कृष्ण का नित्य स्मरण कैसे किया जाए? || (2020)

Acharya Prashant

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कृष्ण का नित्य स्मरण कैसे किया जाए? || (2020)

प्रश्नकर्ता: प्रिय आचार्य जी, प्रणाम। गीता आदि ग्रंथों को दूर से ही पढ़ने का मन करता है, करीब से पढ़ने पर शांति की जगह अशांति मिलती है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि संसार का मूल कृष्ण ही हैं।

कबीर साहब भी कहते हैं -

कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूँढ़े बन माहि। घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाहि॥

पर ये बात मेरे दैनिक जीवन में उतर नहीं पाती। बुरा लगता है कि जो शांति सर्वत्र ही है, वो मेरे जीवन में क्यों नहीं दिखती।

इसी प्रकार अन्य श्लोकों में श्रीकृष्ण कहते हैं कि “मेरी यह त्रिगुणमई माया अति दुष्कर है, परन्तु जो केवल मुझको ही भजते हैं, वो इस माया का उल्लंघन कर जाते हैं, वो इस माया को जीत जाते हैं।

तो आचार्य जी, कृष्ण सर्वत्र भी हैं और ढँके भी हैं, कृपया इस बात को और निरंतर भजने की बात को ज़िंदगी के तल पर लाकर समझाइए।

आचार्य प्रशांत: प्रश्न का सार समझ गए हैं? पूछा है कि अगर हैं सर्वत्र तो मुझे ही क्यों नहीं दिखते और कहा है कि “निरंतर भजना क्या होता है?” कह रही हैं कि जितना शास्त्रों को पढ़ते हैं, उतना खींझ उठती है। किस बात पर? कि शास्त्र कहते हैं कि वो-ही-वो है, तत्व-ही-तत्व है मात्र; कृष्ण-तत्व के अलावा अन्यत्र कहीं कुछ नहीं। और कह रही हैं कि “मैं तो माया में फँसी हूँ, मुझे तो कृष्ण कहीं दिखते नहीं, तो ये बात तो कुछ जमी नहीं।“

प्र२: आचार्य जी, श्रीकृष्ण ने तो माया को भी अपना कहा है और उससे तरने की भी बात कर रहे हैं। कितनी सरलता से श्रीकृष्ण को सत्य और माया अलग-अलग दिखाई दे रहे हैं, अलग-अलग समझ आ रहे हैं। तो आचार्य जी, मेरा प्रश्न है कि मुझे माया तो बहुत साफ़-साफ़ दिखाई देती है, पर कभी भी, कहीं भी श्रीकृष्ण क्यों नहीं दिखाई देते?

आचार्य: कुछ महत्वपूर्ण श्लोक हैं, जिनको अगर भज लिया तो तर जाएँगे। उनको मैं आपके सामने कहता हूँ। जिन श्लोकों को मैं अभी कहूँगा, उनको ध्यान में रखिएगा। आज की पूरी चर्चा में वो बार-बार प्रासंगिक सिद्ध होंगे।

मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये | यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वत: ||

हज़ारों मनुष्यों में से कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करता है और फ़िर उन यत्न करने वालों में से भी कोई एक मुझे जान पाता है।

- श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ७, श्लोक ३

"हज़ारों मनुष्यों में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करता है।" एक की बात कर दी गई, नौ-सौ-निन्यानवे क्या कर रहे हैं, यह भी याद रखिएगा। एक क्या करता है? श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए यत्न करता है। नौ-सौ-निन्यानवे को तो इस श्लोक में उल्लेख के लायक भी नहीं समझा गया। पर हमारे-आपके लिए ज़रूरी है कि हम याद रखें कि वो नौ-सौ-निन्यानवे क्या कर रहे हैं। क्या कर रहे हैं?

हज़ार में से कोई एक तो है जो सच्चाई और मुक्ति के लिए यत्न करता है और निश्चित-रूप से वो सुपात्र है, उसका उल्लेख श्रीकृष्ण ने इस श्लोक में कर दिया।

ये एक तो बहुत दूर का तारा है, पता नहीं; नौ-सौ-निन्यानवे को याद रखिएगा। उसको ग़ौर से देख लिया तो उस नौ-सौ-निन्यानवे वाली भीड़ से अलग होना सम्भव हो पाएगा।

"और फिर उन यत्न करने वालों में से भी कोई एक मुझे जान पाता है, अर्जुन। हज़ारों में कोई एक होता है जो यत्न करता है और उन यत्न करने वालों में से भी यदा-कदा ही कोई मुझे जान पाता है।" इसको याद रखेंगे।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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