क्यों अपना वैभव भूले बैठे हो? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

Acharya Prashant

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क्यों अपना वैभव भूले बैठे हो? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

वक्ता: प्रश्न है कि कभी-कभी समस्या इतना बड़ा रूप ले लेती है कि बड़ा तनाव हो जाता है, उससे बाहर कैसे निकालें अपने आप को? अश्विनी दो विकल्प दे रहा हूँ, पहला कि समस्या से अपने आप को बाहर कैसे निकालें और दूसरा यह कि समस्या पैदा ही न हो। कौन सा बेहतर है?

सभी श्रोतागण: समस्या पैदा ही न हो ।

वक्ता: तो पहले की ही बात करें? फिर दूसरे पर भी आ जायेंगे। क्यों आते हो तनाव में? क्यों उठता है डर? तनाव की, डर की प्रक्रिया को समझा है? उसकी जड़ तक गए हो? डर कहाँ से आया? डर का अनुभव कैसे हुआ? तनाव में क्यों आ गया मन?

श्रोता: कुछ खो जाने का डर।

वक्ता: हाँ, डर है मन में कि कुछ खो जाएगा। मात्र यही डर है कि कुछ खो जायेगा। तनाव है कि मन के दो हिस्से हो गए जो विपरीत दिशा में भाग रहे हैं। खिंचाव। कुछ इधर जाना चाहता है और कुछ उधर जाना चाहता है। डर और तनाव दोनों ही जुड़ी हुई बातें हैं, एक को समझ लिया, तो दूसरे को भी समझ जाओगे। एक कहानी से शुरू करते हैं।

एक राजा था, बहादुर, निडर। मस्त रहता था, खूब उसके यार दोस्त, सबसे उसका प्रेम। अड़ोसी-पड़ोसी राज्य उससे बहुत जलते थे, अक्सर जो लोग मस्त होते हैं, उनसे लोग जलने लगते हैं क्योंकि चाहते वो भी हैं कि काश हम भी ऐसे ही मस्त हो पाते। पर वो मस्ती उनको भी उपलब्ध होती नहीं है, तो वो जलन का रूप ले लेती है। तो लोग जलने लगे। उन्होंने बड़ी कोशिश की कि इसको हरा दें, इसका राज्य हड़प लें, पर इसकी मौज कोई फर्क नहीं ला पाये। अक्सर तो वो लड़ाईयों में हारता नहीं, और जब कभी हार भी जाता तो यह पाया जाता कि हार कर भी इसकी मौज पर कोई अंतर पड़ा ही नहीं। इसके राज्य का नुकसान हो गया, इसके रूपये-पैसे का नुकसान हो गया, इसकी सेना का नुकसान हो गया पर फिर भी इसकी मौज पर कोई अंतर नहीं पड़ा। लोग बड़े परेशान हो गए कि हम कुछ भी करें, यह मस्त ही है। उन्होंने एक आख़िरी चाल चली। उन्होंने एक जादूगर को बुलाया और कहा कि कुछ करो। जादूगर ने कहा कि बड़ा आसान है। यह पानी है, यह उसको पिला दीजिये। यह पानी पिलाते ही वो यह भूल जाएगा कि वो राजा है। राजा होते हुए भी वो यह भूल जायेगा कि वो राजा है, उसे लगने लगेगा कि वो एक भिखारी है। उसको वो पानी पिला दिया गया। जो काम दुनिया कि तमाम लड़ाईयाँ नहीं कर पाईं थीं, बड़े- बड़े सेना के बल नहीं कर पाये थे, वो काम उस पानी ने कर दिया। उस रात उसकी मौज चली गयी। वो चारों तरफ भटकने लगा और कहने लगा कि मैं भिखारी हूँ, मेरे पास कुछ नहीं है, मुझे कुछ दे दो। वो आदमी जिसका जब सब कुछ खो जाता था और वो तब भी मौज में रहता था, वही राजा अब सब कुछ होते हुए भी दर- दर भटकने लगा, उसकी मौज चली गयी। किसी से कह रहा है मुझे कुछ खाने को दे दो, किसी से कह रहा है मैं बड़ा दुखी हूँ, सुख दे दो। किसी से कह रहा है मैं बड़ा डरा हुआ हूँ, मुझे थोड़ी सी शांति मिल सकती है। भिखारी बन गया, है सब कुछ उसके पास।

