मैं कोई आदर्श नहीं || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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मैं कोई आदर्श नहीं || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्न : आपने अपने जीवन में क्या किया था? हमें वही बता दीजिए, हम वही कर लेंगे।

वक्ता : प्रश्न पूँछा है मनीषा ने कि इधर-उधर की थ्योरी बताने की जगह सीधे-सीधे ये क्यों नहीं बता देते कि आपने क्या किया? हम भी वही कर लेंगे। *(*सब हँसतें है )

बात असली यह है कि इतना बोल क्यों रहे हो कि “अपनी आँखें खोलो, जीवन अपने विवेक में जियो”, बस यही बता दीजिये कि आपने क्या किया था, हम उसी की नक़ल कर लेंगे। और मैं ठीक इसलिए नहीं बताऊँगा क्योंकि मैंने बताया नहीं और तुम उसे एक और आदर्श के रूप में स्थापित कर लोगे, और इन आदर्शों ने ही तुम्हारी जान निकाल रखी है। पचास लोग तुम्हारे जीवन में पहले ही हैं जिन्होंने बता रखा है कि जीवन कैसे जीना चाहिए। वह तुम्हारे सामने खड़े हो गए हैं, निर्देश लेकर, आदर्श लेकर, मैं इक्यावनवाँ नहीं बनना चाहता इसलिए मैं बार-बार घुमा फिरा कर बात उसी बिंदु पर ले आऊँगा कि अपनी आँखें खोलो। मैं तुम्हारे सामने कोई बना बनाया रास्ता नहीं खोलने जा रहा। मैं तुमसे कह रहा हूँ कि जीवन आसमान की तरह है जिसमें रास्ते होते ही नहीं। पूरा उपलब्ध है, उड़ो। मैंने जो किया, वह मैंने किया, तुम मैं नहीं हो।

अब मन आदर्शों की तलाश में रहता है। अभी अखबार में आया था, अगले साल चुनाव हैं। “हमारा आदर्श है रामराज्य”। अब रामराज्य के लिए राम होने चाहिए पहले। इसमें कितना झंझट है, यह देखो। राम होने के लिए एक राक्षसनी होनी चाहिए, जिसकी नाक काटी जाए, आसमान में उड़ने वाला बन्दर होना चाहिए। एक राजा हो, जिसकी चार बीवियां हों और उनमें से एक बीवी ऐसी हो, जो जब राजा लड़ाई में जाए तो उसके रथ में ऊँगली डाले। और जब इतना सब कुछ रचा जाए तब राम पैदा हों और फिर रामराज्य आए। इतना तुम प्रबंध करो, तब राम पैदा होंगे और साहब कह रहे हैं, अगले साल राम राज्य दिलाएंगे, हमें वोट दे दो।

आदर्श! क्योंकि मन आदर्शों की तरफ भागता है। मन कहता है कि बस मैं यह जान लूँ कि किसी और ने क्या किया है और अपने जीवन को वैसा बना दूँ। कुछ नया करने की आवश्यकता कहाँ है? अतीत में जो कुछ हुआ है, दौहराते चलो। और तुम्हें बड़ा मज़ा आता है, यह बोलने में कि वह मेरा रोल मॉडल है। और तुम यह नहीं देखते कि रोल मॉडल बनाते ही तुमने जीवन का नाश कर दिया। तुम अब कह रहे हो कि मेरा जीवन उसके ढर्रे पर चलेगा। तुम कहते हो मेरा जीवन बुद्ध जैसा हो। और बुद्ध का जीवन किसके जैसा था? बुद्ध, बुद्ध इसलिए हैं क्योंकि उनका जीवन किसी के जैसा नहीं था, अपने जैसा था। पर तुम कहते हो कि मेरा जीवन बुद्ध जैसा हो। तुम देख नहीं रहे हो इसमें कितनी बड़ी भूल है।

मत पूछो किसी और से कि तुमने क्या-क्या किया क्योंकि ज़िन्दगी जीने के लाखों पूरी तरीके से सही रास्ते हैं। तुम्हारा रास्ता बस तुम्हारा हो सकता है। पर वह तुम्हें आता नहीं। अभी-अभी कुछ ही समय में कैंपस में दौर चलेगा नौकरियों का। एक कंपनी आएगी और उसमें कई सौ आवेदन होंगे। और मैं तुमसे जानना चाहता हूँ कि अगर तुम सब वाकई इंडिविजुअल्स हो, तो ढाई सौ लोग एक ही जैसे काम में उत्सुक कैसे हो सकते हैं? क्योंकि तुमने आदर्श बना रखे हैं। आदर्श एक से हो सकते हैं। ढाईसौ लोग हैं, ढाईसौ लोगों का आदर्श एक ही है और वह आदर्श समाज ने तुम्हें दे दिया है कि जीवन ऐसा होना चाहिए। कि जीवन होना चाहिए कि जैसे कोई नौकरी है सॉफ्टवेयर सेक्टर में, उसमें यह करते हो, वह करते हो, इतनी तनख्वा पाते हो, फिर एक फ्लैट लेते हो, बीवी आ जाती है, गाड़ी आ जाती है, बच्चे हो जाते हैं और तुम मर जाते हो। यह आदर्श है! तो आदर्श एक जैसा हो सकता है और आदर्श तुम्हारी निजता को, इंडिविजुलिटी को पूरी तरह से ख़त्म कर देता है। अब तुम भेड़ बन गए। तो ढाई सौ भेड़ें चली हैं।

किसी से भी यह जानना कि अपने जीवन का हाल सुनाओ, एक कहानी तक ठीक है। पर जैसी ही वह एक आदर्श बनने लग जाए, एक लक्षय बनने लग जाए, चूक हो गयी, भुगतना पड़ेगा।

श्रोता : सर, ज़रूरी थोड़े ही है कि जो हम सुनेंगे उसे हम अपना आदर्श बना लेंगे।

वक्ता : तो फिर मैं बताऊँ क्यों? मतलब यह कि मैं कुछ बोलूँगा और तुम निर्णय करोगे कि इसे लेना है या नहीं। मतलब बड़े तो तुम ही हुए ना? तुम्हारा विवेक ही बड़ा हुआ। जब विवेक ही बड़ा है, तो खुद ही जान लो कि कैसे जीवन जीना है। मुझसे पूछ ही क्यों रहे हो? पर यह सुनकर तुम्हें अफ़सोस ज़रूर होगा क्योंकि बचपन से ही पढ़ा तुमने यही है। कोई सज्जन आते हैं और कहते हैं कि मैंने जीवन गांधी के आदर्शों पर जिया है, तो तुम कहते हो बहुत बड़ी बात है। इसमें तुम्हारे आदर्श कहाँ हैं? यह तो गांधी के हैं। तुम्हारे कहाँ हैं? नहीं हमारे तो हैं ही नहीं, हम हैं ही नहीं।

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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