प्रश्न: सर आपने कहा कि मेरा अपना कुछ नहीं है। यह सुनना बड़ा अजीब सा लग रहा है।
वक्ता: वो सब कुछ जिसको तुम अपना मानते हो वो नहीं है तुम्हारा। पर तुम हो यह तो सत्य है। ‘तुम्हारा कुछ नहीं है’, यह तो मैं कह सकता हूँ पर ‘तुम नहीं हो’, यह तो मैं नहीं कह सकता। ‘तुम हो’ यह बात तो सच्ची है। तुम नहीं हो यह बोलने वाला भी कोई चाहिए ना? तो यहीं से सिद्ध होता है कि तुम हो। यह तुम्हारा अपना ही तुम्हारा अपना है! और होने का मतलब है कि ‘जानना कि मैं हूँ’। यह घोषणा कर पाना कि ‘मैं हूँ’, मुझे पता है मैं हूँ। इतना लम्बा बोलने की भी ज़रुरत नहीं है। बस,
‘मैं हूँ’।
यह जानना कि मैं हूँ, यह जानना ही तुम्हारा होना है। तो मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि तुम्हारा कुछ भी नहीं। मैं कह रहा हूँ कि जो परम मूल्य का है वह तुम्हारा है ही है। सबसे बड़ी कीमत तुम्हारे होने की है। तुम्हारी ज़यादा कीमत है या इस शर्ट की जो तुमने पहन रखी है? सबसे बड़ी कीमत तुम्हारे होने की है न? मैं कह रहा हूँ कि बाकी सबसे पहचान मत बना बैठ लेना।
अपने होने को जानो, वही महत्वपूर्ण है।