क्या बोध तत्काल जागृत हो सकता है? || आचार्य प्रशांत, पिंगलागीता पर (2020)

Acharya Prashant

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क्या बोध तत्काल जागृत हो सकता है? || आचार्य प्रशांत, पिंगलागीता पर (2020)

आचार्य प्रशांत: तिरसठवाँ श्लोक उद्धृत किया है, पिंगलागीता से। भीष्म कहते हैं, युधिष्ठिर से - “राजन्! ब्राह्मण द्वारा कहे गए इन युक्तियुक्त वचनों से राजा सेनजित् का चित्त स्थिर हो गया। वे शोक छोड़कर सुखी हो गए और प्रसन्नतापूर्वक रहने लगे।”

तो कह रहे हैं प्रश्नकर्ता कि यहाँ तो ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे राजा ने ब्राह्मण की बात सुनी और एक ही बार में उनको सब समझ में आ गया। और राजा को ब्राह्मण की बात सुनकर आगे फिर साधना वगैरह की कोई ज़रूरत ही नहीं पड़ी। कृपया इस मर्म को स्पष्ट करिए, बोध क्या तत्काल भी जागृत हो सकता है?

ऐसा नहीं है। श्रवण अपनेआप में बहुत बड़ी साधना होती है। जानते हैं न, जैन पंथ में तो श्रावक ही कह देते हैं साधक को। सुनना कोई छोटी बात नहीं है। आपके प्रश्न का आधार यह है कि श्लोक बता रहा है कि राजा बहुत दुखी था क्योंकि उसके युवा पुत्र की मृत्यु हो गयी थी। ऐसी स्थिति में एक ब्राह्मण आता है और राजा को उपदेशित करता हैऔर समझाता है, क़रीब तीस-चालीस श्लोकों में कि जीवन का यथार्थ क्या है,आदमी क्यों भाग्य के झूले में झूलता, सुख-दुख भोगता है और फिर दुख से मुक्ति का साधन क्या है।

ये सब बातें ब्राह्मण बताता है। और ऐसी बातें, वो कुल दो-तीन दर्जन श्लोकों में बता देता है। और इन सब श्लोकों के बाद अंत में कहा गया है कि ये सब बातें सुनकर राजा शोक से मुक्त हो गए और प्रसन्नतापूर्वक रहने लगे। तो प्रश्नकर्ता को जिज्ञासा हो रही है, शंका हो रही है। कह रहे हैं कि ये क्या बात है कि राजा ने ना कोई साधना करी, ना तपस्या करी बस इतनी सी बातें सुनी और वो शोक से मुक्त हो गए, प्रसन्नतापूर्वक रहने लगे। ऐसा कैसे हो गया।

हमें समझना पड़ेगा। आपके सामने बस इतनी सी घटना लायी गयी है न? कि तीस श्लोक। उसके पहले और उसके बाद बहुत कुछ होता है। इतना आसान थोड़े ही है, कि कोई राजा जिसके युवा पुत्र की अभी मौत हुई हो, वो किसी ब्राह्मण के वचन सुनने ही लग जाए। और बहुत तरीक़े होते होते हैं, शोक से मुँह मोड़ने के। और बहुत तरीक़े होते हैं, ग़म ग़लत करने के। तो इस राजा ने पहले ही बहुत साधना कर रखी है कि शोक के मौक़े पर उसने शोक मिटाने के लिए सबसे पहलेएक सही उपाय चुना। उस सही उपाय का क्या नाम है? ब्राह्मण!

आप बात समझ रहे हैं?

