प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मेरा प्रश्न और मेरी समस्या यह है कि पहले जितना डर था मेरे अंदर, पहले से कम हो गया है लेकिन अब थोड़ा अलग तरीके का डर बना रहता है। डर ये रहता है कि- मतलब मैं संस्था में रहना चाहता हूँ और साधना के पथ पर आगे बढ़ना चाहता हूँ लेकिन अंदर एक डर रहता है कि न जाने कब संस्था से बाहर हो जाऊँगा, ऐसा डर बना रहता है। वीडियो तो बनाते हैं साथ में, बाहर का जब आकलन करते हैं तो आखिर में घूम-फिर के पता चलता है कि आचार्य जी के अलावा और कुछ नहीं है दुनिया में, मतलब आप हीं 'सार' दिखते हैं पूरी दुनिया में, तो आपसे मैं यह पूछना चाहता हूँ इस रास्ते पर मैं कैसे और आगे बढ़ता रहूँ?
आचार्य प्रशांत: नहीं, देखो ज़मीन की बात करो! तुमको अगर पता ही नहीं होगा कि दुनिया क्या चीज़ है? तो फिर तुम्हें ये भी नहीं पता होगा कि उस दुनिया में, इस संस्था की, इसके काम की अहमियत क्या है? ये सब बहुत सतहीं बातें हैं कि- "मैं दुनिया को देखता हूँ और मुझे लगता है कि इस दुनिया में आपके अलावा कोई है नहीं।" ऐसा कुछ नहीं है। दुनिया में बहुत लोग हैं जो अच्छा काम कर रहे हैं, दुनिया में न जाने कितने क्षेत्र हैं, उन में काम करने वाले लोग भी हैं, ऐसा कुछ नहीं है कि आचार्य जी के अलावा कोई है नहीं। हाँ, दुनिया में बहुत कुछ है, जो गड़बड़ भी है, जो गड़बड़ है वो तुम्हें साफ-साफ पता होना चाहिए, वो जितना तुमको साफ-साफ पता होगा, उतना ज़्यादा तुम्हें अपने काम पर भरोसा होगा और तुम्हें ये सफाई रहेगी, ये प्रेरणा रहेगी कि तुम्हें ये काम आगे बढ़ाना है।
हमारा काम यूँ हीं नहीं है न? किसी संदर्भ में है, उसके पीछे कोई 'कांटेक्स्ट' है। वो न हो 'कांटेक्स्ट' तो हम वो काम करेंगे हीं नहीं, जो हम कर रहे हैं। तो हम जो कुछ कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं? ये समझो! पहाड़ पर सैनिक है, उसको बोल दिया जाए- यूँ हीं बंदूक लेकर गुर्राते हुए आगे बढ़ो, तो वो बहुत देर तक ऐसा कर नहीं पाएगा। कहेगा, "ये क्या करवाया जा रहा है मुझसे? बंदूक हाथ में दे दी है और कहा जा रहा है कभी इधर को मुँह करके गुर्राओ, कभी उधर को मुँह करके गुर्राओ, कभी कह दिया चलो उधर सामने की ओर लगो गोलियाँ दागने।" तो सैनिक कुछ देर तक तो ये कर सकता है, भरोसे में रह के। पर थोड़ी देर बाद उसके भीतर उर्जा, प्रेरणा बचेगी नहीं। यही अगर सैनिक को साफ पता हो कि…?
श्रोता: दुश्मन कौन है?
