मुगलां ज़हर प्याले पीते, भूरियां वाले राजे कीते, सब अशरफ़ हिरन चुक कीते, भला उन्हानूं झड़िया ए, रहो-रहो वे इश्क़ मारया ए, कहो किसनूं पार उतारआ ए। ~ बाबा बुल्लेशाह जी
अर्थ: मुगलों ने ज़हर के प्याले पिये हैं। । कम्बलधारियों को राजा बनाया गया है। सभी शरीफ़ लोग चुपचाप घूम रहे हैं और आप उनकी उपेक्षा कर रहे हैं। हे इश्क़! तूने दूर रहकर मुझे शोकग्रस्त कर दिया है। बता, तूने किसको पार लगाया है?
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम। बाबा बुल्लेशाह अपने प्यारे से शिकायत करते दिख रहे हैं। अन्य सन्तों में भी शिकायत भरे भाव खूब देखे जाते हैं।
वहीं आम लोगों में तो ये भाव ही प्रधान है लोग जिसके साथ प्रेम का व्यवहार दिखाने की कोशिश करते हैं, उन्हीं के प्रति उनकी सारी शिकायतें भी रहती हैं। आचार्य जी क्या प्रेम में शिकायत ज़रूरी है? क्योंकि मैं अपने अन्दर ऐसा भाव नहीं पाता हूँ। तो मुझे ये बात समझ भी नहीं आती। और इसीलिए इस प्रकार की काफी (सूफ़ी भजन) इत्यादि हृदय तक पहुँच भी नहीं पाते। कृपा करें और बताऍं कैसे इस भाव को जाग्रत कर पाऊॅं?
आचार्य प्रशांत: शिकायत सीखी नहीं जाती। शिकायत तो उठती है। जब जो चाहिए वो करीब होकर भी बहुत दूर होता है तो शिकायत तो उठती है। इसलिए सन्त शिकायत गाते हैं। शिकायत कोई चलन, प्रचलन, रुझान, फैशन थोड़े ही है कि पाँच-सात सन्तों को देखा शिकायती होते हुए तो तुमने भी शिकायत कर दी। वैसे शिकायत तुम अभी भी कर ही रहे हो, तुम्हारी शिकायत ये है कि तुम्हारे पास कोई शिकायत नहीं।
उलाहना होती है। कुछ माँग रहे हैं मिल नहीं रहा है। और ये समझ में भी नहीं आ रहा कि अपनी ओर से चूक कहाँ हो रही है। तब भक्त, भगवान से दरख़ास्त करता है, फ़रियाद करता है। और अगर थोड़ा और भावप्रवण हो जाए। तो उलाहना ही दे लेता है।
भक्त सन्तों का अपने भगवान के साथ बड़ा आत्मीय रिश्ता रहा है। उन्होंने यहाँ तक कर दिया है कि रातभर वियोग में अगर वो सो नहीं पा रहे हैं, रातभर यदि भक्त तड़प रहा है भगवान के वियोग में; तो भगवान की मूरत को उठाएगा और बाहर जाकर के ठंड में ओस में रख देगा, कहेगा अब तुम्हें भी नींद ना आये। यही इंसाफ़ की बात है। तुम्हारे वियोग में जैसे हम रातभर सो नहीं पाते हैं, उसी तरीक़े से तुम्हें भी तो ज़रा पता चले हमारी हालत क्या है।
कोई आम आदमी ऐसा करे तो पापी कहलाएगा। कि तुमने प्रभु की प्रतिमा के साथ ही स्वेच्छाचार शुरू कर दिया, तुमने प्रभु की प्रतिमा ही उठाकर के बाहर रख दी रात में! पर एक समर्पित भक्त जब अपनी अनन्यता मे ये करता है तो ये उसके प्रेम का ही सुबूत होता है। प्रेम सब अधिकार दे देता है। प्रेम भक्त को ये अधिकार भी दे देता है कि वो भगवान से लड़ ही जाए। या भगवान की मूर्ति की अपने अनुसार साज-सज्जा कर दे। मेरे भगवान हैं।
जब मैंने उन्हें अपने ऊपर पूरा अधिकार दिया है तो उनके ऊपर मेरा भी अधिकार है। तो भगवान के माथे पर बिन्दी लगा दी। इधर-उधर, पाँच-सात टिकली लगा दी। फीता गोंथ दिया। जो वस्त्र पहनाने है, पहना दिये। जब इतना आत्मीय रिश्ता होता है, तो अब शिकायत तो छोटी बात है, कर ही सकते हो। अब कोई औपचारिकता तो रही नहीं कि कोई बात छुपानी है। कोई अच्छा नहीं लग रहा है तो बोल देंगे। जब हमारा सबकुछ ही तुम्हारे ऊपर प्रकट है, तो छुपाये क्या मन में? यदि निराशा का या विरोध का भाव उठा है तो वो भी प्रकट ही कर देंगे।