ये सही उपाय हर कोई नहीं चुन पाता। क्योंकि शोक तो सबको होता है, दुखी कौन नहीं है? लेकिन देखा है न, हम अपने दुख से पीछा छुड़ाने के लिए, दुख को दबाने के लिए, कैसे-कैसे मूर्खतापूर्ण तरीक़े अख़्तियार कर लेते हैं राजा ये भी तो कर सकता था;, भई मैं राजा हूँ, मैं शिकार पर निकलूँगा या मैं राजा हूँ, सर्वश्रेष्ठ क़िस्म की शराब, सोमरस, मुझे परोसा जाए। या राजा ये भी तो कर सकता था किअपनेआप को, अपनी पाँच रानियों के साथ व्यस्त कर ले और कहे कि अब जाओ, राज्य की जो सबसे इस वक़्त अनुपम सुंदरी हो, उसको पकड़ के ले आओ, हम उसको भोगेंगे, क्योंकि हम बहुत तकलीफ़ में हैं। हमें अपना दुख दूर करना है। राजा ये भी तो कर सकता था कि मैं तकलीफ़ में हूँ तो प्रजा को भी तकलीफ़ दूँगा। कर बढ़ा दो, या पड़ोसी राज्य पर सेना छोड़ दो। कुछ भी कर सकता था राजा।

लेकिन उसने क्या करा? उसने एक ब्राह्मण से वार्ता करी। तो ऐसा राजा कोई पुराना साधक ही रहा होगा। ऐसा नहीं हुआ है कि अनायास किसी राजा की और किसी ब्राह्मण की चर्चा हो गई है, ब्राह्मण ने बीस-तीस श्लोकों में राजा का पूरा शोक हर लिया है। ऐसा अचानक नहीं हुआ करता।

ये ऐसी सी बात है कि आप मुझसे मिलने के लिए शिविर में आएँ। और शिविर में भी आएँ, आप मेरे पास तीन-चार दिन रहें और उसमें आप सवाल पूछें कुल एक। और वो आप एक सवाल पूछें और उसको सुनने के बाद आपकी आँखें नम हो जाएँ, आपका चित्त स्थिर हो जाए, मन शीतल हो जाए। और ये बात आप किसी से कहें तो उसको बड़ी हैरत हो, बड़ा अविश्वास हो।वो कहे, 'ये क्या बात है? तुमने एक प्रश्न पूछा। उन्होंने दस मिनट उसका उत्तर दिया। और तुम कह रहे हो कि इतने में ही तुम्हारा सब शंका-समाधान हो गया। तुम्हारा मन निर्मल और पावन हो गया। ऐसा कैसे हो सकता है कि दस ही मिनट में तुम्हारा सारा काम हो गया?'

तब आप कहेंगे, पागल! वो सत्र में आया ही इसीलिए, वो शिविर में आया ही इसीलिए क्योंकि पहले वो आचार्य जी के पाँच-सौ वीडियो देख चुका था। वो पुराना साधक है। ऐसा नहीं है कि इन दस मिनटों में ही कोई चमत्कार या जादू या कमाल हो गया है। वो पाँच-सौ वीडियो देख करके आ रहा है व्यक्ति। अभी तो उसको बस एक हल्के से स्पर्श की ज़रूरत थी। आचार्य जी ने वो स्पर्श दे दिया, उसका काम हो गया। ये समस्या का या स्थिति कापूर्व पक्ष है। माने ये इस वार्ता के पूर्व की, पहले की बात हुई कि साधना पहले से चल रही थी।

अब दूसरी बात समझिए। राजा ने अभी यहाँ भले ही कह दिया है कि मेरी सारी शंकाएँ हल हो गयी हैं और शोक मेरा अब दब गया है, लेकिन ऐसा नहीं है कि इस बातचीत के बाद राजा कोई साधना करेगा नहीं। इस बातचीत के बाद भी राजा ने निसंदेह सुनी हुई बातों का पालन किया होगा, पर वो बातें यहाँ श्लोक में वर्णित नहीं हैं। तो इसलिए हमको थोड़ा ताज्जुब हो रहा है। हमें लग रहा है कि अरे! बस इतने में काम कैसे हो सकता है? नहीं, इतने में काम नहीं होता।

श्रवण बहुत बड़ी बात है। पर श्रवण के बाद आता है मनन, फिर आता है निदिध्यासन, फिर आती है समाधि, तो वो सब भी निश्चित रूप से हुआ है। श्रवण के पूर्व में भी कुछ है, और श्रवण के पश्चात भी कुछ है। जो घटना आप देख पा रहे हैं, उस से पहले भी कुछ है, उसके बाद भी कुछ है। वो पूरी चीज़ जब आप देखेंगे तो तस्वीर ज़्यादा साफ़ होगी।

समझ रहे हैं बात को?

