प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, ये जो मान्यता है बच्चा पैदा करने की, ये प्रेम का एक प्रतीक भी माना गया है। जल्द ही वैलेंटाइन-डे भी आ रहा है, कृपया आप उस पर कुछ कहें।
आचार्य प्रशांत: (मैं) छोटा था, स्कूल के बाहर खड़ा था। वहाँ देखूँ एक गधा एक गधी को दौड़ाये हुए है। मुझे वह पूरा दृश्य बड़ा आकर्षक लगे कि ये होता क्या है। ये गधा, उस दूसरे गधे के पीछे जाता है ― बहुत छोटा था, पाँचवीं-छठी में रहा होऊँगा ― और जब ये पीछे वाला गधा आगे वाले गधे के पीछे जाता है तो इसका शरीर भी कुछ भिन्न आकार का हो जाता है।
तो ये हमारे स्कूल के सामने इस तरह का कभी-कभी मंज़र रहे, तो मेरा जो रिक्शेवाला था उसने मुझे टोका कई बार, बोले, 'क्या देख रहे हो? ये कोई देखने की चीज़ है? ये बच्चों के देखने की चीज़ नहीं है।' पर मुझे तो कौतूहल, मैं तो देखूँ, मैं कहूँ, ये करते क्या हैं? बहुत समय तक मुझे लगता रहा ये लड़ाई है, ये पीछे वाला, आगे वाले को चढ़कर के मार रहा है। फिर मुझे ताज्जुब ये हो कि आगे वाला फिर भाग क्यों नहीं रहा, पीछे वाला तो हिंसक है। ये साफ़ दिख रहा है, चढ़ा हुआ है, धक्का मार रहा है, पर आगे वाला भाग क्यों नहीं जाता, रुका क्यों है। फिर कुछ महीने बीते, गधू आ गया। वह जो आगे वाला गधा था उससे एक गधू आ गया।
तो जब तुम कह रहे हो कि ये बच्चा पैदा करना प्रेम का प्रतीक है तो मैं इसीलिए अवाक् हूँ कि कौन-सा प्रेम था उस गधेबाज़ी में, जिससे वह गधू पैदा हुआ था। दुनिया का हर गधा बच्चा पैदा करने में समर्थ है और पैदा कर भी रहा है। इसमें प्रेम कहाँ से आ गया? साँड़ों का, भैंसों का पूर्णकालिक पेशा ही एक है। फिर तो उनसे बड़ा प्रेमी कोई होगा ही नहीं?
तुम छोड़ो लैला-मजनू, सब्जी मंडी के साँड़ की पूजा करो। क्योंकि वह बड़ा निपुण है बच्चे पैदा करने में और तुम बता रहे हो ये बच्चे ही प्रेम का प्रतीक होते हैं। तो अब तो जितने भी मन्दिर दुनिया में प्रेम को समर्पित हों, सब में साँडों की और भैंसों की और उस विशिष्ट गधे की मूरत लगनी चाहिए, वही हैं सब 'प्रेम पुरुष।'
बच्चा पैदा करना प्रेम का प्रतीक है, अच्छा? हर जाड़े में हिन्दुस्तान की हर गली में न जाने कितने नन्हें-नन्हें पिल्ले (पाये जाते हैं) । हम तो वाकई में बड़ा प्रेमपूर्ण देश हैं, हमारी गली-गली में प्रेम है? तुम्हें दिख नहीं रहा है कि बच्चा आता है देह के देह से, रसायन के रसायन से, वीर्य से, अंडों से, संसर्ग से। उसमें प्रेम कहाँ है?
प्रेम का मतलब होता है तुम दूसरे की मुक्ति के लिए प्रयासरत हो।
प्रेम में तुम दूसरे को मुक्ति देते हो या गर्भ देते हो? ये कौन-सा प्रेम है जिसमें तुम दूसरे को परमात्मा नहीं देते, वीर्य देते हो। हमें तो हमारे सन्तों ने, महात्माओं ने जिनको हमने जाना और पूजा, उन्होंने ये बताया की जिससे प्यार करना उसको सत्य देना, मुक्ति देना और तुम बता रहे हो कि जिसको प्यार करना उसको वीर्य देना और गर्भ देना। ये कौन-सा प्रेम है भाई?
हाँ, माँ बनने से किसी को मुक्ति मिलती हो तो उसे तुम ज़रूर माँ बनाओ, बाप बनने से किसी को सत्य मिलता हो तो तुम उसे ज़रूर बाप बनाओ। पर ईमानदारी से बताना, कौन-सी ऐसी स्त्री है जिसको माँ बनकर मुक्ति मिल जाती है? कौन-सा ऐसा पुरुष हैं जो बाप बनकर भवसागर से तर जाता है? तो फिर माँ बनना, बाप बनना, बच्चे पैदा करना, ये प्रेम की बात कैसे हो गयी?
"प्रेम प्रेम सब कहैं, प्रेम न चीन्है कोय। जा मारग साहब मिलै, प्रेम कहावै सोय।" या जा मारग डायपर मिले प्रेम कहावै सोय? जिस मार्ग पर चलकर साहब से मुलाकात हो जाए, उस मार्ग का नाम है प्रेम (आकाश की ओर इशारा करते हुए) । या प्रेम उस मार्ग का नाम है जो मैटरनिटी (प्रसूति) वार्ड की ओर जाता है? एक प्रेम होता है जो मन्दिर की ओर जाता है और एक प्रेम होता है जो मैटरनिटी वार्ड की ओर जाता है। कौन से प्रेम की बात कर रहे हो भाई?
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