प्रश्नकर्ता: जैसे कि आपने कहा, जीवन ख़ुद एक घाव है, ‘महात्मा बुद्ध’ ने भी यही कहा कि जीवन दुख है। फिर ऐसे में सन्तान उत्पत्ति को हम कैसे जस्टिफाई (न्याय-सम्मत) कर सकते हैं?
आचार्य: मैं तो नहीं करता, पता नहीं कौन करता है।
प्र: कुछ उच्च चेतनाओं ने भी सन्तान उत्पत्ति क्यों की?
आचार्य: वो जाने भाई, शायद इस पहाड़ी को पता हो (संस्था के सदस्य), इससे पूछ लो, इसे करनी है। किसी ने सन्तान क्यों पैदा की ये तो वही बताए जो पैदा करने वाला हो (हँसते हुए)। न मैंने की है न मुझे करनी है तो मैं क्या बताऊँ। मेरे पास न करने का भी कोई कारण नहीं था। कोई ख़्याल आ रहा हो, आप उस ख़्याल पर अमल न करें तो आप बता पाएँगे न कि किस कारण से तुमने नहीं पैदा करे।
अरे! मुझे कभी विचार ही नहीं आया भई। कोई पूछे कि आप वो फ़लाने अन्धे कुएँ में अब तक क्यों नहीं गिरे? तो मैं जवाब क्या दूँ क्योंकि मुझे ऐसा कोई ख़्याल नहीं आया आज तक। पड़ोस के घर की छत पर वो सुनहरी बिल्ली घूम रही है, आचार्य जी आप उसको पकड़कर के कभी अपने बेडरूम में क्यों नहीं ले आए? क्योंकि मुझे ऐसा विचार ही नहीं आया।
मेरे पास ज़िन्दगी में करने को कुछ है और मेरी ज़िन्दगी उससे पूरी तरह भरी हुई है। और मेरे पास जो करने को जो है उससे मुझे सुख मिले, दुख मिले मैं उसे जानता हूँ वो सही है। तो मेरे पास ये सब करने का न विचार है, न समय है। कि किसी को पकड़ो, उसको गर्भवती बनाओ फिर उसको जाकर अस्पताल में भर्ती कराओ। उसकी भी हालत ख़राब, तुम्हारी भी ख़राब। भय्या, मैं ये सब इसलिए नहीं बोल रहा हूँ कि आप बच्चे पैदा न करें, आप करिए शौक से। पर मुझे ये सब कार्यक्रम कभी बहुत रोचक लगा नहीं, हाउ एक्साइटिंग (कितना रोचक), पोतड़े बदल रहे।
किसी स्त्री की ज़िन्दगी को ही डायपर बना दो। वो बेचारी वैसे ही देहप्रधान ज़िन्दगी जीती है तुम उसको पूरा ही देह बना दो। ये सब मुझे बहुत रुचिकर लगा नहीं कभी तो मैंने।
अब रही बात कुछ और जिनकी आपने कहा ऊँची चेतना के लोग जिन्होंने बच्चे पैदा करे थे, कर दिए होंगे, बहुत कुछ हो जाता है। आदमी, आदमी है वो बेचारा क्या करेगा। लोग अलग होते हैं, समय, स्थितियाँ सब अलग-अलग होते हैं लेकिन कम-से-कम आज के समय में आप अगर किसी ऊँची चेतना के आदमी को, तथाकथित ऊँची चेतना के आदमी को बच्चे पैदा करने के कार्यक्रम में लगा देखें तो थोड़ा सतर्क हो जाइएगा। उसकी चेतना को दोबारा नापिएगा इंचटेप लेकर के, कितनी ऊँची है। अब प्रतिप्रश्न आएगा; ‘आचार्य जी, ऐसे तो फिर दुनिया का वजूद ही मिट जाएगा ना’।
मत मिटाने दो भाई दुनिया का वजूद, तुम बचा लो, तुम्हारे कन्धों पर और शरीर के बाकी अंगों पर ईश्वर ने बड़ी ज़िम्मेदारी छोड़ी है। तुम पैदा ही इसीलिए किए गये हो कि दुनिया का वजूद बचाओ। मुझे माफ़ करो और उन लोगों को माफ़ करो जो बेचारे थोड़े कमज़ोर हैं और दुनिया का वजूद नहीं बचा पाएँगे। तुममें है ताक़त कतई साँड जैसी, तुम मेहनत करके दिखाओ साँड वाली और दुनिया का वजूद बचाओ। क्योंकि यही आता है। और भी आते हैं, कहते हैं; ‘आप ही जैसे लोगों के कारण हिन्दुओं की तादाद घटती जा रही है’।
भाई, तादाद से नहीं होता! एक-सौ दस करोड़ हो और कितनी तादाद बढ़ाओगे। और जो तुमको एक-सौ दस करोड़ होकर नहीं मिला वो एक-सौ पचास करोड़ होकर कैसे मिल जाएगा? दुनिया में यहूदी कितने हैं और बोलबाला है उनका, तादाद से बोलबाला है? इज़राइल कितना बड़ा देश है, तुम्हारे दो जिलों के बराबर। बात तादाद की है, संख्या की है, जनसंख्या की है, विस्तार की है? बात गहराई की है, बात शक्ति की है। लेकिन तुम जानवरों की तरह गिनती गिनने में लगे हो। कह रहे, ‘ढाई-सौ करोड़ इसाई हैं, दो-सौ करोड़ मुसलमान हैं, हिंदू एक-सौ दस करोड़ ही हैं, हमें फैलना होगा’। क्या मूर्खों वाली बातें कर रहे हो; ये बुद्धि का युग है, ये विज्ञान का युग है। तुम क्या करना चाहते हो, तुम लड़ाई करना चाहते हो?