उसके राज्य के लोग बड़े परेशान हुए कि ये क्या हो गया हमारे राजा को। एक ही तरीका था उनके पास कि उसको किसी तरीके से याद दिला दें। याद दिलाने में बड़ा समय लगा, तब तक राजा ने, जो अब भिखारी था, नए संबंध बना लिए। वो इधर-उधर दुकानों के सामने जाकर बैठने लगा और मांगने लगा कि दो-चार रोटी अगर बचें तो मेरी ओर फेंक दो। उसने भीख मांग कर कपडे ले लिए थे, उन कपड़ों को धारण करना शुरू कर दिया। उसने एक कटोरा हाथ में ले लिया। वो जिससे ही मिलता, उससे उसका संबंध गुलाम का रहता। वो सबसे यही कहता कि मैं तुम्हारा गुलाम हूँ और तुम मेरे मालिक हो। उसने अपने चारों तरफ पचास मालिक खड़े कर लिए थे। वो जिससे मिलता, यही कहता मालिक कुछ दे दो, मालिक कुछ दे दो। किसी से नौकरी मांगने लगता, किसी से ज्ञान मांगने लगता, किसी के पास जाता और कहता थोड़ा प्रेम दे दो उसकी भी बड़ी भूख है। कोई मुझे प्रेम दे दो, माँगता ही फिरता था।

लेकिन उसके दोस्तों की कोशिश से अचानक उसे याद आ गया कि मैं भिखारी नहीं, बादशाह हूँ। जैसे ही उसे याद आ गया कि मैं भिखारी नहीं हूँ, मैं बादशाह हूँ, उसकी मौज वापिस आ गयी, उसकी मस्ती वापिस आ गयी। और उसने अपने भिखारीपन में जितने भी संबंध बनाये थे, वो सारे संबंध पल भर में टूट गए। क्योंकि वो सारे संबंध डर के, और गुलामी के थे। उसकी गुलामी ख़त्म हो गयी। उसने कहा कि कोई मेरा मालिक नहीं, हाँ प्रेम का, दोस्ती का संबंध बनाना है तो आओ, स्वागत है। पर यह पुराना मैंने यह जो संसार रच रखा है, इस संसार की कोई कीमत नहीं क्योंकि इस संसार में मेरे सारे रिश्ते गुलामी के हैं। मैंने अगर प्रेम भी पाया है तो भीख में पाया है, मौज में नहीं।

वो राजा तुम हो, जो बादशाह होते हुए भी भूल गए हो कि तुम बादशाह हो। टीम अपने आप को भिखारी मान कर बैठे हो और डरते रहते हो कि आज भी कुछ और मिलेगा कि नहीं। डर! भिखारी सदा डरा रहेगा क्योंकि उसके इतने मालिक हैं न। उसके भीतर हमेशा अपूर्णता का भाव है कि मेरे हाथ खाली हैं। वो हमेशा डरा-डरा ही घूमेगा। और भिखारी हमेशा तनाव में भी रहेगा क्योंकि उसके एक नहीं, कई मालिक हैं। अलग-अलग मालिकों कि अलग मर्ज़ी हो सकती है, उसे अलग-अलग दिशाओं में जाना पड़ेगा, वो बंट जाएगा। उसका एक मालिक है परिवार जो कह रहा है इस तरफ चलो, उसका दूसरा मालिक है समाज, वो कह रहा है उस तरफ चलो। तीसरे मालिक हैं दोस्त, चौथा मालिक है मीडिया। उसके पचास मालिक हैं जो उसे पचास दिशाओं में खींच रहे हैं। और इन्हीं पचास दिशाओं में खिंचे होने का नाम है, तनाव। मैं जाऊँ किधर? इधर जाऊँ तो इसको बुरा लगता है, उधर जाऊँ तो उसको बुरा लगता है। किधर जाऊँ?