आचार्य: दुश्मन क्या है? दुश्मन कौन है? दुश्मन के इरादे क्या हैं और दुश्मन किस सीमा तक उसके लिए, सबके लिए घातक है? तब सैनिक खुद हीं लड़ेगा, बेहतर लड़ेगा, निशाना भी साध पाएगा और डंटा भी रहेगा। है न? तो हमारा ऐसा थोड़े हीं है कि हम यूँ हीं हवा में गोलियाँ चलाते रहेंगे, बेहोश फ़ायर मार रहे हैं इधर-उधर। यहाँ तो एक-एक बात जो कही जा रही है वो प्रत्युत्तर है किसी समस्या को, किसी गूढ़ सवाल को, एक-एक काम जो हम कर रहे हैं वो काम समाधान की तरह है, एक-एक कदम जो हम बढ़ा रहे हैं वो कदम किसी बहुत बड़ी और घातक ताकत के खिलाफ़ है। तो तुम मुझसे कदम से कदम मिलाकर तभी चल पाओगे न जब तुम्हें पहले पता तो हो कि हम किन ताकतों के खिलाफ खड़े हैं? और यकीन मानों- वो ताकतें नहीं हों तो, ये जो सत्र हो रहा है ये भी नहीं हो। मुझे कोई रुचि नहीं है फ़िज़ूल फ़ायर करने में।
कुछ है जो गलत है, उसको ठीक करने के लिए हम हैं। वो गलत हीं न रहे तो हम भी नहीं रहेंगे। तुम भी घर जाओ, हम भी घर जाएँ, सोए आराम से, खाएँ-पिएँ, पृथ्वी अपनी है नाचेंगे, कोई समस्या ही नहीं बची। फिर तो सकाम कर्म करने का कोई औचित्य नहीं न? हमारा तो सारा काम हीं सकाम है। सकाम माने? जिसमें कुछ उद्देश्य हो। हमने लक्ष्य बनाया, हम लक्ष्य पाना चाहते हैं। तुम सब के काम में भी लक्ष्य रहते हैं न? इतना-इतना-इतना-इतना... हमारा सारा काम क्या है? सकाम है। सकाम है, माने सामने दुश्मन खड़ा है चूँकि सामने दुश्मन खड़ा है इसीलिए हमें लड़ना पड़ रहा है और तुम्हें अगर दुश्मन का कुछ पता हीं नहीं, तुम अखबार नहीं पढ़ रहे, तुम चर्चाएँ नहीं कर रहे, तुम्हारे सामान्य-ज्ञान का दायरा अति सीमित है, तो फिर तुम्हें समझ में हीं नहीं आएगा कि आचार्य जी इतना क्यों बोलते रहते हैं? रोज़ हमें दस वीडियो क्यों छापनी हैं? ये कर क्यों रहे हैं? इतनी गोलियाँ क्यों चला रहे हैं? क्यों? मैं बता देता हूँ- "पूरी दुनिया में कोई है हीं नहीं, आचार्य जी सिर्फ आप हीं हैं, आप महान हैं, आप देश की जान हैं, आप पता नहीं क्या... शक्तिमान हैं।" अब आचार्य जी लगे हुए हैं, उनके चोट भी लग रही है, खून भी बह रहा है और उनके हाथ में बंदूक है, उनकी नज़र किस पर है? दुश्मन पर। आचार्य जी की नज़र किस पर है? दुश्मन पर और तुम बता रहे हो- "आचार्य जी आप महान हैं, शक्तिमान हैं।" तुम्हारी सारी नज़र किस पर है? आचार्य जी पर। तुम्हें दुश्मन दिखाई हीं नहीं दे रहा, तो कुछ देर तक तो तुम आचार्य जी की वंदना कर लोगे, "महान हैं आचार्य जी! महान हैं! महान हैं! चलिए अभी आप को भारत रत्न मिलना चाहिए।" और थोड़ी देर में तुम्हारा सर चकराने लगेगा, ऐसे-ऐसे मुंडी ख़ुजाओगे और कहोगे- ये कर क्या रहे हैं? जब देखो तब फ़ायर मारते रहते हैं, रोज़ दस वीडियो फ़ायर करते हैं। ये कर क्या रहे हैं? क्यों कर रहे हैं? क्योंकि तुम उधर को नहीं देख रहे मेरे साथ, जिधर को मैं देख रहा हूँ। तुम मुझे हीं देखे जा रहे हो। तुम्हें कुछ पता भी है कि मैं जो कर रहा हूँ क्यों कर रहा हूँ? सोचो कैसा हो कि- एक सेना है जिसमें कमांडर तो सामने को देख रहा है और सारे सैनिक कमांडर को देख रहे हैं, क्या होगा ऐसे कमांडर का और उसके सैनिकों का? क्या होगा? दोनों डूबेंगे, दोनों मरेंगे।
