'माँ' बोलकर शोषण? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2022)

Acharya Prashant

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'माँ' बोलकर शोषण? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2022)

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी। मैं मथुरा की हूँ। छः माह पहले आपका एक वीडियो फ़ेसबुक पर देखा और उसके बाद निरन्तर आपका आशीर्वाद मिलता रहा। मैं पिछले वेदान्त महोत्सव में आयी थी और उस समय वीगनिज़्म (शुद्ध शाकाहार) पर आपके विचार सुनें। आपकी पुस्तक ‘जाका गला तुम काटिहो’ की प्रतियाँ लेकर गयी, ख़ुद भी पढ़ी और बाँटी भी।

जब अपने शहर मथुरा गयी और वहाँ की स्थिति देखी तो बहुत वेदना उठी। गौवंश सड़कों पर घूम रहे हैं। देसी घी में बने व्यंजन वहाँ की प्रतिष्ठा का प्रतीक हैं और भगवान का प्रसाद माने जाते हैं। एक तरफ़ दूध-दही, घी के व्यंजन हैं और दूसरी तरफ़ रेस्टोरेंट के कूड़े के ढेर पर हज़ारों बूढ़ी गाय और साँड पॉलिथीन और जूठन खाते रहते हैं। मथुरा का पेड़ा विश्व-प्रसिद्ध है जो हज़ारों लोगों द्वारा खरीदा जाता है। गोवर्धन में गिरिराज जी की इक्कीस किलोमीटर की परिक्रमा व अभिषेक दूध से किया जाता है। यहाँ तक कि यमुना जी का अभिषेक भी दूध से किया जाता है।

आचार्य जी, चारों तरफ़ रोज़ाना ये दृश्य देखती हूँ तो बहुत व्यथित होती हूँ। मैंने अपनी ओर से कुछ कहने का प्रयास किया तो मुझे मूर्ख, घटिया, अधर्मी औरत जैसे शब्द सुनायें और कहा कि आप वामपन्थी हैं, आप सोयाबीन का व्यापार बढ़ाना चाहते हैं, ग्वालों को नष्ट करना चाहते हैं, श्रीकृष्ण के विरुद्ध बातें करते हैं।

कुछ ने कहा कि गाय के बछड़े को सिर्फ़ बारह दिन तक दूध की ज़रूरत होती है, उसके बाद वो चारा खा सकता है। ज़्यादा दूध पीने से बछड़ा बीमार हो जाता है, सुस्त हो जाता है। यहाँ तक कि आपके लिए अपशब्द कहे जो कि मेरी सुनने की सामर्थ्य से बाहर थे। कहा गया कि आप उपनिषद् की बातें करते हैं तो बताएँ बिना घी के कैसे यज्ञ और हवन होगा।

आचार्य जी, चारों तरफ़ मथुरा में और व्रज क्षेत्रों में इस तरह दूध का उत्पादन और उपभोग किया जा रहा है और गाय-भैंसों का शोषण हो रहा है। कोई भी कुछ भी सुनने-समझने को तैयार नहीं है। इस पर आप थोड़ा मार्गदर्शन करें। धन्यवाद।

आचार्य प्रशांत: माँ का दूध पीने में क्या बुराई हो सकती है? बिलकुल कुछ नहीं। गाय अगर माँ है तो बिलकुल उसका दूध पीजिए। और अगर उसका दूध पी रहे हैं तो उसको बिलकुल वैसा ही व्यवहार और स्थान दीजिए जो माँ को दिया जाता है। श्रीकृष्ण का जो सम्बन्ध था गाय से, अगर श्रीकृष्ण के नाम पर दूध पीना चाहते हैं तो वही सम्बन्ध रखिए।

ईमानदारी से दिल पर हाथ रखकर बताइए, आपका क्या सम्बन्ध है उस गाय से या भैंस से जिसका आप दूध पी रहे हैं? उसकी शक्ल भी देखी है आपने? कह रहे हैं कि माँ है, माँ की शक्ल भी नहीं देखी आज तक। ये जो इतने बछड़े पैदा होते हैं, इन्हें कौन खिलाएगा? कोई नहीं खिलाता। क्योंकि दूध का तो व्यापार है न और व्यापारी किसी को मुफ़्त में क्यों खिलाएगा। जो बछड़ा पैदा होता है, उसका क्या होता है? वो बेच दिया जाता है, वो कटता है, उसके ही माँस का निर्यात होता है।

