किसकी संगत अच्छी है तुम्हारे लिए? || आचार्य प्रशांत (2019)

Acharya Prashant

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किसकी संगत अच्छी है तुम्हारे लिए? || आचार्य प्रशांत (2019)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी नमन। गुरु कबीर जी हर पल साधु के संग रहने को कह रहे हैं। साधुसंग से शरीर के पाप मिट जाते हैं, ऐसा उन्होंने भजन में कहा है। शरीर, अहंकार, संसार — ये सब परेशानियाँ तो बनी ही रहती हैं मेरे जीवन में और बार-बार लगातार हावी भी हो जाती हैं। ये हर पल साधु के संग को बनाए रखने की जो बात है, यह मैं कैसे साध सकता हूँ और साधु का अर्थ क्या होता है?

आचार्य प्रशांत: अब साधु अगर कोई इंसान हो — पूछा है, साधु का अर्थ क्या होता है — तो साधु अगर कोई इंसान हो और आप कहें कि कबीर साहब कह गये हैं कि चौबीस घंटे साधु का संग होना चाहिए, तो साधु के लिए बड़ी आफ़त हो जाएगी। आप तो साधु के साथ रहना चाहते हैं चौबीस घंटे, ये भी तो पूछ लीजिए कि साधु आपके साथ रहना चाहता है कि नहीं। कौनसा साधु है जो दुनिया के साथ रहने में बड़ा आनन्द अनुभव करेगा? वो भी चौबीस घंटा।

तो निश्चित रूप से किसी व्यक्ति की, इंसान की तो बात हो नहीं रही है। किसी बाहरी साधु की बात नहीं हो रही है। जिसके साथ चौबीस घंटे रहना है, वो तो कोई भीतरी ही साधु होगा। बाहरी साधु के अपने तरीक़े होते हैं। उसके साथ आप रहेंगे, बहुत दिक़्क़त होगी। दिक़्क़त ये नहीं होगी कि साधु इतना महान है कि आप उसके तौर-तरीक़ों का अनुसरण नहीं कर पाएँगे। दिक़्क़त ये होगी कि उसके साथ चौबीस घंटे रह गये तो वो आपको महान लगना बन्द हो जाएगा। आप ये सोचते हैं, ‘साधु के साथ चौबीस घंटे कैसे बिताएँगे? उसकी तो रूखी-सूखी दिनचर्या, कड़ा अनुशासन।’ ये सब आपकी कल्पनाएँ रहती हैं साधु के बारे में। और कहीं चौबीस घंटे रहने गये और कुछ ऐसा दिख गया जो आपकी मान्यताओं से मेल नहीं खाता तो आप कहेंगे, ‘भक! ये कोई साधु है।’

साधु के साथ रहने का तो विचार भी मत करिए, अगर आप साधु से अर्थ कर रहे हैं व्यक्ति का। साधु हमें महान लगते भी इसलिए हैं, क्योंकि दूर रहते हैं। नहीं तो हमारी जो महानता की धारणा है, उसपर कोई साधु खरा नहीं उतरेगा।

वो बेचारे इसीलिए दूर रहते हैं कि जब तक इनसे दूर हैं, तब तक तो पिट नहीं रहे और अगर इनका कर दिया कि आओ, आओ, साथ रहना ही शुरू कर दो, तो ये हमें कहीं का नहीं छोड़ेंगे। क्योंकि साधु महान है और हमारे पास महानता के किस्से हैं। अन्तर समझिएगा। साधु की आत्मा में महानता है और हमारे पास महानता के किस्से हैं। साधु की आत्मा हमारे किस्सों से मेल खाएगी ही नहीं। तो बड़ी आफ़त हो जानी है।

मैं छोटा था तो मन्दिर ले जाएँ घर वाले। तो वहाँ कई बार देखें कि मन्दिर के कपाट अब बन्द किये जा रहे हैं। पुजारी आये और कहे, ‘देखिए, अब समय हो गया, मन्दिर के कपाट बन्द किये जाएँगे।’ तो मैं पूछूँ कि बन्द क्यों करते हैं, तो मुझे बता दिया जाए कि सो जाते हैं (भगवान् सो जाते हैं)। तो मैं कहूँ, ‘सो जाते हैं तो क्या हो गया? हम देख लेंगे कि सो रहे हैं।’ तो एक दिन जिनसे मैंने पूछा वो झुँझला गये और बोले, ‘अभी भगवान जी ऐसे काम करते हैं जो देखने नहीं चाहिए।’ मैंने कहा, ‘फिर ठीक है, अब नहीं पूछूँगा।’ (श्रोतागण हँसते हैं)

नहीं तो मुझे औचित्य ही समझ में न आये कि मन्दिर के कपाट काहे को बन्द किये जाते हैं, भाई। ये सोने की तो बात ही अजीब है। ऐसी हमारी मान्यताएँ हैं, ऐसी हमारी ज़िद है। भगवान को भी हमसे छुपना पड़ जाए, कपाट बन्द करने पड़ जाएँ, क्योंकि कपाट अगर खुले रह गये तो हम भगवान को भी बख़्शेंगे नहीं।

वहाँ भी यही रहता है कि चार घंटे के लिए हम सार्वजनिक उपस्थिति दे रहे हैं। इन चार घंटों में हमें देख लो, इन चार घंटों में हम वैसे ही रहेंगे जैसे तुम हमें देखना चाहते हो। पर चौबीस घंटे! ये तो मामला गड़बड़ हो जाएगा।

