम्हें सजा मिल गई हो, या तुम्हारे सवालों को उचित उत्तर न मिला हो। पर उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वैसे भी उत्तरकी कोई खास कीमत नहीं है। कीमत पूछने की है। तुम्हें बात सुनने में अजीब लगेगी।

आज हम यहाँ बैठे हैं। ९५% समय मैं बोलता रहूँगा, और ५% समय तुम सवाल पूछोगे। पर जानते हो कीमत किसकी है? कीमत है तुम्हारे पूछने की क्योंकि अगर तुम पूछना जानते हो, तो एक न एक दिन उत्तर मिल जाएगा। मेरे बोलने की कोई कीमत नहीं है। असली कीमत है तुम्हारे पूछने की। मेरा यहाँ पर होना कोई महत्व नहीं रखता, तुम्हारा होना महत्व रखता है। यहाँ एक खाली कुर्सी भी पड़ी हो और तुम उससे बार-बार जाकर सवाल पूछो, तो भी तुम एक खास काम कर रहे हो। ये मत सोचना कि तुम पागल हो। चाहे तुम खाली कुर्सी से सवाल पूछो, पर पूछो ज़रूर। पूछते-पूछते एक दिन ऐसा पाओगे की पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ रही। बात इतनी खुल गयी है। क्योंकि उत्तर प्रशन में ही बैठा हुआ है। उत्तर प्रश्न से अलग नहीं है। प्रश्न को समझ लिया, यही उतर है। सवाल को जब तक नहीं समझा , वो सवाल है। जब सवाल को समझ लिया, तो वो सवाल कहाँ बचा? वो तो समाधान बन गया। तो पूछो, पूछते रहो, डरो मत। अपने सवालों का गला मत घोटो और न मन में ये बात बैठा लो की उत्तर होते ही नहीं।

पहली बात कि उत्तर होते हैं, दूसरी बात कि उत्तर न भी मिले तो भी सवाल अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है। सवाल ही अपने आप में एक दिन विलीन हो जाएगा, अगर पूछो तो। दबाने से सवाल विलीन नहीं होता। उसको सामने लाने से, उसको समझने से विलीन होता है।

सब जवान हो। तुम्हारे लिए बहुत ज़रूरी है कि कदम-कदम पर सवाल उठाओ। हो सकता है सवाल बेवकूफी भरे लगें। हो सकता है कि लोग कहें कि तू क्या फालतू सवाल पूछता रहता है। लोग कुछ भी कहें, तुम पूछो, और एक नहीं, सौ बार पूछो। ये तुम्हारा कर्तव्य है तुम्हारे प्रति। बात छोटी लगे तो पूछो, बात बड़ी लगे तो पूछो और तब तक पूछो जब तक बात बिल्कुल ही सपष्ट न हो जाए और सवाल गायब न हो जाए। उस गायब होने में बड़ी मौज है, वो असली शांति है। ये शांति नहीं है कि सवाल उठ तो रहा है, पर पूछने की हिम्मत नहीं हो रही या फिर इतना सुन्न पड़ गया है मन की उसमें सवाल उठते ही नहीं। ये दोनों ही स्थितियाँ किसी काम की नहीं हैं। सवाल सुबूत है कि तुम अभी जिंदा हो। सवाल इस बात का सुबूत है कि मन अभी गुलाम बनने को पूरा तैयार नहीं हुआ है। सवाल सुबूत है कि तुम अभी भी सत्य के संपर्क में हो। सवाल इस बात का सुबूत है कि तुमने जीवन के प्रति आशा छोड़ नहीं दी है। सवाल तुम्हारे वजूद की अभिव्यक्ति है। सवाल हैं, इसीलिए मैं हूँ।

मैं जवाबों की बहुत बात नहीं कर रहा। जवाबों की बहुत कीमत नहीं है, सवाल की कीमत है। जवाब आए, न आए, फर्क नहीं पड़ता। एक दिन सवाल ही इतना घना हो जाएगा, की बात पूरी हो जाएगी और फिर तुम्हें जवाब चाहिए भी नहीं होगा। तो ये फ़िक्र ही मत करो कि जवाब कहाँ से आएगा। आएगा भी या नहीं आएगा? जवाब आता हो तो भी अच्छी बात, नहीं आता हो तो भी अच्छी बात, बस सवाल कायम रहे। और जब जवाब आए तो उस पर भी सवाल उठे। ये मत कह देना की कोई बड़ी हस्ती है, जवाब दे रहे हैं तो इस जवाब पर मैं उँगली कैसे उठा सकता हूँ? या मेरे सवाल को आज से पहले भी सौ लोगों ने पूछा है, और उनको एक जवाब दिया गया, वो सब संतुष्ट हो गए, तो मुझे भी संतुष्ट हो जाना चाहिए। ऐसी कोई बात नहीं है। तुम्हें पूरा हक है संतुष्ट न होने का। और संतुष्ट हो जाना तो बड़ी ओछी बात है। तुम संतुष्ट हो मत जाना जल्दी से, कैसे भी जवाबों से। ये मैं इसलिए नहीं बोल रहा हूँ कि मैं जो भी बोल रहा हूँ, उसे तुम बिल्कुल शिरोधार्य कर लो।

मुझे बहुत अच्छा लगेगा अगर मेरे बोलने से तुममें और दस सवाल जगते हैं। मुझे बहुत अच्छा लगेगा कि आज के सत्र के बाद जितने सवालों से तुमने शुरू किया था, उससे चौगुने सवाल तुम्हारे पास बच जाते हैं तो। मेरा कोई महत्व ही नहीं है, मैं चला जाऊँगा। पर तुम रहो और तुम्हारे सवाल रहें, इस बात का बहुत महत्व है। बस अपेक्षा मत करना कि जवाब मिलेंगे। सिर मत झुका लेना कि जवाब तो मिलते नहीं। पूछे जाओ और श्रद्धा के साथ पूछे जाओ, क्योंकि जवाब तो हैं चारो तरफ। तुम्हें जवाब मिलते नहीं हैं क्योंकि तुममें श्रद्धा नहीं हैं। तुम मानते ही नहीं हो कि जवाब सामने है, तो तुम्हें जवाब दिखाई भी नहीं देता। अक्सर जवाब हमारे सामने ही रहता है, पर हमें दिखाई नहीं देता। इस बात को गहराई से मान कर चलो कि जवाब सामने है और इसी का नाम श्रद्धा है। सत्य संभव है, और मेरा स्वभाव भी है। दूर भी नहीं हैं। अगर मैं जवाब जानना चाहूँ, तो अभी जान सकता हूँ। अभी! पूरा अस्तित्व मदद करेगा मेरी, जानने में।

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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