गाय यदि माँ है तो बछड़ा कौन है आपका? भाई है। कैसे भाई हैं आप कि अपने बछड़े को कटने देते हैं! बिलकुल जो सम्बन्ध आपका अपनी जन्मदायिनी माँ से है, प्राकृतिक माँ से है, शारीरिक माँ से है वही सम्बन्ध गाय से रखिए, फिर मुझे कोई आपत्ति नहीं है। बिलकुल वैसा ही सम्बन्ध रखिए। जैसे माँ का चरण स्पर्श करते हैं, जैसे माँ को बिलकुल सहेजकर रखते हैं वैसे ही रखिए। फिर उस भैंस को भी जिसका आप दूध पीते हैं, क्योंकि दूध तो गाय से ज़्यादा भैंस का चलता है। भैंस को घर लाइए, भैंस को बिस्तर पर सुलाइए, भैंस से बिलकुल वैसा ही आत्मीयता का रिश्ता रखिए जैसा माँ से रखा जाता है फिर कोई बुराई नहीं है।

पर वो रिश्ता नहीं है और आप उसका दूध निकाले ले रहे हैं तो ये शोषण है, बिलकुल है। और आपको भी पता है कि ये निरी क्रूरता और शोषण है। जो पी रहे हैं, उनको भी पता है। और वो जो उसका पड़वा कट रहा है, आप जानते हैं भली-भाँति कि कट रहा है। जो पी रहे हैं दूध, उनसे बस इतना पूछिए न कि भारत दुनिया में बीफ़ (गाय का माँस) का सबसे बड़ा निर्यातक कैसे है? बस इतना बता दीजिए। वो कहाँ से आया सारा भैंस का माँस या गौवंश का माँस कहाँ से आया, कहाँ से आया? वो दूध से आया।

पीजिए दूध, दूध पीने में क्या बुराई है! पीजिए दूध। माँ का दूध पीजिए। ऐसा भी होता है कि माँ का दूध पिया और माँ जब बूढ़ी हो गयी तो उसका माँस काटकर निर्यात कर दिया? ऐसा भी करते हैं क्या? गाय का दूध पीने में, माँ का दूध पीने में कोई बुराई नहीं, पर फिर जिस भैंस का दूध आपने पिया, वो कटी क्यों?

आपका शरीर है, आप कुछ भी पी सकते हैं। मुझे कोई समस्या नहीं है कि आप अपने शरीर में क्या डाल रहे हैं; आपको दूध डालना है आप दूध डालिए, आपको ज़हर डालना है आप ज़हर डालिए। मुझे समस्या ये है कि उस गाय या उस भैंस के साथ क्या हो रहा है जिसका आपने दूध तो पी लिया और फिर कटवा डाला। मुझे ये बता दीजिए बस। मुझे समझा दीजिए कि भारत इतना माँस, इतना बीफ़ कैसे निर्यात करता है। मुझे ये बता दीजिए। पीजिए दूध, जितना दूध पीना हो पीजिए।

बस वो सबकुछ आपकी आँखों के सामने नहीं होता और आपकी ज़बान को लत लग चुकी है घी की और दूध, दही, रायते की तो आप कितने झूठे-झूठे और बेईमानी भरे तर्क देते हैं। दुनिया में कोई जीव, कोई स्तनधारी ऐसा है जो अतिरिक्त दूध पैदा करता हो, कोई है ऐसा? बस भैंस और गाय ही ऐसी हो जाएँगी कि उनके बच्चों को जितना चाहिए, उससे बीस गुना अधिक दूध पैदा करेंगी?

ऊँटनी ऐसा नहीं करती, शेरनी ऐसा नहीं करती, गधी ऐसा नहीं करती, कोई स्तनधारी ऐसा नहीं करता। मनुष्यों में भी स्त्रियाँ ऐसा नहीं करतीं। बस एक विशेष प्रजाति है गाय-भैंस की जो ऐसा करेगी कि जितना बछड़े को चाहिए, उससे दस गुना ज़्यादा पैदा करती हैं वो? और क्या तर्क निकाला है कि ज़्यादा दूध पी लेगा तो बीमार हो जाएगा न, क्योंकि गाय का दूध तो इंसान के लिए है, गाय का दूध बछड़े के लिए थोड़ी है, ग़ज़ब तर्क है!