और ये बड़े अफ़सोस की बात है कि हम में से बहुत ऐसे लोग हैं, जो उधर को नहीं देखते जिधर को मैं देखना चाहता हूँ, वो मुझे हीं देखते रहते हैं और मुझे देखते रहते हैं, कुछ तो इसलिए कि चलो मान लिया- तुम्हें बहुत प्यार है मुझसे। इतना सुंदर हूँ न मैं? आ! हा! हा! तो कुछ तो तुम रीझ गये हो मुझ पर इसलिए मुझे देखते रहते हो और कुछ मुझे तुम इसलिए भी देखते रहते हो क्योंकि बेईमान हो। क्योंकि उधर को हीं देखोगे, जिधर को मैं देख रहा हूँ तो तुम्हें भी गोली चलानी पड़ेगी और खानी पड़ेगी मेरी तरह। तुम्हें भी उतनी हीं मेहनत करनी पड़ेगी, जितनी मैं कर रहा हूँ। तो तुम इसीलिए दुश्मन का जायज़ा लेना हीं नहीं चाहते। तुम तो बस मेरी आरती उतारते रहो, "आचार्य जी आप महान हैं।" और तुम उतारते रहो मेरी आरती, मैं गोली खा रहा हूँ, एक दिन मैं गायब हो जाऊँगा और तुम आरती उतारते रहना।
मेरी ओर क्या देख रहे हो? मुझसे क्यों बात करते हो? मैं तुम्हें थोड़े हीं देख रहा हूँ। मैं तो उसको देख रहा हूँ न जिसको नहीं होना चाहिए और है। हमारी वेबसाइट भी क्या बोलती है? अभी भी उस पर लिखा हुआ है- 'टु डिमोलिश द फॉल्स'। मैं उसको देख रहा हूँ न? जिसे हमें डिमोलिश करना है, तुम उसको देख रहे हो? तुम उसको देख रहे होते तो मुझसे अनुमति लेने थोड़े हीं आते कि "आचार्य जी वैसे तो आप बहुत अच्छे हैं और आपका काम बहुत अच्छा है लेकिन मेरा न घर जाने का बहुत मन करता है, लगता है अब एक-डेढ़ साल काम कर लिया, अब मुझे यहाँ से निकल लेना चाहिए।" निकल लो! तुम इसलिए निकलोगे क्योंकि तुम्हें ये लग रहा है कि ये काम आचार्य जी का है, इसीलिए आचार्य जी से अनुमति लूँगा और निकल लूँगा।
तुम्हें ये समझ में हीं नहीं आ रहा कि ये लड़ाई एक-एक आदमी की है, ये लड़ाई धर्म-अधर्म की है। तुम मुझसे अनुमति क्या लेने जा रहे हो? तुम्हारी अपनी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है क्या? यह कोई प्राइवेट लिमिटेड काम है क्या? जहाँ पर हम जो काम कर रहे हैं उसका मुझे मुनाफ़ा मिलता हो? ये सार्वजनिक काम है, ये काम जितना मेरा है, उतना हीं तुम्हारा है। ये कोई ऐसा काम है क्या जिससे हमारी जेबें भर रही हैं? बोलो? तो ये क्यों कह रहे हो कि अगर आपकी अनुमति मिलेगी तो मैं फिर चला जाऊँगा, एक साल बाद आऊँगा। तुम नहीं कह रहे, पर अभी हाल में हुआ है। जाओ! तुम्हारी लड़ाई थी, तुम्हें नहीं लड़नी है मत लड़ो! आईने में अपनी शक्ल तुम्हें देखनी है। मैं तो हाँ बोल दूँगा। कोई मुझसे बोलता है, "काम नहीं करना है।" मेरी ओर से दो अक्षरों का जवाब जाता है 'ओके'। आरती (स्वयंसेवक) मैंने क्या बोला था? जैसे हीं तुमने बोला कि नहीं करूँगी क्या लिखता हूँ मैं? ओके! कोई बल्कि अगर ये बोलता है कि मैं ज़्यादा करना चाहता हूँ तो हो सकता है मैं फिर भी उसको रोक दूँ। मैं कहूँ कि "नहीं, अभी इतना कर रहे हो, इतना हीं बहुत है, इससे ज़्यादा