किसी ख़ास विषय के प्रति आसक्ति || आत्मबोध पर (2019)

Acharya Prashant

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किसी ख़ास विषय के प्रति आसक्ति || आत्मबोध पर (2019)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मेरे भाई की शादी है। मन एक तरफ़ तो आकर्षित हो रहा है, दूसरी ओर घबराहट भी हो रही है। ख़रीदारी करना अच्छा लगता है, लेकिन शादी में जाने से घबरा रही हूँ। कृपया मार्गदर्शन करें।

आचार्य प्रशांत: ख़रीद लो, जाना मत। क्या बताएँ? ख़रीद लो, ख़रीद के दान कर दो।

देखो, ये सारी चीज़ें बनी ही चित्त को आकर्षित करने के लिए हैं और जब तक चित्त की उन्मादी अवस्था रहेगी, वह आकर्षित होता भी रहेगा। ऐसा थोड़े ही है कि बस तुमको शादी भर ही आकर्षित करती है, और भी चीज़ें तो आकर्षित करती होंगी। त्यौहार आ रहे हैं अभी, तुम्हें शोर-शराबा आकर्षित करेगा। शादी भर के लिए ही थोड़े ही तुमको ख़रीदारी, शॉपिंग भली लगती होगी, अन्यथा भी ख़रीदारी बड़ी आकर्षक चीज़ लगती होगी।

तो यह बात किसी एक विशिष्ट घटना की नहीं है, यह बात चित्त की उत्तेजित और भ्रमित दिशा की है। जब तक चित्त की दशा ऐसी है, तब तक तो कभी उसे ख़रीदारी का लोभ रहेगा, कभी रिश्तेदारी का लोभ रहेगा, कभी किसी चीज़, कभी किसी चीज़, दुनिया भर में पचास प्रपंच हैं जिनकी ओर वह भागता रहेगा। तो ग्रंथों का अध्ययन करो, मन है क्या, इसको समझो; वृत्तियाँ क्या हैं, जीव को कैसे नचाती हैं और वृत्तियों पर चलने का अंजाम क्या होता है, यह सब समझो—फिर एक घटना नहीं, कई घटनाओं से बच जाओगी।

अभी तो ऐसा लगता होगा न कि एक परेशान करने वाली चीज़ आ गई है संयोगवश सामने और उस एक चीज़ के अलावा बाकी तो जीवन में जो कुछ है, सब बढ़िया ही चल रहा है। नहीं, ऐसा नहीं है कि उस एक चीज़ के अलावा बाकी सब बढ़िया चल रहा है। इस भ्रम से बहुत लोग ग्रस्त रहते हैं। वे आते हैं, कहते हैं कि “बाकी सब बढ़िया है, बस एक यही चीज़ गड़बड़ है।” कभी कोई एक चीज़ गड़बड़ हो ही नहीं सकती।

यह ऐसी ही बात है कि कोई चिकित्सक के पास जाकर बोले कि “वो बस इस उँगली में जो ख़ून है, वह ख़राब है। (उँगली दिखाते हुए) बाकी तो पूरे शरीर में जो ख़ून है, वह बिलकुल साफ़ है। इस छोटी उँगली का ख़ून ख़राब हो गया, इसको ज़रा शुद्ध कर दीजिए।”

कोई तुमसे आकर बोले, “ये छोटी उँगली का ब्लड कैंसर हो गया है।” ब्लड कैंसर है तो पूरे शरीर में होगा न भाई, या केवल छोटी उँगली भर में? हाँ, यह हो सकता है कि अभी तुमको प्रतीत बस यही हो रहा है। प्रतीत यही हो रहा है, इसका मतलब यह नहीं है कि केवल यहीं पर है, वह तुम्हारे पूरे तंत्र में है, नख-शिख, तुम्हारी पूरी व्यवस्था में है।

संयोग की बात है कि अभी दिख नहीं रहा पूरा, पर दिखेगा, पूरा दिखेगा। पूरा वह फैल जाए ज़हर, तुम्हारे रेशे-रेशे में व्याप्त हो जाए, उससे पहले जो मूल कारण है, उसको ही मिटा दो। मूल कारण है अज्ञान, मूल कारण है अपने प्रति भ्रम। ग्रंथों के साथ रहो, सत्संग से जुड़ी रहो, बहुत बातें साफ़ होंगी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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