मौत नहीं, अनजिया जीवन है पीड़ा

Acharya Prashant

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मौत नहीं, अनजिया जीवन है पीड़ा

वक्ता: पहला प्रश्न संबंधों के बारे में है। कोई है जिसका जीवन में बड़ा गहरा स्थान था। एक दिन आता है जब वो नहीं रहता, अब मन पे बड़ी गहरी चोट पड़ती है, मन रो उठता है और वो निशान मन पर ऐसा गहरा पड़ता है कि फिर जीवन कभी उस निशान से मुक्त नहीं हो पाता। एक याद है जो हमेशा साथ ही रहती है, एक छिन जाने का अहसास। कुछ था जो मुझसे छिन गया और उसकी बड़ी गहरी पीड़ा रहती है, बहुत गहरी पीड़ा।

हम में से कोई ऐसा नहीं है जिसके मन में वो पीड़ा ना हो, हम में से कोई ऐसा नहीं है जो पूर्णत: स्वस्थ हो। हम में से कोई ऐसा नहीं है जिसके जीवन से कभी कुछ ना कुछ मधुर छिना नहीं है।

क्या है प्रेम? प्रेम जीवन भर किसी के साथ रहने की कामना का नाम नहीं है। हालांकि हमने प्रेम ऐसा ही देखा है और स्वाभाविक सी बात है कि मन में ये बात उठती भी है कि जो है वो सदा बना रहे, कभी हमसे छिने ना, कभी हमारे जीवन से जाये ना। जिससे हमारा प्रेम है वो समय के अंत तक हमारे साथ रहे, ये कामना उठती है। पर ठीक-ठीक बताना, क्या ये कामना प्यार के क्षण में उठती है? जब तुम पूरे तरीके से किसी क्षण में डूबे हुए हो, क्या कभी इच्छा उठती है? क्या उस क्षण में, जब तुम डूबे हुए हो, तब ये इच्छा उठती है कि कहीं ये खत्म तो नहीं हो जायेगा, कि काश ये हमेशा चलता रहे? ये इच्छा उस क्षण में तो नहीं उठ सकती। मतलब जब प्रेम है, वाकई है, उस समय प्रेम को उम्र देने की कोई इच्छा नहीं होती। उस समय वो क्षण ही काफ़ी होता है, तुम्हें और समय नहीं चाहिए होता। तुम ये नहीं सोच रहे होते, उस क्षण की बात कर रहा हूँ, जब तुम ये नहीं सोच रहे होते कि काश ऐसा ही सदा चले। क्योंकि तुम्हारे पास सोचने की फुरसत ही नहीं होती, तुम डूबे हुए होते हो उस क्षण में और तब वो काफ़ी होता है, तब ऐसा कोई विचार ही नहीं होता कि ये हमेशा ही रहे। उसको एक स्थायित्व देने की कोई इच्छा नहीं होती कि स्थाई रहे, ऐसी बात नहीं आती। वो बात तब आती है जब प्रेम उपलब्ध नहीं होता। जब प्रेम उपलब्ध नहीं होता तब ये इच्छा उठती है कि मिलें और समय गुज़ार सकें।

कोई निकट का, कोई प्यारा हमसे छिनता है, हम ख़ूब रोते हैं, ज़ोर-ज़ोर से रोते हैं। हम इसलिए नहीं रोते हैं कि प्रेम था। क्योंकि जब प्रेम है तब तो ये विचार ही नहीं होता कि अंत तक ऐसा ही रहे। हम इसलिए नहीं रोते हैं कि प्रेम था, हम रोते इसलिए हैं क्योंकि कुछ अधूरा छूट गया, कुछ अनचखा रह गया, एक अतृप्ति रह गई। वो अतृप्ति है जो हमें रुलाती है। वो जो अनजिए क्षण हैं वो रुलाते हैं हमें। प्रेम नहीं रुलाता क्योंकि प्रेम तो पूरा होता है। उसमें कुछ अधूरा है ही नहीं तो कामना कैसी। रुलाती हमें हमारी अतृप्तियाँ हैं, हमारा अधूरापन है। और ऐसा ही तो होता है ना, जब तक जीवित व्यक्ति हमारे सामने है, तब तक हम पाते हैं कि हम पूरे तरीके से उसके निकट नहीं हो रहें हैं, एक दूरी बना रखी है, मन में धारणाएँ हैं, कुछ-ना-कुछ अहंकार है जिसके कारण दूरी है, पर जब वो जाता है तो मन टुकड़े-टुकड़े हो कर रोता है। वो दूरी और मन का ये कष्ट, ये दोनों जुड़ी हुई बातें हैं। तुम जितनी दूरी एक जीवित व्यक्ति से बना कर रखोगे, जितने तुम्हारे अतृप्त क्षण रहेंगे, अनजिये क्षण, अफ़सोस उतना ही गहरा होगा। और ये अफ़सोस यही है कि मौका चूक गया, एक अवसर था वो हाथ से निकल गया। व्यक्ति जिंदा रहा, मेरे साथ बीस साल तक, पच्चीस साल तक रहा, पर मैं कभी पूरी तरह उसका हो नहीं पाया, हमारे बीच सदा एक दीवार रही और यही अहसास है जो रुलाता है, यही है जो पूरा नहीं हुआ है, इसी की कमी खलती है। ये एक परेशानी है। इंतज़ार मत करो कि मौका बीत जायेगा, अवसर चला जायेगा और कब बोल देंगे। अभी जो है उसके साथ पूरे तरीके से हो लो, जीवन को जी लो। कुछ भी सदा नहीं रहेगा और जो जीवन की इकाई है ये पल, ये तो इसी पल के बाद नहीं रहता।

जीवन का सारा शोक ही इसी बात का है कि ये सब अनजिए पल एक-एक करके बीतते जा रहें हैं। इनको जीयो पूरे तरीक़े से। अभी हो यहाँ पर तो सुनो। अभी जाओगे बाहर तो जो भी करोगे उसमें रहना पूरे तरीक़े से, नहीं तो अफ़सोस के अलावा हाथ कुछ नहीं आयेगा। जो जीता जा रहा है, उसको नहीं अफ़सोस होता क्योंकि उसको पता है कि जीवन आनंदपूर्ण था, जीवन प्रेमपूर्ण था, जो कुछ हो सकता था, पूरा रहा, कोई कमी छोड़ी ही नही, अब अफ़सोस कैसा।

एक परंपरा रही है कई समाजों में कि जो व्यक्ति एक लम्बी आयु पूरी कर के मरता है, उसके मरने पर उत्सव मनाया जाता है। ये तो छोटी बात है कि मातम मनाया जाए, उत्सव मनाया जाता है। कारण जानते हो क्या है? कहा यही जा रहा है, ‘जो कुछ संभावना थी इसने पूरी कर ली, अब रोना कैसा? जी गया ये पूरे तरीक़े से, अब रोना कैसा? जीवन ऐसे ही जीयो कि अब रोना कैसा। जी तो लिए पूरे तरीक़े से। नहीं तो जैसे-जैसे दिन बीतेंगे, मन पर बोझ बढ़ता ही जायेगा, बढ़ता ही जायेगा। वो सारा बोझ अतीत का होगा, अनजिए अतीत का। वो सब कुछ जो व्यर्थ गया है, वही मन पर बोझ बन कर बैठा रहेगा और उसको जीते चलोगे तो मन पर कोई बोझ नहीं रहेगा।

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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