प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, एक सवाल पूछने का मन हो रहा है, पर पूछते हुए डर लग रहा है।
आचार्य प्रशांत: पूछो।
प्र: गौतम बुद्ध के जन्म का एक उल्लेख है कि उनके जन्म से पहले एक ज्योतिष उनके घर पर आए थे, और उनके पिता से कहा था कि इस घर में एक ऐसा बालक पैदा होगा जो बहुत बड़ा सन्यासी होगा। अब सवाल ये है कि अगर पहले से ऐसा निर्धारित है कि बुद्ध होंगे…
आचार्य: पचास ज्योतिष आए होंगे। बुद्ध के पिता सम्राट थे, देशभर के ज्योतिष उनके महल के चक्कर लगाते होंगे। एक जिसकी भविष्वाणी ठीक बैठ गई, उनकी बात कर रहे हो,और जिनकी ठीक नहीं बैठी?
कहीं कुछ तय नहीं है।
ऊपर वाले ने तुमको कठपुतली बनाकर नहीं भेजा है कि सब कुछ पहले से ही तय है। उसने तुम्हें मुक्ति दी है। बोध, परम मुक्ति है। जब तुम संस्कारित होकर, आदतों के वश में होकर, वृत्तियों के वश में होकर काम करो, तब हो तुम कठपुतली। जब तुम होश में, आज़ादी में, बोध में काम करो, तब तुम नहीं हो कठपुतली। तब कुछ तय नहीं है। तब कुछ नया होता है, तब कुछ अनूठा होता है।
तुम्हें बनाने वाला परम मुक्त है, तो उसकी रचना भी तो मुक्त होगी न। जो स्वयं मुक्त है, वो अपनी रचना को भविष्य के बंधन में क्यों रखेगा? वो क्यों कहेगा, “तेरा भविष्य मैंने पहले ही बाँध दिया"? हाँ, तुम अपना भविष्य पहले ही बाँध लेते हो। वो तुमको मुक्ति देता है, तुम स्वयं को बंधन देते हो।
अगर तुम एक मशीन हो, और एक पूर्व-निर्धारित ढर्रे पर ही काम करते हो, तो कोई भी बता सकता है कि तुम्हारा कल कैसा होगा। तब तुम्हारी कुण्डली बनाई जा सकती है। उदाहरण के लिए – एक मशीन है, एक कार। वो यहाँ से चल रही है, और उसकी गति है – सात किलोमीटर प्रति घण्टा। तो ये बताया जा सकता है कि नहीं कि वो दो घण्टे बाद कहाँ पर होगी? तो मशीनों का भविष्य निर्धारित किया जा सकता है, क्योंकि वो कर ही वही रही हैं, जो उनको उनके मालिक ने करने के लिए बनाया। उनका सबकुछ तय कर दिया गया है।
तो मशीनों भर के लिए कुण्डली हो सकती है, मशीनों भर के लिए ज्योतिष हो सकता है, तुम्हारे लिए नहीं हो सकता है। तुम्हारे लिए भी हो सकता है, उस हद तक, जिस हद तक तुम मशीन हो।
तो अगर तुम्हारा जीवन यंत्रवत बीत रहा है, तो निश्चित रूप से कोई ज्योतिषी आकर तुम्हारे बारे में कुछ बता सकता है। पर अगर तुम्हारा जीवन आज़ादी में, मुक्ति में, होश में, आत्मा में बीत रहा है, तो कौन ज्योतिष शास्त्र तुम्हारे बारे में कुछ कह पाएगा?
बुद्ध जो कर रहे हैं, वो सर्वथा नया है, अनूठा है। यदि नया है, तो किसी को कैसे पता चलेगा? आत्मा, चिरयौवना है। वो सदा नूतन है। जब वो लगातार नई है, तो कोई उसका पहले से पता कैसे लगा लेगा? यदि तुम आत्मा में जीते हो, तो तुम्हारा कुछ पता लगाया नहीं जा सकता, तुम अनुनमेय हो जाते हो। कोई तुम्हारे बारे में कुछ भी विश्वास के साथ नहीं कह पाएगा। तुम न्यारे हो जाओगे, तुम अनूठे हो जाओगे, तुम अप्रत्याशित हो जाओगे। तुम्हारा भविष्य अब कोई ढर्रा नहीं रहेगा।
तुम कुछ ऐसा कभी भी कर गुज़रोगे, जिसका कभी किसी ने कोई अनुमान ना लगाया होगा। तुम अपेक्षातीत हो जाओगे।
अब कोई ज्योतिषी तुम्हारे बारे में कैसे कुछ भी बता देगा? अनुमान सिर्फ़ उन चीज़ों का लगाया जा सकता है जो अनुमान के दायरे में आती हों। यंत्रों का अनुमान लगता है, गणित का अनुमान लगता है। विज्ञान में जो कुछ आता है, उसका अनुमान लगता है। आत्मा का अनुमान कैसे लगा लोगे? परमात्मा स्वयं विराजमान है तुममें, आत्मा के रूप में। और वो परम मुक्त है। उसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।