डर और तनाव स्पष्ट हो रहे हैं? डर और तनाव इस बात के लक्षण हैं कि कहीं पर कोई जादू कर दिया गया है। तुम्हारे भीतर यह बात भर दी गयी है कि भिखारी हो। तुमसे कह दिया गया है कि जब तक तुम कुछ बन नहीं जाते, तुम किसी लायक नहीं हो। तुमसे कह दिया गया है कि अगर प्यार भी पाना है तो पहले उसकी काबिलियत पैदा करो। तुमसे कह दिया गया है कि संसार एक दौड़ है जिसमें तुम्हें जीत कर दिखाना है। और अगर तुम जीतते नहीं हो, तो तुम्हारी कोई कीमत नहीं। तुमसे कहा गया है कि तुम खाली हाथ हो। जाओ, लूटो, पाओ, अर्जित करो। यही तो है भिखारी होना। यही जादू कर दिया गया है तुम्हारे साथ। यही पानी पिला दिया गया है तुम्हें। इसी कारण डरे-डरे घूमते हो।

मैं तुमसे कह रहा हूँ कि यह पानी तुम्हें बचपन से ही पिलाया जा रहा है और दसों दिशाओं से पिलाया जा रहा है। टी.वी. खोलते हो तो यही पानी पिलाया जा रहा है, अखबार पढ़ते हो तो यही पानी पिलाया जा रहा है, परिवार यही, शिक्षा यही, समाज यही। यह सब तुममें लगातार यही स्थापित कर रहे हैं, अधूरेपन का भाव। लगातार यही कहा जा रहा है कि कुछ खोट है तुममें। परिवार कह रहे है कि दूसरे को देखो, कितना ऊँचा और तुम कुछ नहीं। खोट है तुममें। मीडिया तुमसे कह रहा है कि अरे तुम्हारे चेहरे का रंग गाढ़ा है, खोट है तुममें। यह क्रीम लगाओ। सिनेमा तुमसे कह रहा है कि अरे इतनी उम्र हो गयी और कोई साथी नहीं मिला तुम्हें। कोई खोट हैं तुममें। शिक्षा तुमसे कह रही है कि अरे बस इतने प्रतिशत अंक ही पाये हैं, कुछ खोट है तुममें। जाओ और अंक पाओ।

हर ओर से तुम्हें संदेश लगातार यही दिया गया है कि तुम नाकाफ़ी हो। यही वो पानी है जो तुम पी रहे हो और तुमे इस पानी को ही अमृत मान रखा है।

तुम सोचते हो कि वो लोग जो तुमसे कहते हैं कि कुछ बन कर दिखाओ, वो तुम्हारे सबसे बड़े हितैषी है। नहीं, वो तुम्हारे सबसे बड़े दुश्मन हैं। क्योंकि ‘बन कर दिखाओ’ में यह भाव पहले आता है कि ‘मैं अभी कुछ नहीं हूँ’। वो लगातार तुमसे कह रहे हैं कि अभी तुम जैसे हो, बेकार हो, व्यर्थ हो। वो तुमसे कह रहे हैं कि भविष्य सुनहरा हो। पर भविष्य आता कब है? जीते तो हम सदा वर्त्तमान में हैं। चारों ओर तुम्हारे जादूगर ही बैठे हैं। वो कहते हैं-

बस एक ही उल्लू काफी था बर्बाद ऐ गुलिस्ताँ करने को,

हर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्ताँ क्या होगा?