करोगे तो तकलीफ़ हो जाएगी, टूट भी सकते हो, कम करो।" लेकिन जैसे ही कोई बोलता है न कि मुझे काम नहीं करना तो मैं बोलता हूँ- 'ओके' क्योंकि मेरा काम नहीं है, तुम्हारा काम था- व्यस्क हो। तुम्हें अपनी ज़िम्मेदारी नहीं दिखाई देती तो मत देखो। मैं होता कौन हूँ कि मैं तुमको धक्का दूँ, कि मजबूर करूँ, कि काम करो। तुम मेरे लिए काम कर रहे होते, तो मैं तुमसे कहता कि "देखो तुम मेरे लिए काम कर रहे हो, मैं मालिक हूँ तुम्हारा, मैं नियोक्ता हूँ तुम्हारा, मैं तुम्हें तनख्वाह देता हूँ, चलो काम करो।" मैं तुम्हें तनख्वाह भी कहाँ देता हूँ? यहाँ जो डोनेशन आता है, वो इस, एक काम करने के लिए आता है। उस डोनेशन का तुमको एक बहुत छोटा-सा हिस्सा मिल जाता है, वो जो हिस्सा भी तुम्हें मिल रहा है, वो इसलिए मिल रहा है ताकि तुम वो काम आगे बढ़ाओ। तो मैं थोड़े-हीं तुमको सैलरी दे रहा हूँ? तुम्हें सैलरी कौन दे रहा है जानते हो? तुम्हें सैलरी ये संसार दे रहा है, हमारे जितने डोनर्स हैं वो दे रहे हैं और वो तुमको इस भरोसे पर तनख्वाह दे रहे हैं कि तुम वो काम ईमानदारी से करोगे, जो तुम कर रहे हो। तुम्हें वो काम नहीं करना तो तुम जानो। मैंने तुम्हें कोई अपनी व्यक्तिगत संपत्ति थोड़े हीं दी है? आचार्य जी की जेब हीं कितनी बड़ी है? कि वो तुम्हें अपनी जेब से निकाल-निकाल कर देंगे। दुनिया तुम पर भरोसा करके तुम्हें पीछे से संसाधन दे रही है कि ये हम तुमको संसाधन दे रहे हैं 'अखिल निषाद'(प्रश्नकर्ता) और हमें लगता है कि आचार्य जी के वीडियो ज़रूरी हैं, दुनिया के सामने पहुँचने चाहिए, तू पहुँचा अखिल। लोग तुम पर भरोसा करके, इसलिए तुमको सैलरी देते हैं, मैं नहीं देता। अब तुम्हें उन लोगों का भरोसा रखना है रखो, तोड़ना है तोड़ो।
मैं हो सकता है यहाँ पर वरिष्ठता में, वरीयता में तुमसे ऊपर का हूँ। भाई, करनल होता है, मेजर होता है, हवलदार होता है लेकिन वो सब अपने आपको जानते हो क्या बोलते हैं? 'सोल्जर', सब सैनिक हैं। तुम्हें क्या लग रहा है सेना में 'सैनिक' नाम की कोई पदवी होती है क्या? सेना में कौन सैनिक है? सब सैनिक हैं- मैं भी सैनिक हूँ, तुम भी सैनिक हो। हाँ, हमारी 'डेजिग्नेशन्स' अलग-अलग हो सकती हैं पर 'सोल्जर' मैं भी हूँ 'सोल्जर' तुम भी हो। लड़ मैं भी रहा हूँ, लड़ना तुम्हें भी यही है। हो सकता है कि लड़ने में मैं तुमसे ज़्यादा माहिर हूँ, ज़्यादा अनुभवी हूँ, तो मैं एक तरीके से लडूंगा, मैं आगे रहकर लडूंगा। लेकिन बेटा लड़ना तो तुम्हें भी ठीक वैसे हीं जैसे मैं लड़ रहा हूँ-'सोल्जर टू सोल्जर'। तुम्हें लड़ाई नहीं लड़नी तो तुम जानो। ये मेरी व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है, मुझसे परमिशन मत लेना कि "मुझे अब काम करना है कि नहीं करना है?" तुमको मैंने कोई अपने किसी व्यक्तिगत, पर्सनल काम के लिए रखा है क्या? तुम यहाँ एक सार्वजनिक, वैश्विक काम कर रहे हो। तुम्हें अगर ये काम न करने की अनुमति चाहिए भी तो किससे लो? सबसे लो न। पूरी दुनिया को बताओ कि अब हम वो काम नहीं कर रहे। मत करो! ओके!
