औरतों से मुझे जितनी शिक़ायत है, उतना ही उनको लेकर के दुःख भी है। उनको देखता हूँ, बहुत दुःख लगता है। और शिक़ायत इस बात की है कि वो अपने दुःख का कारण स्वयं हैं। भावना को वो अपना हथियार समझती हैं। देह को वो अपनी पूंजी समझती हैं। देह सजाएँगी, सँवारेंगी, भावनाओं पर चलेंगी और सोचती हैं कि, ‘हमने ये बड़ा तीर मार दिया!’ इन्हीं दो चीज़ों के कारण देह – देह माने तन, और भावना माने मन – इन्हीं दो के कारण वो इतिहास में लगातार पीछे रही हैं और ग़ुलाम रही हैं।
जबकि स्त्री को प्रकृति गत कुछ विशेषताएँ मिली हुई हैं, जो पुरुष के पास नहीं होती हैं। धैर्य स्त्री में ज़्यादा होता है, महत्वाकांक्षा स्त्री में कम होती है, ये बड़े गुण हैं। अगर स्त्री संयत रहे तो खुल कर उड़ सकती है, आसमान छू सकती है। पर वो इन्हीं दो की बंधक बन कर रह जाती है – तन की और मन की।