यहाँ तो चारों तरफ जादूगर बैठे हैं। हर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्ताँ क्या होगा? गुलिस्ताँ तो उजड़ ही जाएगा, जैसे तुम उजड़े हुए बैठे हो। डर, तनाव। आक्रान्त हो, जैसे कोई तुम पर हमला कर देगा। आँखों में आनंद नहीं, बस एक दहशत की छाया है। दो शब्द तुमसे उठकार बोले नहीं जाते। एक-एक कदम उठाते हो तो सहमा हुआ। जीवन ऐसा ही नहीं है? मन में हमेशा बस यही विचार चलता रहता है कि मेरा कुछ बिगड़ सकता है। इसी कारण तुम गणित बैठते हो, चतुराई दिखाते हो। यह सब भिखारी होने के लक्षण हैं। मुझमें कोई कमी है, कोई दिक्कत है। फिर तुम बड़ी चालें चलते हो, तरकीबें चलते हो। तुम कहते हो कि मैं अच्छे कपड़े पहन लूँ, शायद इससे मेरा भिखारी होना छिप जाए। तुम कहते हो कि मेरी भाषा अच्छी हो जाए, शायद इससे यह बात छिप जाए कि मैं भिखारी हूँ। फिर तुम कहते हो कि मैं दस -बारह डिग्रियाँ अर्जित कर लूँ, फिर कोई नहीं कहेगा कि मैं भिखारी हूँ। पर यह सब कुछ करने के पीछे भाव यही है कि हूँ तो मैं भिखारी ही। छिपाने की कोशिश यही बताती है कि मान चुके हो कि तुम भिखारी हो अन्यथा तुम छिपाने की कोशिश क्यों करते। जो मानेगा कि उसमें कोई कमी है, वही तो उस कमी को छिपाएगा। तुमने छिपाने के पूरे इंतज़ाम कर रखे हैं। तुम नकली चहरे पहनते हो, तुम नकली बातें करते हो, यह सब क्या है?

डर और तनाव मूलतः इसी बात से निकलते हैं कि मेरा कुछ छिन सकता है। तुम कुछ भी कर लो, न डर से मुक्ति पाओगे, न तनाव से मुक्ति पाओगे, जब तक तुमने यह धारणा बाँध रखी है कि मेरा कुछ छिन सकता है, या कि मुझे बाहर से कुछ मिल सकता है। दोनों एक ही बात हैं। जब तक तुमने यह धारणा बांध रखी है, तब तक तुम्हें डर और तनाव से मुक्ति नहीं मिलेगी। अपने चारों तरफ की दुनिया को देखो, यह डरी, सहमी ही घूमती है क्योंकि सब ने यह बात बाँध रखी है कि मेरा कुछ छिन जाएगा या मुझे कुछ मिल जाएगा। कोई दूसरा है जो छीन सकता है और कोई दूसरा है जो मुझे कुछ दे सकता है। ये निर्भरता, ये पराश्रिता, ये हमेशा तुम्हें डर में रखेगी। तुम हँसोगे भी तो तुम्हारी हंसी डरी-डरी होगी। तुम मुस्कुराओगे भी तो शक्ल रुआंसी ही रहेगी। मस्ती नहीं मिलेगी, मौज नहीं मिलेगी, जैसे एक बच्चे की होती है। वो खिलखिलाता है मौज में। गा नहीं पाओगे, जैसे चिड़िया गाती है। तुम तो ऐसे गाओगे कि कोई दूसरा खुश हो जाए। अभी मैं कहूँ कि यहाँ आकर गाना गाओ तो तुम लगातार भीड़ की आँखों झाँक रहे होंगे कि कैसा लगा मेरा गाना। अरे, दो तालियाँ तो बजा दो। यही तो भीख है जो तुम मांग रहे हो। थोड़ी मान्यता दे दो, थोड़ी स्वीकृति दे दो कि मैं अच्छा हूँ, जैसे एक गाता हुआ भिखारी।

जो करो मौज में करो। सदा अपने आप को यही बताओ कि मेरा कुछ नहीं बिगड़ सकता। मैं लाखों बार गिरूँ तो भी मेरा कुछ नहीं बिगड़ सकता, लाख असफलताएं मिलें, तो भी मैं पूरा हूँ। मेरी कोशिशें लाख व्यर्थ गयीं, तो भी मैं छोटा नहीं हो गया। मेरे अतीत में कुछ विशेष नहीं है, तो भी मैं चमकता हुआ हीरा ही हूँ। जब इस भाव में जीयोगे, तब न डर रहेगा, न तनाव।

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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