ये ऐसा ही है कि जैसे आप किसी को, किसी पहाड़ की चोटी पर देखें और आप कहें, बस इतनी सी चीज़! वो पहाड़ की कोई चोटी पर खड़ा हुआ है, इसके लिए उसको इतना श्रेय दे दिया। खड़ा ही तो हुआ है एक जगह पर। हम भी तो कहीं खड़े हुए हैं, खड़े होने में ऐसी क्या बात है। कोई अगर किसी पहाड़ की चोटी पर भी खड़ा है और उसकी तस्वीर लो तो दिखाई क्या देगा उसमें? एक आदमी किसी जगह पर खड़ा है तो आप कहेंगे, इसमें बड़ी बात क्या है? मुझे बताओ आचार्य जी! इसमें बड़ी बात क्या है? वो भी खड़ा है, हम भी खड़े हैं, बड़ी बात क्या है?

पागल! बड़ी बात उस तस्वीर से पहले है और उस तस्वीर के बाद है। उस तस्वीर से पहले उसने चढ़ाई करी है, ये बड़ी बात है और उस तस्वीर के बाद, वो पहाड़ से उतरेगा, वो बड़ी बात है। सिर्फ़ तस्वीर ही मत देखो, आगा-पीछा भी देखो, पूर्व-पश्चात भी देखो, फिर बात समझ में आएगी।

और इतना और समझ लीजिएगा कि सुनना छोटी बात नहीं है। वास्तव में सुन लेना छोटी बात नहीं है। श्रवण ही जो कर ले, वो भी तर जाएगा क्योंकि श्रवण अपनेआप साधना करा देता है। कैसे? श्रवण तक आने के लिए भी साधना करनी होगी, श्रवण से पूर्व और श्रवण अगर सच्चा है तो श्रवण के बाद भी साधना करनी होगी, श्रवण के पश्चात।

तो श्रवण को एक घटना मत मानिए। श्रवण अपनेआप में एक जीवन शैली हो गयी। श्रवण अपनेआप में साधना की एक लम्बी अवधि हो गयी। एक बहुत लम्बी अवधि है जिसमें से श्रवण आपको होता दिखाई देगा, बस तीस मिनट। जैसे कि कोई अस्पताल में रहे, दो महीने। और दो महीने में सर्जरी उसकी कितनी देर हुई थी? सर्जरी तो दो ही घंटे हुई थी। पर सर्जरी से दस दिन पहले भी वो अस्पताल में था और सर्जरी के बीस दिन बाद तक भी वो अस्पताल में था। आगा-पीछा भी है भाई बहुत बड़ा। ऐसा नहीं है कि बस वो दो ही घंटे का काम है। दस दिन पहले से उसका उपचार चल रहा था। और सर्जरी के बाद भी बीस दिन और उसका उपचार चला है। तब जाकर के स्वास्थ्य लाभ हुआ है पूरा। कोई ये ना कहे कि अरे! दो घंटे में ऐसा क्या कर दिया चमत्कार डॉक्टर ने कि ये बिलकुल ठीक हो गए नहीं! खेल लम्बा है। क्या बोध तत्काल भी जागृत हो सकता है?

नहीं, बिलकुल नहीं। बोध तत्काल जागृत नहीं हो सकता। किसी करिश्मे की उम्मीद में मत रहिएगा। मेहनत करनी पड़ेगी, लम्बा समय लगाना पड़ेगा। हाँ, लम्बा समय आपने लगा लिया है, तब बोध तत्काल जागृत हो जाएगा। पर वो बात बड़ी अजीब हुई न?

लम्बा समय लगा लिया है, फिर तत्काल जागृत हो रहा है। ये तो कोई बात ही नहीं हुई। इसका मतलब, तत्काल जागृत नहीं हो सकता।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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