माँस के डब्बे के पीछे की कहानी नहीं जानते? || आचार्य प्रशांत (2019)

Acharya Prashant

2 min
52 reads

आचार्य प्रशांत: सौ साल पहले अगर आप माँस खाते थे तो आपको दिखाई पड़ता था कि जानवर का वध किया जा रहा है और जानवर खड़ा है, गला कट रहा है, वो चीत्कार कर रहा है, खून बह रहा है, पंख नोचे जा रहे हैं या हड्डियाँ हटायी जा रही हैं, ये सब दिखता था। अभी बहुत सुन्दर डब्बा आ जाता है पैकेज्ड मीट का और वो आप ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं। और नयी-नयी स्टार्टअप्स (नव-उद्योग) निकल रही हैं, जो आपको ऑनलाइन पैकेज्ड मीट देती हैं और वो बड़ा सुन्दर लगता है।

पीछे की बर्बरता छुपा दी गयी, पहले दिखती तो थी, कोई मारा जा रहा है, वध हो रहा है। अब तो चाहे तुम जूते का डब्बा मँगाओ या माँस का डब्बा वो एक-से ही दिखते हैं। बहुत साफ़-सुथरा मामला होगा, बड़ी सुव्यवस्थित दुकान होगी उस पर लिखा होगा — फ्राइड चिकन। और वहाँ साफ़ कपड़ों में वेटर आदि कर्मचारी घूम रहे होंगे, एयरकंडीशनिंग चल रही होगी, बढ़िया रोशनी होगी, संगीत भी चल रहा होगा, साफ़-सुथरे, सजे-सँवरे लोग होएँगे। उसमें कहीं ये प्रकट है कि असली धन्धा क्या है? कहीं प्रकट है? आपको ख्याल भी आता है उस वक्त क्या?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories