माँ के गर्भ को, और जन्म लेने को, दुःख क्यों माना गया? || आचार्य प्रशांत, आचार्य शंकर पर (2019)

Acharya Prashant

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माँ के गर्भ को, और जन्म लेने को, दुःख क्यों माना गया? || आचार्य प्रशांत, आचार्य शंकर पर (2019)

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननीजठरे शयनम्। इह संसारे बहुदुस्तारे कृपयापारे पाहि मुरारे।।

हे परमपूज्य परमात्मा! मुझे अपनी शरण में ले लो। मैं इस जन्म और मृत्यु के चक्कर से मुक्ति प्राप्त करना चाहता हूँ। मुझे इस संसार रूपी विशाल समुद्र को पार करने की शक्ति दो ईश्वर।

~ भज गोविंदम, श्लोक संख्या २१

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, भज गोविन्दम में ही एक और श्लोक है जिसमें कहते हैं

आचार्य प्रशान्त: है यहाँ पर?

प्र: हाँ, इक्कीसवाँ श्लोक है पेज नौ पर। "पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननीजठरे शयनम्" तो यह जननी, जो वॉम्ब (गर्भ) की बात कर रहे हैं वो काव्यात्मक रूप से बता रहे हैं या?

आचार्य प्रशांत: दोनों तरीक़े से; अगर व्यक्तिगत तौर पर देखो तो माँ के गर्भ की बात हो रही है और अगर जीव के तौर पर देखो तो प्रकृति की बात हो रही है, माया की बात हो रही है।

अध्यात्म में जन्म लेने को कोई शुभ घटना या हर्ष की घटना नहीं माना जाता। अध्यात्म में इस बात को बड़े दुख के साथ देखा जाता है कि हाय! फिर जन्म लेना पड़ा। गर्भ में आने को अपमान समझा जाता है इसीलिए तो हमारे बड़े-बूढ़े पूरी कोशिश करते हैं कि हमें अध्यात्म की कोई भनक न मिलने पाए।

अध्यात्म में ये बड़ी असफलता मानी जाती है कि जीव संसार में आ जाए। वही बात यह श्लोक भी कह रहा है कि पैदा हुए, मरे, फिर गर्भ में आ गए। मुक्ति नहीं मिली न! फिर फँसे। और इतना ही नहीं है, यहाँ तो बस इतना ही कहा है कि — हाय! फिर से गर्भ में क्यों आ गएँ?

शिव गीता है, वह बड़े विस्तार से समझाती है कि गर्भ में जीव की कितनी नारकीय हालत होती है । बहुत श्लोक हैं उसमें, एक कतार में, जो यही कहते हैं कि बड़े पाप करे थे न, ले अब फिर गर्भ में मर। कह रहे हैं, वैसे तो ज़रा-सी दुर्गंध हो तो तुझे बहुत बुरी लगती थी न, अब गर्भ में क्या है, खुशबू है? सूंघ नौ महीने तक। वैसे तो तुझे कोई ज़रा-सा किसी कमरे में बंद कर दे तो तुझे बड़ी घुटन होती थी न, अब गर्भ में नौ महीने तक बंद रह। वैसे तो तुझे बहुत वातानुकूलित तापमान चाहिए होता था न, अठारह डिग्री बीस डिग्री; गर्भ में कितना तापमान है? जल! नौ महीने तक तू जल रहा है, सोच!

अब ये सब लिखने वाले की कल्पना ही है, पर इशारा समझो। इशारा यही है कि ये जो जन्म का, जीवन का और मृत्यु का खेल है इसी को बहुत मूल्यवान मत समझ लेना। असली चीज़ ये नहीं है कि तुमने शारीरिक रूप से जन्म लिया; असली चीज तब है जब तुम शरीर के पार निकल जाओ। शारीरिक रूप से अगर तुम्हारा जन्म हुआ भी है तो इसी उद्देश्य के लिए हुआ है कि तुम शरीर का उल्लंघन कर जाओ ।उसी को मुक्ति कहते हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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