केवल होना है तुम्हारी विशिष्टता || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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केवल होना है तुम्हारी विशिष्टता || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

वक्ता: तुम्हारा होना ही दूसरों से अलग है। अपने होने को पहचानते हो न? किसी और के होने को भी जान सकते हो क्या? तुम्हारा होना ही तुम्हें दूसरों से अलग बनाता है। तुम्हारे बाकि सारे गुणों की नकल हो सकती है। जो कुछ भी तुम करते हो कोई और भी कर सकता है। तुम भूल में हो अगर तुम सोच रहे हो कि तुम ऐसा कर सकते हो या कुछ भी ऐसा कह सकते हो, जो कोई और नहीं कह सकता। तुम्हारे सारे काम दूसरों से मिलते- जुलते होंगे, तुम्हारे हाथ में उँगलियाँ होंगी, तुम भी औरों के समान दो आँखों से देखोगे। जो आवाज़ तुम सुन सकते हो दूसरे भी सुन सकते हैं। जिस तरंग(वेवलेंथ) पर तुम देख पाते हो, वो दूसरे भी देख पाते है। जो रसायन तुम्हारे शरीर में बनते हैं वो दूसरों के शरीर में भी बनते हैं। जितना वजन तुम उठा लेते हो, उतना दूसरे भी उठा लेते हैं। अगर कोई बहुत बड़ा पहलवान है वो ३०० किलो वजन उठा लेता है तो कोई दूसरा भी होगा जो २९० किलो उठ लेता हो। अब ३०० और २९० में कोई विशेष अंतर तो हुआ नहीं, तो वो तो तुम्हारी विशिष्टता नहीं हो सकती।

तुम्हारी विशिष्टता है तुम्हारा होना। तुम्हारा होना ही तुम्हें अलग बनाता है, उसके अलावा किसी और गुण को मत तलाशो क्योंकि बाकि सारे गुण….

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): सामान्य हैं ।

वक्ता: हैं ही सामान्य। लड़कियों के गुण एक से होते हैं, लड़कों के गुण एक से होते हैं। जवानों के गुण एक से होते हैं, बूढों के गुण एक से होते हैं, बच्चों के गुण एक से होते हैं। तुम अपना ब्लड ग्रुप ही देख लो, ४-५ तरह के ब्लड-ग्रुप में सारी मानवता आ जाती है। जो RH Factor होता है वही देख लो, २ ग्रुप में पूरी मानवता आ गई। सब कुछ एक सा है। अपना DNA उठा लो, हम लोग जो यहाँ हैं उनमें काफी अंतर है उम्र का, धर्म का, परवरिश का भी अंतर होगा, पर हमारे अंदर ९९.९९% DNA समान होते हैं। हमारे DNA समान है तो फिर भी ठीक है, अभी एक बंदर आएगा तो तुम्हारा DNA उससे भी समान होगा। तो उसमें कहाँ तुम्हें ऐसा कुछ मिलेगा जो तुम्हें विशिष्ट बनाता है।

तुम्हारी विशिष्टता है तुम्हारा होना। तुम्हारी खासियत है वो चेतना जो तुम्हारी ही है, जो उधार की नहीं है, जो कोई ओर नहीं दे सकता। वहां पर तुम अनूठे हो क्योंकि वो चेतना न किसी ने दी है, न कोई ले सकता है, वो तुम्हारी अपनी है। उसमें किसी का कोई दखल नहीं हो सकता। तुम अपने किसी गुण को मत तलाशना, ये कहीं नहीं ले जाएगा। तुम जिंदगी भर ये सोचते रहो कि मुझमें ऐसी क्या खासियत है जो किसी और में नहीं है, तो तुम ये समझ ही नहीं रहे हो कि तुम अभी भी दूसरों के गुलाम हो, क्योंकि अभी भी तुम ये पकड़ कर बैठे हो कि कुछ ऐसा हो जो दूसरों में नहीं है। सोच अभी भी दूसरों के संदर्भ में ही है।

अकेले हो पाना ही तुम्हारी विशिष्टता है।

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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