दस लाख की सेना को एक मिसाइल मिटा देगी, संख्या से क्या करोगे? बुद्धि बढ़ाओ, शक्ति बढ़ाओ, गहराई बढ़ाओ जीवन में, इसमें बल है; बच्चे बढ़ाने में बल नहीं है। कुछ समझ में आ रही है बात?
मैं नहीं कह रहा हूँ कि अपनी जनसंख्या मिटा दो, कुतर्क मत करना फ़ालतू के। मैं तुमको बस ये बता रहा हूँ कि जीवन में किस काम की वरीयता क्या होनी चाहिए। गहराई पहले आती है, विस्तार बाद में आता है। एक बुद्धिमान सौ मूर्खों पर भारी पड़ता है। कितने थे ब्रिटिश जब उन्होंने तुम्हारे पूरे अखंड भारत को जीत लिया, बताना? संख्या बल से जीता था?
वो छोटे-छोटे द्वीप, मेनलैंड यूरोप के भी पश्चिम में। वहाँ से चल रही है सेना, तब जब न बिजली है, न तकनीक है; वहाँ से वो आ रहे हैं। सोचो पहले तो आये कैसे होंगे, कहाँ से आ रहे हैं? सोच रहे हो, कहाँ से आ रहे हैं? वहाँ से आ रहे हैं और तुम्हारा इतना विशाल देश जीत ले जा रहे हैं। ये संख्या से हुआ था?
कुछ सीखो, इतिहास से कुछ सीखो। ज्ञान बढ़ाओ, गहराई बढ़ाओ, समझदारी बढ़ाओ। धन भी आ जाता है ज्ञान के पीछे-पीछे, इनको बढ़ाओ। पशुओं की तरह क्या, बच्चे पैदा करना; देखा है न जानवर कितने बच्चे पैदा करते हैं। हम पशु नहीं हैं, हम मनुष्य हैं, हमारी पहचान हमारी चेतना है, देह हमारी पहचान नहीं है। आपके एक औलाद हो ज्ञानवान, बुद्धिमान, बलवान वो पाँच कपूतों पर भारी पड़नी है।
एक बच्चा हो; लड़की, लड़का कोई भी। उसमें शील, संयम, मर्यादा, बल, प्रज्ञा विकसित करो। लाइन मत लगा दो। चिंटू, मिंटू, पिंटू, सिंटू, हिंटू, लंटू, झंटू, क्या है ये? और ये जितने पैदा करे हैं उन सब का अभाग! न तुम उन्हें ध्यान दे सकते, न शिक्षा दे सकते, न पोषण दे सकते, न सार्थक जीवन दे सकते, पैदा भर करे जा रहे हो।
किसी को घाव देकर के, मारकर के, किसी पर अत्याचार करके उसकी ज़िन्दगी ख़राब करना अपराध होता है न? वैसे ही किसी को पैदा कर दिया तुमने, पैदा करके तुम उसको व्यर्थ जीवन दे रहे हो, ये महा अपराध हुआ न? पैदा करने से पहले पाँच बार सोचा करो। मैं पैदा करने के विरुद्ध नहीं हूँ, मैं बच्चे को ग़लत जीवन देने के विरुद्ध हूँ।