मन में दो और दो कभी चार नहीं होता || आचार्य प्रशांत (2014)

Acharya Prashant

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मन में दो और दो कभी चार नहीं होता || आचार्य प्रशांत (2014)

वक्ता: इम्तिहान में आया है कि दो और दो कितना होता है। तो आप क्या करते हो? आप क्या करते हो? आप चार लिख देते हो, और उसके बाद आप रुक नहीं जाते।

श्रोता १: नेक्स्ट क्वेश्चन (अगला प्रश्न )।

वक्ता: हाँ, नेक्स्ट क्वेश्चन (अगला प्रश्न), और उसके बाद आप जब पर्चा वगैराह लिख कर के आगे आ गए, आप रुक नहीं जाते।

श्रोता १: कन्फर्म (इस बात की पुष्टि) करते हैं।

वक्ता: कन्फर्म (इस बात की पुष्टि) करते हो। ठीक है – “दो और दो चार हैं”। फिर उम्मीद करते हो कि अब नंबर मिल जाएगा। तो आपने जो पूछा दो और दो कितना होता है, तो मैं बताता हूँ – *टू प्लस टू प्लस कन्फर्मेशन प्लस होप इज़ इक्वल टू फोर (२ + २ + इस बात की पुष्टि + आशा = ४)*। सो (इसलिए), टू प्लस टू इज फोर माइनस कन्फर्मेशन माइनस होप *(२ +२ = ४ – इस बात की पुष्टि – आशा)*। कभी ऐसा हुआ है कि दो और दो चार हों बिना उम्मीद के? कभी ऐसा हुआ है? हम मन की बात कर रहे हैं न। मन में मात्र तथ्य तो कभी होते ही नहीं।

आपने यूँ पूछा जैसे दो और दो तथ्य हैं, मन में तथ्य कहाँ होते हैं? वह तो बहुत बड़ी काबिलियत है कि तथ्य दिखे – ट्री एस ट्री, टू एस टू, बर्ड एस बर्ड (पेड़, पेड़ की तरह; २, २ की तरह; चिड़िया, चिड़िया की तरह)। हमारी तो उम्मीदें जुड़ी होती हैं उनके साथ। दीवार कभी दीवार नहीं होती, दीवार कहीं की दीवार होती है, दीवार किसी ख़ास पेंट से पुती हुई दीवार होती है। कपड़ा कभी कपड़ा नहीं होता, वो किसी ना किसी ब्रांड का कपड़ा होता है, किसी ना किसी का कपड़ा होता है।

तो इसी तरह से दो और दो मन में कभी चार नहीं होता। उसके साथ अपेक्षाएं जुड़ी होती हैं। उसके साथ दर्द भी जुड़े होते हैं। उसके साथ स्मृतियाँ भी जुड़ी होती हैं।

(श्रोता से पूछते हुए) आपकी डेट ऑफ़ बर्थ (जन्म-तिथि) क्या है? मंथ (महिना) और डेट (तारीख) बस?

श्रोता १: *फिफ्टीन सेप्टेम्बर (पंद्रह-सितम्बर)*।

वक्ता: १५०९ ख़ास अंक है कि नहीं? किसी गाड़ी को, आप के सामने एक गाड़ी जा रही है और उसका नंबर है – डी एल २ सी १५०९ – वो गाड़ी थोड़ी सी ख़ास हो गयी कि नहीं हो गयी?

श्रोता १: मेरे बर्थडे (जन्मदिन) वाले नंबर की।

वक्ता: हो गयी कि नहीं हो गयी?

जल्दी बोलिए?

श्रोता १: (हँसते हुए) पता नहीं, मैंने आज तक तो देखी नहीं, अब अगर देखूंगी तो शायद हाँ क्योंकि अब आपने कहा है।

वक्ता: अंक, अंक हैं कहाँ? मन की दुनिया में तथ्य नहीं होते। १५०९, १५०९ ही नहीं है। यह बात तो क्रेडिट कार्ड बनाने वाली कंपनियां भी जानती हैं। आप जानती हैं (महिला श्रोता को अंगित करते हुए) वो आपका ओन लाइन पासवर्ड क्या रखेंगी? वाई ई ए एस १५०९। आपके नाम से शुरू के दो तीन अक्षर उठाएंगी और आपकी डेट ऑफ़ बर्थ (जन्म-तिथि) से। उन्हें भी पता है कि कौनसा अंक याद रहेगा मन को, अच्छे से पता है।

कहाँ मन में दो और दो चार होते हैं? हफ्ते में कोई दिन हो, दिन तो दिन है, मन ने समय को काट करके नाम दे दिए हैं। पर क्या दिन मात्र दिन है?

श्रोता २: हैप्पी बर्थडे, हैप्पी वैडिंग एनिवर्सरी, हैप्पी न्यू इयर (जन्म-दिन मुबारक हो, शादी की सालगिरह मुबारक हो, नया साल मुबारक हो)।

वक्ता: एंड हैप्पी सन्डे (रविवार मुबारक हो)।

श्रोता २: हैप्पी कैंडी डे।

~ ‘शब्द योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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