काम के व्यापक परिप्रेक्ष्य को समझो, 'द ब्रॉडर कॉन्टेक्स्ट'! तुम में से मेरे साथ बहुत देर तक, बहुत दूर तक वही लोग चल पाएँगे, जो मुझसे बहुत ज़्यादा आसक्त नहीं होंगे, जो मेरी और देखने की जगह दुश्मन की ओर देख रहे होंगे। भूलना नहीं की तुम किसी 'प्रशांत' के लिए काम नहीं कर रहे हो, तुम पूरी दुनिया के लिए काम कर रहे हो। वो काम करने में, हम और तुम भागीदार हैं, साथ साथ हैं, फेलो-सोल्जर्स हैं। तुम वीडियो बनाते हो, कभी उनके नीचे जो कॉमेंट्स आते हैं उनको पढ़ते हो? तुम्हारे भीतर कोई गौरव नहीं उठता? जब तुम पढ़ते हो- लोग कहते हैं कि मैंने माँस खाना छोड़ दिया है, मैं आत्महत्या करने जा रहा था अब नहीं करूँगा। रोज़ दर्जनों लोग हैं जो तुमको ये बता रहे हैं- ये है हमारा काम। कितने लोगों को तुम रोज़ मरने से बचा रहे हो, ये मैं इंसानों की बात कर रहा हूँ और कितने जानवर हैं जो हमारी वजह से नहीं कट रहे, शायद लाखों में ऐसे जानवर हैं और पेड़ों को गिनो तो पेड़ कितने हैं और ये गिनो कि कितने लोग हैं जो अपनी जिंदगी में गलत निर्णय लेने जा रहे थे लेकिन हमारे काम की वजह से बच गये, उनको देखो। उन लोगों से अनुमति माँगो न कि अब मुझे काम नहीं करना है। एक आदमी है जो तैयार खड़ा है आत्महत्या करने के लिए उससे जाकर अनुमति माँगो कि मैं बचा तो सकता था तुझे मरने से, पर वो न... अब नहीं बचा रहा। एक वीडियो है जिस पर अगर तुम पब्लिश बटन दबा देते तो हो सकता है कि वो वीडियो पता नहीं कितने जानें बचा देता। तुमने नहीं दबाया, तुम सो गये और साढ़े सात बजे तुमने अपॉलिजी लिखकर भेज दी जैसे वो महाराज (एक स्वयंसेवक की तरफ़ ईशारा करते हुए) भेजते हैं रोज़ "कि नहीं, वो मैं टाइम नहीं मैनेज कर पाया इसलिए मैंने पब्लिश नहीं किया" और जो तुमने पब्लिश नहीं किया उसकी वजह से जो पूरी दुनिया को नुकसान हुआ है, दुनिया को भी अपॉलिजी भेज दो न।
इनको ये लग रहा है शायद कि वो वीडियो पब्लिश करके, वो मेरा कोई व्यक्तिगत काम कर रहे हैं कि आचार्य जी का वीडियो था, पब्लिश कर देते तो आचार्य जी की कीर्ति बढ़ती, आचार्य जी का नाम होता। तो अगर मुझे माफ़ी मांगनी है तो किस से मांगूगा? आचार्य जी से। कल को आचार्य जी मर भी जाएँ तो ये वीडियो भी मर जाएँगे? अगर मैंने ये अपने निजी मुनाफ़े के लिए बनाए होते तो फिर तो ऐसा भी होता न कि मैं गया तो ये भी गए अब, मेरे बाद क्यों इनसे किसी को फायदा हो? ये पूरी दुनिया का काम है और ये काम करने में जो लोग बेईमानी करते हैं वो पूरी दुनिया के साथ बेईमानी कर रहे हैं। पर न तो तुम समझना चाहते हो कि क्लाइमेट चेंज क्या है? न तुम समझना चाहते हो कि इंसान की एक-एक गंदी हरकत उसकी मन की गंदगी से आती है। न तुम ये समझना चाहते हो कि धर्म का पतन क्यों हो रहा है? न तुम ये समझना चाहते हो कि धार्मिकता और संप्रदायवाद में अंतर क्या है? न तुम ये समझना चाहते हो कि आदमी का मूल बंधन कहाँ से आता है? हमारी मौलिक गुलामी क्या है? और तुम अगर ये सब समझो, दुनिया को देखा करो, दुनिया को पढ़ा करो, तो फिर तुमको एक नया सम्मान