कुछ नहीं मिला अध्यात्म से! || आचार्य प्रशांत (2019)

Acharya Prashant

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कुछ नहीं मिला अध्यात्म से! || आचार्य प्रशांत (2019)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, कई सालों से अध्यात्म के साथ हूंँ, लेकिन फिर भी एक खालीपन महसूस होता रहता है, इससे बाहर कैसे निकलूंँ? कृपया मार्गदर्शन कीजिए।

आचार्य प्रशांत: मैं आपको इतना बताए देता हूंँ कि खेल बिलकुल आपके हाथ में है। बात यहांँ ग्रह-नक्षत्रों, चांँद-तारों की बिलकुल नहीं है कि आप कहें कि हम तो अधिक-से-अधिक वही कर सकते हैं जो हमने किया और फल नहीं मिला तो किस्मत की बात है। यहांँ किस्मत की बात बिलकुल भी नहीं है।

जब कोई व्यक्ति संसार में कुछ पाने निकलता है, तो किस्मत भी एक बड़ा मुद्दा बन जाती है। आप जा रहे हो परीक्षा देने हो गयी दुर्घटना, बड़ी तैयारी की थी आपने साल में, हो गयी दुर्घटना अब क्या करोगे? नहीं मिलेगा अब परीक्षा फल। नहीं मिलेगा न?

संसार में चीज़ें बड़ी अनियन्त्रित रहती हैं। कुछ पता नहीं चलता कहांँ, कब, क्या, कैसे हो जाए। अध्यात्म में मामला बिलकुल साफ़, खुला, पारदर्शी और ईमानदारी का है। जितनी शक्कर डालोगे पानी उतना मीठा होता जाएगा। बिलकुल तयशुदा है। आउटपुट-इनपुट रेशियो (निर्गम-निवेश अनुपात) बिलकुल ईमानदारी से बांँध दिया गया है, वन (एक)।

जितना श्रम करोगे ठीक उतना फल मिल जाएगा, और कब मिल जाएगा? तत्काल मिल जाएगा। ये भी नहीं कि भविष्य में मिल जाएगा, तो मामला अनिश्चित हो। सारा अनिश्चय और अनिर्णय चलता है संसार में। अध्यात्म में न अनिश्चय है, न अनिर्णय है, संशय की कोई जगह ही नहीं।

तुमने इरादा बनाया नहीं, तुमने श्रम किया नहीं, तुमने समय दिया नहीं कि फल मिल गया। वास्तव में तुम्हारा श्रम करना, तुम्हारा समय देना ही फल है। तो अगर कोई कहे कि मुझे फल नहीं मिल रहा, तो उसकी एक ही वजह होगी, किसी और को दोष मत देना। वजह ये होगी कि तुमने न श्रम किया है, न समय डाला है, न संसाधन डाले हैं।

जिस किसी की जीवन में दुर्गति हो, दुर्दशा हो, जो कोई पाए कि अध्यात्म के अलौकिक फल उसे अप्राप्य हैं, नहीं मिल रहे, वो ये जान ले कि उसने न चाहा, न श्रम किया।

दुनिया में तो ऐसा हो सकता है कि तुम बड़ी मेहनत करो और नतीज़ा न निकले। दुनिया में तो ऐसा होता भी है न। बहुत ऐसे भी हैं जो ज़रा भी मेहनत नहीं करते और बहुत नतीजा निकल जाता है। दुनिया में ये सब गड़बड़-झाला चलता है। जिसको तुम कहते हो किस्मत का खेल, चाँद-सितारों की बातें हैं। दुनिया में ये सब कांड चलते रहते हैं, ये स्कैंडल (कांड) है। दुनिया में होते हैं ये, उसके दरबार में बिलकुल नहीं होते। वहांँ पाई-पाई का हिसाब है।

जितना अपनेआप को आप झोंकते जाएँगे, उतना आपको फल मिलता जाएगा। फल की आशा हो, फल से प्रेम हो, तो अपनेआप को झोंकते चलिए। और जितना अपनेआप को डालते हो, फल उससे हज़ार गुने का मिलता है।