भीतरी साधु को जगाने का मतलब होता है, बाहरी साधुता के प्रति मान्यताएँ और आग्रह छोड़ देना।

ये बात समझिए ठीक से। जब तक आपके पास आग्रह है और मान्यता है कि साधुता का जीवन इस-इस तरह का होता है, एक नक़्शा है आपके पास, एक ब्लूप्रिंट (नक़्शा), तब तक भीतरी साधु जगेगा ही नहीं, क्योंकि उसकी ज़रूरत ही नहीं है। आपको तो पहले ही पता है साधु माने क्या।

जैसे ही आप ये विश्वास छोड़ेंगे कि आप जानते हैं साधु माने क्या, वैसे ही भीतरी साधु आपके लिए उपस्थित हो जाएगा। साधुता से जो मेरा अर्थ है वो है गुडनेस , शुभता।

जब तक आपके पास ये दम्भपूर्ण, अहंपूर्ण और अन्धकारपूर्ण आग्रह है कि आप व्यक्तिगत रूप से जानते हैं कि शुभ क्या है, तब तक आपके पास शुभ का केवल नाम होगा, कुछ किस्से होंगे, शुभता नहीं होगी आपके पास।

और इसीलिए हमारा जीवन शुभता से इतना रिक्त रहता है, क्योंकि हमें पहले ही पता है शुभता क्या है और इसीलिए दुनिया भी फ़र्ज़ी साधुओं से इतनी भरी हुई है, क्योंकि हमें पहले ही पता है साधु क्या है। साधु की जो रूपरेखा हमारे मन में है, वही दुनिया में सबके मन में है और सबको पता है कि अगर ऐसे-ऐसे व्यवहार करो तो साधु कहलाओगे और ऐसे-ऐसे व्यवहार करोगे तो साधु नहीं कहलाओगे। तो जो भी कोई अपनेआप को साधु कहलाना चाहेगा, वो आपकी मान्यताओं के अनुसार व्यवहार करना शुरू कर देगा। आप तत्काल बोल देंगे, ये रहा साधु।

अब जब इस तरीक़े से साधुता का खेल चलना है तो भीतर की जो असली साधुता और शुभता है, उसको ज़रूरत क्या पड़ी है प्रकट होने की?

अभी मैं यहाँ पर पाँच-सात तस्वीरें लगा दूँ और उसमें आपसे पूछूँ कि बताइएगा साधु कौन है, तो आप ये तो नहीं कहेंगे न कि हमें क्या पता। मैं कहूँ कि अच्छा, कम-से-कम ये बता दीजिए कि ये पाँच-सात-दस तस्वीरें हैं, इनमें से सम्भावना किसकी है ज़्यादा साधु होने की, तो आप कुछ-न-कुछ तो बता ही देंगे। कुछ लोग तो बहुत विश्वास के साथ बता देंगे कि वो जो है न जिसने भगवा पहन रखा है, जिसकी दाढ़ी लम्बी है, जो माला जप रहा है, जिसके माथे पर राख मली हुई है, वो साधु है। कह देंगे कि नहीं कह देंगे? बोलिए, बोलिए।

तो हमारे पास शुभता की तस्वीरें हैं, चित्र हैं, छवियाँ हैं। इसी तरीक़े से मैं यहाँ पर कुछ अन्य सामान्य स्त्री-पुरुषों की तस्वीर लगा दूँ और कहूँ कि बताइए कि इनमें किसके जीवन में शुभता है, तो आप कुछ-न-कुछ तो बता ही देंगे न। आप ये तो नहीं कहेंगे कि हम कुछ नहीं कह सकते। जिसको आप देखेंगे कि मुस्कुरा रहा है, आप कह देंगे, ‘इसके जीवन में शुभता है।’ जिसको आप देखेंगे कि स्वस्थ है, उसको आप कह देंगे, ‘इसके जीवन में शुभता है।’

तो हमारे पास शुभता को लेकर बड़े ज़िद्दी आग्रह हैं। हैं कि नहीं हैं? बोलिए। उन्हीं के कारण असली साधुता छुपी रह जाती है। इन आग्रहों को छोड़ेंगे तो चौबीस घंटे साधु के साथ ही रहेंगे। ऐसा नहीं कि साधु कहीं से आ जाएगा। बात ये है कि फ़िलहाल आप चौबीस घंटे अपने साथ रहते हैं। अपना साथ छोड़ेंगे तो साधु का साथ स्वभावतः मिल जाएगा, अपना साथ छोड़ें तो सही।

संसार की संगति को हम कहते हैं कि बुरी होती है। पर संसार की संगति से भी ज़्यादा बुरी होती है अपनी संगति।

वो लोग तो कुसंगति में हैं ही, जो दुनिया के साथ इधर-उधर घूमते रहते हैं। उनसे ज़्यादा बड़ी कुसंगति में वो हैं, जो बैठे-बैठे अपने ही दिमाग़ के साथ घूमते रहते हैं।

साधु का अर्थ ये तो होता ही है कि तुम दुनिया के प्रति आसक्ति से मुक्त हुए। उससे ज़्यादा ज़रूरी ये होता है कि तुम अपने प्रति लिप्तता से मुक्त हो जाओ। फिर तुम पाओगे कि हो गयी, संगति हो गयी, साधु की संगति हो गयी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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