पर याद रखना कि ये अधिकार सिर्फ़ उसको मिलता है जिसने अपने सारे अधिकार समर्पित कर दिये हों। जो अभेद की, अनन्यता की स्थिति में पहुँच गया हो, जो अपने भगवान के सामने पूरी तरह से नग्न हो गया हो। कोई बीच में पर्दा न छोड़ा हो, सिर्फ़ उसको ही अधिकार है कि फिर वो शिकायत भी कर ले और शिकायत करने के बाद अपने भगवान को सजा भी दे ले। आप इस अधिकार का प्रयोग मत करने लग जाइएगा। अधिकार का प्रयोग वही करें, जिन्होंने पहले उस अधिकार को अर्जित किया हो। उस अधिकार को अर्जित करने के लिए अर्जित करने वाले को मिटना पड़ता है।
प्र: आचार्य जी प्रणाम। आपकी एक उक्ति है, “बेफ़िक्री नहीं, बेपरवाही नहीं, तो प्रेम नहीं।” तो घर में चर्चा हो रही थी पत्नी से तो हमने कहा कि बेफ़िक्री है, बेपरवाही है, तब प्रेम है। इसका मतलब यही है या उनका तर्क ये था कि बेफ़िक्री नहीं है, बेपरवाही नहीं है तो प्रेम कहाँ से? कृपया इसका मतलब स्पष्ट करें।
आचार्य: प्रेम में एक केन्द्रीय तत्व होता है, एकनिष्ठा। पाॅंच-सात के प्रति निष्ठा नहीं। एक एकनिष्ठा। तो एक के प्रति जब निष्ठा होगी तो बाक़ियों के प्रति क्या हो जाएगी? बेपरवाही। यही प्रेम है। एक की इतनी फिक्र करेंगे, इतनी फिक्र करेंगे कि बाक़ियों के प्रति क्या हो जाएगी? बेफ़िक्री। यही प्रेम है। इसका मतलब प्रेम के लिए समुचित विषय चाहिए। कोई ऐसा चाहिए प्रेम के लिए जो परवाह का, ध्यान का, फिक्र का इतना अधिकारी हो कि तुम्हारी पूरी हस्ती को सोख ले। तुम्हारी पूरी परवाह को सोख लें। तुम्हारी पूरी ऊर्जा, तुम्हारा पूरा समय ले ले। और तुम्हारे पास दूसरों की फ़िक्र या परवाह करने के लिए न ही ऊर्जा बचे, न समय बचें।
इसका मतलब प्रेम किसी बहुत बड़ी आकर्षक समस्या से ही हो सकता है। आकर्षक-समस्या। आकर्षक होनी चाहिए क्योंकि आकर्षक नहीं होगी तो तुम उसको ऊर्जा दोगे क्यों? और अगर समस्या नहीं होगी तो तुम उसमें अपनेआप को झोकोंगे क्यों? तो परमात्मा क्या है? सबसे बड़ी आकर्षक समस्या। तो उसे छोड़ नहीं सकते और तुम उसे सुलझा भी नहीं सकते। छोड़ नहीं सकते क्योंकि आकर्षक हैं, सुलझा नहीं सकते क्योंकि समस्या है। कि प्रवेश करे बिना रहा भी न जाए और प्रवेश कर गए तो न छोड़ा जाए, न बाहर आया जाए। यात्रा शुरू किये बिना रहा न जाए और यात्रा शुरू हो गयी तो ख़त्म होने को ना आये। तब फिर आदमी बेफ़िक्र और बेपरवाह हो जाता है।
समझ में आ रही है बात ? जब चढ़ रहे थे केदारनाथ और आख़िरी दो किलोमीटर थे। तो कितने लोगों को दुनिया की फ़िक्र बची थी? जल्दी बताओ। बेफ़िक्री, बेपरवाही सब छा गयी थी न? क्योंकि सामने एक बहुत आकर्षक और बहुत बड़ी समस्या थी। अब वही-वही है। ये तो कर नहीं सकते उसे छोड़ दो। और उसको अगर छोड़ना नहीं है तो उसको सुलझाने में उससे निपटने में अपने पूरे वजूद की ताक़त लगी जा रही है।
किसी और चीज़ के लिए कुछ शेष ही नहीं रह रहा। तो हमारी समस्या ये नहीं है कि हमारे पास समस्याएँ हैं। हमारी समस्या ये है कि हमारे पास छोटी समस्याएँ हैं । चूॅंकि हमारे पास छोटी समस्याएँ हैं, इसीलिए हमारे पास बहुत सारी ऊर्जा और बहुत सारा समय शेष बच जाता है। और जब शेष बच जाता है, तो वही ऊर्जा और वही समय हमें खाने को आता है। बहुत बड़ी समस्या आमन्त्रित कर लो, घनघोर पंगे ले लो।
अध्यात्म क्या है? एक घनघोर पंगा। जो है नहीं, जो हो नहीं सकता, तुम उसकी तलाश में निकल पड़े हो। जो न आँखों से दिखायी देता है ,न कान से सुनायी देता है, बुद्धि जिसे सोच नहीं पाती, वाणी जिसका ज़िक्र नहीं कर सकती। तुम कह रहे हो तुम्हें वो पाना है। इतना बेहूदा पागलपन चाहिए, मुक्ति पाने के लिए। मुक्ति ऐसों के लिए है जो इस असम्भव अभियान पर निकल सकें। जितना असम्भव होगा अभियान, उतना वो तुम को निचोड़कर रख देगा। लो हो गयी बेफ़िक्री। निचुड़ गये पूरे तरीक़े से । कुछ बचा ही नहीं।