महाभारत पढ़ने का सही तरीका || महाभारत पर (2018)

Acharya Prashant

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महाभारत पढ़ने का सही तरीका || महाभारत पर (2018)

प्रश्नकर्ता: मेरा सवाल यह है कि गंगा तो नदी हैं, शांतनु ने उससे शादी कैसे कर ली?

आचार्य प्रशांत: ये असली सवाल है। बेटा, उस समय पर ऐसा चलता था। ऐसा ये नहीं चलता था कि लोग नदियों से शादी करते थे, चलता ये था कि जो वानरों की पूजा करते थे—प्रकृति की पूजा का रिवाज़ था—जो वानरों की पूजा करते थे, वो अपने-आपको नाम ही दे लेते थे कि, "हम हैं वानर।" तो हनुमान कोई वानर नहीं थे, हनुमान भी पुरुष ही थे। वो वानरों की पूजा करने वाले समुदाय से थे, वो वानरों की पूजा करने वाले कबीले से थे, तो वो अपने-आपको वानर बोलते थे।

इसी तरीके से अन्य जीवों की या कि पहाड़ों की जो पूजा करते थे, वो अपने-आपको नाग इत्यादि भी बोलते थे। गंगा के तट पर जो जातियाँ रहती थीं, वो अपने-आपको गंगा ही कहना शुरू कर देती थीं। तो गंगा एक स्त्री थी, गंगा नदी से शांतनु ने नहीं शादी करी थी। गंगा एक स्त्री थी जो गंगा तट पर रहती थी।

प्र२: महाभारत की कथाएँ तो ऐसा लगती हैं कि बिलकुल सरल बाते हैं, इन पर सवाल पूछने की कोई ज़रूरत ही नहीं, ये तो सब पता ही हैं। लेकिन भीतर से मुझे ये भी पता है कि मुझे कुछ नहीं पता, और कई बार तो, आचार्य जी, आपने ही अनुभव करवा दिया कि गीतों, कथाओं, दोहों इत्यादि की जो व्याख्याएँ मैं पहले सच मान बैठा था, उसकी असली व्याख्या जो आपने दी, कितने भिन्न तल की थी। लेकिन अहंकार फिर भी इतना प्रबल है कि सवाल पूछना ही मुश्किल है।

ऐसा भी नहीं कि सवाल मैं पूछना नहीं चाहता, लेकिन भीतर एक झूठी निश्चितता का भाव है कि मुझे ये भी पता है, वो भी पता है। ये निश्चितता मुझे सवाल पूछने नहीं देती। आपसे विनती है कि मैं कैसे और क्या होकर महाभारत की कथाओं का पाठ करूँ ताकि मैं भी अर्जुन की तरह अपने ज्वलंत प्रश्न पर पहुँच सकूँ?

आचार्य: वेदव्यास कह गए थे कि महाभारत जीवन के सामने एक समूचा आईना है; जो कुछ महाभारत में है, वही जीवन में है, और जो महाभारत में नहीं है, वो जीवन में नहीं पाया जाएगा। महाभारत तुम्हारे लिए तभी उपयोगी है जब तुम्हें महाभारत का एक-एक किरदार अपने जीवन में दिखाई दे। महाभारत इसलिए नहीं पढ़ाई जाती कि तुम्हें भीम, अर्जुन, दुर्योधन और द्रौपदी इत्यादि के बारे में कुछ ज्ञान हो जाए; महाभारत इसलिए नहीं है कि तुम उसे पढ़ो और उसमें पाओ कि वन हैं, पहाड़ हैं, नृत्य हैं, स्त्री हैं, पुरुष हैं, रँगरेलियाँ हैं और युद्ध हैं, और ये सब पढ़कर तुम्हारा मनोरंजन हो। महाभारत इसलिए है ताकि महाभारत की संगति में तुम अपने जीवन को साफ़ देख पाओ। जब साफ़-साफ़ देखोगे कि दुर्योधन बैठा है तुम्हारे भीतर, और भीम भी बैठा है तुम्हारे भीतर, और शकुनि भी है, और विदुर भी हैं, और भीष्म भी हैं, और धृतराष्ट्र भी हैं, और अर्जुन भी हैं और कृष्ण भी हैं, तब तुम्हें महाभारत प्रासंगिक लगेगी।

यह मत पूछो कि, "महाभारत को कैसे पढ़ूँ?" जो अपने जीवन को पढ़ रहा होगा, महाभारत उसे स्वयं ही प्रिय हो जाएगी। जीवन को पढ़ो।

प्र३: आचार्य जी, वेदव्यास ने मना क्यों नहीं किया संतान पैदा करने से?

आचार्य: संतान के होने में थोड़े ही कोई बुराई है, संतान को वेदों से ऊपर समझ लेने में बुराई है। संतान का पैदा होना प्रकृति का चक्र है, बच्चा पैदा करके कोई पाप थोड़े ही कर दिया किसी ने! पर तुम बच्चा पैदा करो, या घर में तुम्हारे कोई भी और हो, बच्चों के अतिरिक्त भी कोई अन्य सदस्य हो तुम्हारे घर में, और तुम उसको इतनी अहमियत दे दो कि उसके सामने राम को भूल जाओ, तब पाप हुआ है।

वेदव्यास ने कहा, “माँ बुला रही है, कह रही है कि बच्चे चाहिए। ले लो, पर उलझने की हमारी कोई तैयारी नहीं है। न हमें बच्चे चाहिए थे, न हमें बच्चे नहीं चाहिए। आज तक नहीं थे हमारे पास, हमें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था। आज तुम कह रहे हो तो बच्चे दिए देते हैं, हमें उससे भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। न हम पहले उलझे थे, न अब उलझे हैं। न हमने यही प्रतिज्ञा कर रखी थी कि बच्चे नहीं पैदा करेंगे और न हमने यही कर रखी है कि करेंगे, और पालेंगे और पोसेंगे। जब बच्चे नहीं थे, हम आनंद में थे; जब बच्चे हैं भी, हम आनंद में हैं। हम अचड़ों-पचड़ों में पड़ने वाले नहीं हैं, इनसे हमें दूर रखो।"

ब्रह्मचर्य यह नहीं है कि बच्चे नहीं पैदा किए, ब्रह्मचर्य यह है कि ब्रह्म सर्वोपरि है, सबसे ऊपर ब्रह्म है। नीचे बच्चे हों, ठीक है, नहीं हों, तो भी ठीक है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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