माँस खाया, या पृथ्वी को ही खा गए? || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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माँस खाया, या पृथ्वी को ही खा गए? || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: पृथ्वी पर जो ज़मीन का क्षेत्र है उसमें से करीब आधे पर खेती होती है। यह जिस भाग पर खेती होती है हम उसके बारे में दो चार चीज़ें समझते हैं, जो कि बहुत रोचक है।

बहुत ध्यान से सुनिएगा। यह सोच कर इधर-उधर मत हो जाइएगा कि यह तो भूगोल पढ़ाने लग गए, विज्ञान पढ़ाने लग गए, नहीं। ध्यान देंगे तो आपकी पूरी रुचि आगे तक इसमें बनी रहेगी।

जानते हो धरती के जिस भाग पर खेती होती है, उसका कितना हिस्सा इंसानों के खाने के लिए अन्न उपजाने में उपयोग होता है? अपने सवाल को आसान बनाए देता हूँ — मान लो धरती पर कुल सौ वर्ग मीटर क्षेत्र है, हंड्रेड स्क्वायर मीटर एरिया है जिस पर खेती होती है, तो उस एरिया का कितना हिस्सा आदमियों के खाने के लिए अन्न पैदा करने के लिए इस्तेमाल होता है बताओ? अन्न या और दूसरी चीज़ें — साग, सब्जियाँ, फल सब, बताओ कितना?

तुम हैरान रह जाओगे। सिर्फ तेईस प्रतिशत। अब झटका लगेगा, कहोगे, अगर इतने बड़े क्षेत्र में खेती हो रही है, सौ वर्ग मीटर में तो उसका सिर्फ तेईस प्रतिशत दाल-चावल, ज्वार-बाजरा, सब्जियाँ-फल वगैरह उगाने के लिए इस्तेमाल हो रहा है। तो बाकी यह जो सतहत्तर स्क्वायर मीटर है इसका इस्तेमाल किस लिए हो रहा है?

मेरे साथ चलते रहो, सोचते भी रहो। दिमाग लगाओ, बताओ खेती हो रही है एक बड़े क्षेत्र में और आपको पता चलता है कि इस क्षेत्र में से बस जो तेईस प्रतिशत क्षेत्र है उसमें आदमियों के लिए खाना उपजाया जा रहा है, तो बाकी सतहत्तर प्रतिशत में जो पैदा किया जा रहा है वह किसके लिए है? वह किसके लिए है? वह जानवरों के लिए है। कौन से जानवर? जिनको तुम मार कर खाते हो।

कुल ज़मीन, जिस पर आदमी अन्न की पैदावार कर रहा है उसका सतहत्तर प्रतिशत माँसाहार के लिए कटने वाले जानवरों को भोजन देने के लिए इस्तेमाल होता है। मतलब यह है कि इंसान इतने ज़्यादा जानवर काट कर खा रहा है कि तीन-चौथाई से ज़्यादा खेती सिर्फ और सिर्फ उन जानवरों को अन्न देने के लिए होती है।

भई आपको भैंस काटकर खानी है, आपको बकरा काट कर खाना है, आपको मुर्गे काटने हैं, आपको भेड़ काटने हैं, आपको गाय काटने हैं, आपको सूअर काटने हैं, दुनिया भर के जानवर आपको काट-काट कर खाने हैं, और आपको लगता है कि, "मैंने तो जानवर खाया है।" नहीं साहब, आपने जानवर नहीं खाया है। वह जो जानवर है उसको आप खा सकें इसके लिए पहले उस जानवर ने ना जाने कितना अन्न खाया है, यह बात आपको समझ में नहीं आती।

लोग कहते हैं, "देखो मैं घास-पात नहीं खा रहा, मैं अगर घास-पात खाऊँगा तो पेड़ कटेंगे, मैं तो इसीलिए जानवर को खा लेता हूँ।" और उस जानवर ने क्या खाया है? वह जानवर अपने-आप ही बड़ा हो गया?

और अगर आप एक किलो अन्न खाते हैं तो आप बस एक किलो अन्न खाते हैं। आपने दाल-चावल-गेहूँ कुछ खा लिया, अपने पसंद का, और कितना खाया आपने? एक किलो। अब एक किलो खाया, तो एक ही किलो खाया। लेकिन अगर आपने एक किलो माँस खाया तो जानते हो उसके लिए तुमने कितना अन्न खाया? एक किलो माँस खाने के लिए तुम दस से बीस किलो अन्न पहले उस जानवर को खिलाते हो। जब जानवर दस से बीस किलो दाना खाता है तब उसका एक किलो माँस तैयार होता है।

