कल्पना है शहद की धार,असली प्रेम खड्ग का वार || आचार्य प्रशांत (2013)

Acharya Prashant

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कल्पना है शहद की धार,असली प्रेम खड्ग का वार || आचार्य प्रशांत (2013)

वक्ता : प्रेम की भी न बस एक छवि है, एक धारणा, कि प्रेम का अर्थ है कि ‘अच्छे-अच्छे से रहना, अच्छा व्यवहार’। “अगर मैं अपने पति से प्रेम करती हूँ तो मुझे उसे दुःख नहीं पहुँचाना चाहिए।” प्रेम को तुम लोगों ने ऐसे समझ रखा है जैसे कोई प्यारा सा खिलौना हो। प्रेम का नाम लेते ही खिलौने की तस्वीर आती है दिमाग में; और प्रेम होता है तलवार। तो सब उल्टा-पुल्टा चल रहा है काम। प्रेम होता है वास्तव में तलवार; वो खिलौना नहीं होता। प्रेमी वैसा नहीं होता कि ‘आओ-आओ, लो रोटी खा लो।’ वो घूस खाकर आया है और तुम घर में उसे रोटी खिला रही हो! दो जूते नहीं मार रहीं मुँह पर!

ये जो तुलसीदास हैं आपके इनकी बड़ी एक मज़ेदार कहानी है। इनकी एक पत्नी थी जिनका नाम रत्नावती था। तो उन्हें एक बच्चा हुआ था और वह बच्चा मर गया। तो रत्नावती दुःख में थीं। उन्हीं दिनों वो अपने मायके चली गयीं। अब स्त्री हैं, उन्हें दुःख होता है बच्चे का ज़्यादा। पर पुरुष की ठरक को इनसे फरक नहीं पड़ता। बच्चा-वच्चा मर गया कोई बात नहीं, पांच-दस दिन थोड़ा दुखी हो लिए। दोबारा उनपे कामोत्तेजना चढ़ गयी। तो महीना भर ही बीता होगा। वो रात में, बरसात की रात, काली, वो उसके मायके पहुँच गए। अब पहुंचे हैं रात में, बारह-एक बज रहा है। पत्नी पहली मंज़िल पर हैं, चढ़ें कैसे? सामने के दरवाज़े से जा नहीं सकते। कैसे बताएं जनता को कि मैं तो ठरक में आया हूँ बिलकुल। तो वो वहां हैं पहली मंज़िल पर। तो एक रस्सी लटक रही थी, तो रस्सी पकड़ कर वो ऊपर चढ़ गए। चढ़ गए ऊपर तो पहले तो उनकी पत्नी ने उनको जम कर के धिक्कारा कि “तुम्हें ठरक है! अपने आप को तो बर्बाद कर ही रहे हो, मेरा जीवन भी क्यों नष्ट कर रहे हो?” उसके बाद पत्नी पूछती है कि यहाँ चढ़े कैसे? तो वह बोलते हैं कि वो रस्सी लटक रही थी, रस्सी पकड़ कर चढ़ गया। तो पत्नी बोलती है कि देखें ज़रा। देखा तो सांप लटक रहा था। तो लगाए होंगे दो-चार तगड़े हाथ। फिर वह बोलीं: “जितनी आसक्ति तुम्हारे मन में काम के लिए थी, वासना के लिए थी, कि घुस आए हो मेरे कमरे में, इतनी आसक्ति अगर राम के लिए होती तो पता नहीं तुम कहाँ पहुँच गए होते। और दिया होगा धक्का कि यही सांप पकड़ के अब उतर भी जाओ नीचे जब चढ़ आए हो ऐसे तो। जो भी है, मतलब भगा दिया उन्हें। और फिर उसके बाद तुलसीदास “तुलसीदास” हो गए।

बीज पहले से ही था, वो बचपन से ही कहते थे अपना गाते भी थे, तो उनका नाम ही रख दिया गया था ‘राम बोला’। पर वो सब दबा पड़ा था।

प्रेम है, तो तलवार चलाओ। फिर उसने ये नहीं सोचा कि इतनी रात में, बारिश हो रही है, ये हो रहा है, ये आए ही पता नहीं कैसें हैं और वापस कैसे जाएँगे। उसने कहा: “निकल यहाँ से! जब सांप पकड़ के चढ़ सकता है तो सांप पकड़ के उतर भी, निकल यहाँ से!”

और आज की हमारी आदर्श हिन्दू स्त्री कहेगी – “आओ महाराज, आ ही गए हो तो पहले चाय पियो फिर बिस्तर तैयार करती हूँ। इतनी ठरक लेकर के आए हो अब तुम्हारा कुछ तो जुगाड़ होना चाहिए। और यही नहीं, उसको बड़ा गर्व अनुभव होगा कि मेरा पति मुझसे इतना प्रेम करता है कि रात में आया और सांप पकड़ के चढ़ गया।” और अगले दिन वो फेसबुक स्टेटस में भी यही डालेगी – “मेरा पति मुझसे बहुत प्यार करता है।”

श्रोता १: और तस्वीर भी डालेगी।

वक्ता : हाँ, और सांप की भी; और सांप की कुछ ऐसी शकल है कि यार कमाल हो गया।

तो यह तो आप पर निर्भर करता है कि आप कैसे हो।

~ ‘शब्द योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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