"रहिमन बात अगम्य की, कहत सुनत की नाय। जे जानत कहत नहीं, कहत ते जानत नाहीं।।"
वो अगम्य है, कोई उसमें प्रवेश नहीं कर सकता। उसके बारे में कोई कुछ कह नहीं सकता – “कहत, सुनत की नाय।” तो कौन-से ज्योतिषी हैं, जो आकर अगम्य की बात बता देंगे? लेकिन फिर कहता हूँ, अगर तुमने तय ही कर रखा हो कि मुझे पूरा जीवन रीति-रिवाज़ों में ही बिताना है, संस्कारों में ही बिताना है, परम्पराओं में ही बिताना है, तो फ़िर तो कोई भी ज्योतिषी आकर बता देगा।
“हाँ जी, ये लड़का पैदा हुआ है, बाईस साल तक पढ़ेगा, पच्चीस में विवाह करेगा, अट्ठाईस में बच्चा पैदा करेगा।” अब तो बताया ही जा सकता है। और खेद की बात ये है कि हम में से अधिकाँश लोग ढर्रों में ही जीते हैं। क्योंकि हम ढर्रों में ही जीते हैं, इसीलिए हमारा भविष्य बताने के लिए किसी ज्योतिषी की भी ज़रुरत नहीं है। कोई राह चलता भी तुम्हारी शक्ल देखकर बता देगा कि तुम्हारा चल क्या रहा है – बाईस तक पढ़ाई, पच्चीस में सगाई, फ़िर विदाई, फ़िर दनादन पिटाई।
(हँसी)
ज्योतिषी चाहिए ही क्यों? कोई भी बता देगा कि तुम्हारा होने क्या वाला है। तुमने तय तो कर रखा है। तुमने जब स्वयं ही तय कर रखा है कि वही सब कुछ करना है जो पूरा ज़माना कर रहा है, तो फ़िर पता ही है कि तुम्हारा अंजाम क्या होना है। तब तो तुम्हारी कुण्डली पहले ही तय है। कोई ज्योतिष शास्त्र चाहिए ही नहीं।
पर अगर बुद्ध की तरह जियो, तो किसी ज्योतिषी के पल्ले नहीं पड़ोगे तुम।
प्र: आचार्य जी, जब कुछ तय ही नहीं है, तो ऐसा क्यों लिखा है गीता में कि – ‘सब तय है’?
आचार्य: कहाँ लिखा है गीता में?
प्र: किसी से सुना है कि ऐसा लिखा है।
आचार्य: किसने कहा है?
कृष्ण ने क्या कहा है ये तुम्हें नहीं पता, पर ‘किसी’ ने क्या कहा है ये तुम्हें पता है। तुम देख लो कि तुम महत्त्व किसको देते हो। ‘कृष्ण’ को’, या किसी’ को’?
तुम्हें अगर कृष्ण से मतलब होता, तो तुमने क्या पढ़ी होती?
प्र: गीता।
आचार्य: पर तुम्हें कृष्ण से कोई मतलब नहीं। तो गीता तो तुम पढ़ते नहीं। तुम क्या पढ़ रहे हो? जो ‘किसी’ ने कहा है। तो जाओ ‘किसी’ के पास, और उससे कहो कि – “मेरा जीवन चला।” कृष्ण से तुम्हें मतलब हो यदि, तो सीधे किसके पास जाओगे? गीता के पास जाओगे, या कृष्ण के पास जाओगे। वहाँ तो तुम जाते नहीं, ‘किसी’ के पास जाते हो। ये ‘किसी-किसी’ छोड़ो। सेहत ख़राब होती है उससे।
यदि ‘चोट’ को चोट लगती, तो तुम सोते में भी रोते। पर चोट वैसे ही रहती है न सोते में भी। मतलब रो कौन रहा है – चोट या मन? ‘चोट’ को चोट लगती, तो तुम सोते में भी रोते न। इसका मतलब, घुटने को नहीं चोट लगी है, चोट मन को लगी है। इसीलिए जब सो जाते हो, तो रोना रुक जाता है। खून बह रहा होता है घुटने से, सोने से वो खून बहना रुक जाता है क्या? खून बह रहा है, आँसू बह रहे हैं, सोने से क्या रुक जाएगा?
प्र: आँसू।
आचार्य: खून नहीं रुकेगा, आँसू रुक जाएँगे। खून असली है, आँसू नकली हैं। असली होते अगर आँसू, तो सोते में भी बहते। खून असली है, वो सोते में भी बहेगा।
खून असली है, आँसू नकली हैं। असली होते अगर आँसू, तो सोते में भी बहते। खून असली है, वो सोते में भी बहेगा। चोट अगर असली है, तो तुम सो भी जाओ, तो भी खून बहेगा। आँसू नकली हैं। आँसू और खून को एक होने दो – आँसू तभी बहें, जब खून बहे। और, और ऊपर अगर जा सकते हो, तो आँसू तब भी ना बहें, जब खून बहे। पर ये तो हालत बिलकुल ही नहीं हो कि खून बह नहीं रहा, और आँसू झूठे ही बहे जा रहे हैं। ये झूठ है।