जब मैंने बोल दिया था कि आउटपुट-इनपुट एक है, तो उस एक से धोखा मत खा जाना। वास्तव में तुम जितना डालते हो वो हज़ार गुना होकर के तत्काल तुमको मिल जाता है। अब जब शेयर मार्केट में निवेश करने की बात आती है तब तो हम बड़ी अक्ल लगा लेते हैं। हम कहते हैं इस-इस शेयर में लगाओ, ये साल भर में बीस प्रतिशत का कम-से-कम मुनाफ़ा देगा। और हम बड़े आकर्षित हो जाते हैं। बड़ा अच्छा लगता है, ‘अच्छा! साल भर में बीस टका, बढ़िया है! जल्दी से इसमें लगा दे।’

और अध्यात्म में हम अपना निवेश नहीं करते। अध्यात्म में हम इंवेस्टमेंट (निवेश) नहीं करते। जबकि वहांँ पता है कि साल भर भी नहीं लगेगा, काम तत्काल होगा। और बीस प्रतिशत नहीं मिलेगा, हज़ार गुना मिलेगा। तो राह कठिन नहीं है। सब आप पर निर्भर करता है कि आप कितने कृत्संकल्प हैं चलने के लिए। आप चलें न तो राह को दोष न दीजिएगा।

प्र २: कभी सत्य को देखकर लगता है कि ऐसा कुछ होता है, और फिर बहुत बार लगता है कि नहीं ये सब झूठ है या पदार्थ है। पर अन्त में यही निकलकर के आता है कि जो अहंकार है या जो ज़िद है वो तुरन्त चली जाए और फिर मन में जो द्वन्द है न रहे। पर रहता तो है द्वन्द। तो उसे कैसे छोड़ें?

आचार्य: डिग्री पहले ही सेमेस्टर में मिल गयी थी? तब शिकायत करने गये थे? दो साल में कौन करे दो हफ़्ते में ही दे दीजिए। जब आइआइएम में थे, तब दो ही हफ़्ते में डिग्री, डिप्लोमा पा गये थे क्या? तब तो बड़े धीरज के साथ बाइस महीने काटे थे। अब क्यों अधीर हो रहे हो?

इतनी पुरानी चट्टान है जो तुमनें पर्त दर पर्त जमायी है। पल भर में पिघल जाएगी क्या? दुनिया के छोटे-मोटे काम भी श्रम और समय दोनों मांँगते हैं। बहुत छोटे-मोटे काम भी। और मुक्ति का जो महत् उपक्रम है वो तत्काल सिद्ध हो जाए, ऐसी मांँग है?

हिन्दुस्तान भी आज़ाद हुआ फिर लोगों ने कहा, भई! तरक्की होनी चाहिए। तो फाइव ईयर प्लांस बनते थे, पंचवर्षीय योजनाएंँ। और पंचवर्षीय योजना भी एक नहीं। एक-के-बाद-एक फिर तीसरी फिर चौथी फिर पांँचवी आठवीं। और यहांँ तो बात बस भौतिक तरक्की की थी। आध्यात्मिक मुक्ति की बात नहीं थी। फिर भी कम-से-कम पंचवर्षीय योजना बनती थी।

जो लोग मुक्ति की कीमत जानते हैं उन्होंने कहा है कि अगर लाखों साल साधना करके भी तुम्हें मुक्ति मिलती हो तो समझ लो जल्दी मिल गयी और सस्ती मिल गयी। जो मुक्ति का महत्व जानते हैं उन्होंने कहा है कि सिर कटाकर भी, जो कुछ भी तुम्हारे पास है सर्वस्व, सब न्यौछावर करके भी मुक्ति मिल जाए, तो समझो कि बड़े भाग्यशाली हो। अब लगे रहिए।

YouTube Link: https://youtu.be/ZRfPrO_N_lo

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