तो जानवर को खाने वाले कृपया यह ना सोचें कि वह पेड़ों को बचा रहे हैं। अगर तुमने दाल-चावल खाया होता एक किलो तो एक ही किलो खाया लेकिन अगर तुमने एक किलो माँस खा लिया तो वह एक किलो माँस अपने शरीर में पैदा करने के लिए उस जानवर ने पहले दस से बीस किलो दाना खाया था। उसको इतना खिलाया गया था तब जाकर के उसका माँस पैदा हुआ था।

और माँस ही नहीं उस जानवर को बड़ा करने के लिए उस पर पानी की भी बहुत खपत हुई थी। और दुनिया में इस वक्त पानी की भी बहुत कमी है। तो आपके सामने माँस आता है तो आप सोचते हो यह सिर्फ माँस है। वह सिर्फ माँस नहीं है। बहुत ज़्यादा संसाधन लगे हैं तब जाकर वह एक किलो माँस तैयार हुआ है। और उतने संसाधनों में न जाने कितने गरीबों का पेट भर जाता।

इससे अब हम बात थोड़ा आगे बढ़ा लेते हैं। जानते हो यह जो सतहत्तर प्रतिशत एरिया इस्तेमाल हो रहा है, जानवरों को, माँस के लिए, खिलाने के लिए उससे आपकी कैलोरी की कुल आपूर्ति कितनी होती है? अट्ठारह प्रतिशत बस। जानते हो उससे आपके प्रोटीन की कुल आपूर्ति कितनी होती है? सैंतीस प्रतिशत बस। उलझ तो नहीं रहे हो आँकड़ों में? मैं बहुत ज़्यादा प्रतिशत वगैरह तो नहीं उछाल रहा हूँ?

देखो यह मेज है (अपने सामने रखी मेज की ओर इशारा करते हुए)। समझ लो इस पर तीन चौथाई से भी ज़्यादा क्षेत्र में क्या उगाया जा रहा है? भैंसों के लिए, बकरों के लिए, सूअरों के लिए, और पश्चिम में गाय बहुत काटकर खाई जाती हैं, उनके लिए दाना उगाया जा रहा है, कि इस दाने से उन जानवरों को खिलाएँगे ताकि फिर ला करके हम उनको काटें, ताकि माँसाहारी लोग मजे से स्वाद ले सकें माँस का।

और जितने दुनिया के शाकाहारी हैं वह जो बाकी एक चौथाई से कम माल है उसमें अपना काम चला ले रहे हैं। बल्कि उससे शाकाहारीयों का ही नहीं उससे माँसाहारियों का भी काम चल रहा है क्योंकि माँसाहारी सिर्फ माँस थोड़े ही खाते हैं, माँस के साथ-साथ तंदूरी भी तो चल रहा है, रोटी।

यह जो लेकिन सतहत्तर प्रतिशत क्षेत्र है इससे पूरी दुनिया को जो प्रोटीन मिल रहा है उसकी सिर्फ सैंतीस प्रतिशत सप्लाई हो रही है। हम कहते हैं न बार-बार कि माँस खाओ प्रोटीन के लिए, नहीं साहब। इतना सारा क्षेत्र लग रहा है कृषि योग्य भूमि का माँस उपजाने के लिए और उससे प्रोटीन कुल कितना मिल रहा है? सैंतीस प्रतिशत, माने तिरसठ प्रतिशत प्रोटीन आ कहाँ से रहा है? वो दालों से और चावलों से ही आ रहा है जबकि उनको तुमने ज़मीन बहुत कम दी है।

उनको तुमने इतनी कम ज़मीन दी है फिर भी सिर्फ तिरसठ प्रतिशत दुनिया के प्रोटीन की आपूर्ति वही कर रहे हैं और प्रोटीन-तो-प्रोटीन दुनिया के बयासी प्रतिशत कैलोरी की, ऊर्जा की, जिससे तुम काम करते हो, उसकी आपूर्ति हो रही है वह जो दाल-चावल तुम खाते हो उससे।

और बड़े स्वाद के साथ और बड़ी ऊँची-ऊँची मेडिकल बातों के साथ, कि, "देखिए साहब माँस खाएँगे तो एनर्जी (ऊर्जा) आएगी और प्रोटीन आएगा, कैलोरी आएगा, यह जो तुम माँस खाते हो इससे तुम्हें प्रोटीन भी बहुत कम मिल रहा है और तुम्हें कैलोरी भी बहुत कम मिल रही है। कम-से-कम जितना क्षेत्र ये खा रहा है, अपने को उपजाने के लिए, उसकी तुलना में तो बहुत ही कम मिल रही है।

कृषि का जितना क्षेत्र की खपत हो जा रही है जानवरों के लिए चारा वगैरह उपजाने में और जानवरों के लिए अन्न उपजाने में उसकी तुलना में, उन जानवरों के माँस से जो प्रोटीन और ऊर्जा मिल रही है वह बहुत कम है।

YouTube Link: https://www.youtube.com/watch?v=oaGWZZ8kk_c

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