कौनसी प्रजाति ऐसी है जिसका दूध उसके बच्चे के अलावा किसी और के लिए होता है? शेर का बच्चा गधी का दूध पिएगा? बता दीजिए। ऊँट का बच्चा घोड़ी का दूध पिएगा? तो आदमी का बच्चा भैंस का दूध क्यों पीता है? हम कह रहे हैं कि भैंस इतना दूध देती है कि उसके बच्चे की ज़रूरत से ज़्यादा है, लेकिन एक स्त्री जितना दूध बनाती है वो उसके बच्चे की ज़रूरत से कम है। वाह! वाह!

मनुष्य जितना दूध अपने शरीर से पैदा करता है माँ के रूप में, वो बच्चे की ज़रूरत से कम है। अच्छा, तभी तो हमें और पीना है! लेकिन भैंस जितना दूध पैदा करती है, वो बच्चे की ज़रूरत से बहुत ज़्यादा है। ग़ज़ब तर्क दिया है भाई! बेईमानी में पीएचडी करे हो?

प्र: आचार्य जी, वो ये कहते हैं कि हज़ारों साल से मनुष्य दूध पी रहा है तो हमारे छोड़ने से क्या हो जाएगा।

आचार्य: हज़ारों साल से क्या लाखों साल तक मनुष्य बिना चड्डी पहने घूमता था, तो? मनुष्य की विकास यात्रा पता है न कितनी लम्बी है। वस्त्र पहनना तो हमने अभी शुरू किया है कल-परसों, विकास यात्रा के सम्बन्ध में। दूध पीने वाली बात में ये तर्क कहाँ से आ गया? हज़ारों…!

हज़ारों साल कितना होता है? कुछ नहीं होता। हमारी विकास यात्रा करोड़ों साल पुरानी है। हम पहले निर्वस्त्र घूमते थे, भाषा भी नहीं थी। अगर इतिहास का ही हवाला देना है तो तब तो मोबाइल फ़ोन भी नहीं था, उसका भी मत इस्तेमाल करो। सबकुछ अतीत जैसा करना है, बस जो आधुनिक सुविधाएँ हैं उनके मज़े भी लेने हैं और जब अपने स्वार्थ पर आँच आये तो इतिहास को प्रमाण बना लेना है।

हज़ारों साल तक छोड़ दो, अभी सौ साल पहले ही मथुरा में बिजली भी नहीं थी, तुम ये कहाँ पंखा-वंखा चलाकर बैठ गये, एसी भी लगा रहे हो, बन्द करो। मथुरा-वृन्दावन में बिजली का क्या काम? वहाँ जब ग्वाले-ग्वालन घूमते थे तो ट्विटर और फ़ेसबुक चलाते थे और बिजली होती थी और पंखे होते थे और टीवी देखते थे? बन्द करो ये टीवी वगैरह सब। क्यों व्यर्थ के कुतर्क, बेकार की बात!

किसी से कुछ लेने का अधिकार तब होता है जब उसे समुचित अनुपात में दें भी। माता और शिशु का सम्बन्ध बहुत विशेष होता है, शिशु ले सकता है माँ से। आप भी ले लीजिए गाय से पर फिर ईमानदारी से उसको माँ का स्थान दीजिए। दे दीजिए बिलकुल वैसा ही जैसा आप अपनी माँ को देते हैं। वही स्थान फिर गाय को दीजिए फिर पी लीजिए उसका दूध। फिर बछड़े को भाई मानिएगा बिलकुल बराबर का।

प्र: आचार्य जी, हमारी समझ में तो आ गया, लेकिन और लोग नहीं समझते।

आचार्य: ठीक है…।

प्र२: प्रणाम आचार्य जी। पिछले वर्ष मैंने दूध का कारोबार शुरू किया था। शुरू करके छः महीने ही हुए थे जब मैंने आपका वीडियो देखा जिसमें आपने बताया था कि गाय का क्या हश्र होता है इस कारोबार में। साथ-ही-साथ पीपल फ़ार्म्स का भी वीडियो देखा था। उसके बाद मैंने इस कारोबार को आगे नहीं बढ़ाया। मेरे साथ इस काम में दस लोग, कम-से-कम चालीस किसान और मेरे ग्राहक जुड़े हुए हैं। मेरा प्रश्न है कि इस कारोबार को कैसे किसी ओर झुकाया जाए?