जगेगा अपने काम के प्रति। तब तुम कहोगे कि इस दुनिया में जो कुछ भी गलत है वो गलत इसलिए है क्योंकि आदमी का खोपड़ा गलत है और हम आदमी का खोपड़ा ठीक करने का काम कर रहे हैं। हमसे बेहतर, हमसे ऊँचा काम किसी का क्या हो सकता है? और हम जो काम कर रहे हैं उसके परिणाम हमको रोज़ देखने को मिलते हैं और जितने परिणाम तुमको देखने को मिलते हैं और उससे दस गुना और परिणाम हैं जो तुम्हें देखने को नहीं मिलते हैं क्योंकि हर आदमी जिसको बहुत-बहुत गहरा फायदा हुआ है तुम्हारे काम से, वो न तो तुमको फोन करता है और न हीं कमेंट करता है, न हीं मेल लिखता है पर लाखों है जिन्हें रोज़ फायदा हो रहा है और वो चुपचाप तुम्हें बस धन्यवाद अर्पित कर देते हैं- 'मौन अनुग्रह'। ये सब बातें दिखाई नहीं देती? तुम्हारा काम बस इतना है? कि मैं तो यहाँ पब्लिश बटन दबाने के लिए हूँ। जहाँ पब्लिश बटन दबाते हो, पिछले एक महीने में जो वीडियो पब्लिश करे हैं उनकी ओर वापस जाकर देखा भी तो करो न कि उनसे कितनी ज़िंदगियाँ बदल गईं और हर वीडियो, एक अर्थ में अमर है- कि पब्लिश बटन लगने के बाद अब वो तुम्हारा और हमारा नहीं रह गया। कल को यूट्यूब, इंस्टाग्राम ये बंद भी हो जाएँ तो भी यकीन रखो कि कोई अच्छा वीडियो है तो उसको सैकड़ों-हजारों लोगों ने डाउनलोड कर रखा है। मान लो कुछ ऐसा हो जाए, चमत्कार! कि दुनिया की सारी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज़ भी खत्म हो जाएँ, तो भी वो जो तुम्हारा वीडियो है, वो लोगों के अब मन पर बैठ गया है। तो जो बात तुमने कही वो अमर हो गयी। तुम्हारा काम अमर है।
मैं इस पूरे काम में बहुत छोटी चीज़ हूँ। न मेरी तारीफें करो न मुझे गालियाँ दो। हमारे यहाँ दोनों काम होते हैं, जब तक तुम यहाँ अंदर हो तो तुम कहोगे, "आचार्य जी भगवान हैं! भगवान हैं! घंटा भगवान हैं? जिस दिन यहाँ से बाहर निकलोगे तुम हीं मेरे खिलाफ दुष्प्रचार करना शुरु कर दोगे, इधर-उधर की बातें बोलोगे, बताओगे "मैं न अंदर की बात जानता हूँ; खूफ़िया जानकारी दूँगा, एक साल रह कर आया हूँ- ये आचार्य न...हम्म!!!" भगवान से शैतान बनाने में तुम्हें दो मिनट नहीं लगते। अरे! न भगवान हूँ ,न शैतान हूँ, दुनिया जो चाहे समझे इंसान हूँ। और इस इंसान के साथ कंधे से कंधा मिलाकर के अगर काम कर सकते हो तो करो, बेकार में स्तुति गीत गाने से कुछ लाभ नहीं है। आ रही है बात समझ में?
अब समझ रहे हो मैं क्यों ये 'गुरु' वगैरह से थोड़ा-सा दूर हीं रहना चाहता हूँ। लड़ाई हो रही है मोर्चे पर, तो सैनिक का क्या काम है? कमांडर की आरती उतारे? बताओ तो? वो सामने दुश्मन है, वो गोलियाँ बरसा रहा है और यहाँ पूरी पलटन क्या कर रही है? "ओम जय कमांडर हरे।" और कमांडर साहब ऐसे तन कर खड़े हुए हैं- हाँ! हाँ! मैं हीं तो अवतार नया-नया उतरा हूँ, आओ! तो मुझे चिढ़ मचती है जब तुम मेरी तारीफ वगैरह करने लग जाते हो। कोई अपने काम को पीठ दिखाए और मेरे गुण गाए, ये बर्दाश्त नहीं होता मुझसे। मैं कौन हूँ? कल रहूँ न रहूँ क्या भरोसा? तुम्हारी निष्ठा तुम्हारे काम के लिए होनी चाहिए न?