मैं किसान परिवार से हूँ। खेती में ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग (जैविक खेती) में गोबर का उपयोग होता है जो गाय-भैंसों से आता है। उर्वरकों का तो इस्तेमाल नहीं कर सकते, फिर गोबर के अलावा इस खेती में क्या इस्तेमाल करें? और हम गाय पालते हैं तो सिर्फ़ गोबर के लिए नहीं पाल सकते। आर्थिक नज़रिये से देखें तो इसमें बहुत हानि होगी। कृपया मार्गदर्शन करें।

आचार्य: अब ये सब बातें ख़ुद देख लो। तुम बिज़नेस कन्सल्टेन्सी (व्यावसायिक परामर्श) चाहते हो कि कुछ और? क्या होगा उन सब वेन्डर्स (विक्रेता) का, सप्लायर्स (आपूर्तिकर्ता) का, कस्टमर्स (ग्राहक) का, इतना तो ख़ुद देखना पड़ेगा न। अब कोई चोरों का गिरोह हो, उनमें से एक आकर बोले कि मैंने अगर चोरी छोड़ दी तो मेरा पूरा गिरोह बेरोज़गार हो जाएगा, तो आचार्य जी कृपया उनकी बेरोज़गारी का कोई उपाय बताइए।

देख लो भाई, कुछ भी कर लो, मेहनत कर लो, कुछ देख लो। किसी की हत्या का कारण बनने से तो कुछ भी बेहतर है न? कुछ भी देख लो। ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग में गोबर के अलावा कौनसा फ़र्टिलाइज़र यूज़ हो सकता है, ये तीस सेकंड का गूगल कर लो भाई। करें? अभी करके देख लेते हैं।

इसमें तो थोड़ी सी इच्छा-शक्ति चाहिए और गूगल चाहिए, इसमें मैं क्या बताऊँ? वैसे मुझे पता भी नहीं है, बताऊँगा कैसे? लेकिन कुछ-न-कुछ तो उपाय होता ही होगा बाबा, ऐसा थोड़े ही है कि ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग में गोबर नहीं डलेगा तो होगी ही नहीं। या कि गोबर सिर्फ़ उन्हीं गायों का और भैंसों का डल सकता है जिनको तुमने कृत्रिम गर्भाधान करके दूध देने के लिए ही पैदा किया हो।

भाई! उर्वरक के गुण तो और जानवरों के मल में भी होते होंगे, कुछ कम कुछ ज़्यादा। हम कयास लगा भी क्यों रहें हैं, गूगल किसलिए है? और इस क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं, उनके पास जाकर बैठो, वो बता देंगे। और ये कोई प्रश्न नहीं होता है कि अगर ये बन्द कर दिया तो रोज़गार का क्या होगा, उनका क्या होगा, फ़ार्मर्स का क्या होगा। गाय-भैंसों ने ठेका ले रखा है फ़ार्मर्स की अर्थव्यवस्था चलाये रहने का?

प्र२: आचार्य जी, इस पर मैंने एक उपाय सोचा था कि मतलब जैसे आपने कल बोला कि गायों को अगर माँ जैसा पाला जाए तो…।

आचार्य: ये उपाय नहीं होता है, ये प्रेम होता है। जब उपाय बना लेते हो उसको, तो धोखाधड़ी होता है। ये उपाय निकाला है मैंने दूध का कारोबार चलाये रखने का कि अब से मैं कहूँगा कि गाय मेरी माँ है। ये कोई उपाय वाली बात नहीं होती है। मेरी बात का दुरुपयोग मत करो! और वो बात मैंने व्यंग्य के तौर पर कही थी, क्योंकि वैसा तुम कर ही नहीं सकते, इसीलिए कहा था। वैसा तुम कर सकते होते तो सबसे पहले तुम उसको दुह कैसे रहे होते? अपनी माँ को दुहता है कोई? अपनी माँ को दुहने जाता है कोई? फिर? क्यों अपनेआप को झूठ बोल रहे हो?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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